पाठ्यक्रम विकास के मानक से आप क्या समझते हैं?
पाठ्यक्रम विकास के मानक (Standards/Measures of Curriculum Development) – समावेशी उपागम द्वारा बना पाठ्यक्रम यह सुनिश्चित करता है कि जिन मानकों द्वारा पाठ्यक्रम तैयार किया गया है वह इतने विस्तृत हों कि विद्यार्थियों की अधिगम शिक्षण से सम्बन्धित सभी आवश्यकताएँ पूरी हो सकें। मापक प्रायः दो प्रकार के होते हैं-
(1) विषय-वस्तु मापक और प्रदर्शन मापक (Content Standards and Performance Standards)- विषय-वस्तु मापक उस ज्ञान और कौशल का वर्णन करता है जिन्हें विद्यार्थी प्राप्त कर सके। प्रदर्शन मापक से अभिप्राय इन मापकों का प्रयोग करते हुए उपलब्धि के ऐच्छिक स्तर पर बच्चे को लाना होता है।
मुख्य तत्त्वों में निम्नलिखित विशेषताओं को सम्मिलित किया जा सकता है-
(i) पाठ्यक्रम काफी विस्तृत हो ताकि विभिन्न प्रकार के विद्यार्थियों की आवश्यकताएँ पूरी हो सकें चाहे छात्र महाविद्यालय में पढ़ने जाए या कार्य बल के रूप में अपना काम करना शुरू करें।
(ii) यह विभिन्न प्रकार के छात्रों के लिए उचित होना चाहिए।
(iii) यह मानकों पर आधारित लक्ष्यों व उद्देश्यों के ढाँचे को प्रोत्साहित करे।
(iv) इसमें समावेशी अनुदेशनात्मक उपागम तथा सामग्री शामिल होनी चाहिए, जो विभिन्न आवश्यकताओं के छात्रों के प्रयोग के लिए उपलब्ध हो। अन्य शब्दों में, पाठ्यक्रम तथा अनुदेशन में विभिन्नता का कारण विकलांगता की किस्म नहीं बल्कि अनुदेशानात्मक आवश्यकताएँ होती हैं।
अनुदेशनात्मक अनुकूलता मुख्य रूप से सामग्री में या विषय-वस्तु में परिवर्तन से सम्बन्धित है। जिन छात्रों में विकलांगता का स्तर कम हैं उनके लिए अनुकूलनता उनके कौशलों को विकसित करने के लिए कड़ी का काम करती है। अनुदेशन के अलावा कुछ और नहीं है जिसका प्रयोग कौशलों और नीतियों में कर सकें ताकि विद्यार्थी भविष्य में आत्मनिर्भर अधिगमकर्ता बन जाए।
अनुकूलन के प्रकार (Types of Accommodations)
‘अनुकूलन’ (Accommodation) से अभिप्राय एक परिवर्तन तालमेल से है जो यह सम्भव बनाता है कि एक विकलांग छात्र सभी के साथ समान अवसर प्राप्त कर सके तर्कपूर्ण समायोजन कक्षा-कक्ष की सुव्यवस्था, गतिविधियों के प्रकार व समान अवसरवादिता में सुधार का सुविधा के द्वारा किया जा सकता है।
सामान्य समायोजन इस प्रकार है-
(i) कक्षा-कक्ष की उचित स्थिति।
(ii) दत्तकार्य की पहले ही सूचना देना।
(iii) दत्तकार्य को पूरा करने के वैकल्पिक तरीके, जैसे मौखिक प्रदर्शन या लिखित परीक्षा।
(iv) सहायक कम्प्यूटर अनुदेशन।
(v) सहायक श्रवण उपकरण।
(vi) विशेष सहायक सामग्री तथा सेवाएँ (जैसे लिखने वाली या पढ़ने वाली)।
(vii) फिल्म या दृश्य सामग्री के लिए उसमें सम्मिलित कुछ दृश्य।
(viii) कोर्स या कार्यक्रम में परिवर्तन।
(ix) दस्तावेज परिवर्तन [वैकल्पिक प्रिण्ट प्रारूप, ब्रेल ( Braille), बड़े छपाई वाले शब्द, टेप यान्त्रिक साधन, उभरे हुए शब्द, आदि]।
(x) परीक्षाओं में परिवर्तन।
(xi) अध्ययन कौशल तथा रणनीति प्रशिक्षण।
(xii) समय को बढ़ाना।
(xiii) रिकॉर्ड किए हुए अभिभाषण।
पाठ्यक्रम से सम्बन्धित व अनुदेशनात्मक परिवर्तन क्रियात्मक, आयु वर्ग के अनुसार व प्रतिबिम्ब प्रदान करने वाले होने चाहिए। कक्षा-कक्ष के अध्यापक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कक्षा शिक्षण की विषय-वस्तु जिला/राज्य या IEP की पाठ्यक्रम की अपेक्षाओं के अनुरूप है। जब अध्यापक एक समावेशी कक्षा में अनुदेशन प्रदान कर रहा हो तो वह कुछ परिवर्तन कर सकता है-
1. दत्तकार्यों की पहले सूचना का होना (Advance Notice of Assign- ments)–विद्यार्थी के पास कम-से-कम पाठ्य सामग्री का ज्ञान तो होना ही चाहिए जो दत्तकार्य से सम्बन्धित हो। इससे वह दत्तकार्य आसानी से कर सकते हैं।
2. पाठ्यविषय (Syllabus)- एक संक्षिप्त पाठ्यविषय छात्रों का सहायक हो सकता है, इसमें उद्देश्यों, विभिन्न सामग्रियों, गतिविधियों, दत्तकार्या और परीक्षा तिथियों का वर्णन होना चाहिए।
