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सूचना से आप क्या समझते हैं? कक्षा-कक्ष सम्प्रेषण

सूचना से आप क्या समझते हैं?
सूचना से आप क्या समझते हैं?

सूचना से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Information?)

दूसरों तक अपनी बात पहुँचाने की आवश्यकता तो सदियों से थी परन्तु इसके लिए साधन सीमित थे। संदेश पहुँचाने की गति घोड़े की गति से तीव्र बनाने का कोई उपाय न था। घोड़ा चूँकि एक जंतु है अतः लंबी यात्रा में उसके विश्राम का भी ध्यान रखना पड़ता था। आम लोगों को तो वह घोड़ा भी उपलब्ध न था अतः वे पैदल चलकर ही संदेश भेजने के लिए मजबूर थे। परन्तु आज का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। हजारों मील की दूरी तक संदेश पहुँचाने के लिए बस कुछ सेकेंडों की जरूरत होती है।

सूचना युग का महत्त्व कई कारणों से है। साधारणतः जब हम सूचना या संदेश पहुँचाने *की बात करते हैं तो मुख्यतया हमें पारिवारिक या व्यक्तिगत तौर पर किसी से सम्पर्क करने की बात समझ में आती है। लेकिन हकीकत में सूचना का अर्थ इतना व्यापक है कि शिक्षा, व्यापार, मनोरंजन, उद्योग-धंधा, उत्पादों का वितरण, स्वास्थ्य आदि सभी क्षेत्र इसमें समाहित हो जाते हैं। व्यवसायी अपने उत्पादों के प्रचार के लिए जिन साधनों का उपयोग करते हैं, वे वस्तुतः सूचना तकनीक के ही हिस्से होते हैं। शासन तंत्र जनता तक संदेश पहुँचाने के लिए अब परंपरागत साधनों के साथ-साथ हाई-टैक का भी प्रयोग करने लगता है। चुनाव प्रचार में इंटरनेट और मोबाइल पर एस. एम. एस. का महत्त्व बढ़ रहा है तो पर्चियों को बाँटने का काम अब हेलीकॉप्टर से हो रहा है; अतः यहाँ हेलीकॉप्टर भी सूचना तकनीक का एक अंग है। सूचना प्रौद्योगिकी में विभिन्न इलेक्ट्रानिक उपकरणों के अनुप्रयोग बढ़ रहे हैं तथा संचार उपग्रह, टेलीविजन, रेडियो, अखबार, टेलीफोन, सचल फोन, कम्प्यूटर आदि साधनों का बखूबी प्रयोग हो रहा है।

अमेरिका का बिल गेट्स कम्पनी माइक्रोसाफ्ट के माध्यम से सूचना तकनीक में पूरी दुनिया पर छाया हुआ है। कई राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इस उद्योग में करोड़ों-अरबों का कारोबार कर रही हैं। भारत अपने मानव संसाधनों को सूचना तकनीक पर आधारित उद्योगों में खपाने में विशेषता प्राप्त कर चुका है जिसके लाभ भी सामने आ रहे हैं। एक ओर तो बेरोजगारी कम हुई है तो दूसरी ओर देश के भुगतान संतुलन की स्थिति में भी सुधार हुआ है। इस क्षेत्र में भारतीय दक्षता का लोहा दुनिया के शक्तिशाली देश भी मानने के लिए विवश है। साफ्टवेयरों के निर्माण में भले ही माइक्रोसाफ्ट अग्रणी हो लेकिन दिमाग भारतीयों का ही मुख्य रूप से लगता है। यही कारण है कि भारतीय दक्ष व्यक्तियों की माँग अब पूरी दुनिया में होने लगी है।

