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मौखिक परीक्षा | Maukhik pariksha | oral examination in hindi

मौखिक परीक्षा
मौखिक परीक्षा

मौखिक परीक्षा पर प्रकाश डालें। (Throw light on the oral examination.)

मौखिक परीक्षा में विद्यार्थियों से मौखिक प्रश्न किये जाते हैं और उनके ज्ञान- उपार्जन का मूल्यांकन किया जाता है। इससे उनके अध्ययन का ज्ञान सहज रूप से हो जाता है। इसके अतिरिक्त, बच्चों की सूझ-बूझ, भाषा-अभिव्यक्ति तथा व्यावहारिक ज्ञान को जाँचने में सहायता मिलती है। इस प्रकार की परीक्षा के लिए न तो समय निश्चित रहता है और न कोई स्थान ही। अध्यापन के क्रम में ही शिक्षक अपने विद्यार्थियों से प्रश्न करके उनके ज्ञान की जाँच कर लेता है। इसी तरह यदि शिक्षक आवश्यक यदि समझते हैं तो अलग-अलग विद्यार्थियों से प्रश्न करके उसकी परीक्षा लेते हैं ।

स्पष्टतः यह परीक्षा बहुत ही सरल है। इसके लिए न तो प्रश्न-पत्र बनाने की आवश्यकता होती है और न उत्तर-पुस्तिकाओं के जाँचने की जरूरत होती है। विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से भी यह परीक्षा बहुत ही सहज है। इसके लिए उन्हें न तो अधिक तैयारी करने की आवश्यकता होती और न कुछ लिखने की आवश्यकता होती है। इस परीक्षा का एक गुण यह भी है कि प्रश्न पूछते समय विद्यार्थियों के समस्त व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण हो जाता है।

लेकिन, इस परीक्षा-प्रणाली में कई प्रकार के दोष भी पाए जाते हैं:

(i) इसके द्वारा विद्यार्थियों के ज्ञान उपार्जन का ठीक-ठीक मापन नहीं हो सकता। इसके कई कारण हैं। पहली बात यह है कि कुछ विद्यार्थी इतने संकोचशील होते हैं कि प्रश्नों के उत्तर जानते हुए भी नहीं दे पाते हैं। दूसरी बात यह है कि शिक्षक की उपस्थिति से कुछ बालक घबड़ा जाते हैं और घबड़ाहट के कारण प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते हैं। तीसरी बात यह है कि कुछ बालकों में भाषा- दोष होता है जिसके कारण वे प्रश्नों के उत्तर जानते हुए भी समुचित रूप से उत्तर नहीं दे पाते हैं ।

(ii) इस परीक्षा-प्रणाली का एक बहुत बड़ा अवगुण यह है कि इसमें पक्षपात की संभावना अधिक होती है विद्यार्थियों के मूल्यांकन पर शिक्षक की पूर्वधारणा तथा अन्य आत्मगत तत्त्वों का गहरा प्रभाव पड़ता है। आर. एस. कार्टर के अध्ययन से इस बात का प्रमाण मिलता है कि शिक्षक बालिकाओं की सफाई, उनके बोलने के अंदाज, अनुशासन आदि से प्रभावित होकर बालकों की अपेक्षा उन्हें अधिक अंक दे देते हैं। 1952 में कार्टर ने एक स्कूल के तीन शिक्षकों तथा तीन शिक्षिकाओं द्वारा बालकों तथा बालिकाओं द्वारा प्राप्तांक का अध्ययन किया। बुद्धि-परीक्षण के आधार पर देखा गया कि बालकों एवं बालिकाओं की योग्यता में कोई खास अन्तर नहीं था। इसी तरह प्रमाणिक उपलब्धि परीक्षण के आधार पर यह देखा गया कि उनकी उपलब्धि भी समान थी। फिर भी शिक्षकों तथा शिक्षिकाओं के द्वारा दिए गए अंकों में काफी अन्तर था। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं को अधिक अंक दिया गया था। इसी तरह शिक्षकों की अपेक्षा शिक्षिकाओं ने अधिक अंक दिया था । इससे स्पष्ट हो जाता है कि मौखिक परीक्षा-प्रणाली एवं विश्वसनीय नहीं है।

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