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श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ, परिभाषाएँ, विशेषताएँ, कार्य, उद्देश्य, प्रयोग के सिद्धान्त, आवश्यकता एवं महत्व

श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ
श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ

श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Audio-Visual Aids)

शिक्षण करते समय शिक्षक द्वारा प्रयोग किए जाने वाले वे साधन या अध्यापन युक्तियाँ, जिनके द्वारा पाठ्यवस्तु को सरल, स्पष्ट, रुचिकर, सुबोध, आकर्षक एवं प्रभावशाली बनाया जाता है शिक्षण सहायक सामग्री या दृश्य-श्रव्य सामग्री कहलाती हैं। अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने, अधिगम को प्रोत्साहित करने, शिक्षक को उच्च प्रसारण में सहायता करने, कक्षा में चलने वाली अन्तः- क्रिया को रुचिपूर्ण बनाने तथा बालक को कक्षा में अधिक सक्रिय बनाने के लिए जो भी अतिरिक्त साधनों का प्रयोग कक्षा-कक्ष के शिक्षण में किया जाता है, वह सब शिक्षण सहायक सामग्री या दृश्य-श्रव्य सामग्री के रूप में जाना जाता है। शिक्षण-सहायक सामग्री या दृश्य-श्रव्य सामग्री को विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। इसमें से कुछ की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

एडगर डेल के अनुसार, “दृश्य-श्रव्य सामग्री वे युक्तियाँ हैं जिनके उपयोग के द्वारा व्यक्तियों तथा समूह के अध्यापन तथा प्रशिक्षण की विभिन्न परिस्थितियों में विचारों के आदान-प्रदान में सहायता मिलती है। इन्हे बहु-इंद्रिय सामग्रियों के नाम से भी जाना जाता है।”

According to Edgar Dale, “Audio-visual aids are those devices by the use of which communication of ideas between persons and groups in various teaching and training situations is helped. These are also termed as multi-sensory materials.”

बर्टन के अनुसार, “दृश्य-श्रव्य सामग्रियाँ वे संवेदी वस्तुएँ अथवा काल्पनिक प्रतीक होते हैं जो अधिगम को आरम्भ अथवा उद्दीप्त एवं उसे प्रबलित करते हैं।”

According to Burton, “Audio-visual aids are those sensory objects or images which initiate or stimulate and reinforce learning.”

मैकीन तथा राबर्ट्स के अनुसार, “दृश्य-श्रव्य सामग्रियाँ वे पूरक युक्तियाँ होती हैं  जिनके द्वारा शिक्षक एक से अधिक इन्द्रियों के माध्यमों का उपयोग, स्पष्टीकरण, परिकल्पना का स्थापन व सम्बन्ध, व्याख्यान व सौन्दर्य बोध कर सकता है।”

According to McKean and Roberts, “Audio-visual aids are supplementary devices by which the teacher, through the utilisation of more than one sensory channel, is able to clarify, establish and correlate concepts, interpretations and appreciations.”

एलविन स्ट्रोंग के अनुसार, “दृश्य-श्रव्य उपकरणों के अन्तर्गत उन सभी साधनों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी सहायता से छात्रों की पाठ में रुचि बनी रहती है तथा वे उसे सरलतापूर्वक समझते हुए अधिगम के उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं। “

कोठारी आयोग 1964-66 के अनुसार, “अध्यापन के गुणात्मक विकास हेतु प्रत्येक विद्यालय को सहायक सामग्री उपलब्ध कराना आवश्यक है, इससे वास्तव में देश की शिक्षा में क्रान्ति लाई जा सकती है।”

इन सभी परिभाषाओं को विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि शिक्षण सहायक सामग्री शिक्षण कार्य करते समय पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित विभिन्न प्रकरणों को रोचक, स्पष्ट तथा सजीव बनाती है। इसमें ज्ञानेन्द्रियाँ – प्रभावित होकर पढ़ाए गए पाठ को स्थाई बनाने में सहायता प्रदान करती हैं। शिक्षण-सहायक सामग्री से शिक्षण रुचिकर, प्रेरणादायक एवं प्रभावशाली बन जाता है जो अधिगम को स्थाई बनाता है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री की विशेषताएँ (Characteristics of Audio-Visual Aids)

