गृहविज्ञान

राजस्थान की कढ़ाई कला पर प्रकाश डालिए।

राजस्थान की कढ़ाई कला पर प्रकाश डालिए।
राजस्थान की कढ़ाई कला पर प्रकाश डालिए।

अनुक्रम (Contents)

राजस्थान की कढ़ाई कला

राजस्थान की कढ़ाई कला – कश्मीर की कसीदाकारी, पंजाब की फुलकारी एवं बंगाल की कांथा की कढ़ाई के समान राजस्थानी कढ़ाई भी सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। राजस्थानी लहंगा, चुन्नी, जूतियाँ, चादर, साड़ियाँ आज भी बड़े पैमाने पर विश्व को निर्यात की जाती है। राजस्थान में कई प्रकार की सूक्ष्म कढ़ाई होती है। विशिष्ट उत्सवों पर घोड़े, ऊँट, हाथी आदि को सजाने के लिए अत्यन्त आकर्षक कढ़ाई युक्त वस्त्र तैयार किये जाते हैं। राजस्थानी कढ़ाई को निम्न तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(1) फोक कढ़ाई – फोक कढ़ाई में विभिन्न वस्त्रों पर भराई का काम किया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के टाँकों से सुन्दर और आकर्षक नमूने बनाए जाते हैं।

कुछ क्षेत्रों में मोची और मेघवाल जाति के लोग जूते और जूतियों पर हुरनुमा सूएँ की सहायता से रंग-बिरंगे चटकीले रंगों के धागों से चैन टाँका जाता है। इस टाँके को आरा-तारी का काम भी कहा जाता है। प्रयुक्त धागे को उल्टी तरफ से डालकर दूसरे धागे से खींचा जाता है। पहले नमूने बनाएँ जाते हैं तत्पश्चात् भराई की जाती है। जूतियों पर मोर, तोता, फूल आदि का सुन्दर चित्रण किया जाता है। जूती पर कढ़ाई की कला राजस्थान में काफी प्रचलित है। जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, सिरोही, जालौर, बाड़मेर इसके प्रमुख केन्द्र है।

एप्लीक वर्क राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर आदि में मारवाड़ी स्त्रियों द्वारा वस्त्र को सुसज्जित करने के लिए एप्लीक वर्क का काम किया जाता है।

एप्लीक का अर्थ है – विभिन्न रंगों, आकारों के कटे हुए कपड़ों के टुकड़ों को दूसरे वस्त्र पर टाँकना। यह पैच वर्क भी कहलाता है। एप्लीक के द्वारा बचे हुए रंगीन कपड़ों की कतरनों का सदुपयोग तो होता ही है, साथ ही नमूने में सजीवता आ जाती है। कम समय और मेहनत से एप्लीक द्वारा वस्त्रों को अधिक आकर्षक और मनमोहन बनाया जाता है।

राजस्थान का एप्लीक वर्क काठियावाड़ के कटाव से मिलता-जुलता है। जिस वस्त्र पर एप्लीक बनाना हो, उसके विपरीत रंग के कपड़े के टुकड़ों का चयन किया जाता है। इससे न अधिक स्पष्ट और खिलते हुए दिखाई देते हैं। इस काम के लिए टेरिकॉटन, रेशमी, पॉपलीन का उपयोग किया जाता है। अधिक आकर्षण पैदा करने के लिए आजकल जाली, चमड़े और उन की सामग्री का उपयोग किया जाने लगा है। तकिया, गिलाफ, बेड कवर, सोड़ा बैंक, टी-कोजी, कुशन कवर आदि पर एप्लीक वर्क अधिक प्रचलन में है।

आजकल बाजारों में मशीनों अथवा हाथ की कढ़ाई द्वारा निर्मित एप्लीक के रेडीमेड नमूने बिकते हैं जिनमें बाह्य आकृति बटन होल, स्टिच से बनी होती है तथा किनारे कटे होते हैं। जैसलमेर के एप्लीक वर्क में पैच लगाने के बाद क्विल्टिंग की जाती है। सरकार द्वारा इस कला को बनाए रखने के लिए विशेष प्रोत्साहन कार्यक्रम प्रारम्भ किया है।

बीड वर्क – बीड वर्क जालौर और सिरोही जिले में अत्यन्त लोकप्रिय है। पर्स, तोरन, झूले, टोपी आदि पर बीड वर्क से पशु-पक्षी, फल-फूल, मानवीय आकृति आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। बाड़मेर और जैसलमेर में काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों को काज टाँके से लगाकर वस्त्र को सजाया जाता है। राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिलों में पंजाब की फुलकारी से मिलती जुलती कढ़ाई की जाती है। इस कढ़ाई में नृत्य करती गुड़िया, मोर, मानव आकृतियाँ आदि के नमूने रंग-बिरंगे रेशमी धागों से काढ़े जाते हैं।

(2) धार्मिक कढ़ाई – राजस्थान में धार्मिक उत्सवों पर मन्दिरों में विशेष किस्म की कढ़ाई किये हुए वस्त्रों को चढ़ाने की परम्परा है। धर्म के प्रति आस्था के प्रतीक के लिए वस्त्रों पर निम्न प्रकार की कढ़ाई का प्रचलन है।

(क) पिच्छवा कढ़ाई – पिच्छवा कढ़ाई का प्रमुख स्थल नाथद्वारा है। नाथद्वारा में श्री नाथ जी भगवान का भव्य मन्दिर है। यहाँ धार्मिक आस्था को उजागर करने के लिए रंगीन सूती, सैटिन अथवा वेलवेट के वस्त्रों पर कृष्ण लीला, गोकुल वन, वृन्दावन, राधाकृष्ण पर आधारित नमूने की कढ़ाई की जाती है।

(ख) जैन कढ़ाई – यह कढ़ाई जैन धर्म के प्रति आस्था और समर्पण की आस्था व्यक्त करती है। राजस्थान में उदयपुर के समीप स्थित रणकपुर तथा केसरियाजी, माउन्ट आबू के दिलवाड़ा मन्दिर विश्व में प्रसिद्ध हैं । यहाँ मन्दिरों में चढ़ाने के लिए वस्त्रों पर सुन्दर-सुन्दर फूल, पत्तियों, लताओं आदि के नमूने काढ़े जाते हैं। इसमें विभिन्न धार्मिक स्थलों के नमूनों का भी कुशलता से चित्रण किया जाता है।

(3) कोर्ट कढ़ाई – कोर्ट कढ़ाई में वस्त्र पर गोटा, सितारा, काँच के टुकड़े के अतिरिक्त कीमती पत्थर, कोडी, सीप आदि वस्तुओं को कुशलतापूर्वक वस्त्र पर जड़ा जाता है। इस प्रकार की कढाई युक्त वस्त्र अपेक्षाकृत कीमती होने के कारण धनाढ्य वर्ग द्वारा उपयोग में लाये जाते थे। राज-महाराज एवं सामंतों के लिए सोने-चाँदी के तारों से वस्त्र को अलंकृत किया जाता था। वस्त्र को बोर्डर को गोटा वर्क से सुसज्जित किया जाता था।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment