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प्रदर्शन पद्धति (Demonstration Method)- विशेषताएँ, गुण, दोष, प्रदर्शन को प्रभावपूर्ण बनाने के सोपान

प्रदर्शन पद्धति
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प्रदर्शन पद्धति (Demonstration Method)

प्रदर्शन विधि भी शिक्षक आधारित विधि है। प्रायोगिक विधि में अधिक समय व्यय होने के कारण शिक्षक द्वारा शिक्षण के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। शिक्षक द्वारा प्रदर्शन किए जाने के बाद यदि छात्र प्रयोग करें तो प्रयोग काल में समय की बचत होती है। दूसरे प्रारम्भ से ही छात्रों को सही विधियों के माध्यम से विभिन्न कार्यों को करने का अभ्यास हो जाता है।

प्रदर्शन वह शिक्षण विधि है जिसमें भौतिक उपकरणों अथवा सामग्री के प्रयोग के साथ-साथ भौतिक व्याख्या भी की जाती है। शिक्षक छात्रों को विशेष सामग्री को प्रयुक्त करने तथा उसे संचालित करने की विधियाँ सिखाते है तथा उन्हें यह भी बताते हैं कि इनका प्रयोग करते समय किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए। वह इस बात का भी विश्लेषण करती हैं कि निश्चित क्रियाएँ क्यों आवश्यक होती है तथा उसके प्रयोग से ही विशिष्ट परिणाम क्यों प्राप्त होते हैं।

विज्ञान शिक्षण में प्रदर्शन विधि को व्याख्यान विधि का पूरक माना जाता है। तथ्यों, प्रत्ययों, सिद्धान्तों आदि का उचित ज्ञान प्रदान करने के लिए व्याख्यान के साथ-साथ यदि प्रदर्शन का भी सहारा लिया जाए तो शिक्षण अत्यन्त प्रभावी हो जाता है। इस विधि में शिक्षक उपकरण का प्रयोग स्वयं करता है और साथ ही छात्रों से विषयगत प्रश्न भी पूछता जाता है। छात्र प्रयोग करते हैं तथा प्रयोगों के परिणाम भी निकालते हैं और शिक्षक के प्रश्नों का भी बराबर उत्तर देते जाते हैं। छात्र ध्यानपूर्वक प्रयोगों का निरीक्षण इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें परिणाम निकालना होता है तथा प्रयोगों की व्याख्या करनी होती है तथा शिक्षक को प्रश्नों के उत्तर भी देने होते हैं।

विज्ञान विषय में प्रदर्शन प्रविधि का प्रयोग विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षण प्रदान करने में किया जाता है जिनका वे पुनः अभ्यास करेंगे। प्रदर्शन विधि का प्रयोग सूचनाएं देने के लिए भी किया जाता है। किसी प्रक्रम अथवा प्रक्रिया की व्याख्या करने अथवा जानकारी प्रदान करने का यह प्रभावपूर्ण साधन माना जाता है। विज्ञान का एक विशेषज्ञ अपने एक प्रदर्शन के द्वारा छात्रों की विज्ञान में रुचि उत्पन्न कर सकता है। शिक्षक कभी-कभी यह ज्ञात करने के लिए भी इस प्रविधि का प्रयोग करते हैं कि छात्रों ने सही ज्ञान कहाँ तक प्राप्त कर लिया है। कई बार शिक्षक किसी वस्तु का प्रदर्शन उचित विधि से करता है कभी त्रुटिपूर्ण विधि से तथा छात्र यह पहचानने का प्रयास करते हैं कि कौन सी विधि उचित है।

प्रदर्शन विधि की विशेषताएँ (Characteristics of Demonstration Method)

प्रदर्शन विधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) इस विधि में कम समय लगता है क्योंकि व्याख्यान विधि से पूरे पाठ्यक्रम को पढ़ाया जाना सम्भव होता है।

(2) यह विधि कम व्ययशील है। इसमें केवल उपकरणों के एक सेट से कार्य चल जाता है।

(3) इस विधि में समस्त छात्र एक ही स्थल पर एक ही प्रयोग को एक समान दृष्टि से देखते है और साथ-साथ उसकी व्याख्या भी करते जाते है जबकि अन्य विधियों में छात्रों द्वारा अलग-अलग प्रयोगों के आधार पर अलग-अलग परिणामों पर पहुँचने की आशंका बनी रहती है।

(4) इस विधि में शिक्षक द्वारा कार्य का प्रदर्शन किया जाता है। शिक्षक छात्रों से अधिक योग्य होते हैं जिससे प्रयोग सफलतापूर्वक पूरा किया जाता है।

प्रदर्शन विधि के गुण (Merits of Demonstration Method)

प्रदर्शन विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

(1) प्रदर्शन में सीखने के प्रयास और त्रुटि विधि का प्रयोग कम होता है। जिसके फलस्वरूप सीखने के समय में कमी हो जाती है।

(2) जिन प्रक्रियाओं को व्याख्या द्वारा स्पष्ट करना कठिन होता है उन्हें प्रदर्शन प्रविधि द्वारा अच्छी तरह से समझाया जा सकता है।

(3) प्रदर्शन प्रविधि द्वारा उस क्रिया के महत्वपूर्ण सोपानों तथा प्रक्रियाओं पर ध्यानाकर्षण होता है।

(4) प्रदर्शन द्वारा किसी वस्तु के निर्माण करने के लिए या किसी प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए वांछित मानक स्थापित हो जाता है।

(5) प्रदर्शन के द्वारा जब कोई क्रिया सिखाई जाती है तो छात्रों की सीखने की इच्छा उत्तेजित होती है।

6) जब शिक्षक पूरी कक्षा के सामने किसी क्रिया का प्रदर्शन करता है तो इससे धन की बचत होती है। व्यक्तिगत रूप से सिखाने पर तथा प्रयोग करने पर धन अधिक व्यय होता है।

(7) किसी विशिष्ट पदार्थ को तैयार करने की प्रक्रिया प्रदर्शन विधि द्वारा निश्चित रूप से समझ में आ जाती है।

(8) प्रदर्शन द्वारा यह भी ज्ञात हो जाता है कि किसी विशिष्ट प्रक्रिया में कितना समय लगेगा।

प्रदर्शन विधि के दोष (Demerits of Demonstration Method)

प्रदर्शन विधि की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) छात्र पूरा प्रदर्शन देखते एवं सुनते हों, यह जरूरी नहीं है।

(2) इसमें छात्र निष्क्रिय रहते है। वह प्रयोगशाला विधि की भाँति स्वयं प्रयोग करने के लाभ से वंचित रह जाते हैं।

(3) जब तक प्रदर्शन चलता है, कक्षा में अनुशासन स्थापित नहीं हो पाता है।

(4) इसमें छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाई की जानकारी और उसका निवारण नहीं हो पाता है।

प्रदर्शन को प्रभावपूर्ण बनाने के सोपान (Steps of Effective Demonstration)

प्रदर्शन को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए शिक्षक को निम्नलिखित सोपानों को ध्यान में रखना चाहिए-

(1) तैयारी (Preparation)- शिक्षक को प्रदर्शन करने से पूर्व उसके प्रत्येक पक्ष की पूर्व में ही तैयारी कर लेनी चाहिए। उसे यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि प्रदर्शन में कितना समय लगेगा। प्रदर्शन से सम्बन्धित सामग्री को पहले से तैयार करके रख लेना चाहिए।

(2) प्रदर्शन की प्रक्रिया (Process of Demonstration)- शिक्षक को प्रदर्शन करते समय प्रदर्शन-विधि में जिन वस्तुओं की आवश्यकता है उन्हें ही मेज पर रखना चाहिए। मेज पर व्यवस्थित ढंग से रखे सामान से प्रदर्शन की प्रभावपूर्णता में वृद्धि होती है। शिक्षक को कक्षा-कक्ष में सामग्री एवं प्रक्रियाओं का इस तरह प्रदर्शन करना चाहिए जिससे वे सभी छात्रों को स्पष्ट रूप से दिखायी दें। बाधा उपस्थित करने वाली वस्तुओं को मेज पर नही रहने देना चाहिए। शिक्षक को चाहिए कि वह निर्मित की जा रही वस्तु की विभिन्न अवस्थाओं को यथा समय छात्रों के समक्ष प्रदर्शित करता रहे। मेज पर रखी हुई जिन वस्तुओं को छात्र अपनी कुर्सियों पर बैठे-बैठे नहीं देख सकते उन्हें देखने के लिए ऊपर स्थित एक दर्पण अत्यधिक सहायक होता है। सामान्यतः शिक्षक को कक्षा में छात्रों को इस प्रकार बिठाने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे छात्र मेज पर रखी वस्तुएं भली प्रकार देख सकें।

