ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव (Effect of sound pollution)
ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य एवं मस्तिष्क दोनों पर पड़ता है। उच्च ध्वनि से हृदयगति समग्र रूप में ध्वनि प्रदूषण मानव को निम्नलिखित रूपों में प्रभावित करता है-
1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव- ध्वनि प्रदूषण मानव स्वास्थ्य पर अग्रलिखित रूप से प्रभाव डालता है-
(1) मानसिक तनाव- तीव्र एवं असामान्य ध्वनि से मनुष्य तनावग्रस्त, उग्र एवं हिंसक प्रवृत्ति का हो सकता है। इस तनाव को दूर करने के लिये वह मद्यपान या अन्य नशे का शिकार हो जाता है। वह अनिद्रा रोगी बन जाता है जिसे दूर करने के लिये उसे औषधि का सेवन करना पड़ता है।
(2) तन्त्रिका तन्त्र पर प्रभाव- अधिक शोर मनुष्य के तन्त्रिका तन्त्र पर प्रभाव डालता है जिससे उसकी ऐच्छिक एवं अनैच्छिक शारीरिक क्रियाएँ प्रभावित होती हैं। नाड़ी तन्त्र पर घतक प्रभाव पड़ने के कारण मनुष्य की स्मरण शक्ति घटती है। ध्वनि प्रदूषण से पेप्टिक अल्सर दमा एवं चिड़चिड़ेपन के रोग होने की आशंका रहती है।
(3) हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप- ध्वनि पदूषण के कारण हृदय की सामान्य क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता तथा मनुष्य उच्च रक्तचाप का रोगी हो जाता है। इससे मनुष्य शारीरिक थकान का अनुभव करता है तथा उसे प्यास भी अधिक लगती है। 90-100 dB की ध्वनि से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है तथा ऐड्रीनेलीन हार्मोन अधिक बनने लगता है जिसके फलस्वरूप रुधिर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और हृदय रोग की आशंकाएँ अधिक हो जाती हैं।
(4) अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर प्रभाव- ध्वनि प्रदूषण के कारण अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की सामान्य क्रिया प्रभावित होती है। फलस्वरूप शरीर में विभिन्न हार्मोन्स अनियिमित रूप से स्रावित होने लगते हैं। इस प्रकार मनुष्य चिड़चिड़ा होकर अनेक रोगों से ग्रसित हो सकता है।
(5) गर्भवती महिलाओं पर प्रभाव- यह सिद्ध किया जा चुका है कि 120 डेसीबल की उच्च ध्वनि गर्भवती महिलाओं एवं गर्भस्थ शिशुओं के लिये हानिकारक होती है। गर्भवती महिलाएँ तनावग्रस्त रहती हैं जिससे उन्हें प्रसव के समय अधिक पीड़ा सहन करनी पड़ती है।
2. आर्थिक प्रभाव- ध्वनि प्रदूषण के कारण अनेक संस्थानों के उत्पादन में कमी आ जाती है। शोरयुक्त राजमार्गों के निकटवर्ती भागों में आवासीय सम्पदा का मूल्य 20 से 30% कम हो जाता है। जेट विमान वायुपत्तनों के निकट लोग निवास करना पसन्द नहीं करते इसलिये वहाँ भूमि का मुल्य कम हो जाता है।
3. मनोवैज्ञानिक प्रभाव- उच्च ध्वनि के कारण अनेक व्यक्तियों को मानसिक कार्य करने में बाधा उत्पन्न होती है। वे एकाग्रचित्त होकर कार्य नहीं कर सकते। उनकी कार्य क्षमता पर कुप्रभाव पड़ता है । गम्भीर विषयों पर मनन करने में बाधा उत्पन्न होती है। विद्यार्थी गम्भीरता पूर्वक अपना अध्ययन नहीं कर पाते। आध्यात्मिक व्यक्तियों की उपासना, साधना, ध्यान मग्नता भंग होती है। अवांछित शोर का दुष्प्रभाव बच्चों, नवयुवकों, महिलाओं एवं वृद्धों पर होता है ध्वनि प्रदूषण से अशान्त मनोवैज्ञानिक वातावरण की उत्पत्ति होती है।
4. प्राणघातक दुर्घटनाएँ- रेल इन्जनों एवं परिवहन के विभिन्न साधनों के ध्वनि प्रदूषण के कारण वाहनों के हॉर्न कम सुनायी देते हैं, परिणामस्वरूप अनेक दुर्घटनाएँ घट जाती हैं। बहुधा व्यक्ति अपंग हो जाते हैं या काल कवलित हो जाते हैं।
5. श्रवण शक्ति में हास- ध्वनि प्रदूषण के कारण श्रवण शक्ति क्षीण हो जाती है, कान बहरे हो जाते हैं, केवल ऊँची आवाजें ही सुनायी देती हैं। बहरे व्यक्तियों से गोपनीय बातें धीमी आवाज में नहीं की जा सकती।
6. निद्रा में व्यवधान- परिवहन के साधनों, कल-कारखानों की मशीनों तथा मनोरंजन के विभिन्न साधनों की तीव्र एवं कर्कश ध्वनि निद्रा में व्यवधान डालती है जिससे उसे रात भरजागना पड़ सकता है। परिणामस्वरूप रक्तचाप, तीव्र हृदय धड़कन, सुस्ती, पागलपन जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
7. वाणी बाधा- उच्च ध्वनि के कारण कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की बात को या तो बहुत कम सुन पाता है अथवा बिल्कुल ही नहीं सुन पाता। इस प्रकार वक्ता के कहने का आशय समझ में नहीं आता। अत: वक्ता को तेज आवाज में बोलना पड़ता है जिसे उसका गला खराब हो सकता है।
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