B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

आकलन की विधियां | Methods of Assessment in Hindi

आकलन की विधियां
आकलन की विधियां

आकलन की विधियां (Methods of Assessment)

आकलन की विधियां- यह देखा गया है कि अधिकांश विद्यालयों में अध्यापक सूचनाओं का मुख्य स्रोत होता है और वही बच्चों के अधिगम का आंकलन करता है। क्योंकि आंकलन अधिगम प्रक्रिया का भाग है, अतः इसे बच्चे स्वयं कर सकते हैं और अपने स्वयं के अधिगम और प्रगति के आंकलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अध्यापक बच्चों को स्वयं का आंकलन करने में सहायक हो सकते हैं। वे ऐसा बच्चों में यह समझ विकसित कर सकते हैं कि उनसे क्या आशा की जाती है और वे अपने कार्य और निष्पादन को क्रिटीकली कैसे देख सकते हैं। यह बच्चों से यह कह कर कि वे अपने सर्वोत्तम कार्य का चयन करें और वे चर्चा करें कि उन्होंने उस कार्य को क्यों चयनित किया है।

बच्चों के स्वयं के अतिरिक्त अन्य अनेक व्यक्ति होते हैं जो आंकलन किए जाने वाले बच्चों के सम्बन्ध में सूचना प्रदान कर सकते हैं। वे निरन्तरता के आधार पर सम्मिलित किए जा सकते हैं ताकि बच्चों के विकास के सभी पक्षों को पूर्ण रूप से चित्रित किया जा सके वे लोग कौन हैं, यह चित्र और पूर्ण होगा यदि अध्यापक इन लोगों से अन्तःक्रिया करें, जैसे-

(i) अभिभावक

(ii) बच्चों के मित्र, सहपाठी और भाई बहिन

(iii) अन्य अध्यापक

(iv) समुदाय के सदस्य

आंकलन को व्यवस्थित करने की चार मुख्य विधियाँ हैं-

1. व्यक्तिगत आंकलन (Individual Assessment) – इस विधि में एक बच्चे पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। जब वह किसी क्रिया या कार्य में व्यस्त हों।

2. समूह आंकलन (Group Assessment)- यह उन बच्चों पर ध्यान केन्द्रित करता है जो एक समूह में मिलकर किसी कार्य को पूरा करने के उद्देश्य से कार्य करते हैं। यह विधि सामाजिक कौशल, सहयोगात्मक अधिगम प्रक्रियाओं तथा अन्य मूल्य सम्बन्धित आयामों के सन्दर्भ में बालकों के व्यवहार के आंकलन में अधिक प्रभावी होती है।

3. आत्म- आंकलन (Self- Assessment) – यह बच्चे के अपने स्वयं के अधिगम और विकास के आंकलन को इंगित करता है। इसमें बालक अपने ज्ञान, कौशल, प्रक्रियाओं, रुचियों और मनोवृत्तियों आदि के विकास का आंकलन करता है।

4. साथी आंकलन (Peer Assessment) – यह बालक द्वारा दूसरे बालक के आंकलन को इंगित करता है यह जोड़ों या समूह में निष्पादित किया जा सकता है।

सूचना का अभिलेखन (Recording of Information)- पूरे देश के विद्यालयों में अभिलेखन की अति सामान्य विधि रिपोर्ट कार्ड्स के माध्यम से आवर्तन करना है। अधिकांश अभिलेखनों के सूचना अंकों या ग्रेड्स जो विद्यार्थी परीक्षाओं में या टेस्ट में प्राप्त करता है के रूप में होती है।

एकत्रित सूचना के सार्थक बनाना (Makig Sense of the Information Collected)

एक बार सूचना का अभिलेख हो जाने के पश्चात् अगला चरण उपलब्ध साक्ष्य का प्रयोग एकत्रित और अभिलिखित सूचना के आधार पर एक समझ पर पहुँचना है इसका अर्थ है कि इस परिणाम के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचना कि बालक क्या सीख रहा है और उसकी प्रगति क्या है। इस इस कारण आवश्यक है कि यह जाना जा सके कि बालक कहाँ है और उसकी प्रगति क्या है। यह इस कारण आवश्यक है कि यह जाना जा सके कि बालक कहाँ है और उसकी सहायता के लिए क्या आवश्यक है। इसके लिए अभिलेखों को रोज विश्लेषण और देखने की आवश्यकता है। यह सब अध्यापक के अपने अध्यापक को प्रतिबिम्बित करेगा तथा कक्षा व्यवस्थापन और शैक्षिक सामग्री के पक्ष को सुधारने का अवसर प्रदान करेगा। उपयुक्त व्याख्या के लिए संकेतकों की पहचान की आवश्यकता होती है जिससे प्रक्रिया में सुविधा प्राप्त हो।

आंकलन की प्रतिपुष्टि संचारित और प्रतिवेदन करना ( Reporting and Communicating on Assessment)