पूरी दुनिया में पिछले सौ वर्षों में जिस गति से उद्योगों का विकास हुआ है और व्यापारिक प्रतिस्पर्धाएँ बढ़ी हैं उसमें सूचना तंत्र का बहुत बड़ा हाथ है। यदि सूचनाएँ न मिल सकें, यदि विभिन्न स्थानों के आँकड़े शीघ्रता से न प्राप्त किए जा सकें तो बड़े पैमाने पर कारोबार संभव न हो। शेयर बाजारों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाए। चाहे व्यापारिक उत्पादन हो अथवा कोई फिल्म; उसकी रिकार्ड सफलता में प्रचार का बड़ा हाथ होता है। अखबारों में विज्ञापन, टी.वी. पर विज्ञापन, रेडियो पर विज्ञापन, पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन, इंटरनेट पर ‘विज्ञापन तथा दीवारों आदि पर लिखित विज्ञापन – इन सबसे बचकर कहाँ जाएँगे आप? अतः कहना गलत नहीं होगा कि सूचना उद्योग न केवल अपनी सेहत का ध्यान रखता है बल्कि यह औरों का भी तारणहार बन गया है। संसार भर की गतिविधियाँ किसी न किसी रूप से सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी हुई हैं।

सूचनाओं की कोई सीमा नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों का अपना-अपना इतिहास है. अपनी-अपनी उपलब्धियाँ हैं। वे सूचनाएँ जो सौ पुस्तकों में नहीं दर्ज की जा सकती हैं उन्हें इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है। दुनिया के पर्यटन स्थल, रेलवे का इतिहास, विश्वविद्यालयों की सूची तथा इनके पाठ्यक्रम, विश्व के प्रमुख चिकित्सा केंद्र, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ, समसामयिक घटनाएँ, नौकरियों की रिक्तियाँ आदि से सम्बन्धित आँकड़ों के लिए क्या पुस्तकें उपयोगी हो सकती हैं और वह भी तब जबकि सभी तरह के आँकड़ों को एक साथ रखना हो, इन आँकड़ों तक शीघ्र पहुँचना हो तथा इनसे अपने मतलब की बात निकालनी हो।

जहाँ तक सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग की बात है, विकसित देशों की तुलना में भारत की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है। गरीबी और अशिक्षा की व्यापकता के बीच सूचनाएँ निष्प्रभावी हो जाती हैं। हालाँकि हमारे देश का उच्च वर्ग और विशाल मध्य वर्ग सूचना माध्यमों का उपयोग कर रहा है। परन्तु देश का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो सूचना युग से पूरी तरह कटा हुआ है। इस वर्ग के पास रोजमर्रा के साधनों का अभाव अतः सूचना माध्यमों से यह अछूता रह जाता है। ग्रामीण भारत में यह आम दृश्य है कि बिजली और टेलीफोन के तार घरों के निकट से गुजर जाते हैं पर इन घरों में न तो बिजली होती है और न ही टेलीफोन। अतः कहना असत्य नहीं होगा कि हमारे देश में उच्च सूचना तकनीक का लाभ केवल शहरी लोग ही उठा पाते हैं।

परंतु समय के साथ-साथ परिदृश्य में निरंतर बदलाव आ रहा है। खासकर जब से सूचना से जुड़ाव सस्ता हो गया है, लोग इसकी ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। यह आकर्षण बहुत बड़ा है क्योंकि गरीब और अशिक्षित जनता भी अब समझने लगी हैं कि इन साधनों में विराट संभावनाएँ छिपी हुई हैं। यही कारण है कि झोंपड़ियों में भी आज केवल टेलीविजन हैं और खानाबदोश घरों में टेलीफोन घनघना उठते हैं। वह दिन दूर नहीं जब भिखारियों को भी मोबाइल फोन की जरूरत महसूस होने लगे।

कक्षा-कक्ष सम्प्रेषण (Classroom Communication)

