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दृश्य सहायक सामग्री | Visual Aids in Hindi

दृश्य सहायक सामग्री
दृश्य सहायक सामग्री

अनुक्रम (Contents)

दृश्य सहायक सामग्री (Visual Aids in Hindi)

दृश्य सहायक सामग्री के अन्तर्गत सम्मिलित सहायक सामग्री निम्नलिखित हैं-

(1) श्यामपट्ट (Blackboard)

(2) मॉडल (Models)

(3) चित्र (Pictures)

(4) चार्ट (Charts)

(5) ओवरहेड प्रोजेक्टर (Overhead Projector)

(6) स्लाइड प्रोजेक्टर (Slide Projector)

(7) स्लाइड्स (Slides)

(8) जादू की लालटेन (Magic Lantern)

(9) ग्राफ (Graph)

(10) मैप (Map)

1. श्यामपट्ट (Blackboard)

श्यामपट्ट शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इसका आविष्कार जेम्स विलियम ने किया है परन्तु हमारे देश में शैक्षिक संस्थाओं में श्यामपट्ट के लिए पर्याप्त स्थान रखने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता और जहाँ ये उपकरण है तो उनका आकार-प्रकार उचित नहीं है या उनकी अत्यन्त उपेक्षा की जाती है। भारत में श्यामपट्ट नामक सहायक सामग्री की स्थिति का विवरण शिक्षा आयोग ने लिखा है, “हमारे अधिकांश विद्यालयों में विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर आज भी एक अच्छे श्यामपट्ट्, एक छोटे पुस्तकालय, आवश्यक नक्शे, और चार्ट तथा आवश्यक प्रदर्शन सामग्री का पूर्ण अभाव है।”

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के अनुसार, “रंगों में काला रंग महत्वपूर्ण स्थान नहीं रखता परन्तु एक ब्लैक बोर्ड विद्यार्थी के जीवन को उज्जवल बनाता है।”

श्यामपट्ट की विशेषताएँ (Characteristics of Blackboard)

श्यामपट्ट की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यह एक ऐसा साधन है जो सभी विद्यालयों में आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है।

(2) इसका प्रत्येक अध्यापक अपनी सुविधानुसार उपयोग कर सकता है

(3) श्यामपट्ट से अध्यापक सुलेख का आदर्श प्रस्तुत कर सकता है।

(4) श्यामपट्ट पर लिखी बातें मौखिक बातों से अधिक प्रभावशाली होती हैं।

(5) श्यामपट्ट पर लिखते समय शिक्षक बोलता भी रहता है। इससे विद्यार्थियों को पाठ्य वस्तु को समझने में कोई परेशानी नहीं होती।

(6) आकृतियों को श्यामपट्ट के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।

(7) श्यामपट्ट पर विद्यार्थी भी सामाजिक अध्ययन सम्बन्धी समस्याओं को हल कर अपने आत्मविश्वास में वृद्धि कर सकते हैं।

श्यामपट्ट के लाभ/चॉक बोर्ड के उपयोग (Advantages of Blackboard/Uses of Blackboard)

श्यामपट्ट के लाभ / उपयोग निम्नलिखित हैं-

(1) इस साधन में बिजली की आवश्यकता नहीं होती।

(2) ये रख-रखाव में सुविधाजनक है। इसमें खर्च अधिक नहीं होता

(3) यह कम श्रम में अधिक टिकाऊ साधन है।

(4) इसे कक्षा के अन्दर या बाहर प्रयोग किया जा सकता है।

(5) कक्षा में इसका प्रयोग तुरन्त हो जाता है। किसी पूर्व तैयारी की जरूरत नहीं होती।

(6) शिक्षक अपना कार्य तेजी से कर सकता है।

(7) गलती को तुरन्त मिटाकर सुधारा जा सकता है।

(8) विद्यार्थी से लिखवाया जा सकता है।

(9) विद्यार्थी लिखित कार्य को उतार सकते हैं।

(10) इसे अन्य दृश्य-श्रव्य सामग्री के साथ प्रयोग किया जा सकता है।

(11) पाठ सारांश लिखने में उपयोगी है।

(12) पाठ की रूपरेखा लिखने में उपयोगी है।

2. मॉडल (Models)

