गुजरात की कढ़ाई कला
गुजरात की कढ़ाई- गुजरात की कढ़ाई अत्यन्त मनोहारी, आकर्षित करने वाली होती है। गुजरात ‘बीड वर्क’ के लिए काफी लोकप्रिय रहा है। वस्त्रों पर रंग-बिरंगें मोती जैसे बीड्स लगाए जाते हैं इसमें विशिष्ट प्रकार के नमूने नहीं बनाए जाते बल्कि जानवर साधारण फूल-पत्ती बनाए जाते हैं।
गुजरात की कढ़ाई की मांग विश्व में आज भी अधिक है। सौराष्ट्र, काठियावाड़, कच्छ आदि क्षेत्र में कारीगर इस कला में बड़े निपुण हैं। गुजरात की इस कला का वर्णन हमें महाभारत में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस कढ़ाई का उद्गम काथी जाति के लोगों के द्वारा हुआ है। गुजरात के प्रत्येक जाति की एक अलग कढ़ाई कला होती है। इस कढ़ाई से मेजपोश, चादर, पर्दे, दीवार पर टाँगने के पीस, शॉल आदि बनाए जाते हैं। गुजराती कढ़ाई में निम्नांकित कढ़ाई सम्मिलित होती हैं-
1. कच्छ की कढ़ाई- कच्छ की कढ़ाई को ‘कान्वी’ कहा जाता था, इसमें प्रायः चेन टाँकों का प्रयोग होता था। इसमें अधिकतर गहरे रंगों का प्रयोग किया जाता था धागे सूती एवं रेशमी दोनों ही प्रकार के प्रयोग में लाए जाते थे।
ऐसा माना जाता था कि कच्छ की कढ़ाई सिन्ध के एक मुस्लिम फकीर ने सबसे पहले वहाँ के ‘मोची’ को सिखाई थी। बाद में यह कढ़ाई अहीर काश्तकार, रबाड़ी, कान्वी आदि के द्वारा की जाने लगी। कच्छ की कढ़ाई एक हुकदार सुई की सहायता से की जाती है। ऊनी, सूती, रेश्मी आदि प्रकार के वस्त्रों पर तोता, शेर, मोर, महिला-पुरूष, फूल-पत्तियाँ, बेल, छोटे-बड़े बूटे ही सुन्दर तरीके से काढ़े जाते हैं, जिनमें काँच का प्रयोग भी किया जाता है।
2. सिन्ध की कढ़ाई- सिन्ध प्रदेश कच्छ एवं पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर एव जैसलमेर जिलों में सिन्ध कढ़ाई का चलन अधिक होता है। सिन्धी कढ़ाई में अधिक चटकीले रंगों का प्रयोग किया जाता है। सिन्धी कढ़ाई पंजाब की फुलकारी के रफू टाँकों तथा कच्छ कढ़ाई के चैन टाँकों के सम्मिश्रण से बनाया जाता है।
3. सौराष्ट्र की कढ़ाई- सौराष्ट्र की कढ़ाई में मुख्यतः तीन श्रेणियों का प्रभाव – अधिक देखने को मिलता है। –
(1) कथीपा शैली- कथीपा शैली में तुरपन टाँके से वस्त्रों को अंकृत किया जाता है। तोरण, चकरा (चौकोर रूमाल) पर रेशमी धागों से नमूने बनाए जाते हैं जिसमें आड़ी एवं खड़ी रेखाओं का प्रयोग किया जाता है। कथीपा शैली के वस्त्र के मध्य में चौकोर नमूने बनाए जाते हैं। नियमित अंतराल के पश्चात काँच के छोटे-छोटे गोल एवं चौकोर टुकड़े, सितारे आदि से सुशोभित किया जाता है। तोरण घर के मुख्य द्वार के लिए तैयार किए जाते हैं जिस पर भगवान गणेश के चित्र काढ़े जाते हैं।
(2) कान्बी कढ़ाई- कोन्बी जाति के नाम से इस कला को ‘कान्बी’ कहा जाने लगा। ‘कान्बी’ काश्तकार होते हैं। जिनमें कान्बी जाति की स्त्रियाँ कढ़ाई के कार्य में अधिक निपुर्ण होती हैं, महिलाएँ वस्त्रों को अलंकृतकरने के लिए चैन टाँकों, भराई कार्य, हेयरिंग बोन टाँकों से करती हैं, कढ़ाई के लिए वह अधिकतर पीला, हरा, सफेद, नारंगी एवं जामुनी रंगों का प्रयोग करती हैं। कान्बी लोगों में पशुओं के प्रति प्रेम अधिक होता है इसलिए वे अधिकतर वस्त्रों पर पशुओं की आकृति जैसे बैल, हाथी, ऊँट, सिंग आदि से संजोते हैं।
(3) काठियावाड़ की कढ़ाई- काठियावाड़ की कढ़ाई पंजाब की फुलकारी एवं सिन्ध की कढ़ाई से मेल खाती है, इस कला में काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों का प्रयोग अधिक किया जाता है। काँच के इन टुकड़ों को काज टाँके से लगाया जाता है।
काठियावाड़ की यह अद्भुत कढ़ाई अधिकतर महिलाओं के लहँगा-ओढ़नी पर की जाती है जिसमें पीला, सफेद क्रिसमन, हरा, इन्डिगो आदि रेशमी रंगों का प्रयोग किया जाता है।
अबला भारत का एक प्रकार मिररवर्क है। यह काठियावाड़ का पारम्परिक कढ़ाई कला का अभिन्न भाग है। राजस्थानी कढ़ाई में भी अबला का काम किया जाता है।
Important Links
- मणिपुरी की कढ़ाई | Manipuri embroidery in Hindi
- लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई | Chikankari embroidery of Lucknow
- बंगाल की कांथा कढ़ाई | Kantha of Bengal in Hindi
- कश्मीर की कसीदा कढ़ाई | Kashida of Kashmir embroidery in Hindi
- चम्बे की रुमाल पंजाब की कढ़ाई | Chamba Rumals In Hindi
- कर्नाटक की कसूती | Kasuti of Karnataka in Hindi
- काठियावाड़ की कढ़ाई | Kathiawar Embroidery in Hindi
- कढ़ाई कला के विभिन्न चरण | Different Steps of Embroidery in Hindi