वर्तमान परीक्षा प्रणाली (Present examination system.)
हमारे देश में प्रचलित विभिन्न स्तरों की परीक्षा प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन निम्नांकित प्रकार से किया जा सकता है-
1. हमारे यहाँ हर स्तर पर परीक्षाओं का संचालन शैक्षिक सत्र के समाप्त हो जाने पर होता है।
2. परीक्षाएँ अधिकांशतः बाह्य होती हैं, अर्थात् शिक्षक अपने छात्रों की परीक्षा में या उनके मूल्यांकन में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होता। कुछ स्थानों पर अब आन्तरिक मूल्यांकन का भी प्रावधान है।
3. कुछ विषयों में प्रयोगात्मक परीक्षाओं को और मौखिक परीक्षा को छोड़कर अधिकांश परीक्षाएँ लिखित होती हैं।
4. परीक्षाओं में पूछे गए अधिकांश प्रश्न निबन्धात्मक होते हैं जिनका उत्तर विद्यार्थी विस्तृत रूप में देता है।
5. इन परीक्षाओं में प्राप्त सफलता के आधार पर ही छात्र अगली कक्षा में जाता है या चयन परीक्षाओं में तथा रोजगार के लिए स्वयं को योग्य पाता है। दूसरे शब्दों में परीक्षाएँ छात्र को प्रमाण पत्र या डिग्रियाँ प्राप्त करने का साधन है।
इस प्रकार की परम्परागत परीक्षा की अनेक वर्षों से आलोचना होती रही है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में शैक्षिक सुधार के लिए सर्वोच्च वरीयता परीक्षा प्रणाली को सुधारने में दी गई । परीक्षा प्रणाली को सुधारने से तात्पर्य यह नहीं है कि उसे समाप्त कर दिया जाए वरन् उसे आज के समय के अनुरूप बनाने की है। अतः, उसमें सुधार से पूर्व उसकी कमियों को जानना अधिक आवश्यक है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली के मुख्य दोष निम्न प्रकार हैं-
1. निबन्धात्मक प्रश्नों की अधिकता के कारण छात्रों को उत्तर देने के लिए काफी विकल्प प्राप्त हो जाते हैं तथा परीक्षकों द्वारा इसमें जाँचते वक्त आत्मगतता के तत्त्व की मात्रा काफी रहती है।
2. इस प्रकार की परीक्षा प्रणाली के कारण समस्त शिक्षा परीक्षा केन्द्रित हो जाती है। बजाय ज्ञान केन्द्रित होने के।
3. प्रश्नपत्रों की प्रकृति इस परीक्षा प्रणाली में रटन और स्मरण आधारित प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है तथा छात्र यूनिट अंशों को पढ़ने के लिए अभिप्रेरित होते हैं।
4. प्रश्नपत्रों में पूछे पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता।
5. निबन्धात्मक प्रश्नों पर प्राप्त अंकों की विश्वसनीयता और वैधता संशयात्मक रहती
6. इस प्रकार की परीक्षा में प्रश्नपत्रों का आऊट होना, परीक्षकों तक सिफारिश आदि की अधिक सम्भावना रहती है।
सतत् और व्यापक आंकलन (Continuous and Comprehensive Assessment)
उत्तम शिक्षा और परीक्षा कार्यक्रम में सुधार के लिए शैक्षिक जगत् में निरन्तर चर्चा होती रहती है। सतत् आंकलन का विचार परीक्षा सुधार में दो सिद्धान्तों पर आधारित है। प्रथम, सतत्, आंकलन उसी व्यक्ति के द्वारा किया जाए जो अध्यापन करता है। द्वितीय, आंकलन का कार्य सत्र के अन्त में परीक्षा प्राप्तांकों के आधार पर न होकर शैक्षिक सत्र की अवधि में अध्यापन कार्य कर रहे या शिक्षक द्वारा समय-समय पर निरन्तर होता रहे। सतत् आंकलन में अध्यापक द्वारा थोड़े-थोड़े अन्तराल में निरन्तर आंकलन के कारण छात्रों की प्रगति का आंकलन अध्यापकों को ज्ञात रहता है तथा छात्रों को अपनी कमियों का ज्ञान होता रहता है। सतत् आंकलन द्वारा छात्र के समस्त गुणों की सीमा जो न केवल शैक्षिक क्षेत्र से सम्बन्धित हो, वरन् शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं सौन्दर्यात्मक वृत्तियों की जानकारी श्री प्राप्त हो जाती है।
सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली (Semester Examination System)
वार्षिक परीक्षाओं के मध्य काफी समयान्तराल और अध्यापन के पश्चात् शैक्षिक उपलब्धि की त्रुटियों को दूर करने के उद्देश्य से सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली को लागू किया गया। विद्यार्थी परीक्षा की तैयारी सामान्यतः परीक्षा के निकट आने पर ही करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे समयाभाव के कारण केवल चयनित पाठ्यक्रम की ही तैयारी करते हैं। इस प्रकार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ‘ज्ञान प्रदान करना’ कहीं लुप्त हो जाता है और विद्यार्थियों का उद्देश्य किसी प्रकार परीक्षा उत्तीर्ण करना रह जाता है। अतः, विद्या अर्जन हेतु अधिक-से-अधिक समय दिया जा सके और इस प्रकार शिक्षण अधिगम का वास्तविक लाभ उठाया जा सके, इस हेतु सेमेस्टर प्रणाली को लागू किया गया।
सेमेस्टर प्रणाली में पाठ्यक्रम को निश्चित इकाइयों में विभाजित कर उसका गहन अध्यापन कराया जाता है। सेमेस्टर प्रणाली में दो वर्षों में पूरा किए जाने वाला पाठ्यक्रम छः छः महीने के चार भागों में विभाजित कर दिया जाता है। छः माह के सेमेस्टर में, सेमेस्टर की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों और अधिगम की जाँच की जाती है जो प्रायः आन्तरिक परीक्षा द्वारा या बाह्य और आन्तरिक परीक्षा के मिलाप से किया जाता है। इस प्रकार चारों सेमेस्टर के योग के आधार पर छात्र को उपाधि प्रदान की जाती है।
सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली में एक सेमेस्टर में सीमित पाठ्यक्रम होने के कारण छात्र पाठ्यक्रम को गहराई से पढ़ और समझ कर वास्तव में उस भाग का ज्ञान प्राप्त कर पाता है। इसके अतिरिक्त सेमेस्टर प्रणाली में छुट्टियाँ भी कम होती हैं, अत: पठन-पाठन के लिए अधिक समय भी उपलब्ध हो जाता है। हर सेमेस्टर के अन्त में परीक्षा अनिवार्य होती है, अतः, छात्र अधिकांश समय अध्ययन में व्यस्त रहता है। इन्हीं कारणों से अधिकांश विश्वविद्यालयों में सेमेस्टर प्रणाली लागू कर दी गई है।
सेमेस्टर प्रणाली में अध्यापकों को भी निरन्तर सजग और कार्य में व्यस्त रहना पड़ता है। इस प्रकार वार्षिक परीक्षा प्रणाली में जहाँ अधिकांश शिक्षक शिथिलता से कार्य करते थे और प्राइवेट अध्यापन या अन्य क्रिया-कलापों में व्यस्त रहते थे, वह प्रवृत्ति परिवर्तित हो जाती है।
ऑन लाइन परीक्षा (On Line Exam)
आज तकनीकी विकास की जो गति है उसी का परिणाम है कि जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, फिर भला शिक्षा का क्षेत्र इससे कैसे अछूता रह सकता है। परीक्षा कार्य को गति प्रदान करने के लिए और मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक हो गया है।
