गृहविज्ञान

प्रसार शिक्षण में रेडियो कार्यक्रम की विस्तार से विवेचना कीजिए।

प्रसार शिक्षण में रेडियो कार्यक्रम
प्रसार शिक्षण में रेडियो कार्यक्रम

प्रसार शिक्षण में रेडियो कार्यक्रम

प्रसार शिक्षण में रेडियो कार्यक्रम- आधुनिक जीवन में जिस प्रकार रेडियो कार्यक्रम एक अहम भूमिका निभाते हैं, उसी प्रकार प्रसार शिक्षण में भी इनकी भूमिका अत्यन्त सकारात्मक है। रेडियो के माध्यम से एक बड़े जन-समुदाय तक एक ही समय में पहुँचा जा सकता है। लोगों में जागरुकता लाने, उन्हें नई-नई सूचनाएँ प्रदान करने का रेडियो एक सशक्त माध्यम है। रेडियो के कार्यक्रम पूर्व निश्चित होते हैं। तथा पूर्व घोषित समय पर प्रसारित होते हैं अतः श्रोता समूह इसके लिए पहले से तैयार करना सरल रहता है। इस प्रकार यह एक सुविधाजनक शिक्षण व्यवस्था है। रेडियो के कार्यक्रम सामान्य. जनसमुदाय के निमित्त होते हैं, जिसमें हर वर्ग, आयु, लिंग, रुचि, व्यवसाय एवं स्तरों के लोग होते हैं। रेडियो प्रसारणों द्वारा हर समुदाय को संतुष्ट करने की चेष्टा की जाती है। साथ ही रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र जैसे माध्यम राष्ट्र की उन्नति मैं अपना दायित्व निर्वाह करते हुए जन-शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रम भी बनाते तथा प्रसारित करते हैं। इनमें लोकहित के सरकारी कार्यक्रमों की नीतियों का परिपालन किया जाता है, जैसे- परिवार नियोजन कार्यक्रम, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, स्वास्थ्य संरक्षण कार्यक्रम, पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम इत्यादि । हमारे देश का मुख्य व्यवसाय कृषि है अतः कृषि से सम्बन्धित हर पक्ष पर महत्वपूर्ण सूचनाएँ तथा जानकारियाँ देना भी रेडियो का उत्तरदायित्व है। ग्रामीण जनमानस हेतु विशेष रूप से जो रेडियो कार्यक्रम प्रसारित होते हैं उनमें से कुछ ये हैं- चौपाल, खेती-गृहस्थी, चौबारा, खेती की बातें, ग्रामीण बहिनों का कार्यक्रम, कृषि जगत, आपका स्वास्थ्य, सुना किसानों, घर-आँगन, मजदूर-मण्डल, देहाती रेडियो गोष्ठी, उन्नत खेती, कृषि सूचनाएँ, खेतीबारी, घरनी सभा, श्रमिक लोक, स्वास्थ्य संकेत, हमारा गाँव, गृह लक्ष्मी, कृषि लोक, कृषि चर्चा, खेती की खबरें, खेत- खलिहान से, कृषि समाचार इत्यादि । सामान्यतः इन कार्यक्रमों के माध्यम से निम्नलिखित विषयों से सम्बन्धित वार्ताएँ, लघु नाटक, गीत आदि प्रसारित होते हैं।

कृषि सम्बन्धी- सामयिक रोपण, खर-पतवार नियंत्रण, कीटनाशक दवाओं का छिड़काव, लघु उद्योग, उपज का वर्गीकरण कैसे करें, मौसमी सब्जियों के रोग एवं नियंत्रण, नियोजन सूचनाएँ, श्रमदान तथा सहकारिता का महत्व, ग्रामोत्थान में पंचायत की भूमिका, सफलता की कहानी, प्रगतिशील किसान से बातचीत, अगले सप्ताह का कृषि कार्यक्रम, जनस्वास्थ्य रक्षक योजना, कटाई के उन्नत कृषि यंत्र, राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, खेतिहर मजदूरों की समस्याएँ, गर्मी में मूँग की खेती, सब्जियों की अधिक उपज, भू-कटाव की रोकथाम, सहकारी सुविधाएँ, टमाटर- बैंगन की फसल के उर्वरक- सिंचाई संरक्षण, नींबू के पौधों की बीमारियों की रोकथाम, विकास बैंक से ऋण प्राप्ति की विधि, बाजार भाव, मौसम के अनुरूप खेती सम्बन्धी ज्ञातव्य बातें, फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों की रोकथाम, कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रम, बाजार-भाव, प्रश्नोत्तर, सलाह आदि ।

पशु-पक्षी मत्स्य सम्बन्धी- पशुओं की सामान्य बीमारियाँ, टीकाकरण, पशुओं में कंधा सूजन, खुरपका-मुँहपका रोग और रोकथाम, पशुचारा, संतुलित आहार, कुक्कुट चारा, मछली के खेत का रखरखाव, मुर्गियों तथा मछलियों की घातक बीमारियाँ तथा रोकथाम, गर्मी में दुग्ध उत्पादन न घटने के उपाय, रेबीज, अंडा उत्पादन, मुर्गियों में चिचड़ी आदि ।