श्रव्य दृश्य सामग्री की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) सम्बन्ध (Relevancy)- मानव ‘हृदय’ पढ़ाने के लिए मानव के हृदय के प्रतिमान का ही प्रयोग करना चाहिए। सभी हृदयों को एक सा समझकर यदि मेंढक के हृदय का मॉडल दिखाकर छात्रों को समझाया जाता हैं तो यह गलत होगा। अतः दृश्य श्रव्य सामग्री में सम्बन्धता का गुण अवश्य होना चाहिए।

(2) परिशुद्धता (Accuracy)- विषय प्रकरण को पूर्ण रूप से स्पष्ट करने के लिए सही दृश्य-श्रव्य साधनों का चयन करना चाहिए। विज्ञान को पढ़ाने के लिए वाणिज्य (Commerce) का मॉडल लेकर पढ़ाना सही नहीं होता है चाहे उसमें कितनी भी समानता क्यों न हों। अतः जो विषय पढ़ाया जाए उसी के मॉडल का प्रयोग करना चाहिए।

(3) सामग्री की उपलब्धता (Availability of Aids)- शिक्षक के लिए अच्छी शिक्षण सामग्री का होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि दृश्य-श्रव्य सामग्री अच्छे गुणों की होगी तो शिक्षक विद्यार्थियों को ज्ञान पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

(4) यथार्थता (Reality) – दृश्य-श्रव्य सामग्री जिस प्रक्रिया, विषयवस्तु अथवा प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए प्रयोग की जा रही है। वह उस प्रक्रिया विषयवस्तु या प्रत्यय का 100% प्रतिनिधित्व यथार्थ के रूप में होना चाहिए। यदि सामग्री में यथार्थता नहीं है तो यह सामग्री उपयुक्त नहीं है।

(5) अनुकूलता (Compatibility) – दृश्य-श्रव्य सामग्री में अनुकूलता का गुण होना आवश्यक है। यदि विषय सामग्री प्रकरण के अनुकूल नहीं हैं तो विषय अनुकूलता नहीं बनाई जा सकती है।

(6) रोचकता (Interesting)- दृश्य-श्रव्य सामग्री में रोचकता का होना अत्यन्त आवश्यक है। दृश्य-श्रव्य सामग्री द्वारा छात्रों की विषय में रुचि जाग्रत करने की क्षमता होती है। अतः विद्यार्थियों में विषय के प्रति रोचकता बढ़ जाती है।

(7) समय की बचत (Time Saving) – अच्छी शिक्षण सहायक सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो शिक्षण प्रक्रिया का कम समय ले। अतः सामग्री के विश्लेषण एवं विषयवस्तु के विश्लेषण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

श्रव्य-दृश्य सामग्री के कार्य (Functions of Audio- Visual Aids)

दृश्य-श्रव्य सामग्री का शिक्षण कार्य में महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थियों की शिक्षा में दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग लाभदायक है। अतः दृश्य-श्रव्य सामग्री के कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) स्पष्टीकरण (Explanation) – शिक्षण सहायक सामग्री के प्रयोग से विद्यार्थियों को कठिन से कठिन पाठ्यक्रम का भी सरलतापूर्वक स्पष्टीकरण हो जाता है। इसका कारण यह है कि विद्यार्थी जो बात सुनते हैं वे उसी को आँखों के माध्यम से देख लेते हैं। अतः आँखों से देख कर उनकी सभी शंकाएँ दूर हो जाती हैं और वे पूर्णतः ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।

(2) अभिप्रेरणा (Motivation) – शिक्षण सहायक सामग्री विद्यार्थियों का ध्यान केन्द्रित करके ज्ञान को विस्तृत रूप में प्रस्तुत करती है। इससे उनमें रुचि जाग्रत होती है।

(3) रटने को कम करना (Reducing Rote Learning) – शिक्षण सहायक सामग्री के प्रयोग से विद्यार्थी अध्ययन में रुचि लेते हैं तथा स्वयं ज्ञान ग्रहण करते हैं। अतः सीखा हुआ ज्ञान निश्चित हो जाता है जिससे विद्यार्थियों को रटने की आवश्यकता नहीं होती है।

(4) शिक्षण में कुशलता (Proficiency in Teaching) – शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग कुशलतापूर्वक करने से शिक्षण को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग से अरुचिकर विषयों को सरल बनाया जा सकता है।