आंकलन हो जाने के पश्चात् यह बालक के सम्बन्ध में कुछ सूचना अध्यापक को प्रदान करता है। एक बार सूचना का अभिलेख हो जाता है और उसका विश्लेषण कर लिया जाता है तब सभी विद्यालयों में आंकलन की सूचना बालक के अधिगम और प्रगति के सम्बन्ध में बालक और अभिभावकों का रिपोर्ट कार्ड के माध्यम से पहुँचा दी जाती है। इसके द्वारा बालक के विभिन्न विषयों में निष्पादन की सूचना समय-समय पर लिए गए टेस्ट/ परीक्षाओं के आधार पर प्रस्तुत की जाती है। उपयुक्त व्याख्या के लिए संकेतकों की पहचान की आवश्यकता होगी जिससे प्रक्रिया में सुविधा हो।

प्रतिवेदन (Reporting) :

अध्यापक द्वारा परावर्तन (Reflection)- रोजाना और आवधिक आंकलन तभी सहायक होगा जब-

  • पोर्टफोलियो और अन्य अभिलेखों का आंकलन आवधिक आधार पर किया जाए अर्थात् हर 3 माह में।
  • रुचिकर घटनाओं की समीक्षा और बालक के व्यक्तित्व के अन्य पक्षों का आंकलन किया जाए।
  • इसकी तुलना पूर्व के रिकॉर्ड से की जाए।
  • इस तथ्य से आश्वस्त हुआ जाए कि वही समस्या पुनः न उठे।
  • ध्यान रखा जाए कि समस्याएँ और कठिनाइयों को किस प्रकार सुलझाया गया है।
  • इस तथ्य का आंकलन किया जाए कि बालक में सुधार हुआ है और यदि कमजोरी अब भी विद्यमान है तो अध्यापन-अधिगम परिस्थिति में क्या कार्यवाही वांछित है।

अध्यापक का परावर्तन प्रगति मानचित्र तैयार करने में सहायता प्रदान करेगा, अर्थात् एक दिए हुए समय में बालक की प्रगति की संचयी रिपोर्ट एक स्पष्ट चित्र प्रदान करेगी। केवल तभी अध्यापक बालक के भावी अधिगम के लिए सार्थक रूप में निर्देशित कर पाएगा और समझ के नीचे स्तर के प्रगति कर पाएगा तथा उच्च स्तर के अधिक जटिल अधिगम के कौशल को ग्रहण कर पायेगा। इसके द्वारा यह भी ज्ञात होगा कि बालक को क्या कठिन लगता है और उस खाई को भरा जा सकेगा। इस परिपुष्टि के द्वारा अध्यापन-अधिगम प्रगति में परिवर्तन किए जा सकते हैं।

एक बार प्रतिपुष्टि प्राप्त हो जाने पर महत्त्वपूर्ण प्रशन उठता है कि अध्यापक द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में क्या होना चाहिए। इस रिपोर्ट में एक समय की अवधि में बालक की प्रगति की प्रोफाइल होनी चाहिए।

रिपोर्ट तैयार करने के पश्चात् अध्यापक को इसे अभिभावक और बालक से साझा करना चाहिए। यह एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है तथा इसे सावधानीपूर्वक संरचनात्मक और सकारात्मक रूप में करने की आवश्यकता है।

आंकलन पर प्रतिपुष्टि का संदेश देना (Communication Feedback on Assessment)

बालक से साझा करना (Sharing with the Child)- नित्यप्रति के आधार पर अधिकांश अध्यापक अनौपचारिक प्रतिपुष्टि तब प्रदान करते हैं जब बालक किसी कार्य या क्रिया में संलग्न होता है बालक भी अध्यापक, दूसरे बच्चों या समूह को देखकर स्वयं को सुधारता है। समस्या तब उठती है जब बालक को रिपोर्ट इस प्रकार दी जाती है कि वे नहीं कर सकते, या उनकी असफलताओं और कमियों को इंगित करती है। इससे बालक हतोत्साहित होता है।

अतः, अध्यापक को निम्नांकित करने की आवश्यकता है-

  • बालक से चर्चा करें कि उसने अच्छा किया है और उतना अच्छा नहीं है उसे सुधार की आवश्यकता है।
  • अध्यापक और बालक को मिलकर यह जानना चाहिए कि बालक को किस प्रकार की सहायता चाहिए।
  • बालक को उसका पोर्टफोलियो देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए और वर्तमान कार्य तथा पहले के कार्य में तुलना करनी चाहिए।
  • बालक जब कार्य पर हो या कार्य कर चुका हो तब उस पर सकारात्मक और रचनात्मक टिप्प्णी करनी चाहिए।

प्रतिपुष्टि के द्वारा प्रेरित करने में अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि बालक स्वयं से प्रतिस्पर्धा करे अन्य बालकों से नहीं यह सन्दर्भ में होना चाहिए कि “मैं कल कहाँ था या एक सप्ताह पूर्व कहाँ था और आज कहाँ हूँ।” बालकों के मध्य प्रतिस्पर्धा अधिक सहायक नहीं होती। अधिकांशतः इससे यह भावना विकसित होती है कि मैं अच्छा नहीं हूँ और यदि कोई बालक बहुत अच्छा करता है और कक्षा में अधिकतम अंक प्राप्त करता है तो वह स्कूल में उसी निष्पादन को बनाए रखने के दबाव में रहता है और घर पर वही स्तर बनाए रखने के लिए उस पर अभिभावकों का दबाव रहता है।

