परीक्षण के मानक पर प्रकाश डालें। (Throw light on the norms of a test)
शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक गुणों का मापन अप्रत्यक्ष विधियों से किया जाता है, इनकी कोई मापन इकाई नहीं होती इसलिए इनका वास्तविक अर्थापन नहीं किया जा सकता और इनकी तुलना भी नहीं की जा सकती। उदाहरणार्थ व्यक्ति के भार को लीजिए। इसकी इकाई किग्रा होती है यदि राम का भार 60 किग्रा और श्याम का 30 किग्रा हो तो हम कह सकते हैं कि राम का भार श्याम के भार से दो गुना है। परन्तु इस प्रकार का कथन हम शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों के लिए नहीं कर सकते। यदि किसी उपलब्धि परीक्षण में राम को 60 और श्याम को 30 अंक प्राप्त होते हैं तो हम यह नहीं कह सकते कि राम को यथा विषय में योग्यता श्याम की योग्यता से दो गुनी है; यह दो गुनी से अधिक भी हो सकती है और कम भी। इसी प्रकार यदि राम की बुद्धि लब्धि 120 और श्याम की 80 आती है तो हम यह नहीं कह सकते कि उनकी बुद्धि में 3:2 का अनुपात है, यह इससे कम अथवा अधिक हो सकता है।
शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों की इकाई न होने के कारण शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापें अर्थहीन होती हैं। इनको अर्थयुक्त बनाने के लिए कुछ सन्दर्भ बिन्दुओं की खोज की गई है, ऐसे सन्दर्भ बिन्दुओं को ही मानक कहते हैं। इन मानकों की सहायता से ही छात्रों की किसी परीक्षण पर वास्तविक उपलब्धि की व्याख्या की जा सकती है।
प्रायः किसी परीक्षण के मानक का निर्धारण उस परीक्षण पर प्राप्त प्राप्तांकों से ही किया जाता है। ये प्राप्तांकों के संक्षिप्त रूप होते हैं या इन्हें कुछ परिवर्तित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
ईबेल ने मानक को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है-
किसी परीक्षण के मानक बताते हैं कि किसी विशेष सन्दर्भ समूह के सदस्य परीक्षण पर किस प्रकार से अंक प्राप्त करते हैं।
रेमर्स, गेज तथा रूमेल ने मानक को निम्नांकित रूप में परिभाषित किया है-
मानक छात्रों के किसी परिभाषित समूह के द्वारा परीक्षण पर प्राप्त निष्पादन स्तर है।
मानक वास्तव में व्यक्ति (छात्र) अथवा व्यक्तियों (छात्रों) के समूह की वास्तविक उपलब्धि को व्यक्त करते हैं। ये पूर्व निर्धारित न होकर वर्तमान स्थिति के सापेक्ष परिवर्तित रूप होते हैं। यदि इन गुणों का समावेश मानक के अर्थ के सन्दर्भ में न किया जाए तो मानक की परिभाषा अपूर्ण होगी। अतः मानक की परिभाषा निम्नलिखित रूप में की जानी चाहिए-
मानक किसी परीक्षण पर प्राप्त प्राप्तांकों के वे परिवर्तित आधार बिन्दु हैं जिनके आधार पर प्राप्तांकों की व्याख्या की जाती है, उनकी सापेक्ष स्थिति स्पष्ट की जाती है।
मानकों के प्रकार
शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक मापों की व्याख्या करने के लिए अनेक प्रकार के मानकों का विकास किया गया है। इनमें कुछ मानक निम्नलिखित हैं—
1. आयु मानक (Age Norms) – आयु मानक का अर्थ विभिन्न आयु वर्ग के लिए किसी परीक्षण के सापेक्ष मानक से है। प्रत्येक आयु वर्ग के छात्रों द्वारा प्राप्त प्राप्तांकों का औसत प्राप्तांक ही उस वर्ग का आयु मानक कहलाता है। आयु मानक ज्ञात करने के लिए परीक्षण को प्रत्येक आयु वर्ग के निदेशों पर प्रशासित किया जाता है तथा उनके लिए औसत प्राप्तांक की गणना की जाती है यह औसत प्राप्तांक ही उस आयु वर्ग के लिए मानक से होता है।
2. कक्षा मानक (Grade Norms) – आयु मानक की तरह ही कक्षा मानक की गणना करने के लिए विभिन्न कक्षाएँ ली जाती है। प्रत्येक कक्षा के छात्रों के प्राप्तांकों का औसत मान ही उस कक्षा के लिए कक्षा मानक कहलाता है।
3. शतांश मानक (Percentile Norms)- परीक्षण पर छात्रों द्वारा प्राप्त प्राप्तांकों के शतांशों को शतांश मानक कहते हैं। कोई शतांश वह प्राप्तांक है जिसके नीचे एक दिए गए प्रतिशत के बराबर छात्र अंक प्राप्त करते हैं।
4. मानकीकृत प्राप्तांक मानक (Standardized Score Norms)- किसी परीक्षण पर प्राप्त मूल प्राप्तांकों को मध्यमान तथा मानक विचलन की सहायता से मानकीकृत प्राप्तांकों में परिवर्तित कर लिया जाता है। इन्हें मानकीकृत प्राप्तांक मानक कहते हैं। मुख्य मानकीकृत प्राप्तांक मानक हैं- जेड प्राप्तांक, टी-प्राप्तांक और सी-प्राप्तांक।
अच्छे मानकों की विशेषताएँ
मानकों की सहायता से किसी परीक्षण पर प्राप्त प्राप्तांकों की व्याख्या की जाती है। मानक जितने अच्छे होंगे, प्राप्तांकों की व्याख्या भी उतनी ही सटीक होगी। किसी परीक्षण के अच्छे मानक होने के लिए उनमें निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए।
1. नवीनता (Recency)– परीक्षण के मानक समय-समय पर संशोधित होते रहने चाहिए। समयान्तराल से छात्रों की रुचियों, मनोवृत्तियों एवं योग्यताओं आदि में परिवर्तन होते रहते हैं । अतः वर्षों पूर्व बने मानकों द्वारा प्राप्तांकों की सही व्याख्या नहीं की जा सकती । मानक समयानुसार संशोधित होते रहने चाहिए। इसे ही मानकों की नवीनता कहते हैं।
2. प्रतिनिधित्वता (Representativeness) – मानकों को तैयार करने के लिए जो निदर्श लिया जाता है वह बड़ा होना चाहिए। निदर्श चयन में वे सभी प्रक्रियाएँ अपनानी चाहिए जो एक अच्छे निदर्श के चयन में आवश्यक होते हैं। निदर्श समष्टि के सच्चे प्रतिनिधि होने चाहिए तब उनसे प्राप्त प्राप्तांकों से निर्मित मानक अच्छे मानक होंगे।
3. सार्थकता (Relevancy)- मानकों की सार्थकता मानकों के प्रकार से सम्बन्धित होती है। परीक्षण के उद्देश्यों के आधार पर मानकों के प्रकार निश्चित किए जाने चाहिए। जिन प्राप्तांकों के लिए जहाँ आयु मानक और कक्षा मानक सार्थक हैं वहाँ आवश्यक नहीं कि शतांश मानक भी सार्थक हों। उद्देश्यों के अनुरूप मानकों का चयन करने से मानक सार्थक बनते हैं ।
4. तुलनीयता (Comparability) – समान योग्यता को मापने के लिए यदि दो या दो से अधिक परीक्षण हैं तो उन परीक्षणों के मानक परस्पर तुलनीय होने चाहिए। ऐसा न हो कि एक परीक्षण के मानक के आधार पर किसी योग्यता के लिए छात्र को श्रेष्ठ बताया जाए और उसी योग्यता के लिए दूसरे परीक्षण के मानक उसे औसत छात्र घोषित करें। अतः मानकों को तैयार करते समय तुलनीयता का ध्यान रखना आवश्यक है।
प्रोफाइल—कुछ परीक्षण ऐसे होते हैं जिनमें गुणों या योग्यताओं के आधार पर कई उपपरीक्षण होते हैं; जैसे—परीक्षण बैटरी एवं व्यक्तित्व परीक्षण। इन परीक्षणों पर प्राप्त किसी छात्र के प्राप्तांकों को रेखाचित्र द्वारा भी प्रस्तुत किया जाता है। इसे प्रोफाइल कहते हैं। इस प्रोफाइल में किसी छात्र के द्वारा परीक्षण के विभिन्न उपपरीक्षणों पर अर्जित अंकों की सापेक्षिक मात्राओं का प्रदर्शन होता है। यह रेखाचित्र या प्रोफाइल छात्र की श्रेष्ठताओं व कमजोरियों को सार्थक ढंग से प्रस्तुत करती है परीक्षण के उपपरीक्षणों पर प्राप्त अंकों का प्रोफाइल में प्रदर्शन तभी सम्भव हो सकता है जब उन पर प्राप्तांक एक ही मानक स्केल पर हों । उपपरीक्षणों से प्राप्त प्राप्तांकों को एक ही मानक स्केल पर लाने के लिए प्रायः उन्हें शतांशों, दशांशों, टी-प्राप्तांकों, नव मानक आदि में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस प्रकार के प्रोफाइल या रेखाचित्र छात्र के सम्बन्ध में सार्थक जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
अच्छे मानक का चयन
विभिन्न प्रकार के परीक्षण परिणामों की व्याख्या के लिए विभिन्न प्रकार के मानकों का प्रयोग किया जाता है। इनका चयन करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए—
(1) मानक ऐसा होना चाहिए जो छात्रों के गुणों अथवा योग्यताओं की सही व्याख्या कर सके।
(2) मानक ऐसा होना चाहिए जिसके आधार पर की गई व्याख्या से किसी छात्र की प्रगति के सम्बन्ध में सही निर्णय लिया जा सके।
(3) मानक चयन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके आधार पर छात्रों के विषय में सही भविष्यवाणी की जा सके।
(4) मानक ऐसा होना चाहिए कि उसके आधार पर की गई व्याख्या से छात्रों को सही निर्देश दिया जा सके।
इसे भी पढ़े…
- पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया
- पाठ्यचर्या निर्माण के लिए शिक्षा के उद्देश्य
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त
- पाठ्यक्रम निर्माण के सामाजिक सिद्धान्त
- पाठ्यक्रम के प्रमुख निर्धारक
- पाठ्यक्रम विकास के मुख्य प्रसंग
- मानसिक मंदता से सम्बद्ध समस्याएँ
- विकलांगजन अधिनियम 1995
- सक्षम निःशक्तजनों का राष्ट्रीय संगठन
- मानसिक मंदित बालकों की पहचान
- शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान
- श्रवण अक्षमता क्या है? इसकी व्यापकता
- श्रवण अक्षमता के कारण