गृहविज्ञान

ड्राफ्टिंग क्या है? ड्राफ्टिंग की विधि एवं ड्राफ्टिंग के उपकरण

ड्राफ्टिंग क्या है
ड्राफ्टिंग क्या है

ड्राफ्टिंग क्या है?

ड्राफ्टिंग क्या है?- वस्त्र की सिलाई प्रारम्भ करने से पूर्व उसका खाका बना लेना चाहिए। इस खाके को ही ड्राफ्ट कहते हैं। ड्राफ्ट कागज पर बनाया जाता है। ड्राफ्ट बनाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(1) प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक रचना पृथक् पृतिक होती है। इसलिए ड्राफ्ट बनाते समय उसके शरीर की लम्बाई तथा शरीर की बनावट आदि को दृष्टिगत रखना चाहिए।

(2) ड्राफ्ट बनाते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि कपड़ा कहीं सिकुड़ने वाला तो नहीं है। यदि कपड़ा सिकुड़ने वाला हो तो ढीली नाप के अनुसार ड्राफ्ट बनाना चाहिए।

(3) जिस व्यक्ति के लिए वस्त्र तैयार किया जा रहा है उसकी पसन्द को भी ध्यान में रखना चाहिए। उसकी पसन्द ढीली वस्त्र पहनने की है अथवा चुस्त । उसी के अनुसार नाप लिया जाये।

ड्राफ्ट बनाना एक कला है। ड्राफ्ट बनाने में वस्त्र की नाप को ड्राफ्ट बनाये जाने वाले कागज के आकार के अनुसार छोटा करना पड़ता है। इसके लिए सेमी. में एक विशिष्ट पैमाना मानकर ड्राफ्ट तैयार करना चाहिए। तुरपन आदि को भी ड्राफ्ट बनाते समय ध्यान में रखना चाहिए।

ड्राफ्टिंग की विधि

(1) ड्राफ्टिंग का अभ्यास पहले काले या नीले गर्म कपड़े वाले ड्राफ्टिंग टेबल पर या मेज पर पुराना कम्बल बिछाकर उस पर चॉक से करनी चाहिए। एक आकृति को ब्रश से मिटाकर दूसरी, तीसरी बार अभ्यास करना चाहिए।

(2) अभ्यास हो जाने पर यही ड्राफ्टिंग पहले छोटे स्केल से छोटे कागज पर करके और सही स्थानों पर काटकर देख लेना चाहिए।

(3) इसके बाद बड़े खाकी कागज पर बड़े नाप के पैटर्न को बनाना चाहिए। सही काट में निपुणता आ जाने पर ही नये कपड़े पर ड्राफ्टिंग करनी चाहिए।

(4) ड्राफ्ट बनाने के लिए फुटे के स्थान पर तिकोने गुनिया की सहायता लेकर बारीक नोक वाली पेंसिल का प्रयोग करना चाहिए।

(5) ड्राफ्टिंग करते समय सहायक लाइनें हल्की खींचनी चाहिए और मुख्य लाइनें गहरी । यदि कोई लाइन गलत खिंच गई हो तो उसे मिटाइए या काट दीजिए अन्यथा कपड़ा काटते समय भूल हो सकती है, गोलाई बनाते समय गुनिया में बनी गोलाइयों का सहारा लेना चाहिए।

(6) ड्राफ्टिंग के समय चौक को सीधा चलाना चाहिए, नोक की ओर से नहीं। नोक केवल निशान लगाने के काम लानी चाहिए।

(7) ड्राफ्टिंग सदैव कपड़े को टेबल पर या तख्ते पर या समतल धरती पर बिछाकर करनी चाहिए। काटते समय भी कपड़े को इसी प्रकार बिछा लेना चाहिए।

(8) कमीज, कुर्ते, ब्लाउज आदि की ड्राफ्टिंग के समय गले का भाग बायीं ओर, सामने का भाग दायीं ओर रखना चाहिए और नेकर, पेंट, पाजामा आदि का ड्राफ्ट बनाते समय मोहरी बायीं ओर और आसन का भाग दायीं ओर रखना चाहिए। इस प्रकार कटाई में गलती होने की सम्भावना नहीं रहती।

(9) नये कपड़े पर ड्राफ्ट बनाते समय कपड़े को उल्टी ओर से तह करना चाहिए’ ताकि निशान, लाइनें सीधी ओर न दिखाई दें। यदि कपड़े के डिजाइन में सीधा उल्टा भाग है, फूलों का प्रिंट एक दिशा में है या धारीदार कपड़े में आढ़ी-टेढ़ी रेखाओं का डिजाइन बनाना है। तो पेपर पैटर्न की सहायता से ड्राफ्टिंग और कटाई करनी चाहिए, अन्यथा गलती हो सकती है। फैशन डिजाइनों में तो पेपर पैटर्न बनाकर ही काटना चाहिए ताकि मध्य जोड़ों पर दोनों ओर सिलाई के भाग का सही अनुमान लगाया जा सके। यदि कपड़ा कुछ कम है, तब तो ‘पेपर पैटर्न की सहायता से ही ‘ले आउट‘ (Lay out) करके हिसाब निकालने में आसानी होगी।