(5) अर्थयुक्त अनुभव (Meaningful Experience) – शिक्षण सहायक-सामग्री की सहायता से विद्यार्थियों को पाठ विस्तृत रूप से पढ़ाया जाता है। अतः सहायक-सामग्री के प्रयोग से विद्यार्थियों के अनुभव अर्थपूर्ण हो जाते हैं।

श्रव्य-दृश्य सामग्री के उद्देश्य (Objectives of Audio Visual Aids)

शिक्षण सहायक सामग्री के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

शिक्षा में श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग करने से निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति होती है-

(1) बालकों में पाठ के प्रति रुचि पैदा करना ।

(2) सीखने में रुकने की गति में सुधार करना।

(3) तथ्यात्मक सूचनाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना।

(4) छात्रों को अधिक क्रियाशील बनाना।

(5) पढ़ने में रुचि उत्पन्न करना।

(6) श्रव्य-दृश्य सामग्री मन्द बुद्धि एवं तीव्र बुद्धि बालकों को योग्यतानुसार शिक्षा प्रदान करती हैं।

(7) इनकी सहायता से पाठ्य सामग्री स्पष्ट, सरल तथा बोधगम्य होती है।

(8) इनसे बालक की निरीक्षण शक्ति में विकास होता है।

(9) ये सामग्री अमूर्त पदार्थों को मूर्त रूप प्रदान करती हैं। 

(10) ये सामग्री बालक को मानसिक रूप से नए ज्ञान की प्राप्ति के लिए अग्रसर करती हैं।

श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग के सिद्धान्त (Principles of Using Audio-Visual Aids)

श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग के सिद्धान्त

(1) तैयारी का सिद्धान्त (Principle of Preparation) – शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग करने से पूर्व अध्यापक इसकी तैयारी करता है। अध्यापक को स्थानीय वातावरण एवं संसाधन को ध्यान में रखते हुए श्रव्य दृश्य सामग्री का निर्माण करना चाहिए। श्रव्य दृश्य सामग्री का निर्माण अध्यापक एवं छात्रों को मिलकर करना चाहिए। श्रव्य-दृश्य सामग्री की तैयारी करते समय उसकी प्रभावशीलता को ध्यान में रखा जाना चाहिए ताकि अधिगम स्थायी हो जाए।

(2) चयन का सिद्धान्त (Principle of Selection)- शिक्षण सहायक सामग्री का चुनाव करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए-

(i) शिक्षण सहायक सामग्री विषयवस्तु पर आधारित हो।

(ii) ऐसी शिक्षण सहायक सामग्री का चुनाव करना चाहिए जो छात्रों में सृजनात्मक क्षमता का विकास करे।

(iii) ऐसी शिक्षण सहायक सामग्री का चयन करना चाहिए जो शिक्षण के उद्देश्यों को पूरा करती हो।

(iv) शिक्षण सहायक सामग्री में वास्तविकता होनी चाहिए अर्थात् वह यथार्थता पर आधारित होनी चाहिए।

(3) प्रस्तुतीकरण का सिद्धान्त (Principle of Presentation)- शिक्षण सहायक सामग्री में प्रदर्शन का विशेष महत्व है क्योंकि अच्छी से अच्छी सामग्री भी यदि उचित ढंग से प्रस्तुत न की जाए तो उसकी प्रभाविकता समाप्त हो जाती है अर्थात् श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग से पूर्व अध्यापक को इसकी जानकारी भली प्रकार ले लेनी चाहिए। तभी वह इसका उचित प्रयोग एवं प्रदर्शन कर सकता है। शिक्षण सहायक सामग्री के उचित प्रस्तुतीकरण के लिए कुछ प्रमुख तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है-

(i) कक्षा में प्रस्तुतीकरण करने से पूर्व श्रव्य दृश्य सामग्री के विषय में शिक्षक को पूर्ण जानकारी ले लेनी चाहिए।

(ii) प्रस्तुत की जाने वाली सहायक सामग्री के सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी के साथ-साथ उसकी उपयोगिता का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है।

(iii) प्रस्तुतीकरण हेतु रखी गई प्रदर्शन मेज की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा मेज यथास्थान रखी जानी चाहिए जिससे समस्त छात्रों को सहायक सामग्री स्पष्ट रूप से दिखाई पड़े।

