समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)
समस्या समाधान विधि प्रोजेक्ट तथा प्रयोगशाला विधि से मिलती-जुलती है परन्तु यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक समस्या का समाधान प्रयोगशाला में ही हो। कुछ कम जटिल समस्याओं का समाधान प्रयोगशाला से बाहर भी किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग छात्रों में समस्या समाधान करने की क्षमता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। छात्रों से यह आशा की जाती है कि वे स्वयं प्रयास करके अपनी समस्याओं का हल स्वयं ही निकालें। इस विधि में छात्र समस्या का चुनाव करते हैं और उसके कारणों की खोज करते हैं, परीक्षण करते हैं और समस्या का मूल्यांकन भी करते हैं।
तकनीकी शिक्षण में इस विधि का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। छात्रों के लिए यह अत्यन्त उपयोगी एवं मनोवैज्ञानिक मानी जाती है। इससे बालकों की चिंतन और तर्क शक्ति का विकास होता है परन्तु इसका प्रयोग प्राथमिक स्तर पर सफलतापूर्वक करना सम्भव नही है।
आसुबेल (Ausubel) के अनुसार, समस्या समाधान में सम्प्रत्यय का निर्माण तथा अधिगम का अविष्कार सम्मिलित है।”
According to Ausubel, “Problem solving involves concept formation and discovery learning.”
गैग्ने (Gagne) के अनुसार, “समस्या समाधान घटनाओं का एक ऐसा समूह है जिसमें मानव किसी विशिष्ट उददेश्य की उपलब्धि के लिए अधिनियमों अथवा सिद्धान्तों का उपयोग करता है।”
According to Gagne, “Problem solving is a set of events in which human being uses rules to achieve some goals.”
रिस्क (Risk) के अनुसार, “शिक्षार्थियों के मन में समस्या को उत्पन्न करने की ऐसी प्रक्रिया जिससे वे उद्देश्य की ओर उत्साहित होकर तथा गम्भीरतापूर्वक सोच कर एक युक्तिसंगत हल निकालते है, समस्या समाधान कहलाता है।”
According to Risk, “Problem solving may be defined as a process of raising a problem in the minds of students in such a way as to stimulate purposeful reflective thinking in arriving at a rational solution.”
रॉबर्ट गेने के अनुसार, “दो या दो से अधिक सीखे गए कार्य या अधिनियमों को एक उच्च स्तरीय अधिनियम के रूप में विकसित किया जाता है उसे समस्या-समाधान अधिगम कहते हैं।”
शिक्षण की इस विधि में शिक्षण तीनों अवस्थाओं के रूप में कार्य करता है तथा छात्रों को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने की योग्यता प्राप्त होती है।
समस्या की विशेषताएँ (Characteristics of a Problem)
अध्ययन के लिए चुनी जाने वाली समस्या में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-
(1) समस्या छात्रों के पूर्वज्ञान से सम्बन्धित होनी चाहिए ताकि उनको समस्या का हल ढूँढने में आसानी हो।
(2) समस्या छात्रों के लिए उपयोगी तथा व्यावहारिक होनी चाहिए।
(3) समस्या छात्रों की रुचि एवं दृष्टिकोण के अनुसार होनी चाहिए।
(4) समस्या चुनौतीपूर्ण होनी चाहिए जिससे छात्रों में सोचने तथा तर्क करने की शक्ति का विकास हो।
(5) समस्या पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए तथा इतनी विशाल नहीं होनी चाहिए कि छात्रों को उसका समाधान ढूँढने के लिए विद्यालय अथवा शहर से बाहर जाना पड़े।
(6) समस्या के आलोचनात्मक पक्ष की ओर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। यह परिकल्पनाओं का मूल्यांकन करने के लिए अति आवश्यक है।
(7) समस्या के समाधान में उपयोग किए जाने वाले उपकरण विद्यालय की प्रयोगशाला में उपलब्ध होने चाहिए।
(8) समस्या छात्रों पर एक भार की तरह नहीं होनी चाहिए ताकि छात्र प्रसन्नतापूर्वक समस्या समाधान की विधि का उपयोग कर सकें।
(9) समस्या नई तथा व्यावहारिक होनी चाहिए जिससे छात्रों में कल्पना शक्ति तथा वैज्ञानिक क्षमताओं का विकास हो सके।
(10) समस्या छात्रों के मानसिक स्तर तथा शारीरिक क्षमताओं के अनुकूल होनी चाहिए।
समस्या समाधान की प्रक्रिया (Process of Problem Solving Method)
किसी भी विषय के शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न नवीन तथ्यों की खोज हेतु समस्या समाधान विधि का प्रयोग किया जाता है।
किसी भी विषय के शिक्षण में छात्रों के सम्मुख जब कोई ऐसी परिस्थिति आती है जिससे उन्हें कठिनाई या समस्या का सामना करना पड़ता है तो इससे पूर्व छात्र विषय के सम्बन्ध में जो कुछ सीखा या पढ़ा है, उसके द्वारा भी इन समस्याओं का समाधान खोजने में कठिनाई आती है तो इस प्रकार की परिस्थितियों में आवश्यक रूप से कुछ नवीन तथ्यों एवं अनुभवों पर आधारित ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य हो जाता है जिससे समस्या का हल खोजा जा सके।
अतः किसी परिस्थिति का सामना करने हेतु समस्त छात्रों समक्ष समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया निम्नलिखित है-
(1) सर्वप्रथम यह जाँच लेना चाहिए कि समस्या किस प्रकार की है?
