गृहविज्ञान

समस्यात्मक शरीर रचना के अनुरूप परिधान योजना

समस्यात्मक शरीर रचना के अनुरूप परिधान योजना
समस्यात्मक शरीर रचना के अनुरूप परिधान योजना

समस्यात्मक शरीर रचना के अनुरूप परिधान योजना

समस्यात्मक शरीर रचना के अनुरूप परिधान योजना- परिधान पर बनाये जाने वाले नमूने परिधान निर्माण के रचनात्मक सिद्धान्त को ध्यान में रखकर बनाये जाने चाहिए।

इन रचनात्मक नमूनों में अनुपात, अनुरूपता, सन्तुलन तथा दबाव आदि का औपचारिक या अनौपचारिक संतुलन होना आवश्यक है। समानुपाती शरीर रचना अर्थात् जिनका शरीर न अत्यधिक लम्बा होता है न छोटा न अत्यधिक मोटा होता है न नाटा के लिए परिधानों में नमूने व डिजाइन का प्रयोग चाहे कैसा भी करें, वस्त्र समानुपाती आकार के व्यक्तित्व को आकर्षक व सौन्दर्य प्रदान करते हैं। पर समस्या मुख्य रूप से उन लोगों के लिए आती है जिनकी शरीर रचना समानुपाती नहीं है। ऐसे व्यक्तियों की शरीर रचना की आवश्यकता के अनुरूप ही परिधान का निर्माण करना पड़ता है। यह विचार किया जाता कि व्यक्ति के किन दोषों व अवगुणों को परिधान का निर्माण करना पड़ता है। यह विचार किया जाता है कि व्यक्ति के किन दोषों व अवगुणों को परिधान से छिपाना तथा किन गुणों को उसके व्यक्तित्व में सुन्दर दिखाने में सहायक मानकर उसको प्रमुखता देनी है। निम्नलिखित पंक्तियों में कुछ समस्यात्मक शरीर रचना वाले लोगों के लिए अनुकूल परिधान योजना का वर्णन किया गया है।

1. दुबली-पतली शरीर आकृति- दुबली-पतली शरीराकृति के लिए भाड़ी भड़कीले रंग व उभरे हुए डिजाइन वाले परिधान उत्तम रहते हैं। परिधान की सिलाई, कटाई व अलंकरणों में आड़ी रेखाओं, टूटी तथा वक्र रेखाओं आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए। परिधान गाढ़े व चटक रंगों वाले प्रयुक्त किये जाए। प्रायः दो रंग के वस्त्र शरीर रचना को आड़ी रेखाओं में बाँटकर पतलेपन को छिपा लेते हैं। साथ ही फूली बाँहें, लम्बी आस्तीन, चौड़ी बेल्ट व कफ, बड़ी-बड़ी जेबें, बड़ी-बड़ी जालर वाले कॉलर आदि दुबली-पतली शरीराकृति को सुन्दर व आकर्षक रूप देते हैं।

2. छोटी व दुबली शरीर आकृति- ऐसी शरीराकृति के लिए ऐसी परिधान-योजना बनाई जाती है ताकि वह फिगर पूर्व की अपेक्षा लम्बाई में कुछ अधिक तथा भरे हुए शरीर को देखे। अब समस्या यह रहती है कि लम्बाई को बढ़ा हुआ दिखाने के लिए लम्बबद्ध रेखाओं का प्रयोग करने के साथ-साथ मोटाई बढ़ी दिखाने के लिए आड़ी रेखाओं का भी प्रयोग करना है। अतः ऐसी छोटी शरीराकृति पर आड़ी पड़ी रेखाओं का सम्मिश्रण ही दिखाया जाता है ताकि इनमें से कुछ लाइनें लम्बाई को बढ़ाती हुई तथा कुछ चौड़ाई को बढ़ाती हुई प्रतीत हों। ऐसी फिगर (शरीराकृति) पर चुस्त कपड़ों से शरीर और पतला लगता है। अतः ढीली फिटिंग के वस्त्र ही पहनना उचित रहता है। परिधान अधिक से अधिक सादी व साधारण रचना के हों। एक ही रंग के परिधान पहनना भी सहायक होता है। विपरीत रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए।

3. लम्बी व दुबली शरीर आकृति- ऐसी शरीराकृति के लिए परिधान की सिलाई कटाई, डिजाइन व अलंकार आदि आड़ी रेखाओं वाले होने चाहिए। परिधान की फिटिंग कुछ ढीली ही रखनी चाहिए। चुस्त फिटिंग के वस्त्रों से शरीर और भी पतला दिखता है। विषम रंगों के वस्त्र जैसी साड़ी ब्लाउज या कमीज सलवार पहनने से वह आड़ी रेखाओं में बंट जाने के कारण कुछ कम लम्बे दिखते हैं। इस प्रकार लम्बाई अपेक्षाकृत कम दिखती है। एक ही रंग वाले वस्त्र भी अच्छे रहते हैं क्योंकि ये चौड़ाई को बढ़ाकर दिखाने में सहायक होते हैं। फूली हुई आस्तीन, भरे कन्धे व सीने वाले तथा औरेबी कटान की पीठ वाले ढीले कोट से व्यक्तित्व में सुधार आता है। ऐसी फिगर पर लटकनशील प्रकृति के वस्त्र ही अधिक अच्छे लगते हैं।

4. मोटी शरीराकृति – ऐसी शरीराकृति में मोटाई को कम करके दिखाने वाले तथा लम्बी शरीर रचना का अनुभव करा सकने योग्य वस्त्रों का चयन किया जाना चाहिए। परिधान की कटाई सिलाई तथा अलंकरणों में लम्बबद्ध का प्रयोग करना चाहिए। लम्बबद्ध रेखाएँ लम्बाई कुछ बढ़ाकर अर्थात मोटेपन को कुछ कम कर दिखाती हैं। परिधानों में विपरीत रंगों का प्रयोग कदापि न करना चाहिए क्योंकि उनसे वस्त्र आड़ी रेखाओं में बंटा हुआ दिखाई देता है जिससे मोटाई और अधिक बढ़ी हुई प्रतीत होती है। चेहरे के गोलपन के अनुसार नुकीले गले का परिधान पहनने से गर्दन के पतले होने तथा शरीर के लम्बे होने का आभास मिलता है। वस्त्र सदैव हल्के रंग व लम्बे आँचल के प्रयुक्त किये जाए।

5. नाटी एवं मोटी शरीराकृति- नाटी एवं मोटी फिगर के लिए आड़ी रेखाओं का प्रयोग तो कदापि नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसके प्रयोग से नाटा वा मोटापन दोनों बढ़ते हैं। परिधान में लम्बाई का प्रयोग ही उत्तम रहता है। वस्त्र फिटिंग में न अत्यधिक चुस्त और न अत्यधिक ढीले होने चाहिए। अत्यधिक चुस्त वस्त्र शरीराकृति के अखरने वाले अवगुणों को भी उजागर कर देते हैं तथा इसी प्रकार ढीले वस्त्रों से चौड़ाई और भी बढ़ी हुई प्रतीत होती है। वस्त्र लटकनशील प्रकृति के होने चाहिए। ये वस्त्र शरीराकृति के मोटेपन को छिपा लेते हैं। विपरीत रंग वाले तथा चौड़े बार्डर युक्त वस्त्र फिगर को और भी अधिक मोटापन प्रदान करने वाले होते हैं। इसलिए इनका प्रयोग कदापि न करना चाहिए। ऐसी फिगर के लिए एक ही रंग के छोटे छापे के, छोटे कॉलर वाले तथा लटकनशील प्रकृति के वस्त्र अधिक उत्तम रहते हैं।

6. लम्बी एवं मोटी शरीराकृति- ऐसी समस्यात्मक शरीराकृति के लिए परिधान – का चुनाव करना अत्यन्त कठिन है। इसके लिए ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है जो मोटाई व लम्बाई दोनों को कम करके दिखा सके। परिधान में तिरछी रेखाओं का प्रयोग किया जाता है। कॉलर, कफ आदि में सीधी रेखाओं का ही प्रयोग किया जाता है। वस्त्र की फिटिंग न ज्यादा चुस्त हो और न अधिक ढीली। परिधान में अलंकरणों का प्रयोग जितना कम किया जाए उतना ही उत्तम रहता है। सादे व मन्द रंग के वस्त्र ऐसी शरीराकृति पर फबते हैं।

7. भरे वक्ष की आकृति- ऐसी शरीराकृति पर कटाई सिलाई तथा अलंकरणों में लम्बबद्ध रेखाओं का प्रयोग करना चाहिए। वक्ष वाले स्थान पर परिधान की फिटिंग अधिक चुस्त न रखी जाए। गले को पतला दिखाने के लिए ‘वी’ आकार का गला फबता है। वस्त्र में कमर के पास हल्की चुन्नट देने से वक्ष के अखरने वाले भारीपन पर ध्यान केन्द्रित नहीं होने पाता । वक्ष प्रदेश में तिरछी व वक्र रेखाओं का प्रयोग भी उत्तम रहता है।

8. बढ़े हुए नितम्ब वाली आकृति- ऐसी शरीराकृति के व्यक्तियों को अलंकरणों का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए। परिधान को तिरछी, वृत्ताकार रेखाओं से युक्त रखा जाए तो नितम्ब की मोटाई को कम कर दिखाने में बहुत कुछ सफलता मिलेगी। नितम्ब के समीपस्थ वस्त्रों को अत्यधिक चुस्त न रखा जाए। बड़ी-बड़ी ढीली बाहें, लटकते कफ व आस्तीन का प्रयोग कदापि न करें।

9. आगे निकला हुआ पेट- आगे निकले हुए पेट की शरीराकृति के लिए ऐसे परिधान का प्रयोग करना चाहिए जिससे पेट दबा हुआ प्रतीत हो। इसके लिए उचित यह होगा कि वक्ष प्रदेश के वस्त्रों की सज्जा इतनी आकर्षक की जाए कि देखने वालों का ध्यान पेट की ओर जाए ही नहीं। चुस्त कमीज या कुत्ता पहनने से पेट और भी निकला हुआ प्रतीत होता है। ढीली फिटिंग व लम्बबद्ध रेखाओं वाले परिधान अच्छे रहते हैं।

उपर्युक्त संकेतों को देखते हुए यह आवश्यक है कि समस्यात्मक शरीराकृति के लिए उत्तम परिधाओं के प्रयोग अत्यन्त सतर्कता व सावधानी रखनी चाहिए नहीं तो ये परिधान आकर्षकता प्रदान करने के स्थान पर व्यक्तित्व को हास्यास्पद बना देंगे। इसके अतिरिक्त शरीर के कुछ अन्य अंग भी परिधान रचना को प्रभावित करते हैं, जैसे-

(अ) ग्रीवा – ग्रीवा चेहरे के आकार को प्रभावित करती है। प्रायः परिधान में सुन्दर लगने वाले गले का आकार निश्चित करते समय चेहरे व ग्रीवा दोनों को दृष्टि में रखना चाहिए। छोटी व मोटी गर्दन के लिए प्रायः बिना कॉलर वाला गला उत्तम रहता है। कालरदार गला मोटी गर्दन के लिए बहत भद्दा लगता है। लम्बी व पतली गर्दन पर गले से सटा, फूला हुआ व झालरदार दुहरा ‘कॉलर का प्रयोग अच्छा रहता है। छोटी गर्दन होने पर गहरा गला अच्छा रहता है। जबकि चेहरे की अण्डाकृति पर अण्डाकार गला ही फबता है।

(ब) चेहरा- भरे-भरे गोल चेहरे पर खड़ी रेखाओं वाले ‘वी’ या ‘यू’ आकार के गले वाले परिधान खूब फबते हैं। ऊँचे गले का प्रयोग वर्जित है जबकि नीचे या गहरे कटे गले से चेहरे का भारीपन या मोटाई कम होती दिखती है।

लम्बे व पतले चेहरे पर ऊँचा गला ही भला लगता है। गोल कालर वाला गला खूब खिलता है, ‘वी’ अथवा ‘यू’ आकार के गले ऐसी मुखाकृति के लिए अच्छे नहीं लगते। पतले चेहरे पर गोल व गले के आस-पास आड़ी वाले वस्त्र का गला अच्छा रहता है। चौकोर चेहरे पर भी ‘यू’ आकार का गला फबता है।

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