किशोरावस्था चरण की विशेषताएँ (Characteristics of Adolescence stage)
मानव विकास एक सतत् प्रक्रिया है। विकास की इस प्रक्रिया से मनुष्य जीवन भर संघर्ष करता है। उस प्रक्रिया में उसका मानसिक, भाषायी, संवेगात्मक, सामाजिक, चारित्रिक, शारीरिक एवं नैतिक आदि अनेक अवस्थाएँ इन अवस्थाओं में सबसे संघर्षशील अवस्था किशोरावस्था है । जो मनुष्य के जीवन की दिशा और दिशा दोनों निर्धारित करती है।
किशोरावस्था का अर्थ (Meaning of Adolescence)
यह बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच परिवर्तन की अवस्था है। किशोरावस्था मानव जीवन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण समय है। किशोरावस्था अंग्रेजी भाषा के ‘Adolescence’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है।’ Adolescence’ लैटिन भाषा के ‘Adolesre’ से लिया गया है जिसका अर्थ है। ‘परिपक्वता की ओर बढ़ना’।
किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें बाल्यावस्था के बाद व्यक्ति पदार्पण करता है। सामान्यतः यह अवस्था को Teen Age भी कहा जाता है। इस अवस्था में बालक स्वयं से अपने परिवार तथा समाज से संघर्ष करता है। इस अवस्था में बालक शारीरिक परिवर्तन, समाज में हो रहे कार्यों को देखकर, भारतीय समाज की व्यवस्था को देखकर असमंजस की स्थिति में होता है इन्हीं को देखकर वह विरोध करता है उनके प्रति विरोध करते हैं। इसलिए इसे संघर्ष व तूफान की अवस्था कहते हैं। यह विकास की सबसे जटिल अवस्था मानी जाती है।
ए. टी. जरसिल्ड के अनुसार- “किशोरावस्था वह समय है जिसमें विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता है।”
(Adolescence is such time in which a developing person transist from childhood to maturity)
स्टेनली हाल के अनुसार-“किशोरावस्था बड़े दवाब, तूफान और संघर्ष की अवस्था है।” (Adolecence is stage of storm, stress and struggle.)
पूर्व-किशोरावस्था की विशेषताएँ
पूर्व किशोरावस्था की विभिन्न मुख्य विशेषताएँ निम्न है :-
1. पूर्व किशोरावस्था में शारीरिक विकास- छः से ग्यारह वर्ष की आयु बाल्यवस्था तथा 13 साल से लेकर 19-20 साल की आयु को किशोरावस्था कहा जाता है । इन अवस्थाओं में शारीरिक विकास में काफी उतार चढ़ाव आते है । बाल्यकाल में वृद्धि की गति बहुत धीमी होती है । परन्तु किशोरावस्था में वृद्धि की यह गति तीव्र हो जाती है। बालकों और बालिकाओं में विकास का स्वभाव प्रायः एक सा होता है परन्तु 12, 13 वर्षों में यानी किशोरावस्था में लड़कियों की औसत लम्बाई लड़कों की औसत लम्बाई से अधिक होती हैं, क्योंकि किशोरावस्था के अन्त तक जब बालक में लगभग परिपक्वता के अन्त तक जब बालक में लगभग परिपक्वता आ चुकी होती है। किशोरावस्था उसकी हड्डियों में पर्याप्त मात्रा में कड़ापन आ चुका होता है। उसकी मासपेशियों का विकास तीव्र गति से होने लगता है।
2. पूर्व-किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास- संवेग को परिभाषित करते हुए ऑर्थर टी. जर्सील्ड ने कहा है, “संवेग शब्द किसी भी प्रकार से आवेश में आने, भड़क उठने तथा उत्तेजित होने की दशा को सूचित करता है। “