3. प्रकरण की रूप-रेखा (Topical Outline) – अध्यापक कोर्स की रूपरेखा को अलग से तैयार करता है। यह सम्बन्धित कोर्स के विषय-वस्तु की एक सामान्य धारा दर्शाती है। इससे पाठ्यक्रम द्वारा निर्धारित धारणाओं, नियमों, सिद्धान्तों तथा छात्रों की उपलब्धि को जाना जा सकता है।
4. अध्ययन मार्गदर्शिका (Study Guides)- प्रकरण की रूपरेखा की अपेक्षा औपचारिक तथा प्रभावशाली प्रक्रिया यह माँग करती हैं कि शिक्षक एक अध्ययन मार्गदर्शिका तैयार करे जो विशिष्ट उद्देश्यों, दस्तावेजों तथा मूल्यांकित मापदण्ड के साथ बनाई गई हो। अध्ययन मार्गदर्शिका में विस्तारपूर्वक लिखित सामग्री हो सकती है जो सम्बन्धित विशिष्ट अध्ययन की धारणाओं को पहचानने में स्पष्टता दिखाए। ऐसे कई उपकरण अब आ चुके हैं जो प्रत्येक छात्र के साथ प्रयोग किए जा सकते हैं जो कक्षा में उपस्थित होते हैं। मार्गदर्शिका में निम्नलिखित बातें शामिल होती हैं-
– प्राप्त किए जाने वाले विशिष्ट उद्देश्य।
-समयावधि जिसमें क्रियाएँ पूर्ण करवानी हैं।
-अध्ययन के विशिष्ट उत्पाद जैसे रिपोर्ट।
– विशेष पठन- दत्तकार्य तथा अन्य गतिविधियाँ।
– मूल्यांकन मापदण्ड तथा उदाहरण-वस्तु।
5. अध्ययन कौशल तथा रणनीति प्रशिक्षण ( Study Skills and Strategies Training)- प्राथमिक स्कूलों का मुख्य लक्ष्य विद्यार्थी को लिखित पृष्ठ के अर्थों को पढ़ाना है। चौथी कक्षा से आगे की पढ़ाई में पहली चार कक्षाओं की दोहराई, भाषण, विस्तार तथा उसमें नए सम्बन्ध शामिल हैं। विशेष अध्यापकों को छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए लिखित अंकन तथा मौलिक रूप से पढ़ाई जाने वाली सामग्री से पढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है।
कुछ छात्रों के अतिरिक्त जो पूर्ण रूप से दोहराई न करने वाले हैं; अन्य छात्र अध्ययन कौशलों पर कम ध्यान देते हैं।
अध्ययन कौशल एक पठन क्रिया है जो पाठ्यक्रम से सम्बन्धित क्षेत्रों के अध्ययन के लिए प्रयोग होती है। पाठ्य पुस्तक का पठन इस बात से बिल्कुल अलग है कि छात्र क्रमबद्धता आधारित तथा अन्य विकासशील सामग्री का अध्ययन कैसे करता है। अधिकतर पुस्तकें आकर्षक, रंगीन तस्वीरों और चित्रों के साथ बनाई जाती हैं और पाठ्यक्रम से सम्बन्धित भी होती हैं। पठन के बाद विद्यार्थियों को अक्सर क्रमबद्धता तथा कहानी की घटनाओं को याद करके तथा अन्य विवरण से ज्ञान प्राप्त होता है तथा दूसरी ओर ऐसी पुस्तकें भी होती हैं जो जटिल हों, जिनके अंकन के तरीके में बदलाव हो, तकनीकी शब्दों तथा अपरिचित तथ्यों से भरी व नीरस हों। तथ्य यह है कि कठोर और कठिन शब्दों का प्रयोग, जो तथ्यों तथा धारणाओं से सम्बन्धित है और जो अरुचिकर व कठिन है, विद्यार्थी के अध्ययन के लिए आवश्यक है यह परम्परागत विषय-वस्तु प्रदर्शन द्वारा अधिगम को प्रभावी बनाता है। अध्ययन कौशल शब्दकोश तथा अधिगम सामग्री के उपयोग आस-पास की जानकारी तथा तकनीकी के द्वारा सूचना-संगठन से सम्बन्धित है।
6. शिक्षण सामग्री (Teaching Aids) – अध्यापक कक्षा में अपने प्रदर्शन में तकनीकी तथा माध्यमों का प्रयोग कर सकता है। अधिकतर अध्यापकों में से कुछ अध्यापक ही सहायक माध्यमों के किसी-न-किसी रूप का प्रयोग करते हैं; जैसे- Overheads projectors, transparencies models, tapes, videos यहाँ तक कि किताबों व पत्रिकाओं में लगी हुई तस्वीरें।
कई छात्र जो सूचना के विभिन्न स्रोतों पर निर्भर करते हैं जो बाहरी रूप से अधिगम जो प्रदान करते हैं परन्तु किसी प्रकार से अनुदेशन अवसरों को माध्यमों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। किसी प्रकार की दृश्य सूचना को अध्यापक द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता पाठ से सम्बन्धित हो ताकि वह मुख्य बातों को प्रस्तुत कर सके। इसका उपयोग अध्यापक कक्षा में छात्रों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए विस्तृता की जानकारी के लिए, ज्ञान को अधिक विकसित करने के लिए, बच्चों से उनकी क्षमता को जानने के लिए, विद्यार्थी-अधिगम और दोहराई के लिए कर सकता है। स्कूल को उन्हें विशेष सामग्री प्रदान करनी चाहिए जैसे कि प्रयोगशाला, सहायक अथवा पाठक, आदि।
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