शैक्षिक विकास की जाँच करने में कम्प्यूटर के दो प्रमुख कार्य हैं-
1. कम्प्यूटर से परीक्षण पदों एवं अभ्यास के प्रश्नों के निर्माण में सहायता प्राप्त होती है।
2. परीक्षा की सामग्री, फलांकन एवं परीक्षण पदों एवं पद-विश्लेषण की प्रक्रिया में कम्प्यूटर बहुत अधिक लाभकारी और मितव्ययी सिद्ध हुआ है।
कम्प्यूटर एक ओर जहाँ पदों और प्रश्नों के निर्माण, परिमार्जन एवं संग्रहण में सहायता पहुँचाता है, वहीं दूसरी ओर वह परीक्षा की अपार वस्तु-सामग्री, प्राप्तांकों, पदविश्लेषण एवं सांख्यिकी गणना में सहायक होकर परीक्षा कार्य को त्वरित कर उसमें विश्वसनीयता, शुद्धता, वैधता और वस्तुनिष्ठता प्रदान करता है।
नटराजन (1982) ने परीक्षा में कम्प्यूटर के अग्रांकित प्रयोग स्पष्ट किए हैं-
1. परीक्षा से सम्बन्धित शोध कार्यों में।
2. परीक्षा के प्रश्नों एवं पदों के संकलन एवं प्रत्याह्वान में।
3. न्यायदर्श रहित पद-विश्लेषण में।
4. प्रश्नों व पदों को सृजित करने में।
5. कम्प्यूटर की सहायता से आयोजित परीक्षण में।
6. कम्प्यूटर की सहायता से अध्यापन।
खुली पुस्तक परीक्षा (Open Book Examination)
शैक्षिक उपलब्धि के मापन और आंकलन को एक ऐसे रोग ने ग्रस्त कर लिया है जिसका निदान बतलाने में शिक्षाविद् गम्भीरता से विचार करते हैं। यह रोग है नकल। आज इस रोग ने भयावह रूप धारण कर लिया है। नकल को रोकने के लिए परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए अनेक विकल्प सुझाये गए हैं। उनमें से एक विकल्प खुली पुस्तक प्रणाली का है।
खुली पुस्तक परीक्षा से तात्पर्य छात्रों को परीक्षा के समय अपने साथ रखने और उसे देखने की अनुमति देता है । अर्थात् परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर देते समय परीक्षार्थियों को पुस्तक से सहायता लेने की सुविधा प्रदान करना है। पर इस प्रणाली में यह सावधानी रखनी होगी कि परीक्षा भवन में विद्यार्थी केवल पाठ्यपुस्तक या सन्दर्भ ग्रन्थ ही ले जा सके। उन्हें प्रश्न उत्तर, गैस पेपर या अपने स्वयं के तैयार किए गए नोट्स ले जाने की आज्ञा न हो। खुली पुस्तक परीक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि में तर्क यह है कि छात्र बिना पुस्तक को पढ़े परीक्षा भवन में प्रश्नों के उत्तर पुस्तक से ढूँढ़ नहीं सकेगा। दूसरी ओर परीक्षकों को प्रश्न निर्माण में भी सावधानी बरतनी होगी। इसमें पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति प्रचलित परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों से भिन्न होगी । खुली पुस्तक परीक्षा के पूछे जाने वाले प्रश्न, विश्लेषण, कौशल, संश्लेषण आदि पर आधारित होने चाहिए न कि वर्णात्मक जैसे कि वर्तमान में पूछे जाते है। प्रश्न- पत्र निर्माताओं को ऐसे प्रश्न निर्मित करने होंगे जिसके उत्तर पुस्तक में सीधे-सीधे न मिल सकें। इस प्रकार की परीक्षा प्रणाली से छात्रों में रटने की प्रकृति कम होगी तथा वे पाठ्य सामग्री को समझ कर पढ़ेंगे और विषय-वस्तु का कौशलतापूर्वक व्यावहारिक जीवन में प्रयोग करेंगे साथ ही नकल की प्रवृत्ति समाप्त हो जाएगी।
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