(2) उस समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है।
(3) इसके पश्चात् छात्र समस्या से सम्बन्धित सृजनात्मक तथा गम्भीर चिन्तन में प्रयत्नरत रहते हैं।
(4) छात्र समस्या के अनुकूल शैक्षिक अनुभव प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
(5) छात्र प्रकट समस्या का समाधान विभिन्न विकल्पों, जैसे- अर्जित अनुभवों आदि के आधार पर वस्तुनिष्ठ समाधान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
(6) इसके पश्चात् छात्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राप्त समस्या का समाधान उपयुक्त एवं सही है अथवा नहीं।
उपर्युक्त विभिन्न चरणों के द्वारा छात्र किसी विशेष समस्या का समाधान खोजकर नवीन ज्ञान एवं कौशल अर्जित करने में सफल हो जाते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसी समस्या का समाधान करने का प्रशिक्षण छात्रों को भूगोल एवं अर्थशास्त्र के विषय विशेष का समुचित ज्ञान प्रदान कराने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हो सकता है।
समस्या समाधान विधि के पद / सोपान (Steps / Stages Involved in the Problem Solving Method)
समस्या समाधान पद्धति के पद / सोपान निम्नलिखित हैं-
(1) समस्या का चयन करना (Selection of the Problem)- तकनीकी शिक्षण में किसी समस्या-समाधान विधि में समस्या का चयन करते समय शिक्षकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि छात्रों को ऐसी समस्या प्रदान की जाए जिससे वे उसे हल करने की आवश्यकता समझ सके। छात्र एवं शिक्षक दोनों को सम्मिलित रूप से समस्या का चयन करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो शिक्षकों को छात्रों के समक्ष उत्पन्न समस्या से ही एक समस्या का चयन कर लेना चाहिए। समस्या का निर्धारण करते समय मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए कि छात्रों के समक्ष समस्या अत्यन्त व्यापक न हो व समस्या स्पष्ट होनी चाहिए।
(2) समस्या का प्रस्तुतीकरण (Presentation of the Problem)- समस्या का चयन करने के उपरान्त दूसरा चरण समस्या का प्रस्तुतीकरण आता है। समस्या का चुनाव करने के बाद शिक्षक छात्रों के समक्ष चयनित समस्या का सम्पूर्ण विश्लेषण करते हैं। शिक्षकों द्वारा किया गया यह विश्लेषण विचार-विमर्श आदि के माध्यम से हो सकता है। इसके पश्चात् अध्यापक छात्रों को समस्या से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्रदान करते हैं। जैसे- समस्या की पद्धति क्या होगी, प्रदत्त संकल्प कहाँ से और कैसे होंगे। इन समस्त जानकारियों के बाद छात्रों को समस्या की समस्त जानकारी प्राप्त हो जाती है विभिन्न तरीकों से आगे की प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हो जाती है।
(3) उपकल्पनाओं का निर्माण (Formulation of Hypothesis)- समस्या-समाधान के तृतीय चरण में समस्या का चयन करने के उपरान्त उसका प्रस्तुतीकरण तथा उपकल्पनाओं का निर्माण आता है। इन परिकल्पनाओं के निर्माण के उपरान्त उत्पन्न समस्याओं के क्या कारण हो सकते हैं, उनकी एक विस्तृत रूपरेखा तैयार कर ली जाती है। इस विधि में परिकल्पनाओं के निर्माण के द्वारा छात्रों की समस्या के विभिन्न कारणों पर गहनता से अध्ययन चिन्तन करने की क्षमता का विकास होता है। अतः समस्या से सम्बन्धित उपकल्पनाएँ ऐसी होनी चाहिए जिनका सरलता से परीक्षण किया जा सके।
(4) प्रदत्त संग्रह (Collection of Data) – समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाओं के निर्माण के उपरान्त चयनित परिकल्पनाओं का छात्रों के द्वारा संकलित प्रदत्तों के माध्यम से परीक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रदत्त संकलनों छात्रों को समस्या से सम्बन्धित दिशा-निर्देश देने हेतु निर्णय लेने में शिक्षक यह सहायता प्रदान करें कि प्रदत्त संकलन कहाँ से और कैसे प्राप्त किया जाए। अध्यापकों की सहायता से छात्र विभिन्न संदर्भों से आवश्यक प्रदत्तों का निर्माण कर लेते हैं।
(5) प्रदत्तों का विश्लेषण (Analysis of Data) – समस्या विधि के प्रस्तुत पद में उपरोक्त पदों में समस्या का चयन, प्रस्तुतीकरण, उपकल्पनाओं की निर्माण तथा चतुर्थ पद में प्रदत्तों का संग्रह करने सम्बन्धी अध्ययन किया जाता है। इसके पश्चात् पंचम पद अर्थात् प्रस्तुत पद में प्रदत्तों का विश्लेषण के माध्यम से उनका प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रदत्तों के मध्य स्थापित सम्बन्धों को ज्ञात किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न तथ्यों को व्यवस्थित एवं संगठित करने के पश्चात् उनकी व्याख्या की जाती है। अतः समस्या के प्रदत्तों का विश्लेषण करना अनिवार्य होता है।
(6) निष्कर्ष निकालना (Find Conclusion)- उपरोक्त सभी प्रक्रियाओं या पदों से होते हुए समस्या समाधान के पदों का विश्लेषण हो जाता है। इसके पश्चात् प्रदत्त संग्रहों विश्लेषण के उपरान्त निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं। निष्कर्ष में समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाएँ प्रदत्त विश्लेषण में सही एवं उपयुक्त पाई जाती हैं उनके आधार पर समस्या के समाधान से सम्बन्धित उपयुक्त निष्कर्ष प्रदान किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इन प्राप्त निष्काष को नवीन परिस्थितियों में लागू करके समस्त तथ्यों तथा निष्कर्षों की जाँच कर ली जाती है। अतः उपरोक्त सभी पदों के माध्यम से समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया / सोपान निर्धारित होते हैं तथा समस्या से सम्बन्धि समाधान प्राप्त हो जाते हैं।
समस्या समाधान पद्धति के गुण (Merits of Problem Solving Method)
समस्या समाधान पद्धति के गुण निम्नलिखित हैं-
(1) छात्रों में चिंतन शक्ति का विकास होता है।
(2) छात्रों में समस्याओं का वैज्ञानिक तरीके से समाधान खोजने की अभिवृत्ति तथा योग्यता का विकास होता है।
(3) शिक्षण में छात्रों की क्रियाओं की प्रचुरता के कारण अधिगम अधिक स्थायी होता है।
(4) इस पद्धति से शिक्षण करते समय छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखा जा सकता है।
(5) समस्या का चयन छात्रों की रुचि एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होता है।
(6) छात्रों को विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु प्रेरित किया जाता है।
(7) समस्या पर किए गए कार्य के लिए छात्रों को पर्याप्त अभिप्रेरणा प्रदान की जाती है।
समस्या समाधान पद्धति के दोष (Demerits of Problem Solving Method)
समस्या समाधान पद्धति के दोष निम्नलिखित हैं-
(1) प्रत्येक विषय-वस्तु को समस्या समाधान पद्धति से नहीं पढ़ाया जा सकता है।
(2) समस्या समाधान पद्धति से शिक्षण में समय बहुत अधिक लगता है।
(3) सही समस्या का चुनाव स्वयं में एक समस्या है।
(4) इस विधि का उपयोग केवल बड़ी कक्षा में ही किया जा सकता है।
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