अतः ऐसे सभी वस्त्रों में सीधे ड्राफ्टिंग नहीं करनी चाहिए।

(10) नये कपड़े पर ड्राफ्ट करने के पूर्व सिकुड़ने वाले कपड़े को 24 घटे तक पानी में भीगा रहने देना चाहिए तत्पश्चात् इस्तरी करके ड्राफ्टिंग करनी चाहिए।

ड्राफ्टिंग उपकरण

1. कटिंग टेबल (Cutting Table)- कपड़े की कटाई के विभिन्न व्यवहार किया जाने वाला टेबल ‘कटिंग टेबल’ कहलाता है। रेखांकन के निमित्त भी टेबल का होना आवश्यक है। रेखांकन कार्य दीर्घ अभ्यास पर आधारित होता है। घरेलू स्तर पर एक ही टेबल से दोनों कार्य किए जा सकते हैं। रेखांकन टेबल तथा कटिंग टेबल की बनावट विशेष प्रकार की होती है। इसकी सतह चिकनी, बिना जोड़ वाली होनी चाहिए, जिससे सीधी रेखाएँ खींचने में व्यवधान नहीं होने पाए। इनकी लम्बाई कम से कम पाँच फीट होती है, जो पेंट, हाउस कोट, नाइटी जैसे लम्बे कपड़ों की रेखांकन के लिए उचित हो । रेखांकन टेबल की चौड़ाई ढाई से तीन फीट रहती है। रेखांकन टेबल की ऊँचाई साधारण टेबल से अधिक होती है, जिससे रेखांकन या कटाई करते समय झुकना नहीं पड़े। कटिंग या रेखांकन टेबल के नीचे दराज होने चाहिए। इनमें सिलाई में प्रयुक्त होने वाले आवश्यक सामान रखे जा सकते हैं। दीवार में लगे शेल्फों के साथ आदर्श कटिंग टेबल बनाया जा सकता है, जो मुड़ने वाले पैर से युक्त हो। शेल्फों में सिलाई कटाई के सामान रखे जा सकते हैं। टेबल को उसमें देने पर शेल्फ बन्द हो जाते हैं। सिलाई सम्बन्धी उपकरणों एवं साधनों की सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे टेबल अधिक उपयोगी माने जाते हैं। सिलाई सम्बन्धी उपकरणों एवं साधनों की सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे टेबल अधिक उपयोगी माने जाते हैं। सिलाई सम्बन्धी सारे सामान हर जगह रहने से गृहिणी व्यर्थ की दौड़-धूप से बच जाती है; साथ ही छोटे बच्चों की पहुँच से दूर रहने के कारण किसी भी दुर्घटना की सम्भावना नहीं रहती।

2. रेखक (Ruler)– सिलाई-क्रिया के अन्तर्गत रेखांकन के निमित्त व्यवहार किया जाने वाला रेखक एक फुट का होता है। इस पर बारह इंच के सूचक चित्र अंकित रहते हैं। प्रत्येक इंच आठ विभागों में विभक्त रहता है। ये विभक्तियाँ मापक फीते के समकक्ष होती है। रेखक लकड़ी, धातु या प्लास्टिक के बने होते हैं। रेखांकन करते समय इनकी सहायता से रेखाएँ खींची जाती हैं।

3. टेलर्स स्क्वायर या ‘एल’ स्क्वायर (Tailor’s Square or ‘L’ Square)- रेखांकन में टेलर्स स्क्वायर या ‘एल’ स्क्वायर का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यह अंग्रेजी के ‘L’ अक्षर के आकार का होता है, इसीलिए इसे ‘एल’ स्क्वायर भी कहते हैं। इसका एक हिस्सा 12″ का तथा दूसरा हिस्सा 20″ या 24″ का होता है। समकोण खींचने में टेलर्स स्क्वायर का उपयोग किया जाता है। इसके मध्य में गोलाकार आकृति खींचने के निमित्त विशेष आकार बना हुआ रहता है। टेलर्स स्क्वायर पर इंच के निशान भी बने रहते हैं। पेट, पायजामा, कोट आदि बड़े वस्त्र काटने में टेलर्स स्क्वायर का विशेष रूप से व्यवहार किया जाता है।

