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नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का बालक के अनुभवों पर प्रभाव

नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का बालक के अनुभवों पर प्रभाव
नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का बालक के अनुभवों पर प्रभाव

नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का बालक के अनुभवों पर प्रभाव (nagareekaran aur aarthik parivartan ka baalak ke anubhavon par prabhaav)

नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का बालक के अनुभवों पर प्रभाव- इकाई / अध्याय दो के अन्तर्गत बालक के विकास पर नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन के प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया गया है। इस अध्याय में हम बिन्दुओं को प्रस्तुत करेंगे, जिनके द्वारा नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन के प्रभाव बालकों के निर्माण और अनुभव पर परिलक्षित होते हैं।

नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव बालकों के निर्माण और अनुभव में हो सकते हैं। नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन से सामाजिक आदर्शों का विचलन होता । यदि ये आदर्श प्रभावी दिशा में विचलित होते हैं तो बालकों के उन्नत विकास और रचनात्मक अनुभव प्राप्त होते हैं, परन्तु यदि आदशों का विचलन विघटनकारी होता है तो बालक ऐसे अनुभव प्राप्त करता है कि उसका व्यवहार और व्यक्तित्व सामाजिक समस्या का रूप ले लेता है। बालक सामाजिक मूल्यों की उपेक्षा तथा रूढ़ियों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों की अवहेलना करने लगता है, वह वरिष्ठ व्यक्तियों के नियंत्रण को स्वीकार नहीं करता । कमजोर वर्ग के बालकों पर नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन के घातक प्रभाव पड़ते हैं, जिन्हें निम्न प्रकर इंगित किया जा सकता है-

1. गन्दी बस्तियों का प्रभाव- औद्योगीकरण के तीव्र विकास ने नगरों में गन्दी बस्तियों को निमंत्रण दिया है, जैसे- कानपुर के ‘अहाते’, कलकत्ता की ‘चाले’, मुम्बई की बस्तियाँ आदि। इन बस्तियों की दशायें बहुत अस्वास्थ्यकर होती है। अस्वास्थ्यकर दशाओं में रहने से बचपन से ही बालक संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, विकास अवरुद्ध हो जाता है।

2. अतृप्त इच्छाओं का प्रभाव- निर्धन परिवार के बच्चों की अनेक इच्छाओं अतृप्त रह जाती हैं। अत: कभी-कभी वे अपनी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपराधी व्यवहार करते हैं। बच्चों को पढ़ाने की सुविधा नहीं होती, वे बालक श्रमिक का कार्य करने लगते हैं, वहाँ की असन्तोषजनक स्थितियाँ उन्हें अपराधी बना देती है। बदलती आर्थिक संरचना में, निर्धन परिवारों में जहाँ माता-पिता दोनों काम करते हैं, वहाँ बच्चों पर उचित नियंत्रण नहीं रहता है। अतः बच्चे अपराधी व्यवहार सीख जाते हैं। जहाँ माता-पिता स्वयं अपराधी व्यवहार करते हैं, उनके बच्चे भी अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपराधी व्यवहार करने लगते हैं -।

3. औद्योगिक बेरोजगारी का प्रभाव- नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन का आधार औद्योगीकरण है। जैसे-जैसे औद्योगीकरण का विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे औद्योगिक क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। भारत में बड़े उद्योग-धन्धों की स्थापना प्रमुखतः नगरों में हुई हैं, अत: नगरों में बेरोजगार हुए माता-पिता के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, अपराधी व्यवहार करने लगते हैं, मानसिक अस्वस्थता के शिकार हो जाते हैं।

4. शारीरिक श्रम के प्रति हीनता की मनोवृत्ति का प्रभाव – भारत में दफ्तर में बैठकर कार्य करने को प्राथमिकता दी जाती है। माता-पिता अपने बच्चों के विकास व शिक्षा पर ऐसा दबाव बनाते हैं कि उनका स्वाभाविक विकास अवरुद्ध होने लगता है।

5. सामाजिक अवस्था का प्रभाव- आर्थिक परिवर्तन के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति में बदलाव आ गया है। इस आर्थिक परिवर्तन ने उनकी परम्परागत जीवन-शैली का काफी हद तक प्रभावित किया है। यह स्थिति सामाजिक अव्यवस्था की है। परिवार बिखर गये हैं, यौन बीमारियाँ, नगरीय अपराध और नशाखोरी में बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे परिवार के बच्चे भी अनैतिक व्यवहार करने लगते हैं।

6. पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव- नगरीकरण और औद्योगीकरण ने पर्यावरण प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ा दिया है। औद्योगिक संस्थानों का निरन्तर निर्माण, ऑटोमोबाइल्स का अत्यधिक प्रयोग, शोर, नाली-नालों व सीवेज में आने वाला विषाक्त जल आदि बच्चों में त्वचा, आँख, यकृत आदि से सम्बन्धित तरह-तरह की बीमारियों को जन्म देते हैं।

7. सिनेमा का प्रभाव- नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन ने बच्चे, किशारों, युवाओं सभी को सिनेमा की ओर आवश्यकता से अधिक आकर्षित किया है। आज सिनेमा, टी.वी. में अधिकांशतः दिखाई जाने वाली यौन उच्छृंखलता, हिंसा, बलात्कार, अपहरण, तड़क-भड़क वाली वेशभूषा, ग्लैमरस नकली जीवन आदि घटनायें बच्चों में यौन विकृतियाँ उत्पन्न कर रही हैं। बच्चे बहुत जल्दी इनके भ्रमजाल में फँस जाते हैं।

8. भौतिकवादी मूल्यों का प्रभाव- नगरीकता और आर्थिक परिवर्तन ने भौतिकवादी मूल्यों को जन्म दिया है। वयस्कों के नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक प्रत्येक क्षेत्र में मूल्यों का ह्रास एवं क्षरण हो रहा है, जिसका प्रभाव पारिवारिक वातावरण और बच्चों की परवरिश शैली पर पड़ रहा है। अनुशासनहीनता, कर्त्तव्य एवं श्रम से विमुखता आदि विकृतियाँ बच्चों में विकसित हो रही हैं।

9. कम्प्यूटर का प्रभाव- संचार माध्यमों के अनेकानेक कार्यक्रमों ने हमारी संस्कृति और संस्कारों की चूल हिला दी है। घरों में प्रवेश कर चुकी दिमागरहित हिंसा का सबसे बुरा असर बच्चों पर हो रहा है। विडम्बना यह है कि हमारे समाज में इन व्यापक खतरों पर कोई चिन्ता नजर नहीं आती। हमारी जीवन-शैली में कम्प्यूटर पूरी तरह पसर गया है। काम-काज से हटकर कम्प्यूटर का उपयोग मनोरंजन के बड़े पैमाने पर हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे कम्प्यूटर पर ‘वार गेम’ खेलते हैं, स्पीकरों पर जोर-जोर से बम बारी, गोली बगैरह की आवाजें सुनते हैं। यह है बच्चों का आधुनिक मनोरंजन, जो बच्चों में हिंसा के संस्कार भर रहा है। कहने को यह खेल मनोरंजन है, लेकिन बच्चे भीषण युद्ध का वास्तविक मनोरंजन करते हैं।

10. वंचन का प्रभाव- नगरीकरण और बदलते आर्थिक परिवेश ने घर वरिष्ठ सदस्यों को व्यावसायिक व्यवस्तता के साथ सामाजिक व्यस्ता भी परोशी है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों के भरण-पोषण को ही अपना कर्त्तव्य मान लेते हैं। बच्चों के विकास का अवलोकन करने का समय ही नहीं होता। ऐसे में बच्चे सम्बन्धों के वाचन से प्रभावित होते हैं। वे साथियों या अन्य लोगों के प्रभाव या दबाव में आकर गलत राह पर चल पड़ते हैं या मानसिक अस्वस्थता का शिकार हो जाते हैं।

11. आकांक्षा तथा महत्वाकांक्षा के स्तर का प्रभाव- नगरों की चमक-दमक, आकर्षण से प्रभावित होकर माता-पिता और बालक दोनों ही अपनी सामर्थ्य से अधिक या ऊँची महत्त्वाकांक्षा पाल लेते हैं। ऐसे में बालक निराशाजन्य भावों और कुण्ठाओं का शिकार हो जाता है।

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