शिक्षक को समय-सारणी का अनुगमन करना चाहिए तथा जिन सोपानों की पहले से ही योजना बना ली हो उनका पालन सावधानीपूर्वक करना चाहिए। प्रदर्शन को सम्पन्न करने की गति सामान्य होनी चाहिए। इसे न तो बहुत शीघ्रता से और न ही बहुत धीमी गति से सम्पन्न करना चाहिए। प्रदर्शन में जिन सहायक सामग्रियों का उपयोग किया जाना हो उसका उपयोग उचित ढंग से करना चाहिए। प्रदर्शन में यदि सभी सामग्री ठीक से रखी गयी हो तो उसे उठाने तथा रखने में व्यय होने वाली शक्ति तथा बहुत सा समय नष्ट होने से बच सकता है।

(3) प्रदर्शन के साथ मौखिक व्याख्या (Oral Explanation with Demonstration) – शिक्षक को प्रदर्शन के साथ उसके सोपानों की रूपरेखा तथा सारांश छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। प्रदर्शन की प्रस्तावना में छात्रों के सामने प्रदर्शन के उद्देश्य की व्याख्या कर देनी चाहिए। शिक्षक को प्रत्येक सोपान को सरल और स्पष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। प्रदर्शन के बीच में भी व्याख्या प्रस्तुत करे तथा इस व्याख्या में केवल सोपानों का स्पष्टीकरण ही न हो बल्कि इसमें निहित सिद्धान्तों की भी व्याख्या करे। प्रदर्शन से पहले प्रस्तुत किया जाने वाला सारांश पूर्ण होना चाहिए तथा प्रदर्शन के निष्कर्ष की ओर अग्रसर करने में सहायक होना चाहिए। शिक्षक को इस बात को भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि मौखिक व्याख्या के बिना प्रदर्शन का महत्व बहुत कम रह जाता है।

(4) प्रदर्शन में छात्रों की सहभागिता (Participation of Students in Demonstration)- प्रदर्शन में यदि छात्र सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं तो इसका तात्पर्य है कि वे उसमें रुचि ले रहे हैं। शिक्षक प्रदर्शन करते समय छात्रों को अपनी सहायता के लिए भी बुला सकता है। इसी प्रकार प्रदर्शन से पहले प्रदर्शन की तैयारी करते समय भी शिक्षक छात्रों का सहयोग ले सकता है। सभी छात्रों को बराबर सहभागिता बनाए रखने के लिए छात्रों को बारी-बारी से सहयोग के लिए बुलाना चाहिए। योग्य छात्रों को प्रदर्शन को पूरा करने का अवसर भी देना चाहिए परन्तु शिक्षक को कक्षा में अपना नियन्त्रण बनाए रखना चाहिए और इस प्रकार से निर्देश देने चाहिए जिससे किसी छात्र विशेष के द्वारा किए गए प्रदर्शन से अन्य छात्र लाभ उठा सकें। इस प्रकार छात्र प्रदर्शन की विषय-वस्तु का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। उनमें पूर्ण चिन्तन शक्ति तथा समय बोध की भावना विकसित होती है।

प्रदर्शन के परिणामों का मूल्यांकन (Evaluation of Demonstration Results)

प्रदर्शन के परिणामों का मूल्यांकन निम्न बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है-

(1) यदि छात्र प्रदर्शन में रुचि लेते प्रतीत हों तो शिक्षक को अपने प्रदर्शन को सफल समझना चाहिए।

(2) यदि प्रदर्शन छात्रों को आगे विचार करने के लिए उत्तेजित करता है तथा छात्र उस पर चर्चा करना चाहता है तो प्रदर्शन निश्चित रूप से प्रभावपूर्ण ढंग से संचालित किया गया है।

(3) यदि वे उस नवीन ज्ञान की जिसे प्रदर्शन के माध्यम से उन्होंने प्राप्त किया है, प्रयुक्त करने के लिए उत्सुक हैं तो प्रदर्शन को पूर्ण सफल समझा जाएगा।

(4) वास्तव में प्रदर्शन को तभी सफल माना जाएगा जब प्रदर्शन के रूप में उत्पादित वस्तु या उसका परिणाम गुणात्मक दृष्टि से उच्च स्तर का हो।

(5) जिस विशिष्ट व्यंजन को बनाने की प्रक्रिया को प्रदर्शन द्वारा प्रदर्शित किया गया है. उसे छात्र भली-भाँति समझ गए हैं तो प्रदर्शन को सफल माना जाएगा।

(6) प्रदर्शन उचित रूप से सम्पन्न हो गया है तथा उसमें उचित मानक स्थापित किए गए हैं तो भी प्रदर्शन को सफल माना जाएगा।

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