मॉडल से अभिप्राय किसी वस्तु की ऐसी प्रतिमा है जिसे छात्र स्पर्श कर सकें जिससे उनकी जिज्ञासा शान्त हो सकें।’ मॉडल के तीन स्तर होते हैं तथा जिन बातों को चित्रों के द्वारा दृश्य नहीं बनाया जा सकता उन्हें मॉडल के द्वारा दर्शनीय बनाया जा सकता है। इनकी सहायता से छात्रों को भीतरी तथा बाह्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
[9:44 AM, 7/29/2023] Shubham Yadav: शिक्षण में कभी-कभी प्रत्ययों का स्पष्टीकरण मौखिक वर्णन, चित्रों और प्रत्यक्ष अनुभवों के पश्चात् भी सरल नहीं हो पाता। उस समय प्रतिमान का उपयोग प्रभावी हो सकता है। वास्तविकता का बोध कराने हेतु मॉडल का प्रयोग उत्तम है। छात्रों को हृदय पढ़ाने हेतु विभिन्न उपकरण कक्षा में लाए नहीं जा सकते परन्तु उनके छोटे मॉडल की सहायता से छात्रों को दिखाकर उनकी जिज्ञासा शान्त की जा सकती है।

मॉडल के प्रकार (Types of Models)

मुख्य रूप से मॉडल का प्रयोग तब किया जाता है जब वास्तविक पदार्थ बहुत बड़े हों तथा उपलब्ध न हो सकें। सामान्यतः मॉडल कई प्रकार के होते हैं-

(1) ठोस प्रतिमान (Dummy Model) – यह किसी वस्तु के बाह्य रूप को प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं, जैसे- ग्लोब, डेल्टा। ये मापित (Scaled), अमापित (Unscaled) या वस्तु के समरूप (Simulated) हो सकते हैं।

(2) स्थिर प्रतिमान (Static Model) – यह किसी वस्तु की आन्तरिक संरचना को प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। ये पारदर्शी खण्ड (Transparents walled) के रूप प्रकार के (Cut away type) बहुआयामी काट (Sectional view type) पर आधारित हो सकते हैं।

(3) कार्यपरक प्रतिमान (Dynamic Working Model) – किसी प्रक्रिया या सिद्धान्त के स्पष्टीकरण के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। इनके द्वारा गतिशील पदार्थ / वस्तु का निरीक्षण उसकी स्थिर अथवा कार्यरत (dynamic) स्थिति में किया जा सकता है। ये हाथ अथवा बटन द्वारा संचालित हो सकते हैं।

(4) समरूपी प्रतिमान (Simulated Model)- किसी वृहदाकार (अत्यन्त विशाल) गतिशील स्थिति को प्रदर्शित करने के लिए इसे प्रयुक्त किया जाता है।

(5) डायोरामा (Diorama) – ये त्रिआयामी दृश्य ( 3-D scenes) होते हैं जिन्हें वस्तुओं, चित्रों, प्रकाश व ध्वनि प्रभावों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह इतिहास की घटनाओं या दूर स्थित या दुर्लभ स्थितियों को प्रदर्शित करने का प्रभावी साधन है। उदाहरण के लिए- दिल्ली के लालकिले में भारत की स्वतन्त्रता संग्राम दिखाने के लिए ध्वनि और प्रकाश के प्रभाव वाला डायोरामा दो हफ्ते के लिए अगस्त में आयोजित किया गया था। ऐसे ही ईराक का इतिहास दर्शाने वाला स्थिर दृश्य बगदाद के दक्षिण में कादिसिया पैनोरमा (Qadisiya Panorama) नामक स्थान में विद्यमान है। इसके अतिरिक्त संग्रहालयों (Museums) में स्टील इण्डस्ट्री, कोयले की खानों के भीतर का दृश्य और चाँद के पर्यावरण के दृश्य दर्शाने वाले डायोरामा भी मिल जाते हैं। डायोरामा में प्रयुक्त क्रान्तिमान और अन्य वस्तुएँ मापित (Scaled) नहीं होती। इनको व्यक्ति दूर से ही देखता है और किसी भी वस्तु को छूने की अनुमति उसे नहीं होती।

मॉडल की आवश्यकताएँ (Needs of Models)

मॉडल की निम्नलिखित आवश्यकताएँ हैं-

(1) वस्तु का अधिक छोटा होना, जैसे- अणु कोशिकाएँ आदि।

(2) वस्तु का बड़ा होना जो उपलब्ध न हो, जैसे- नदी, ज्वालामुखी आदि।

(3) वह वस्तु जिसका निरीक्षण न हो सके, जैसे- पाचन-तन्त्र।

(4) किसी अमूर्त प्रत्यय को मूर्त रूप देना।

मॉडल के लाभ (Benefits of Models)

मॉडल के निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) प्रतिमानों द्वारा विद्यार्थी करके सीखते हैं (Learning by Doing) जिससे अधिगम अधिक स्थायी होता है तथा विद्यार्थी स्वयं सीखने की दिशा में प्रेरित होते हैं।

(2) प्रतिमान द्वारा शिक्षण मूर्त से अमूर्त (Concrete to abstract) की ओर चलता है। जिससे कठिन सिद्धान्तों एवं प्रत्ययों को समझना सरल होता है।

(3) इसमें विद्यार्थियों की ‘दृश्य-श्रव्य’ दोनों इन्द्रियाँ सक्रिय रहती हैं तथा ये विद्यार्थियों को वास्तविक अनुभव (Real Life Experience) प्रदान कर उनकी जिज्ञासा को शान्त करता है।

3. चित्र (Pictures)

चित्रों के माध्यम से छात्र प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा सरलता से ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। चित्रों के द्वारा स्वास्थ्य, संस्कृति तथा जीवन पद्धति से सम्बन्धित बातों को आसानी से छात्रों को बताया जा सकता है। मौखिक वर्णन के साथ-साथ शिक्षक यदि चित्रों का प्रयोग करे तो शिक्षण अधिक प्रभावशाली होता है। चित्रों का आकार कक्षा के अनुसार बड़ा होना चाहिए। इन्हें कक्षा में ऐसी जगह लगाना चाहिए जिसे छात्र आसानी से देख सकें। चित्र वह सरल ड्राइंग है जिसमें अन्तर सम्बन्धों का प्रदर्शन रेखाओं तथा संकेतों के माध्यम से किया जाता है। चित्रों के प्रयोग में यह ध्यान रखा जाए की वह एक ही उद्देश्य से सम्बन्धित सामग्री को प्रदर्शित करे। उसकी रूपरेखा स्पष्ट हो और नामांकन शुद्ध, स्वच्छ तथा स्पष्ट हो। चित्रों का प्रयोग छात्रों की आयु रुचि, मानसिक योग्यता के अनुरूप होना चाहिए। प्रभावशाली शिक्षण के लिए शिक्षक को बताना चाहिए की छात्रों को क्या दिखाना है और चित्र दिखाने के साथ-साथ उनकी व्याख्या भी करें।

चित्रों का उपयोग (Uses of Pictures)

चित्रों के निम्नलिखित उपयोग हैं-

(1) नवीन पाठ की प्रस्तावना को निकलवाने हेतु।

(2) मुख्य बिन्दु अथवा तथ्य को स्पष्ट करने हेतु।

(3) पाठ को विकसित करने के लिए।

(4) शिक्षार्थियों की उपलब्धि का मूल्यांकन करने हेतु।

चित्र उपयोग के लाभ (Merits of Using Picture)

चित्र उपयोग करने के लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) छात्रों की कल्पना-शक्ति तथा विश्लेषण करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।

(2) छात्रों में कलात्मक प्रवृत्ति का विकास होता है।

(3) इनके प्रयोग से शिक्षण में सजीवता आ जाती है।

(4) छात्र पाठ में रुचि लेते हैं।

(5) चित्रों के माध्यम से छात्र अधिक शीघ्रता से सीख लेते हैं।

(6) चित्रों से छात्रों में निरीक्षण शक्ति का विकास होता है।

(7) इनका प्रयोग कक्षा के वातावरण में सौम्यता प्रकट करता है।

4. चार्ट (Charts)

चार्ट शिक्षक के लिए एक अत्यधिक उपयोगी साधन है क्योंकि इसके द्वारा शिक्षक उन शिक्षण बिन्दुओं को स्पष्ट कर सकते हैं जिसका स्पष्टीकरण सामान्यतः शिक्षक श्यामपट्ट पर नही कर सकता। क्योंकि श्यामपट्ट पर चित्र बनाने में समय अधिक लगता है साथ ही उतनी शुद्धता भी नहीं आती है, जितनी पूर्वनिर्मित चार्ट के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।

चार्ट के प्रकार (Types of Charts)

चार्ट के निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) समय चार्ट – इनका प्रयोग ऐतिहासिक तिथि, घटनाओं, काल क्रमानुसार शासकों के शासन तथा युद्ध का वर्णन किया जाता है।

(2) संगठन चार्ट – इस प्रकार के चार्ट में राज्य, संसद, केन्द्र, न्यायालय, कार्यपालिका, पंचायत आदि के गठन को संगठित करके प्रदर्शित किया जाता है।

(3) तालिका चार्ट – इन चारों में खाने बनाकर विचारों, घटनाओं तथा विवरणों को क्रमानुसार व्यवस्थित किया जाता है।

(4) ग्राफिकल चार्ट – इन चारों की सहायता से सांख्यिकी आँकड़े, जैसे जनसंख्या में वृद्धि, कीमत वृद्धि तथा कमी को दर्शाया जाता है।

(5) ग्राफ चार्ट ये चार्ट अधिकतर भूगोल तथा सामाजिक अध्ययन में प्रयोग किए जाते हैं। इनकी सहायता से वर्षा, तापमान तथा जनसंख्या के आँकड़े प्रकट किए जाते हैं।

(6) धारा चार्ट – इनकी सहायता से किसी क्रमिक वस्तु का विकास तथा राजा-महाराजाओं का पतन, उत्थान प्रकट किया जाता है।

(7) चित्र चार्ट- जो चार्ट छोटे-छोटे चित्रों को प्रदर्शित करें उन्हें चित्र चार्ट कहा जाता है। जैसे चावल की बोरी गेहूँ की बोरी आदि।

चार्ट निर्माण के उद्देश्य (Purposes of Making Charts)

चार्ट का निर्माण दो उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जाता है-

(1) शिक्षण हेतु (For Teaching) – यह चार्ट सरलता से उपलब्ध कागज की शीट पर बनाए जाते हैं। इनका आकार आवश्यकतानुसार लिया जा सकता है। यह चार्ट अपेक्षाकृत अधिक सरलता से निर्मित किए जा सकते हैं। व्यय की दृष्टि से भी यह अल्पव्ययी है और इनमें पाठ्यवस्तु की स्पष्टता को भी दृष्टिगत रखा जा सकता है।

(2) स्लाइड, फिल्म स्ट्रिप व वीडियो हेतु (For Slides, Film-Strip, and Video) – यह चार्ट सामान्यतः निश्चित फॉर्मेट (Format) पर निर्मित किए जाते हैं। इसमें लम्बाई, चौड़ाई का अनुपात निश्चित होता है जो 35mm स्लाइड के लिए एवं फिल्म स्ट्रिप के लिए 2:3 का होता है और फिल्म व वीडियो के लिए 3:4 का होता है क्योंकि इस प्रकार के चार्ट में निश्चित तकनीकी मानक होते हैं इसलिए व्यय की दृष्टि से यह पर्याप्त महँगे होते हैं। इनके निर्माण में भी पर्याप्त खर्चा आता है। वर्तमान में यह चार्ट विशेषज्ञों की निगरानी में ग्राफिक डिजाइनर द्वारा निर्मित किए जाते हैं

5.ओवरहेड प्रोजेक्टर (Overhead Projector)

इस प्रोजेक्टर में बोलने वाले का प्रतिबिम्ब बोलने वाले के पीछे तथा सिर के ऊपर दिखायी देता है। इसके प्रयोग में हैलोजन लैम्प लगाया जाता है। अप्रत्यक्ष प्रोजेक्शन के लिए Tubular प्रोजेक्शन लैम्प का प्रयोग किया जाता है। अनेक बार ट्रान्सपेरेन्सी के प्रयोग के समय लेजर पेन की सहायता से प्रोजेक्शन के साथ-साथ शिक्षक द्वारा प्रदर्शन के समय में लिखा भी जा सकता है। इस प्रोजेक्टर के प्रयोग के समय प्रोजेक्टर का फोकस स्पष्ट रखना चाहिए जिससे छात्र सरलता से सामग्री देख सकें और उसे पढ़ सकें।

एक प्रोजेक्टर को सेट करके हिलाना नहीं चाहिए। प्रोजेक्टर के बल्ब को हाथ से छूना नहीं चाहिए। बल्ब को ज्यादा समय तक जलाना नहीं चाहिए क्योंकि इसके फ्यूज होने का डर बना रहता है। प्रत्येक बार उपयोग करने के बाद प्रोजेक्टर का ब्लोअर चला देना चाहिए। इसके लेंस तथा दर्पण को वस्त्र तथा ब्रश से साफ करना चाहिए तथा बिजली के उतार-चढ़ाव के लिए स्टेब्लाइजर का प्रयोग करना चाहिए। 

ओवरहेड प्रोजेक्टर की संरचना (Structure of Overhead Projector)

