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बिहार में किशोरों की प्रासंगिक सत्यता | The Contextual Reality of Adorescence in Bihar

बिहार में किशोरों की प्रासंगिक सत्यता
बिहार में किशोरों की प्रासंगिक सत्यता

बिहार में किशोरों की प्रासंगिक सत्यता (The Contextual Reality of Adorescence in Bihar)

बिहार में किशोरों की प्रासंगिक सत्यता- बिहार में किशोर एवं किशोरियों के लिए राज्य में शैक्षिक माहौल है। शिक्षा हो वह कड़ी है जो किशोरों में शारीरिक, नैतिक एवं संवेगात्मक विकास प्रदान करता है। लगभग हरेक 3 से 5 किलोमीटर की दूरी पर बिहार में मध्य विद्यालय एवं हरेक प्रखण्ड में एक से लेकर तीन-चार उच्च विद्यालय बिहार में है। मध्य विद्यालय छोड़ते-छोड़ते बालक/बालिका किशोरावस्था में प्रवेश कर जाता है। 6-14 आयु वर्ग के बच्चे को शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अन्तर्गत शिक्षा प्रदान किया जा रहा है। यानि कि आँकड़ों के अनुसार बच्चे विद्यालय से जुड़े हुए हैं। सरकार किशोरों को प्रोत्साहन भी दे रही है, वह चाहे मुफ्त में किताब, छात्रवृत्ति, पोषाक, साइकिल, भोजन या फिर मैट्रिक में प्रथम स्थान पाने वाले के लिए प्रोत्साहन राशि हो । विद्यालय आगमन एवं छुट्टी के समय किशोरों के भीड़ को देखते हुए यह बखुबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार में उनके लिए शिक्षा का माहौल है।

किन्तु कुछ परिस्थितियाँ हैं जो किशोरों को विद्यालय से दूरी बना देता है वह है-

(i) विद्यालय का पठन-पाठन

(ii) घर से विद्यालय की दूरी

(iii) गरीबी

(iv) अभिभावकों की अशिक्षा

(v) समाज की भूमिका

(vi) स्थानीय प्रशासन की भूमिका

(vii) किशोरावस्था में विवाह

(viii) लड़कियों को घर के काम-काज में लगा देना

(ix) लड़कों को होटल, ढावा या मजदूर के रूप में कार्य कराना

(x) बाल तस्करी

(xi) बंधुआ मजदूर

(xii) नशा का प्रयोग

(xiii) पारम्परिक पेशा में लगा देना यथा-बढ़ईगिरी, दर्जीगिरी, हजामत

(xiv) कृषि कार्यों में लगाना आदि।

शैक्षिक व नैतिक विकास में बाधा पहुँच रहा है। किसी भी तरह के समस्या उत्पन्न होने उपरोक्त प्रतिकूल परिस्थिति के कारण कहीं-न-कहीं किशोरों के शारीरिक, मानसिक पर अभिभावक राज्य सरकार को दोषी मानते हैं। राजनीतिक रूप दे देते हैं। अभिभावक को यह सोचने की जरूरत है कि बच्चा उन्हीं का है, अगर उन का बच्चा बनता है तो परिवार बनेगा। परिवार अच्छा बनेगा तो अच्छे समाज का निर्माण होगा, अच्छे समाज के निर्माण से राज्य खुशहाल रहेगा। हर परिस्थिति को राज्य के ऊपर छोड़ देना कहीं-न-कहीं हमारी अकर्मण्यता झलकता है।

कुल मिलाकर बिहार राज्य में किशोरों की स्थिति संतोषजनक है। जरूरत है एक-दूसरे का सहयोग चाहे वह किशोरों के लिए परिवार का सहयोग हो, विद्यालय का सहयोग हो, शिक्षक का सहयोग हो, स्थानीय प्रशासन का सहयोग हो, शिक्षा पदाधिकारी का सहयोग हो या फिर राज्य का सहयोग हो, की अपेक्षा है।

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