(iv) श्रव्य-दृश्य सामग्री को कक्षा में प्रस्तुत करने से पूर्व शिक्षक को पूर्व-अभ्यास कर लेना चाहिए जिससे कक्षा में प्रस्तुतीकरण के समय कोई समस्या उत्पन्न न हो। इस प्रकार श्रव्य-दृश्य सामग्री को प्रस्तुत करने सम्बन्धी तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

(4) अनुक्रिया का सिद्धान्त (Principle of Response) – अध्यापक का शिक्षण कार्य तब तक सम्पूर्ण नही होता जब तक कि छात्र अनुक्रिया न करने लगे। अध्यापकों के दिशा-निर्देश में छात्र क्रिया करते हैं और सीखते हैं। श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करते समय भी अध्यापक दिशा निर्देश देते हैं और छात्र क्रिया करते हैं। इस प्रकार अध्यापक छात्रों को नवीन ज्ञान का बोध कराती हैं और शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती हैं।

(5) भौतिक नियन्त्रण का सिद्धान्त (Principle of Physical Control) – सहायक सामग्री का प्रदर्शन प्रभावशाली बनाने के लिए इन्हें व्यवस्थित किया जाता है और व्यवस्थित करने के लिए नियन्त्रण की आवश्यकता पड़ती है अर्थात् उपयुक्त संसाधन के अनुसार अध्यापक सहायक सामग्री के प्रयोग की व्यवस्था करनी चाहिए और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुतीकरण करना चाहिए जिससे छात्र रुचि ले एवं स्व-अनुशासित रहे। इस प्रकार श्रव्य दृश्य सामग्री के प्रयोग में भौतिक नियन्त्रण का विशेष महत्व होता है।

श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Audio-Visual Aids)

जैविक विज्ञान में श्रव्य-दृश्य का विशेष महत्व है। जैविक विज्ञान जैसे व्यावहारिक विषयों की क्रिया, प्रयोग तथा दृष्टव्य वस्तुओं की सहायता के बिना पढ़ाना अनुचित ही नहीं वरन् व्यर्थ और हानिकारक है। छात्रों को प्रत्येक जैविक विज्ञान विषय का सच्चा व बोधगम्य ज्ञान शिक्षण सहायक सामग्री द्वारा ही देना उपयोगी है और इन्हीं की सहायता से किए गए शिक्षण के द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति भली-भाँति होती है। सहायक सामग्री के प्रयोग द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित किया जा सकता है। छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सहायक सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। मन्दगति से सीखने वाली छात्रों को सहायक सामग्री की सहायता से सरलता से सिखाया जा सकता है क्योंकि ऐसे छात्र प्रत्यक्ष अनुभव से अधिगम कर पाते हैं। सभी स्तर के छात्रों के लिए श्रव्य-दृश्य सामग्री की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि इस सामग्री से छात्र के अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न होती है जिसके कारण वह कुछ नया करने को सोचते हैं, और उसमें सृजनात्मक चिन्तन का विकास होता है। अधिगम प्रक्रिया सरल हो जाती है, छात्र स्वयं अनुशासित हो जाते हैं।

श्रव्य-दृश्य साधन अनुभव प्रदान करने के साथ-साथ छात्रों के समय की बचत भी करते हैं। इन साधनों की सहायता से बालक मनोरजंन करने के साथ-साथ वस्तुओं की प्रशंसा करना भी जान जाते है जटिल अथवा कठिन बातों को सरल ढंग से प्रस्तुत करते हैं तथा बालक की कल्पना शक्ति को प्रेरित भी करते हैं। यदि इन साधनों का प्रयोग ध्यानपूर्वक तथा उचित रीति से करें तो अनेक लाभ हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं-

(1) इन्द्रिय अनुभवों की प्राप्ति- बालक के अधिगम में यह आवश्यक है कि बालक को पर्याप्त इन्द्रियानुभव प्राप्त हों। विशेष रूप से छोटे बालकों को प्रत्यक्ष अनुभव की आवश्यकता होती है क्योंकि ज्ञानेन्द्रियाँ सीखने के लिए प्रवेश द्वार मानी जाती हैं। अतः अध्याय का प्रस्तुतीकरण इस तरह से किया जाए कि बालकों को अनेक प्रकार के इन्द्रियानुभव प्राप्त हो सके।