ओवरहेड प्रोजेक्टर की संरचना का मूलभूत सिद्धान्त किसी पारदर्शी सामग्री को प्रकाश के संचरण द्वारा प्रदर्शित करना है। इनके द्वारा किसी भी ट्रांसपेरेंसी पर बनाई गई रंगीन अथवा रंगहीन आकृति, लेखीय सामग्री चार्ट अथवा छपी सामग्री को स्क्रीन पर प्रदर्शित किया जाता है। इसके प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं-

(1) कैबिनेट (Cabinet)- यह प्लास्टिक अथवा स्टील का एक डिब्बा होता है जिसका आकार प्रोजेक्टर की क्षमता पर निर्भर करता है। प्रायः 39 सी0एम X 32.5 सी०एम० तथा 26.5 सी0एम0 आकार की कैबिनेट पर नीचे के हिस्से में अन्दर एक पंखा प्रक्षेपण लैम्प तथा विद्युत व्यवस्था होती हैं।

(2) प्रक्षेपण लैम्प (Projection Lamp)- प्रक्षेपण बल्ब तथा बल्ब होल्डर को निकालकर प्रायः प्रक्षेपण लैम्प कहा जाता है। प्रायः 600वाट, 240 वाट के हैलोजन बल्ब को प्रकाश के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

(3) ठण्डा करने की व्यवस्था (Cooling System) – कैबिनेट के ही हैलोजन लैम्प से उत्पन्न ऊर्जा से बल्ब तथा कैबिनेट पर ऊपर लगी शीशे की प्लेट को टूटने से बचाने के लिए ठण्डा करने के लिए पंखा लगा होता है जो बल्ब को ठण्डा रखता है तथा अतिरिक्त ऊर्जा को शीघ्र ही बाहर फेंक देता है। कई बार इसमें थर्मोस्टेट भी लगा होता है जो कैबिनेट के अन्दर 800 सेन्टीग्रेड से अधिक ताप होने पर बल्ब को स्वतः बन्द कर देता है।

(4) फोकस व्यवस्था (Focus System) – कैबिनेट की शीशे की प्लेट से निकलने वाले प्रकाश को स्क्रीन पर फोकस करने के लिए विशेष प्रकार के लैंस प्रयुक्त करते हैं जो एक फ्रेम में स्टैण्ड पर लगा होता है। यह स्टैण्ड कैबिनेट पर एक कोने में लगा रहता है। इस फोकस व्यवस्था को एक नियन्त्रण नॉब द्वारा ऊपर नीचे कर आवश्कतानुसार समायोजित करते हैं।

ओवर हेड प्रोजेक्टर के लाभ (Advantages of Overhead Projector)

ओवर हेड प्रोजेक्टर के लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) यह यन्त्र अधिक महँगा नहीं होता।

(2) इस यन्त्र के प्रयोग के लिए अन्धेरा कमरा नहीं चाहिए।

(3) अध्यापक संकेतक (Pointer) की सहायता से किसी विषय के आवश्यक पक्षों पर विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित एवं केन्द्रित कर सकता है।

(4) कक्षा में प्रस्तुत की जाने वाली सूचना को एक क्रम (Hierarchical Order) में बाँटकर प्रदर्शित किया जाता है।

(5) यह प्रक्षेपण की न्यूनतम दूरी से पर्दे पर बड़ा बिम्ब प्रस्तुत करता है।

(6) इस यन्त्र को चलाना अत्यन्त सरल है।

(7) O. H.P. के द्वारा विद्यार्थियों के ध्यान को आकर्षित किया जा सकता है।

(8) O.H.P. पर पाठ सामग्री (Transparencies) का पुनः उपयोग (Reuse) किया जा सकता है।

(9) O.H.P. में प्रयोग की जाने वाली ट्रान्सपेरेन्सीज को प्रदर्शित या संशोधित किया जा सकता है।

(10) O.H.P. द्वारा विद्यार्थियों से आमने-सामने सम्पर्क करना सम्भव होता है।

ओवरहेड प्रोजेक्टर की सीमाएँ (Limitations of Overhead Projector)

ओवरहेड प्रोजेक्टर की निम्नांकित सीमाएँ हैं-

(1) ओवरहेड प्रोजेक्टर में प्रकाश की आवश्यकता होती है।

(2) ओवरहेड प्रोजेक्टर के माध्यम से जानकारी को बहुत अधिक देर तक पर्दे पर दिखाया नहीं जा सकता है।

(3) विद्युत व्यवस्था में कमी या पाठ के दौरान बिजली चली जाने पर शिक्षण-प्रक्रिया में बाधा आ जाती है।

6. स्लाइड प्रोजेक्टर (Slide Projector)

स्लाइड प्रोजेक्टर के द्वारा पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न प्रकरणों पर स्लाइड प्रोजेक्ट प्रयोग की जाती है। प्रोजेक्ट स्लाइड को उल्टा रखा जाता है। उस पर प्रकाश की तीव्र किरणें डालकर लैंस के माध्यम से पर्दे से ऊपर बड़ा करके दिखाया जाता है। इसकी सहायता से अधिकतर 35 मिमी. आकार की स्लाइड की बड़ी आकृति दीवार या दीवार पर लगे पर्दे पर प्रदर्शित की जाती है। कुछ स्लाइड प्रोजेक्टरों की सहायता से फिल्म स्ट्रिप भी दिखायी जा सकती है। स्लाइड प्रोजेक्टर के पाँच प्रमुख भाग होते हैं-

(1) विद्युत व्यवस्था

(2) प्रक्षेप बल्ब

(3) प्रक्षेपी लैंस

(4) स्लाइड ट्रे

(5) प्रक्षेपण स्क्रीन

आज के समय अच्छे स्लाइड्स प्रोजेक्टर में ‘डबल स्लाइड कैरियर आते हैं जिससे जब स्लाइड प्रदर्शित की जाए तब दूसरी स्लाइड प्रदर्शन के लिए तैयार रखी जाती है। जब छात्र दूसरी स्लाइड देख रहे हों तब पहली स्लाइड हटाकर अगली स्लाइड रखनी होती है। इस तरह स्लाइड का प्रदर्शन सरलता से हो जाता है और दूसरी स्लाइड का छात्रों को इन्तजार नहीं करना पड़ता। आधुनिक प्रोजेक्टरों में Remote Control भी आते हैं जिन्हें दूर से ही चलाया जा सकता है।

स्लाइड प्रदर्शन में स्लाइड प्रोजेक्टर संचालन के निर्देशों का शिक्षक को पालन करना चाहिए तथा कम से कम एक बार पहले अभ्यास कर लेना चाहिए।

स्लाइड प्रोजेक्टर की संरचना (Structure of Slide Projector)

स्लाइड प्रोजेक्टर की संरचना निम्नलिखित भागों से मिलकर होती है-

(1) पॉवर एसेम्बली (Power Assembly) – प्रायः स्लाइड प्रोजेक्टर बिजली से चलते हैं। प्रत्येक प्रोजेक्टर से विद्युत व्यवस्था को पॉवर एसेम्बली कहा जाता है। यह 110 वोल्ट से लेकर 240 वोल्ट तक के होते हैं। यहाँ से विद्युत लैम्प के लिए आवश्यक विद्युत ऊर्जा मिलती है।

(2) प्रक्षेपण बल्ब (Projection Lamp)- स्लाइड प्रोजेक्टर का यह आवश्यक अंग है। इसे सामान्यतः प्रोजेक्शन लैम्प कहा जाता है। यह नलीयुक्त, बेलनाकार, बल्ब होता है जिसमें प्राय: हैलोजन गैस भरी होती है। इसके द्वारा बहुत तेज दूधिया प्रकाश मिलता है जिसके कारण प्रोजेक्टर में लगी स्लाइड की स्पष्ट प्रतिकृति स्क्रीन पर दिखाई देती है।

(3) प्रक्षेपण लेंस (Projection Lens) – यह विभिन्न प्रकार के उन्नत तथा अवतल लेंस के संयुक्तीकरण से बना होता है इस लैंस की आवर्धन क्षमता पर ही प्रक्षेपित स्लाइड का आकार निर्भर करता है।

(4) स्लाइड ट्रे (Slide Tray) – स्वचालित प्रोजेक्टर में एक-एक कर स्लाइड लगाने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि ट्रे में एक साथ क्रम से स्लाइड लगा दी जाती हैं और एक-एक करके स्वतः रिमोट कन्ट्रोल द्वारा स्लाइड को आगे या पीछे के क्रम से आवश्यकतानुसार ले जाते हैं। यह ट्रे दो आकृतियों Circular तथा Linear ट्रे के रूप में उपलब्ध हैं।

(5) प्रक्षेपण स्क्रीन (Projection Screen) – प्रोजेक्शन से प्रक्षेपित प्रतिकृति को साकार रूप प्रदान करने के लिए प्रक्षेपण स्क्रीन होती है। यह सफेद कपड़ा या प्लास्टिक या विशिष्ट सामग्री से बनी होती है। आवश्यकता पड़ने पर पुती हुई सफेद दीवार से भी स्क्रीन का काम लिया जा सकता है।

स्लाइड प्रोजेक्टर की उपयोगिता (Utility of Slide Projector)

स्लाइड प्रोजेक्टर की निम्नलिखित उपयोगिताएँ हैं-

(1) यह कक्षा जगत को कक्षा के अन्दर ला सकता है अर्थात् इसके माध्यम से वास्तविक घटना, चित्र, बड़ी-बड़ी मशीनों आदि को कक्षा में दिखाया जा सकता है।

(2) स्लाइड प्रोजेक्टर चमकीली एवं बड़ी आकृति प्रस्तुत करता है।

(3) स्लाइड प्रोजेक्टर का रखरखाव आसान है।

(4) यदि स्लाइड प्रोजेक्टर के साथ-साथ रिकॉर्डेड सामग्री का भी उपयोग कर लिया जाए तो इसको व्यक्तिगत अधिगम तथा दूरस्थ शिक्षा के लिए अधिक प्रयुक्त किया जा सकता है।

(5) रिमोट कन्ट्रोल केबिल के साथ मल्टी स्लाइड प्रोजेक्टर का उपयोग करके इसकी कार्य क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

7. स्लाइड्स (Slides)

शिक्षण प्रक्रिया में स्लाइड्स का प्रयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों के अध्ययन में उपयोगी है। स्लाइडों को ‘माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखा जाता है। साधारण स्लाइड्स छात्रों से बनवानी चाहिए। किसी वस्तु की काँच की स्लाइड को निम्न प्रकार से बनाया जा सकता है-

(1) काँच की स्लाइड को भली-भाँति धोकर सुखाना।

(2) तत्पश्चात जिलेटिन के घोल को लगाकर कुछ देर तक सुखाना।

(3) सूखने के बाद उस पदार्थ को लगाना जिसकी स्लाइड बनती है।

(4) इसके बाद कवर स्लिप लगानी चाहिए।

(5) अन्त में स्लाइड पर नाम की पर्ची लगानी चाहिए।

सदैव स्लाइड निर्माण में एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि स्लाइडों को लकड़ी या मोटे गत्ते के डिब्बे में रखना चाहिए तथा इन्हें धूल और पानी से बचाना चाहिए। स्लाइड के द्वारा छोटी से छोटी चीजों को पर्दे पर बड़ा करके प्रदर्शित किया जाता है। स्लाइड का प्रयोग शिक्षक कठिन वस्तु, सूक्ष्म बातों को आसानी से छात्रों तक पहुँचाने में करता है।

स्लाइड को प्रदर्शित करने में प्रोजेक्टर की आवश्यकता होती है। स्लाइड्स अनेक प्रकार की होती हैं, जैसे- लैण्टर्न, स्लाइड, सैलोफोन, ग्लास तथा फोटोग्राफिक स्लाइड।

(1) स्लाइड तैयार करने के लिए सामग्री ध्यानपूर्वक चयनित की जानी चाहिए। यह साधारण ग्लास, एज्ड ग्लास, स्पष्ट पारदर्शक सैलूलोज का हो सकता है।

(2) ट्रेसिंग पेपर पर प्रक्षेपण क्षेत्र’ अंकित होना चाहिए फिर उसमें जो चित्र उदाहरण हो उसे अंकित किया जाना चाहिए।

(3) पारदर्शक आधार सामग्री को प्रक्षेपण क्षेत्र पर रखना चाहिए और किसी अच्छे लक्जर या अन्य उच्च स्तर के पैन द्वारा मुख्य चित्र, उदाहरण या सन्देश आधार सामग्री पर अंकित हो।

8. जादू की लालटेन (Magic Lantern)

जादू की लालटेन को प्रोजेक्टिव उपकरणों में सबसे पुराना आविष्कार माना गया है। इसे डाइस्कोप भी कहकर पुकारा जाता है क्योंकि इस तकनीकी में चित्र, आरेख आदि की पारदर्शी स्लाइडें बनाकर उनपर सीधे प्रकाश की तीव्र किरणें डालकर उन्हें एक लेंस के माध्यम से परदे पर बड़ा करके दिखाया जाता है। तथा शिक्षकों को उसका सरल एवं स्पष्ट स्पष्टीकरण देकर छात्रों को दिखाना चाहिए।

9. ग्राफ (Graph)

ग्राफ के माध्यम से सांख्यिकी आँकड़ें तथा विकास के प्रदर्शन के साथ-साथ तुलनात्मक अध्ययन को प्रस्तुत किया जा सकता है। शिक्षक इसका प्रयोग विभिन्न तथ्यों को स्पष्ट करने एवं उसके तुलनात्मक अध्ययन के लिए कर सकता है। ग्राफ तालिका अधिक लाभदायक है क्योंकि इनकी सहायता से महत्वपूर्ण सम्बन्धों, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं को सरलता से प्रदर्शित किया जा सकता है।

ग्राफ के प्रकार (Types of Graph)

ग्राफ निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

(1) बार ग्राफ,

(2) पाई ग्राफ,

(3) लाइन ग्राफ तथा

(4) पिक्टोरियल ग्राफ

ग्राफ की सहायता से जलवायु, उपज, जनसंख्या, संस्था की प्रगति तथा विकास आदि विषयों से सम्बन्धित प्रकरणों को प्रभावशाली ढंग से पढ़ाया जा सकता है।

10. मानचित्र (Map)

भौगोलिक स्थिति की जानकारी देने के लिए छात्रों को मैप के द्वारा समझाया जाता है क्योंकि और किसी साधन से बालकों को भौगोलिक एवं स्थानिक जानकारी नही दी जा सकती। सफल शिक्षक को ऐसी जानकारी देने के लिए मानचित्र का प्रयोग करना चाहिए। मानचित्र के द्वारा छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है क्योंकि छात्र प्रत्यक्ष रूप से देखी वस्तुओं को शीघ्र सीख जाते हैं।

मानचित्रों की सहायता से विभिन्न स्थानों का क्षेत्रफल, स्थिति, जलवायु तथा जनसंख्या आदि का प्रदर्शन किया जाता है। सामाजिक अध्ययन शिक्षण में राज्यों की सीमाओं, राजधानियों तथा अनेक महत्वपूर्ण स्थानों का ज्ञान सरल रूप में प्राप्त किया जाता है। कक्षा में नक्शें उपयोग करने के लिए शिक्षक स्वयं निर्मित कर सकते हैं। एक अच्छा मानचित्र सुन्दर तथा स्पष्ट होता है। उसमें दिशा, पर्वत, सागर, जलवायु तथा उद्योग आदि का सही अनुपात में संकेत होता है। बहुत से ऐसे बिन्दु जो मानचित्र के माध्यम से स्पष्ट नहीं होते उन्हें ग्लोब द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। नक्शों के प्रयोग के समय निम्नलिखित बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए-

(1) नक्शा आकार में इतना बड़ा हो कि कक्षा की समस्त छात्रों को उसका अवलोकन करने में परेशानी न हो।

(2) नक्शा उपयुक्त स्थान पर लगा हो। इसे श्यामपट्ट के ऊपर न लगाएँ।

(3) विशेष स्थानों को प्रदर्शित करने हेतु संकेतक का प्रयोग अवश्य करें।

(4) शुद्धता तथा स्थान की विशेष स्थिति का ध्यान अवश्य रखा जाए।

मानचित्र के लाभ (Advantages of Map)

मानचित्र के निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) किसी स्थान की दूरी मापने में मानचित्र सहायक हैं।

(2) विभिन्न स्थानों पर होने वाली वर्षा, वहाँ का तापमान, जलवायु, वायु-भार तथा ऋतु परिवर्तन आदि में तुलना करते हैं।

(3) नक्शे जलवायु का ज्ञान देते हैं जैसे कहाँ अधिक गर्मी पड़ती एवं कहाँ अधिक वर्षा होती है आदि।

(4) नक्शों के द्वारा हम धरातल का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इनसे हम किसी स्थान की ऊँचाई, नदियों, घाटियों तथा पर्वतों का सही अनुमान लगा सकते हैं।

(5) इनकी सांकेतिक भाषा द्वारा रेलगाड़ी का मार्ग, शहर, नदी पठार तथा समतल भूमि का ज्ञान दिया जा सकता है।

(6) ये किन्हीं दो देशों, प्रदेशों या नगरों की तुलना करने में सहायता करते हैं।

(7) ये किसी स्थान की सांस्कृतिक, भौतिक तथा भौगोलिक जानकारी भी देते हैं।

(8) नक्शें हमें दिशाओं का ज्ञान भी कराते हैं।

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