4. टेलरिंग कर्व (Tailoring Curve) – सुन्दर कटाई के निमित्त आकृतियों का सुन्दर रेखांकन आवश्यक है। इसके लिए सही सूचक रेखाएँ आवश्यक हैं। सुन्दर आकृतियाँ खींचने के लिए गृहिणी का चित्रकारी जानना आवश्यक नहीं। टेलरिंग कर्व द्वारा रेखांकन अत्यन्त सहज हो जाता है। इसे फ्रेंच कर्व (French Curve) भी कहते हैं।

5. टेलर्स चॉक (Tailor’s Chalk)- कपड़े पर चिन्ह लगाने के निमित्त विशेष प्रकार के चॉक मिलते हैं। इन्हें टेलर्स चॉक के नाम से जाना जाता है। ये साबुन की बट्टी की तरह मुलायम होते हैं तथा बाजारों में कई रंगों में उपलब्ध हैं। किसी भी रंग के कपड़े पर रेखांकन चिन्ह देने के लिए विपरीत रंग के चॉक का उपयोग किया जाता है जिससे चिन्ह स्पष्ट दिखाई दें। मुलायम होने के कारण ये कपड़े पर आसानी से चलते हैं। इन्हें आसानी से मिटाया भी जा सकता है।

6. पिनें तथा पिन कुशन (Pins and Pin Cushion) – कपड़े पर कागज से नमूना उतारते समय पिनें काम आती हैं। सिलाई करते समय भी कपड़ों की तहों को इनकी सहायता से एक साथ रखा जाता है। विशेषकर कृत्रिम तथा रेशमी कपड़ों के निमित्त पिनों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि ये कपड़े अधिक ट्रायल के समय अतिरिक्त कपड़े को दबाने के लिए पिनों की आवश्यकता होती है। पिनें 1-1/4 ” से 1-1/8 ” तक की रखनी चाहिए। कपड़े पर लगाने वाली पिनें स्टेनलेस स्टील की होती हैं तथा इनकी नोक अत्यन्त पतली होती है। पतली नोक के कारण कपड़े पर छेद नहीं होता। पिनों को रखने के निमित्त पिन कुशन का उपयोग किया जाता है। इसमें रखने से पिनें तथा उनकी नोकें सुरक्षित रहती हैं। कपड़े पर लगाने के लिए जंग लगी पिनों का किसी भी स्थिति में उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे कपड़े के नष्ट होने की सम्भावना रहती है।

7. कार्बन पेपर (Carbon Paper)- नमूनों को उतारने के लिए कार्बन पेपर की आवश्यकता होती है। ये दो प्रकार के होते हैं। टाइपिंग वाले कार्बन पेपर का उपयोग नमूना उतारने के निमित्त नहीं किया जाता है। इसके लिए पेंसिल कार्बन का व्यवहार किया जाता है।

8. मार्किंग ह्वील या ट्रेसिंग ह्वील (Marking Wheel or Tracing Wheel) – यह एक प्रकार का काँटेदार चक्र होता है। कपड़े पर नमूने उतारने तथा सिलाई के चिन्ह लगाने के निमित्त इसका उपयोग किया जाता है। ये निशान पतले कागज या ऑल पेपर (Oil paper) पर दे दिये जाते हैं। निशान वाले कागज को कपड़े पर रखकर, रेखाओं के ऊपर मार्किंग ह्वील या ट्रेसिंग ह्वील चला देने से निशान कपड़े पर आ जाते हैं। कढ़ाई के नमूने उतारने के निमित्त भी इनका उपयोग किया जाता है।

9. भूरा कागज (Brown Paper)- सिलाई के नमूने पहले बड़े भूरे कागज पर रेखांकित किए जाते हैं। नमूनों को बनाने के निमित्त बड़े भूरे कागजों का उपयोग किया जाता है ये कागज साधारण कागज की अपेक्षा मोटे होते हैं और शीघ्र फटते नहीं।

10. कागज पर बने नमूने (Paper Pattern)- बाजार में कपड़े काटने के निमित्त कागज पर बने हुए नमूने बिकते हैं। इन नमूनों के साथ परिधान का तैयार रूप भी दिया रहता है। नमूने की नाप में अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार के तैयार नमूनों की सहायता से सही फिटिंग के वस्त्र बन जाते हैं। नमूने बनाने के निमित्त मोटे तथा मजबूत कागज का उपयोग किया जाता है, जिससे उनका उपयोग बार-बार किया जा सके।

11. टेलर्स स्केल (Tailor’s Scale)- यह लकड़ी, प्लास्टिक या धातु का बना होता है। इस पर सेंटीमीटर तथा इंच सूचक अंक होते हैं। इसकी लम्बाई साठ सेंटीमीटर या चौबीस इंच होती है। इसकी आकृति एक ओर सपाट तथा दूसरी ओर घुमावदार होती है। कॉलर को आकार देने के निमित्त इसका उपयोग किया जाता है। कपड़े पर बड़ी रेखाएँ टेलर्स स्केल की सहायता से खींची जाती हैं।

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