जिस तरह फूल में खुशबू होने के बावजूद भी दिखाई नहीं देती उसी प्रकार व्यक्ति के व्यवहार में किसी न किसी अंश में संवेग अवश्य विद्यमान रहते हैं। पूर्व- किशोरावस्था में अलग-अलग तरह के संवेगों की विशेषताएँ निम्न है-
1. जब बालक बाल्यकाल की अन्तिम अवस्था तथा किशोरावस्था की प्रारम्भिक अवस्था में होता है तो वह अपनी क्रोध, डर, उदासी, गुस्सा आदि भावनाओं पर काबू पाना सीख लेता है।
2. पूर्व-किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते बालक को इस बात का आभास हो जाता है कि संवेग यानी क्रोध, ईर्ष्या, प्रसन्नता कब प्रकट करने हैं। इस अवस्था में जो संवेग पैदा होते हैं, वे ज्यादा समय तक रहते हैं।
3. इस अवस्था में आकर बालक विभिन्न बातों को गम्भीरता से लेने लगता है तथा अधिक समय तक उनके बारे में सोचता है।
4. प्रत्येक किशोर के संवेगों को प्रकट करने के तरीकों में व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है। कोई किसी बात पर क्रोधित होकर चीजों को पटकने लगता है तो कोई चुपचाप मुँह बनाकर बैठ जाता है।
5. बाल्यावस्था में बालक अधिकाधिक संवेगों को प्रकट करता है तथा पूर्व किशोरावस्था में समाज के डर से अपनी भावनाएँ छिपाना सीख लेता है।
6. बाल्यावस्था के संवेगों को पहचानना सरल होता हैं जबकि किशोर के संवेगों को पहचानना कठिन होता है।
7. आयु वृद्धि के साथ-साथ किशोर के संवेगों में भी परिवर्तन आ जाता है, हो सकता है 14 वर्ष की आयु में जो किशोर क्रोधित प्रवृत्ति का हो 19 वर्ष का होने तक यह शान्त प्रवृत्ति का हो जाए।
8. पूर्व -किशोरावस्था में कामुकता की भावना जाग्रत हो जाती है। यह कामुकता समलैंगिक तथा विपरीत लैंगिक होती है।
9. किशोरावस्था के पूर्व बालक तथा बालिकायें अपनी आलोचना सहन नहीं करते, यदि उनका मजाक उड़ाया जाए या उनको उनके अधिकारों से वंचित रखा जाए तो वे यह सहन नहीं कर पाते और क्रोधित हो जाते हैं।
10. इस अवस्था में चिन्ता का संवेग किशोरों की घेरे रहता है ये चिन्तायें परीक्षाओं या पारिवारिक आर्थिक दशा के कारण हो सकती हैं।
3. पूर्व-किशोरावस्था की सामाजिक विशेषताएँ
(i) सामाजिक चेतना- पूर्व-किशोरावस्था में लड़के और लड़कियाँ समाज में अपना स्थान ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं। उनमें ये इच्छा होती है कि माता-पिता, मित्र व अध्यापक उनकी प्रशंसा करें।
(ii) समाज सेवा की भावना का विकास- पूर्व-किशोरावस्था में किशोर समाज-सेवा की भावना से ओतप्रोत होते हैं ऐसा प्रतीत होता है, मानो समाज सेवा उनमें कूट-कूट कर भरी है।
(iii) सामाजिक परिपक्वता- इस अवस्था में किशोर सामाजिक उत्तरदायित्व को = समझने लगते हैं। उनके अन्दर सामाजिक गुण जैसे- सहानुभूति, सद्भावना, सहयोग, नेतृत्व आदि परिपक्वता की ओर अग्रसर होते हैं।
(iv) धार्मिक रूचियों का विकास- शैशवावस्था तथा बाल्यावस्था में बालकों को धार्मिक रूचियों के बारे में पता नहीं होता, परंतु पूर्व- किशोरावस्था में किशोरों में भक्ति भावना विकसित होनी शुरू हो जाती है।
(v) लिंग चेतना- इस अवस्था में लड़के व लड़कियाँ एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। वे अपनी वेशभूषा तथा श्रृंगार के प्रति अधिक ध्यान देते हैं।