(2) प्रत्यक्ष अनुभवों के पूरक – श्रव्य-दृश्य साधनों की प्राप्ति से प्रत्यक्ष अनुभवों के पूरक सिद्ध हो सकते हैं। बालक को प्रत्यक्ष अनुभव के बाद कोई फिल्म दिखाई जा सकती है। इस प्रकार की फिल्म या कोई चलचित्र बालकों के भ्रमण द्वारा प्राप्त ज्ञान में आगे की ओर वृद्धि कर सकते हैं।

(3) श्रव्य-दृश्य का प्रेरणादायक होना- श्रव्य दृश्य साधन बड़े रोचक व प्रेरणादायक सिद्ध होते हैं। इनके द्वारा विषय में स्पष्टता तथा मूर्तता आती है। इनसे एक प्रकार का नाटकीय प्रभाव उत्पन्न होता है। ये बालक का ध्यान केन्द्रित करने तथा उनकी रुचि को जाग्रत करने के अच्छे साधन होते हैं। इन सहायक साधनों से बालक की जिज्ञासा शान्त होती है तथा अध्ययन की प्रेरणा भी प्राप्त होती है।

(4) पिछड़े बालकों की सहायता – श्रव्य-दृश्य साधन पिछड़े बालकों के लिए सहायक होते हैं। इस प्रकार बालक पाठ्य-वस्तुओं से सभी बातें नहीं सीख पाते। इस प्रकार के बच्चे श्रव्य दृश्य सामग्री की सहायता से नई बातों को सरलता से सीख जाते हैं।

(5) अच्छे ज्ञान की प्राप्ति- श्रव्य तथा दृश्य साधनों से बालक शीघ्रता से सीखते ही नहीं बल्कि सीखी हुई बातें उन्हें काफी समय तक याद रहती हैं। बालक जब देखते हैं, सुनते हैं या सूंघते हैं तो उनके अनुभवों को मूर्त रूप मिलता है और काफी समय तक वह स्थाई हो जाता है।

(6) कल्पना तथा निरीक्षण शक्ति का विकास- शिक्षण का सर्वोत्तम साधन चित्र माना जाता है। श्रव्य-दृश्य साधन जो इन्द्रियानुभव प्रदान करते हैं वह अधिक स्पष्ट तथा प्रभावपूर्ण होते हैं। इनके प्रयोग से शिक्षण क्रिया स्वाभाविक तथा सरल हो जाती है। श्रव्य-दृश्य साधन कल्पना शक्ति को जाग्रत करते हैं तथा निरीक्षण, विश्लेषण तथा संश्लेषण शक्ति का विकास करते हैं।

(7) वस्तु की उपयोगिता- श्रव्य तथा दृश्य साधनों की सहायता से रूढ़िवादी औपचारिकता समाप्त होती है तथा कक्षा में दिखाई गई वस्तु की उपयोगिता भी स्पष्ट हो जाती है। यह माना जाता है कि मौखिक शिक्षण प्रायः अस्पष्ट तथा सन्तोषप्रद नहीं रहता। अध्यापक अनेक बार ऐसी अमूर्त बातों का प्रयोग करते हैं जिन्हें छोटे बालक समझ नहीं पाते। ज्ञान देने से तात्पर्य यह है कि सभी बातें पूर्णतया समझ जाना। बालक के लिए जो बातें उपयोगी नहीं होती उन्हें वह शीघ्र भूल जाता हैं।

श्रव्य-दृश्य सामग्री के प्रयोग में सावधानी (Precautions while Using Audio-Visual Aids)

श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। शिक्षक को इनके प्रयोग में निम्न सावधानियाँ रखने की आवश्यकता है-

(1) जब छात्रों के द्वारा सामग्री का प्रयोग किया जाए तब उसके महत्व और उद्देश्य को ध्यान में रखा जाए।

(2) छात्र की आवश्यकता तथा रुचि का ध्यान रखा जाए।

(3) चयन की गई सामग्री का पुनर्निरीक्षण तथा सम्पादन कर लिया जाए।

(4) सम्प्रेषण समस्या की प्रकृति का निर्धारण किया जाए।

(5) कक्षा में उपलब्ध सामग्री पूर्ण और क्रमबद्ध होनी चाहिए।

(6) प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

(7) कक्षा में बैठने की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए।

(8) छात्रों को इन साधनों की आवश्यकता का ज्ञान करा देना चाहिए।

(9) नवीन शब्द तथा शब्दावली को स्पष्ट कर देना चाहिए।

(10) सामग्री अथवा साधन की प्रस्तुति प्रभावशाली होनी चाहिए।

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