गृहोपयोगी- परिवार कल्याण, बच्चों का स्वास्थ्य, जच्चा-बच्चा देखभाल, बच्चों की सामान्य बीमारियों से रक्षा, टीकाकण, संतुलित आहार, स्त्रियों के सामान्य रोग तथा सलाह, घरेलू औषधियाँ, चर्मरोगों का इलाज, व्यंजन बनाना, खाद्य संरक्षण, अनाज भण्डारण, खाली समय का सदुपयोग, काम की बातें, पूछे गए प्रश्नों के उत्तर, अन्धविश्वास से छुटकारा, बालिकाओं के अधिकार, अस्पृश्यता निवारण, स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, महिलाओं के कानूनी अधिकार इत्यादि।

अन्यान्य कार्यक्रम- समाचार, मौसम सम्बन्धी सूचनाएँ, नाटक, संगीत, वार्ता, कहानी, रूपक, सूचनाएँ इत्यादि। रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण ध्वनि तरंगों के माध्यम से होता है, जिन्हें रेडियो या ट्रांजिस्टर निर्धारित आवृत्ति (Frequency) पर ग्रहण करते हैं। रेडियो तथा ट्रांजिस्टर बिजली या बैटरी द्वारा चलते हैं। रेडियो कार्यक्रम पूर्व निर्धारित समय पर प्रसारित होते हैं। संवाद द्वारा शिक्षण के अत्यन्त उपयोगी माध्यम के रूप में रेडियो कार्यक्रमों की मान्यता है। प्रसार क्षेत्र में इसका अधिक उपयोग इसलिए भी माना जाता है क्योंकि प्रसारित सामग्री विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाती है। आलेख की अवधि 10 से 15 मिनट की होती है। प्रसारण का उपयोग ग्रामीण समुदाय करता है अतः इसकी तैयारी ग्रामीणों के बौद्धिक एवं शिक्षण स्तर को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। वार्ता का विषय रोचक एवं भाषा सरल होना भी आवश्यक है। तकनीकी शब्दों का प्रयोग करते समय उनके अर्थ भी बताए जाने चाहिए तभी लोग इसे समझ पाते हैं।

ग्रामीण कार्यक्रमों को अधिक उपयोगी एवं रुचिकर बनाने के लिए उनमें स्थानीय सूचनाएं, बाजार भाव मौसम का हाल, मौसम के अनुरूप ज्ञातव्य बाते, फसल की बीमारियां-कीड़े, पशुधन की सुरक्षा, ऋण-व्यवस्था आदि विषयों का समावेश होना आवश्यक है। साथ ही, रेडियो के मनोरंजन पक्ष को भी उजागर रखने के लिए नाटक, कहानी, लोकगीत आदि की समाविष्टि अनिवार्य है। प्रसार शिक्षण मनुष्य के सर्वांगीण विकास को लक्षित है, अतः इसका उपयोग व्यक्ति के सामाजिक-शैक्षिक विकास के निमित्त करने के लिए सामाजिक चेतना, सामाजिक कुरीतियों को दूर करना, व्यक्ति के सामाजिक हितों की रक्षा करना, मुफ्त कानूनी सलाह देना, जमीन-मजदूरी सम्बन्धी कानून आदि की जानकारी देने की चेष्टा की जानी चाहिए।

रेडियो प्रसारण के लाभ (Advantages)

रेडियो प्रसारण का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। इसके माध्यम से भूत, वर्तमान और भविष्य की गतिविधियों एवं उपलब्धियों को प्रस्तुत किया जा सकता है। रेडियो श्रोता अत्यन्त उत्सुकता के साथ, रेडियो या ट्रांजिस्टर के सामने बैठते हैं अतः रेडियो प्रसारण का यह प्रथम उत्तरदायित्व होता है कि श्रोता की अपेक्षाओं की पूर्ति करे। ध्यानाकर्षण, अभिरुचि जाग्रत करने, उत्प्रेरणा जगाने तथा काम करने को प्रेरित करने में रेडियो का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इससे लोगों के बौद्धिक तथा शैक्षिक स्तर में भी अन्तर आता है। रेडियो को हर कोई अत्यन्त विश्वसनीय सूचना-स्रोत मानते हैं।

रेडियो प्रसारण की सीमाएं (Limitations)

रेडियो प्रसारण अनेक दृष्टिकोणों से सीमाबद्धता के शिकार होते हैं। भारत जैसे निर्धन देश के लिए यह एक महंगा शिक्षण साधन है क्योंकि हर व्यक्ति रेडियो या ट्रांजिस्टर रखने की क्षमता नहीं रखता। रेडियो प्रसारण का लाभ विद्युत आपूर्ति या बैटरी की उपलब्धता से प्रभावित होता है। इनके अभाव में प्रसारण का लाभ श्रोता नहीं उठा पाते। प्रसारण का समय निर्धारित होता है अतः श्रोता को उक्त समय पर स्वयं को अन्य कार्यों से विमुक्त रखना पड़ता है। रेडियो प्रसारण का लाभ वे ही उठा पाते हैं जो प्रसारण भाषा से अवगत होते हैं।

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