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विश्वास क्या है? | अभिवृत्ति एवं विश्वास में अन्तर | विश्वास का महत्त्व

विश्वास क्या है
विश्वास क्या है

विश्वास क्या है? (What is belief?) 

क्रेच और क्रेचफील्ड के अनुसार, “विश्वास एक व्यक्ति के संसार के किसी भी पहलू के सम्बन्ध में प्रत्यक्षीकरण और चुनाव का एक स्थायी संगठन है। क्रेच और क्रेचफील्ड ने आगे लिखा है कि विश्वास एक वस्तु के अर्थों का नमूना है। यह एक वस्तु के बारे में एक व्यक्ति के ज्ञानात्मक विषयों की सम्पूर्णता है।”

साधारणतः व्यक्ति वातावरण में अनेक वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण करता है। फलस्वरूप प्रत्यक्षीकरण के कुछ स्थायी संगठनों का निर्माण होता है। यह संगठन अधिक स्पष्ट भी होते हैं । यही एक व्यक्ति का विश्वास है। अभिवृत्ति एवं विश्वास दोनों ही मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ हैं।

अभिवृत्ति एवं विश्वास में अन्तर

दोनों में निम्नलिखित अन्तर है-

(1) प्रत्येक अभिवृत्ति में विश्वास होता है परन्तु विश्वास में अभिवृत्ति नहीं होती है।

(2) अभिवृत्ति में विशेष परिस्थितियों में क्रिया आवश्यक होती है परन्तु विश्वास में क्रिया होना आवश्यक नहीं है।

(3) साधारणतः अभिवृत्ति का परिवर्तन सरल है परन्तु विश्वास में परिवर्तन इसलिए कठिन है कि विश्वास मनोवृत्ति की अपेक्षा देर से बनते हैं।

(4) अभिवृत्ति बहुधा अनुकूल या प्रतिकूल होती है परन्तु विश्वास में इन दोनों का अभाव पाया जाता है।

(5) व्यक्तियों के व्यवहार को अभिवृत्ति सक्रिय रूप से प्रभावित करती है क्योंकि इसमें प्रेरणात्मकता और संवेगात्मकता के तत्त्व पाए जाते हैं, दूसरी ओर विश्वास में इन तत्वों का अभाव होता है।

(6) अभिवृत्ति में अन्धविश्वास की सम्भावना कम होती है परन्तु विश्वास में अन्धविश्वास के पाए जाने की सम्भावना अधिक होती है।

विश्वास का महत्त्व (Importance of Belief)

विश्वासों का महत्त्व निम्न प्रकार है-

(1) व्यक्ति को विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में किस प्रकार का व्यवहार करना है, सोचना नहीं पड़ता है और विभिन्न सामाजिक परिस्थितियाँ भी व्यक्ति को नयी नहीं लगती हैं।

(2) एक समाज के सभी व्यक्तियों को एक जैसे विश्वास हस्तांतरित होती हैं। समाज के सामाजिक जीवन की दृष्टि से विश्वास ही एकरूपता उत्पन्न करते हैं।

(3) चूँकि परम्पराओं द्वारा कुछ निश्चित व्यवहार प्रतिमान ही प्रस्तुत किए जाते हैं, अतः व्यक्ति इन्हीं निश्चित प्रतिमानों के अनुसार ही व्यवहार करते हैं। सामाजिक अपमान, निन्दा या आलोचना के भय से व्यक्ति इनका विरोध मुश्किल से करता है क्योंकि परम्पराएँ किसी एक व्यक्ति की न होकर सामाजिक देन होती हैं। इनमें एक सामाजिक शक्ति होती है जो व्यक्ति को इनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार कहा जा सकता है। कि परम्पराएँ व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को निश्चित तो नहीं परन्तु नियन्त्रित अवश्य कर सकती हैं।

(4) परम्पराओं को अपना कर व्यक्ति सुख और सुरक्षा का अनुभव करता है क्योंकि वह सोचता और अनुभव करता है कि परम्पराएँ हमारे पूर्वजों की हैं और हमारे पूर्वजों ने जिन बातों और आदतों आदि को उपयुक्त समझा है उन्हीं को हमारी पीढ़ी में हस्तांतरित किया है। दूसरे, व्यक्ति को पहले से ही मालूम होता है कि उसे किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करना है।

(5) जो व्यक्ति परम्पराओं को मानता और विश्वास करता है उसके लिए सामाजिक परिस्थितियों में व्यवहार करना अपेक्षाकृत अधिक सरल होता है। परम्पराओं के ही द्वारा तो व्यक्ति को इसका ज्ञान होता है कि जीवन की समस्याओं का सामना साहस आत्मविश्वास और धैर्य के साथ करना चाहिए।

(6) जब एक समाज की अपनी कोई परम्पराएँ नहीं होती है तो उसे दूसरे समाज की परम्पराओं के आधार पर व्यवहार करना पड़ता है। यह परम्पराएँ राष्ट्रीय भावना के विकास में भी सहायक हैं समाज के सदस्य के रूप में आत्मसम्मान, स्वाभिमान और देश-गौरव आदि भावनाएँ हम परम्पराओं के द्वारा ही सीखते हैं।

(7) परम्पराएँ अथवा विश्वास एक समाज के व्यक्तियों को सीखने में सहायता करती हैं। विशेष रूप से सामाजिक व्यवहार को सीखने में परम्पराओं का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मेकाइवर और पेज के अनुसार, ‘ “समाज से मान्यता प्राप्त करने की विधियाँ ही समाज की प्रथाएँ या विश्वास हैं।”

रॉस (1925) के अनुसार, “प्रथा से अभिप्राय व्यवहार करने के ढंगों के हस्तान्तरण से है और परम्परा से अभिप्राय विचार और विश्वास के ढंगों के हस्तान्तरण से है।”

उपरोक्त दोनों परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि “प्रथा का अर्थ है समाज से मान्यता प्राप्त कार्य व्यवहार करने की विधियाँ जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती है।” प्रथाओं के अनेक उदाहरण हैं, जैसे-विवाह प्रथा, अंग्रेजों में विवाह विच्छेद की प्रथा बड़े-बड़े व्यक्तियों की देखभाल की प्रथा आदि। प्रथाओं की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

प्रथाएँ किन्हीं सामाजिक परिस्थितियों में व्यवहार करने के तरीके हैं। इनका निर्माण जान-बूझकर नहीं किया जाता है अपितु इनका निर्माण सामाजिक अन्तःक्रियाओं के फलस्वरूप होता है।

  • प्रथाएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती हैं और लोग इनको इसलिए अपनाते हैं कि अनेक पीढ़ियों से उनका पालन होता चला आ रहा है।
  • प्रथाएँ रूढ़िवादी होती हैं और उनमें परिवर्तन मन्द गति से होता है। प्रथाएँ मानव व्यवहार को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। मानव व्यवहार के नियन्त्रण में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • प्रथा और आदत में अन्तर है।

जिन्सबर्ग के अनुसार, प्रथा एक सामाजिक मानदण्ड है और इसमें बाध्यता होती है तथा इसका प्रयोग समाज के अधिकांश सदस्य करते हैं। दूसरी ओर, आदत व्यक्तिगत होती है अर्थात् आवश्यक नहीं है कि एक व्यक्ति की आदतें समूह के सभी व्यक्तियों में सामान्य हों।

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