सामाजिक अनुसंधान का महत्व (Samajik Anusandhan Ka Mahatva)
सामाजिक अनुसंधान के महत्व अनेक दृष्टियों से हैं। अनुसंधानकर्ता अपने शोधकर्ता के द्वारा अनेक ऐसी चीजों को ढूंढ़ निकालता है जो न केवल ज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सामाजिक समस्याओं को समझने और उसके निराकरण के लिए भी उपयोगी है। अनुसंधान कार्य चाहे प्रगतिशील देश का हो अथवा पिछड़े अर्द्धविकसित देश का, वह तो प्रत्येक स्थिति में समाज के लिए लाभदायक ही प्रमाणित होता है। सामाजिक अनुसंधान से हो सकता है कोई तात्कालिक प्रत्यक्ष लाभ न हो पर सदैव ऐसा नहीं होता। पर इतना अवश्य है कि इससे ज्ञान में वृद्धि होती है। सामाजिक अनुसंधान का महत्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है।
1. ज्ञानवृद्धि में सहायक- अनुसंधान कार्य का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है कि विभिन्न चीजों के लिए व्यक्तियों में जो अज्ञानता अथवा अन्धविश्वास प्रचलित है उसे यह नवीन खोजों के द्वारा समाप्त करने में सहायक होती है। भारत जैसे अर्द्धविकसित देश में अनेक ऐसी सामाजिक समस्यायें हैं जिनके साथ अनेक प्रकार की चीजें घुली मिली हैं जो व्यक्तियों में अन्धविश्वास, साम्प्रदायिकता, जातिवाद आदि को प्रोत्साहित करता है। यदि शोधकर्ता के द्वारा इनसे सम्बन्धित अज्ञानता के कारण को दूर कर दिया जाता है तो निश्चय ही विभिन्न जातियों के मध्य जो कटुता है वह समाप्त होगी।
2. सामाजिक कल्याण में सहायक- अनुसंधान कार्य के द्वारा जिसे नये ज्ञान की प्राप्ति होती है वह समाज कल्याण कार्य में काफी सहायता करती है। समाज कल्याण का कार्य सभी संस्थायें नहीं कर सकती हैं। इस कार्य को वे ही संस्थायें और संगठन कर सकती हैं जिनकी नींव अथवा योजनायें वैज्ञानिक ज्ञान व अनुभव पर आधारित हैं। उदाहरण के लिए यदि हम वेश्याओं का कल्याण करना चाहते हैं तो हमें उन तथ्यों को ज्ञात करना होगा जो किसी महिला को वेश्या बनाने में सहायक है। इसलिए सामाजिक कल्याण के कार्य को तभी सफलता प्राप्त होती है जब वह अनुसंधान कार्य से लाभ उठायें।
3. समाज की प्रगति में सहायक- समाज को प्रगति के मार्ग पर हम तभी ले जा सकते हैं, जब हमें समाज की परिस्थितियों और समस्याओं का विस्तृत ज्ञान हो, क्योंकि समाज में अनेक धर्म, वर्ग, जाति के व्यक्ति हैं, यदि इनसे संबंधित समस्याओं की वैज्ञानिक जानकारी नहीं है तो हम ऐसी योजना नहीं बना सकते हैं कि जिससे देश के सभी व्यक्तियों को समान रूप से लाभ प्राप्त हो सके।
4. नये विचारों का उदय- इसमें कोई दो मत नहीं है कि सामाजिक अनुसंधान कार्य के द्वारा नये तथ्य प्रकाश में आते हैं। यह तथ्य नये विचारों को उत्पन्न करते हैं। भारत वर्ष में अनेक ऐसे अनुसंधान कार्य हुए हैं जिनसे जाति, धर्म और राज्य के प्रति जो प्राचीन धारणायें थीं, वे समाप्त होती जा रही है।
5. अन्धविष्वास को समाप्त करने में सहयोगी- भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में अंधविश्वासों के न समाप्त होने वाली एक पंक्ति है। इसका मूल कारण है कि व्यक्ति अशिक्षित और तर्केहीन है। वह आज भी सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, नदी, तालाब, पेड़ और साँपों की पूजा करता है, वर्ण को ईश्वर द्वारा उत्पन्न मानता है। इन सब कारणें से वह आज भी पिछड़ा हुआ है। यह प्रसन्नता की बात है कि आधुनिक युग में अनेक ऐसे अनुसंधान हो रहे हैं, जो उपयुक्त अंधविश्वासों को समाप्त करने में सहायक हैं। आज विभिन्न वर्ण व जाति के व्यक्ति एक साथ उठते बैठते हैं। विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों में भी एकता देखने को मिलती है।
6. समाज की समस्याओं का सामाजिक अध्ययन- सामाजिक अनुसंधान का महत्व इसलिए है कि इसमें व्यक्ति प्रधान अध्ययन नहीं होता है। इसलिए शोध कार्य में वैयक्तिक आदर्श, रुचियाँ, भावनायें आदि का प्रभाव नहीं पड़ता है। व्यक्ति जब अपने दृष्टिकोण से सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करता है तो समस्या के अध्ययन में वैयक्तिक दृष्टिकोण का प्रभाव पड़ता है, जैसे कोई धार्मिक व्यक्ति जब निर्धन व्यक्ति का अध्ययन करता है तो वह यह कहता है कि निर्धनता उन व्यक्तियों के कर्मों का परिणाम है। इसके विपरीत जब कोई वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता इसी समस्या पर तटस्थ होकर अध्ययन करता है तो वह निर्धनता के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक कारण बतलाता है। इस तरह सामाजिक अनुसंधान से समस्या के वास्तविक कारण की जानकारी प्राप्त होती है।
7. व्यावहारिक लाभ – सामाजिक अनुसंधान के अनेक व्यावहारिक लाभ हैं जैसे सामाजिक मनोविज्ञान का अध्ययन करके हम रेडियो, प्रेस, समाचार पत्र आदि प्रचार के साधनों का सही उपयोग कर सकते हैं। इसी तरह विभिन्न वर्ग के व्यक्ति जब किसी चीज का यथार्थ ज्ञान कर लेते हैं तभी वे उन चीजों का सही अर्थों में प्रयोग करना सीख पाते हैं। सामाजिक अनुसंधान केवल सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि प्रोद्यौगिक तथा भौतिक वस्तुओं को उचित रूप में प्रयोग करने की शिक्षा भी देता है। भौतिक सभ्यता का वास्तविक लाभ तभी हो सकता है जब देश में से जातिवाद, अस्पृश्ता, साम्प्रदायिक भावनाओं को वैज्ञानिक ढंग से समाप्त करने का प्रयत्न किया जाए।
उक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामाजिक अनुसंधान न सिर्फ सामाज की दिक्कतों एवं घटनाओं . को दूर करने हेतु जरूरी है वरन् देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु भी अत्यन्त आवश्यक है। यदि कोई देश, समाज या संस्कृति अनुसंधान कार्य में पिछड़ता है तो वह नवीन आविष्कार एवं जानकारी प्राप्त करने में भी अन्य देश, समय या संस्कृति से पीछे रह जाता है।
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