अनौपचारिक सम्प्रेषण किसी गुप्त संदेश की प्रदान करना है जिसके बारे में सामान्यतः अध्यापक को पता नहीं होता है। यह उद्देश्यरहित एवं योजनारहित होता है। इसमें विचारों, भावनाओं तथा अभिवृत्तियों का प्रवाह अनिश्चित रूप से अध्यापक से विद्यार्थियों की ओर, विद्यार्थी से विद्यार्थी की ओर, कक्षा के अंदर तथा कक्षा के बाहर भी होता है। यह अध्यापक की आलोचना के रूप में उसके शिक्षण, उसके व्यक्तित्व की प्रशंसा अथवा उसके कुछ व्यवहारों की निंदा के रूप में हो सकता है। विद्यार्थियों की यह सारी प्रतिक्रियाएँ जो उसके अंदर से तथा कक्षा के बाहर स्वतंत्रतापूर्वक निकलती हैं, एक प्रकार से अध्यापक के विद्यार्थियों के साथ अंतःक्रिया करने के फलस्वरूप बढ़ती हैं। इसके अंतर्गत विद्यार्थियों की सभी प्रकार की अभिवृत्तियाँ, संतुष्टियाँ, असंतुष्टियाँ जो कि अध्यापक के औपचारिक सम्प्रेषण तथा विद्यार्थियों के अनौपचारिक अंतर्क्रियाओं के बारे में उत्पन्न होती हैं, आती हैं। परन्तु यह भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि यह कक्षा के सामाजिक, भावनात्मक तथा शैक्षिक वातावरण को विशिष्ट एवं उल्लासमय बनाती हैं। अंतर्दृष्टि रखने वाला एक अध्यापक इस अनौपचारिक सम्प्रेषण पर हमेशा नजर रखता है और अंत:करण से पूरी ईमानदारी के साथ इसको प्रभावी शिक्षण के पक्ष में नियन्त्रित करने की कोशिश करता है। उसको अपने आँख और कान दोनों खुले रखने चाहिए जिससे वह अपने आपको, छात्रों की भावनाओं तथा अभिवृत्तियों, विद्यार्थियों के कक्षा कक्ष समूहों तथा उनके लक्ष्यों के साथ बराबरी से शामिल कर सके, जो जाल वह फैलाते हैं उसको सही करने का प्रयास कर सके। यदि कुछ गलत या अवांछनीय दिखता है तो उसको अपने सकारात्मक एवं सृजनात्मक सम्प्रेषण तरीकों से सही कर सके। एक अध्यापक अनौपचारिक रूप से विद्यार्थियों को जो कुछ भी सिखाता है, सम्प्रेषित करता है वह उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना औपचारिक सम्प्रेषण द्वारा सिखाया जाना।

अशाब्दिक सम्प्रेषण का तात्पर्य है बिना शब्दों का सम्प्रेषण। शिक्षण में इसका अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि यह शाब्दिक संदेश को या तो पुनर्बलित कर देता है या उसके महत्त्व को कम कर देता है। यह संदेश के समाप्त होने के बाद भी उसको लम्बे समय तक स्थायी रखता है। व्यक्ति की क्रियाएँ, उसके चेहरे की भाव भंगिमाएँ, मुद्रा स्थिति (विभिन्न मुद्राएँ) हाथ के हाव-भाव, चक्षु सम्पर्क जिनको शारीरिक भाषा के नाम से जाना जाता है, ये सब मिलकर अशाब्दिक सम्प्रेषण का निर्माण करते हैं। कक्षा-कक्ष सत्र के दौरान इस प्रकार के कई अशाब्दिक सम्प्रेषण होते हैं। छात्र को गलत काम करते हुए अध्यापक द्वारा चुपचाप विद्यार्थी को देखना, विद्यार्थी को तत्काल बता देता है कि वह पकड़ा गया है और उसका यह कार्य अस्वीकार्य है। अध्यापक चाहे इससे परिचित हों या ना हों परन्तु वास्तविकता यह है कि अध्यापक की प्रत्येक कक्षा में इस प्रकार के अशाब्दिक सम्प्रेषण बहुतायत से होते हैं।

कक्षा-कक्ष के अशाब्दिक सम्प्रेषण में सुधार लाना मुश्किल है, परन्तु सभी अध्यापकों का अंतर्मन से यह उद्देश्य होना चाहिए तथा उनको याद रखना चाहिए कि अशाब्दिक सम्प्रेषण एक व्यवहार है जो कि शब्दों के बिना, संदेश को पहुँचाता है। यह सांकेतिक, असांकेतिक, स्वैच्छिक तथा व्यवस्थित हो सकता है। यह अर्थपूर्ण, हस्तान्तरित, मनोभाव वाला अथवा शिक्षाप्रद हस्तान्तरित तथ्य वाला हो सकता है। यह उतना ही विशिष्ट हो सकता है जितना हाव-भाव अथवा उतना ही सामान्य हो सकता है जितना एक कमरे का वातावरण।

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