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प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए प्रशासनिक प्रावधान

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए प्रशासनिक प्रावधान
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए प्रशासनिक प्रावधान

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए प्रशासनिक प्रावधान (Administrative Provision for the Education of Gifted Children)

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए प्रशासनिक प्रावधान- चूँकि स्कूलों में शुरूआती दौर में प्रतिभाशाली बच्चों के ‘प्रतिभा’ की पहचान नहीं हो पाती है इसलिए ऐसे बच्चों की प्रतिभाएँ दब जाने की संभावना अत्यधिक होती है। ऐसा नहीं हो इसके लिए कुछ कठोर प्रशासनिक कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। ये कदम हैं

(i) अकादमिक गतिवृद्धि (Academic Acceleration)- अत्यंत प्रतिभाशाली अंतर्गत प्रतिभाशाली बच्चों को सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक तेज गति से शिक्षण (Extremely Gifted) बालकों के लिए अकादमित गतिवृद्धि अत्यंत लाभदायक है। इसके सविधा मुहैया करायी जाती है। अकादमिक गति वृद्धि कई स्तरों पर कई रूपों में हो सकता है मसलन बहुत छोटी उम्र में ही बच्चों को स्कूल में दाखिल कराना, प्राथमिक कक्षा से प्रोन्नत कर सीधे उच्च विद्यालय में दाखिला देना अथवा बहुत कम समयावधि में स्कूली शिक्षण से महाविद्यालयी शिक्षण की व्यवस्था करना, स्नातक कक्षा में अध्ययनरत बालक-बालिकाओं को एक ही वर्ष की अध्ययन अवधि के पश्चात् स्नातकोत्तर परीक्षा में शामिल होने का प्रावधान करना आदि।

लेकिन अकादमिक गतिवृद्धि के विरोधियों का मानना है कि ऐसा करने से प्रतिभाशाली बालकों में कई तरह की सामाजिक एवं सांवेगिक समस्याएँ आ जाती हैं। उन्हें अपने उम्रदराज सहपाठियों के साथ समायोजित होने में कठिनाई होती है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऊँची कक्षा में प्रोन्नत निचली कक्षा के प्रतिभाशाली बच्चों को शिक्षण संबंधी समायोजन की समस्या उत्पन्न होती है। उच्च कक्षाओं में भी उन्हें आलोचना, सृजनशीलता और मूल्यांकन संबंधी चिंतन सरीखे प्रतिभाशाली बच्चों के शिक्षण की तकनीक की जगह सामान्य बच्चों के शिक्षण की तकनीक से रू-ब-रू होना पड़ता है जिससे ऐसे बालकों में पढ़ाई के प्रति रुचि घटती चली जाती है।

(ii) सम्पन्नीकरण कार्यक्रम (Enrichment Programme)- इस कार्यक्रम के अंतर्गत बालक रहता तो अपनी कक्षा के बालकों के साथ ही है किन्तु उसके लिए ऐसे बौद्धिक अनुभवों का आयोजन कर दिया जाता है जो उसकी योग्यतायें और रुचियों के अनुरूप है।

सम्पन्नीकरण के कई मॉडल शिक्षा जगत में प्रचलित हैं। उन मॉडलों में सबसे उन्नत मॉडल है रेन्जुली (1982) द्वारा निर्मित ‘रिवॉल्विंग डोर मॉडल’ (Revolving Door Model)। यह मॉडल प्रतिभाशाली बच्चों की उच्च क्षमता (High Ability), उच्च सृजनशीलता (High Creativity) और उच्च कार्य समर्पण (High Task Commitment) गुणों पर आधारित है। केस स्टडी विधि के जरिये पहचान कर एक टैलेंट पुल (Talent Pool) के अंतर्गत चयन कर लिया जाता है तत्पश्चात् उन्हें सम्पन्नीकरण गतिविधियों (Enrichment Activities) में व्यस्त कर दिया जाता 1

ओलेनचॉक और रेन्जुली (1989) एवं रेन्जुली और रिस (1985) ने कालांतर में एक ‘विद्यालयवार सम्पन्नीकरण मॉडल’ (Schoolwise Enrichment Model) विकसित किया। विशेष और नियमित कार्यक्रम के बीच के अलगाव को कम करने के लिए ही इस मॉडल को डिजाइन किया गया था। इस मॉडल के तहत उन सभी बच्चों को अधिक से अधिक चुनौतीपूर्ण गतिविधियों में शामिल होने का मौका दिया जाता है जो सम्पन्नीकरण गतिविधियों (enrichment activities) से लाभान्वित हो रहे हों। इस मॉडल के निम्नलिखित अंग हैं :

(क) पाठ्यचर्या सघनता (Curriculum Compating) – इसके अंतर्गत नियमित पाठ्यचर्या में सुधार किया जाता है ताकि पाठ्यचर्या में पूर्व विषय-वस्तुओं की पुनरावृत्ति न हो साथ ही नियमित पाठ्ययचर्या के चुनौती स्तर को बढ़ाया जा सके। इसमें मूलभूत कौशल को सुनिश्चित करने के क्रम में अकादमिक गतिवृद्धि के लिए समय भी मिलता है। स्टाकों (1986) के मुताबिक चुनौतीपूर्ण अधिगम वातावरण का निर्माण, बुनियादी, पाठ्यचर्या में प्रवीणता की सुनिश्चितता एवं सम्पन्नीकरण एवं गतिवृद्धि के लिए समय उपलब्ध कराना ही पाठ्यचर्या सघनता के मुख्य लक्ष्य हैं।

(ख) विद्यार्थियों की शक्ति की जाँच (Assessment of Students Strength)- इस के अंतर्गत छात्र-छात्राओं की योग्यताओं, रुचियों और अधिगम शैली से संबंधित सूचनाओं का संग्रह व रिकार्ड किया जाता है।

(ग) टाईप I इनरिचमेंट : सामान्य अन्वेषणात्मक अनुभव (Type I Enrichment : General Exploratory Experience) – इसके अंतर्गत उन अनुभवों और गतिविधियों को शामिल किया जाता है जो अमूमन नियमित पाठ्यचर्या में शामिल नहीं किये जाते हैं। इसमें विषय-वस्तु, मुद्दे ( Issues), पेशा (Occupations), हॉबी (Hobbies), व्यक्ति, स्थान एवं समसामयिक घटनाएँ आदि शामिल हैं।

(घ) टाईप II इनरिचमेंट : समूह प्रशिक्षण गतिविधियाँ (Type II Enrichment : Group Traning Activities)- इसके अंतर्गत चिंतन के विकास और एहसास प्रक्रिया के प्रोत्साहन के उद्देश्य से निर्मित अनुदेश विधियों (Instructional Methods) और वस्तुएँ (Materials) शामिल किया जाता है।

(ङ) टाईप III : वास्तविक समस्याओं का वैयक्तिक और सामूहिक अन्वेषण (Type III: Individual and Small Group Investigation of Real Problems) – इसके अंतर्गत वे अन्वेषणात्मक गतिविधियों और कलाकृति उत्पाद शामिल हैं जिनमें प्रतिभाशाली बच्चे प्राथमिक पूछताछकर्ता की भूमिका निभाते हैं।

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