(vi) जीवन-दर्शन का निर्माण- इस अवस्था में किशोरों में नैतिकता, आदर्शों तथा अच्छे बुरे का अन्तर आदि विकसित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उनके जीवन दर्शन का निर्माण होना प्रारम्भ हो जाता है।
4. पूर्व-किशोरावस्था में भाषा विकास की विशेषताएँ
पूर्व-किशोरावस्था में बालक में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं जिनके फलस्वरूप भिन्न-भिन्न प्रकार के संवेग पैदा होते हैं, जिसके कारण उनकी भाषा के विकास में कुछ विशेषताएँ आ जाती है-
(i) इस अवस्था में किशोरों में साहित्य पढ़ने की रूचि उत्पन्न हो जाती है।
(ii) शब्द कोष भी इस अवस्था तक लगभग विस्तृत हो चुका होता है।
(iii) इस अवस्था में किशोर गुप्त भाषा भी विकसित करते हैं, ऐसी भाषा को वे कोड भाषा भी कहते हैं।
(iv) इस अवस्था में किशोरों की संकल्पनाओं का भाषा के माध्यम से विकास हो जाता है।
(v) किशोरों के चिन्तन भी भाषा विकास को प्रभावित करते हैं।
(vi) इस अवस्था में तर्क-वितर्क के माध्यम से भी भाषा का विकास होता है।
(vii) पूर्व-किशोरावस्था में बालक भाषा के प्रयोग के बारे में अधिकतर ज्ञान प्राप्त कर चुका होता है।
इस प्रकार पूर्व-किशोरावस्था में विकास की विशेषताएँ बाल्यावस्था से भिन्न होती है।
किशोरावस्था के समय की विशेषतायें (Characteristics of at the Time of Adolescence)
जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था होने के कारण इस अवस्था में पायी जाने वाली कुछ विशेषतायें निम्नलिखित हैं-
(i) इस अवस्था में किशोर अवसाद (Depression) का शिकार या उत्तेजनात्मकता का शिकार होता है।
(ii) इस अवस्था में समायोजन (Adjustment) का अभाव होता है।
(iii) वीरपूजा (Ideal Worship) और आदर्श निर्माण (Moral Formation) की भावना होती है।
(iv) विद्रोह (Rebellion) करने की भावना होती है। बच्चे बन्धन व नियमों में रहना पसन्द नहीं करते।
(v) किशोरावस्था अधिकतम विकास की अवस्था होती है।
(vi) आवाज में परिवर्तन होता है। लड़कों की आवाज भारी हो जाती है।
(vii) इस अवस्था बालकों में आत्म प्रदर्शन की भावना का विकास होता है। वे चाहते हैं कि दूसरे लोग उन्हें देखे।
(viii) इस अवस्था में बालक ऊर्जावान होते हैं। किसी भी काम को करने में अपनी पूरी क्षमता व शक्ति का प्रयोग करते हैं।
(ix) यह समस्या की आयु होती है। बच्चे अपने शारीरिक परिवर्तन को समझ नहीं पाते। इसके साथ परिवार के सदस्य कभी उसके साथ छोटे बच्चे जैसा कभी बड़े बच्चों के जैसा व्यवहार की आशा करते हैं।
(x) किशोरावस्था तूफान और परेशानी की अवस्था होती है।
(xi) आत्म-निर्भरता तथा अहंभाव का विकास होता है। किशोरों में अपने निर्णय स्वयं लेने की भावना का विकास होता है।
(xii) लैंगिक परिपक्वता होती है।
(xiii) किशोरावस्था अस्थिरता की अवस्था होती है। एक ही क्षण में आशावादी होता है तथा एक ही क्षण में निराश हो जाता है।
(xiv) विषमलिंगी भावना का विकास होता है।
Important Links
- किशोरावस्था की समस्याएं
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- एरिक्सन का सिद्धांत
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- भाषा की उपयोगिता
- भाषा में सामाजिक सांस्कृतिक विविधता
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