ज्ञान के प्रकार (Types of Knowledge)
ज्ञान सदा निर्णय के रूप में प्रदर्शित होता है जिसके अन्तर्गत किसी भी तथ्य को स्वीकृत किया जाता है या नकारा जाता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक निर्णय ज्ञान हो। विस्तृत दृष्टिकोण में ज्ञान दो प्रकार का होता है-
(1) सार्वभौमिक ज्ञान (A Priori Knowledge)
(2) प्रायोगिक (अनुभवजन्य) ज्ञान (Empirical or a Posteriori Knowledge)
1. सार्वभौमिक ज्ञान (A Priori Knowledge)
कुछ ऐसे निर्णय भी होते हैं जिन पर एक क्षण के लिए भी संदेह नहीं किया जा सकता। ये भौतिक शास्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों तथा गणित में पाए जाते हैं। ऐसे ज्ञान का अस्तित्व तत्व-मीमांसा में होता है। इसमें कोई भी निर्णय ऐसा नहीं होता, जिसमें मन कारक तथा प्रभाव के सम्बन्ध को न जाने । ज्ञान बनाने के लिए, एक संश्लेषणात्मक निर्णय अवश्य होना चाहिए तथा यह सार्वभौमिक भी होना चाहिए अर्थात् इसमें संदेह का कोई स्थान नहीं होता। सार्वभौमिकता तथा आवश्यकताओं का स्रोत इन्द्रियाँ न होकर कारण तथा इसकी सूझ-बूझ होता है। हम अनुभव के बिना यह जानते हैं कि एक त्रिभुज के तीनों कोणों का योग दो समकोणों के जोड़ के बराबर होना. चाहिए और यह सदा होगा भी। बिना अनुभव के हम यह जानते हैं कि यदि A, B से बड़ा है और B, C से बड़ा है तो A, C से भी बड़ा है। यह बात इसलिए सही है क्योंकि यह तर्क पर आधारित है। तर्कशास्त्र के निगमन के आधार पर जो तर्क दिया जाता है, वह तार्किक नियमों पर आधारित होने के कारण वैध होता है। बहुत से कहावतें तथा तथाकथित कथन, सत्य जिनका हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं वे सभी सार्वभौमिक ज्ञान के अंतर्गत आते हैं।
2. प्रायोगिक (अनुभवजन्य ) ज्ञान (Empirical or a Posteriori Knowledge)
प्रायोगिक ज्ञान अनुभवों से प्राप्त किया जाता है। यह हमें सूचना देता है, उदाहरण के रूप में— एक वस्तु में इस प्रकार के गुण होते हैं या वह इस प्रकार से व्यवहार करता है। अन्य शब्दों में ऐसे निर्णय सार्वभौमिकता पर आधारित नहीं होते। इनकी स्वीकार्यता तर्क पर आधारित नहीं होती जैसा कि यह किसी भी गणितीय सूत्र को स्वीकार करने के लिए बाध्य करता है हम यह नहीं कह सकते कि एक श्रेणी की कुछ वस्तुओं में कुछ विशेष गुण पाए जाते हैं इसलिए सभी में ये गुण पाए जाते हैं। ऐसा ज्ञान वैज्ञानिक नहीं होता। प्रायोगिक निर्णय हमारे ज्ञान में वृद्धि करते हैं परन्तु इस प्रकार प्राप्त किया गया ज्ञान अनिश्चित होता है। यह ज्ञान इन्द्रियगत और बाह्य जगत के अवलोकन, निरीक्षण तथा मनुष्य के स्वयं के अनुभव से प्राप्त होता है। इसीलिए कहा जाता है कि इन्द्रियाँ ज्ञान का द्वार होती हैं।
भारतीय दार्शनिकों की दृष्टि से ज्ञान के दो प्रकार हैं-
1. परा विद्या (Para Vidya)
2. अपरा विद्या (Apara Vidya)
1. परा विद्या (Para Vidya) – ऐसा ज्ञान जो हम अपनी इन्दियों से तथा तर्क से प्राप्त करते हैं, उसे परा विद्या कहा जाता है। यह बाह्य भौतिक संसार से संबंधित है। हमारा ज्ञान जगत के विचारों तथा अनगिनत मस्तिष्कों के अनुभवों का परिणाम है ।
2. अपरा विद्या (Apara Vidya)- अधिगम का अन्तिम पड़ाव परमात्मा को जानना है अर्थात्, प्रकृति में आध्यात्मिकता की झलक पाना । अपरा विद्या आध्यात्मिकता के बारे में ज्ञान से सम्बन्धित है। यह ज्ञान मानव प्रकृति का सर्वोच्च ज्ञान है। यह ज्ञान व्यक्ति के स्वयं को आत्मा से तथा परमात्मा से सम्बन्धित ज्ञान 1
ज्ञान के अन्य प्रकार (Other Types of Knowledge)
ज्ञान के कुछ अन्य प्रकार भी हैं, जो इस प्रकार है-
1. सहज बोध अथवा अन्तः प्रज्ञा (Intuitive Knowledge)- सम्पूर्ण ज्ञान विचारों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है तथा सबसे निश्चित ज्ञान हमारे विचारों की सहमति और असहमति से सम्बन्धित होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। हम यह देखते हैं कि सफेद काला नहीं है अर्थात् काले का विचार तथा सफेद का विचार एक-दूसरे से सहमत नहीं होते। यही अन्तः प्रज्ञा है। मस्तिष्क एकदम से यह अनुभव करता है कि सफेद काला नहीं है, वर्ग एक त्रिभुज नहीं है, तीन दो से बड़ा है। यह सबसे स्पष्ट तथा निश्चित ज्ञान होता है। इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती और न ही इसे सिद्ध किया जा सकता है। इसके लिए कोई विरोध नहीं करता, हम स्वयं इसके साक्षी होते हैं। प्रत्यक्ष अन्तः प्रज्ञा की निश्चितता इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे ज्ञान के साक्षी क्या हैं।
2. प्रदर्शित ज्ञान (Demonstrative Knowledge)- कभी-कभी हमारा मस्तिष्क यद्यपि दो विचारों में तुरन्त ही सहमति या असहमति प्रकट करने में असमर्थ होता है तो उस समय वह अप्रत्यक्ष रूप से उन विचारों में एक-दूसरे के साथ या अन्य के साथ तुलना करके इसमें सहमति या असहमति स्थापित कर सकता है। इस प्रकार अन्य विचारों हस्तक्षेप से प्राप्त किया गया ज्ञान तर्कपूर्ण या प्रदर्शित ज्ञान कहलाता है। इसके साक्ष्य निश्चित होते हैं, यद्यपि इसके साक्ष्य इतने स्पष्ट और सुसंगत नहीं होते, जितने अन्तः प्रज्ञा में। ऐसा प्रदर्शन गणित में प्रयोग किया जाता है जहाँ अन्य विचारों की सहायता से दो विचारों में सहमति या असहमति को स्थापित किया जा सकता है।
3. संवेदी ज्ञान (Sensitive Knowledge) – सामान्य बोध से हम यह जानते हैं कि सुबह हो गई है यह इस प्रकार का साक्ष्य है जिसमें तर्कपूर्ण संदेह का कोई स्थान नहीं है। बाह्य वस्तु के विशेष अस्तित्व का ज्ञान केवल सम्भावना से परे होता है। लॉके ने इसे संवेदनशील ज्ञान कहा है। वस्तुओं के अस्तित्व को हम अपने संवेगों से महसूस करते हैं, यद्यपि उतना निश्चित नहीं है जितना कि अन्त: प्रज्ञा या तर्क के आधार पर निगमन, परन्तु फिर भी इसमें एक विश्वास होता है, जिसके आधार पर इसे हम ज्ञान का नाम दे सकते हैं।
4. अधिकारात्मक ज्ञान (Authoritative Knowledge)- हमारे ज्ञान का अधिकतर भाग न तो तर्क पर आधारित होता है जैसा कि प्रदर्शित ज्ञान और न ही बोध के द्वारा। हम कुछ सिद्धान्तों के आधार पर ज्ञान प्राप्त करते हैं जो स्थायी, अविरोधी तथा सार्वभौमिक होते. हैं; जैसे- पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर काटती है। इन तथ्यों को वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है । हम इन्हें पुस्तकों से पढ़ते हैं और कुछ ज्ञान हमारे अध्यापकों द्वारा प्रदान किया जाता है इस प्रकार का ज्ञान किसी-न-किसी अधिकारी के द्वारा दिया जाता है इसलिए इसे अधिकारात्मक ज्ञान कहा जाता है।
5. क्रियात्मक ज्ञान (Pragmatic Knowledge)– कभी-कभी हमारे निष्कर्ष अनुभवों पर आधारित होते हैं। इस प्रकार का ज्ञान प्रयोजनवाद के दर्शन पर आधारित है अर्थात्, जॉन ड्यूवी के विचारवाद पर आधारित है। यह ज्ञान व्यक्ति के अनुभव, प्रयोग, निरीक्षण के आधार पर होता है और यह व्यक्तिगत होता है। इसके साथ ही साथ यह ज्ञान व्यक्ति के सामंजस्य में सहायक होता है। क्रियावाद की यह मूलभूत मान्यता है कि विचार अथवा विश्वास जीवन के उपकरण हैं, ये व्यक्ति की इच्छाओं की सन्तुष्टि के साधन हैं, वे कार्य की योजनाओं में सहायक हैं। जो ज्ञान लाभदायक व उपयोगी होता है, वह क्रियात्मक ज्ञान है।
6. श्रुति ज्ञान (Revealed Knowledge)- शरीर तथा मन के अतिरिक्त एक अन्य आध्यात्मिक पदार्थ है परमात्मा। हमें परमात्मा के बारे में कोई जन्मजात जानकारी नहीं है, परन्तु हम अपनी जन्मजात योग्यताओं के उचित प्रयोग के द्वारा परमात्मा के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यह उतना ही निश्चित है जितना कि यह कहना कि दो सीधी रेखाओं का एक रेखा के द्वारा काटने पर बनाए गए विपरीत कोण बराबर होते हैं। प्रायः यह सुना जाता है कि वेदों के द्वारा प्रदान किया गया ज्ञान कुछ महान व्यक्तियों के द्वारा सुना गया और तब उन्होंने उसे अपने शब्दों में लिखा। मुसलमान कुरान शरीफ को ईसाई बाइबिल को, सिख गुरु ग्रंथ साहिब को तथा हिन्दू वेदों को श्रुति कहते हैं। इस प्रकार का ज्ञान धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। यह ज्ञान सार्वभौमिक तथा परम्परागत है। मनुष्य निश्चित रूप से यह जानता है कि उसका कोई अस्तित्व है। धार्मिक विचार रखने वाले मनुष्य में इस ज्ञान के प्रति किसी प्रकार का संशय नहीं होता। इस ज्ञान में किसी प्रकार परिवर्तन समाज के लिए असहनीय होता है।
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