अभिभावकों से साझा करना (Sharing with Parents)

अभिभावक अपने बच्चें के बारे में जानने में सर्वाधिक रुचिकर होते हैं, बच्चा स्कूल में कैसा कर रहा है, उसने क्या सीखा है। उनका बच्चा कैसा निष्पादन कर रहा है, और उसकी प्रगति क्या है। अधिकांशतः अध्यापक अनुभव करते हैं कि उन्होंने अभिभावकों को अच्छा कर सकता है ‘खराब’ ‘ अधिक प्रयास की आवश्यकता है” आदि टिप्पणियों द्वारा प्रभावी रूप में सन्देश दे दिया है। इस प्रकार के कथनों का क्या अर्थ है ? क्या इस प्रकार के कथन अभिभावकों को उनके बालकों के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट सूचना प्रदान करते हैं? अतः, यह सुझाव है कि सरल और आसानी से समझ में आने वाली भाषा का प्रयोग किया जाए।

  • बच्चा क्या कर सकता है, करने का प्रयत्न कर रहा है और कठिनाई अनुभव करता है।
  • बच्चा क्या करना पसन्द करता है या पसन्द नहीं करता।
  • बच्चे के कार्य के न्यादर्श के साथ गुणात्मक कथन और मात्रात्मक प्रतिपुष्टि।
  • बालक कैसे सीखता है और वह कहाँ कठिनाई अनुभव करता है।
  • क्या वह अपनी क्रिया और निष्पादन उसे करते समय पूरा करता है।
  • बालक के कार्य को अभिभावक से साझा करिए, ताकि सफलता और सुधार के क्षेत्र इंगित किए जा सकें ताकि उसमें सहायता की जा सके।
  • सहयोग, उत्तरदायित्व, संवेदनशीलता अन्यों के प्रति रुचियाँ आदि की चर्चा बालक और अभिभावक दोनों से करनी चाहिए।
  • अभिभावकों से चर्चा करिए-

(i) वे किस प्रकार सहायता कर सकते हैं,

(ii) घर पर बालक के सम्बन्ध उन्होंने क्या अवलोकन किया।

बच्चों के अधिगम और प्रगति के सम्बन्ध में सभी सूचना एकत्र कर ली गई है तथा प्रतिपुष्टि प्राप्त हो गई है, जो अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया को और समृद्ध बनाएँगे तथा बच्चे को अच्छे अधिगम में सहायक होंगे। इसके लिए अध्यापक के और परावर्तन की आवश्यकता होगी।

अध्यापक द्वारा परावर्तन ताकि बच्चे के अधिगम का संवर्धिकरण हो सके (Reflecting by the teacher for Enriching Children’s Learning) 

कुछ मुख्य प्रश्न जो परावर्तन में सहायक हो सकते हैं और बच्चे की प्रगति के सम्बन्ध में अन्य लोगों से चर्चा करने के लिए-

  • क्या मेरे बच्चे क्रियाओं में और अधिगम में अभीष्ट रूप से सन्निहित है ? यदि नहीं, तो अधिकांश बच्चे किस स्तर पर हैं।
  • क्या मैं बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं को समझने योग्य हूँ ? यदि हाँ तो मैं उन आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए क्या कर रहा हूँ।
  • क्या कुछ बच्चे हैं जो प्रथम स्तर तक पहुँचने में भी कठिनाई अनुभव करते हैं ? मैं व्यक्तिगत रूप से उनको अभिप्रेरित करने और उत्साहित करने के लिए क्या करता हूँ?
  • मैं अपने अध्यापन-अधिगम विधि को कैसे सुधार सकता हूँ ताकि बच्चे एक स्तर से दूसरे स्तर तक जा सकें।
  • मैं बच्चों को आत्म- आंकलन के लिए किस प्रकार अभिप्रेरित कर सकता हूँ।
  • मुझे किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ? (बच्चों को समूहों में विभाजित करना, आयु के अनुसार उनके लिए उपयुक्त क्रियाएँ प्राप्त करना, सभी बच्चों के लिए अपर्याप्त सामग्री आदि)
  • मुझे और क्या सहायता चाहिए ? ये मुझे कौन प्रदान कर सकता है ? (शैक्षिक कार्यकर्ता अभिभावक, समुदाय, अन्य अध्यापक)
  • उत्तम अध्यापन-अधिगम पद्धति को सम्बन्धित करने के लिए मैं क्या प्रयास कर सकता हूँ।

हम इन और इसी प्रकार के प्रश्नों पर विचार कर सकते हैं ताकि भविष्य में उत्तम अध्यापन-अधिगम रणनीति की योजना बनाई जा सके।

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment