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प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा | Education of the Gifted Children in Hindi

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा (Education of the Gifted Children)

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं :

1. पहचान अथवा चुनाव- प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा में सबसे पहले यह पता लगाना आवश्यक होता है कि किस कक्षा में कौन-कौन से बालक प्रतिभाशाली हैं। इस चुनाव में पिछली कक्षाओं में मिले अंक, शिक्षक की राय, मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के परिणाम तथा माता-पिता आदि की रिपोर्ट का सहारा लिया जा सकता है।

2. व्यक्तिगत शिक्षण (Individual Teaching)- कुछ शिक्षा शास्त्रियों का मत है कि प्रतिभाशाली बालकों को व्यक्तिगत रूप से शिक्षण दिया जाय, तभी उनकी प्रतिभाओं का उचित विकास हो सकता है, किन्तु यह व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता है, क्योंकि प्रत्येक शिक्षा संस्था इस प्रकार का प्रबंध नहीं कर सकती। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में केवल यहीं संभव है कि शिक्षक उन पर विशेष ध्यान रखकर उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहे। कुछ मनोवैज्ञानिक तो यह भी सुझाव देते हैं कि प्रतिभाशाली बालकों की अलग कक्षा होनी चाहिए, किंतु समाजीकरण की दृष्टि से यह सुझाव अधिक समीचीन नहीं प्रतीत होता है।

3. शीघ्र वर्ग प्रोन्नति (Rapid Grade Acceleration)- कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह सुझाव दिया है कि प्रतिभाशाली बालक को अन्य बालकों की अपेक्षा शीघ्र एक कक्षा से दूसरी कक्षा में प्रोन्नत करना चाहिए इससे उन्हें पूर्ण मानसिक विकास का अवसर मिलेगा और समय की भी बचत होगी, परंतु इस व्यवस्था में भी बालक के सामाजिक विकास की दृष्टि से दोष है। अतः अधिक उपयुक्त होगा कि अगली कक्षा में प्रोन्नति बिना ही अलग से कुछ विशेष बात करने को दिया जाय।

4. पाठ्यक्रम (Special Curriculum)- अनेक मनोवैज्ञानिकों ने यह सुझाव दिया है कि प्रतिभाशाली बालकों के लिए सामान्य पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कुछ विशेष पाठ्यक्रम की योजना होनी चाहिए। यह सुझाव उपयुक्त प्रतीत होता है, किंतु इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह पाठ्यक्रम इतना महत्वकांक्षी एवं विस्तृत न हो कि प्रतिभाशाली बालक पर बोझ बनकर उसका विकास कुण्ठित कर दे।

कोलसेनिक के मुताबिक विस्तृत पाठ्यक्रम का अर्थ है कि बच्चों के विभिन्न अनुभव तथा कार्य अधिक उच्च स्तर के दिये जाएँ। विस और गैलागाहर ने प्रतिभाशाली बच्चों की शिक्षा हेतु पाठ्यचर्या सुधार के लिए सात सूत्री योजना बनाने का सुझाव दिया है। ये सात सूत्री योजना हैं-

(i) वर्ग कक्ष का सामर्थ्य बनाना (Enrichment of Classroom) – बगैर बाहरी संसाधन की सहायता से वर्ग कक्ष को ही इतना सामर्थ्यवान बना दिया जाए ताकि वर्ग शिक्षक अपने ही वर्ग में प्रतिभाशाली बच्चों को अच्छे ढंग से पढ़ा सकें।

(ii) परामर्शी शिक्षक कार्यक्रम (Consultant Teacher Programme)- इस कार्यक्रम के तहत नियमित वर्ग शिक्षक ही विशिष्ट प्रशिक्षित परामर्शी शिक्षक की सहायता से अपने ही वर्ग कक्ष में प्रतिभाशाली बच्चों को विभिन्न प्रकार के अनुदेश (Instruction) दिये जाने का प्रावधान सुझाया गया है।

(iii) संसाधन कक्ष (Resource Room) – प्रत्येक विद्यालय में प्रतिभाशाली बच्चों के शिक्षण के लिए संसाधन कक्ष होना आवश्यक है। ऐसे बच्चे को नियमित रूप से अपना वर्ग कक्ष छोड़ कर भिन्नात्मक अनुदेश (differentiated instruction) के लिए संसाधन कक्ष जाना चाहिए ताकि विशेष प्रशिक्षित शिक्षक उन्हें अनुदेश दे सकें।

(iv) सामुदायिक सलाह कार्यक्रम (Community Mentor Programme)- इस कार्यक्रम के तहत प्रतिभाशाली बच्चों को किसी खास विषय की जानकारी हासिल करने के लिए समुदाय के चुनिंदे लोगों के साथ एक लम्बे समयावधि तक छोड़ देना चाहिए।

(v) स्वतंत्र अध्ययन कार्यक्रम (Independent Study Programme)- प्रतिभाशाली बच्चों को एक अर्हता प्राप्त वयस्क व्यक्ति के निर्देशन में स्वतंत्र अध्ययन प्रोजेक्ट करने के लिए छोड़ देना चाहिए।

(vi) विशेष वर्ग व्यवस्था (Special Class)- प्रतिभाशाली बच्चे एक समूह में विशेष वर्ग व्यवस्था के तहत विशेो प्रशिक्षित शिक्षक से अनुदेश प्राप्त करते हैं।

(vi) विशेष स्कूल (Special School) – इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रतिभाशाली बच्चे किसी विशेष स्कूल में विशेष ढंग से प्रशिक्षित शिक्षक से भिन्नात्मक अनुदेश (Differentiated Instruction) प्राप्त करते हैं।

5. पाठ्य सहगामी कार्यक्रम – प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा को विकसित करने का एक अन्य उपयोगी उपाय उन्हें पाठ्य सहगामी कार्यक्रम जैसे- खेल, संगीत, नृत्य, नाट्य, अन्य कलाओं का अभ्यास, वाक् प्रतियोगिताओं तथा खेल प्रतियोगिताओं के लिए अभ्यास आदि सामूहिक कार्यों में लगाया जाए।

6. शैक्षिक सुविधाओं में वृद्धि – विद्यालय में प्रतिभाशाली बालकों को कुछ विशेष सुविधायें दी जा सकती हैं, जैसे – छात्रवृत्ति, कुछ महत्वपूर्ण कार्यों के करने का अवसर देना अथवा कुछ विशेष उत्तरायित्व सौंपना आदि। पुस्तकालय तथा प्रयोगशालाओं में प्रतिभावान बालकों को अधिक समय तक कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि शिक्षक अनेक उपायों से प्रतिभाशाली बालकों के सर्वांगीण विकास का विशेष आयोजन करके राष्ट्र निर्माण के कार्य में सहयोग दे सकता है। शिक्षक के साथ ही माता-पिता अथवा संरक्षक परस्पर सहयोग देकर देश के भावी नेताओं, वैज्ञानिकों, विद्वानों, साहित्यकारों तथा सेनानायकों के निर्माण के लिए प्रतिभाशाली बालकों के विकास में भागीदार हो सकते हैं। इसमें समाज और सरकार को भी विकास के अवसर जुटाने में महत्वूपर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

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