पाठ्यक्रम सम्बन्धी अनुकूलन एवं अनुदेशानात्मक अनुकूलन
पाठ्यक्रम सम्बन्धी अनुकूलन (Curricular Accommodation)- समावेश से अभिप्राय केवल यह नहीं है कि असमर्थ बच्चा नियमित कक्षा-कक्ष में दाखिला ले बल्कि उसकी कमियों को नियमित कक्षा-कक्ष के साथ अनुसरित करके उसकी विशेष कमियों को दूर करने में सहायता की जानी चाहिए। इस प्रकार इसे छात्र – केन्द्रित उपागम बनाया जा सकता है सहयोग को प्रत्येक छात्र की अनुदेशनात्मक आवश्यकताओं के आधार पर निर्धारित करना चाहिए। समावेश के द्वारा शिक्षा को सफल सिद्ध किया जा सकता है परन्तु अनुदेशानात्मक युक्तियों और उनमें सुधार आवश्यकतानुसार तथा समझदारी के साथ किए जाने चाहिए।
पाठ्यक्रम में विकास तथा सुधार (Improvement and Reforms in Curriculum)
समावेशी शिक्षा को विभिन्न प्रकार की अनुदेशनात्मक युक्तियों की आवश्यकता होती है जो सभी विद्यार्थियों को उनकी बुद्धिमत्ता, अधिगम शैली, क्षमताओं और की विभिन्नता के साथ अधिगम करने में सहायता करती है।
समावेशी शिक्षा परम्परागत पाठ्यक्रम की सहायता से प्रदान नहीं की जा सकती है क्योंकि यह विशिष्ट बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। इसलिए यह आवश्यक है कि पाठ्यक्रम में सुधार किया जाए। पाठ्यक्रम में विकास और सुधार निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है-
1. बहु-स्तरीय तथा लचीला पाठ्यक्रम (Multi Level and Flexible Curriculum)- स्कूलों में समावेशी शिक्षा प्रदान करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। विभिन्न योग्यताओं के विद्यार्थियों को एक ही कक्षा में पढ़ाया जाता है, इसलिए यह आवश्यक है कि पाठ्यक्रम लचीला हो जो विद्यार्थियों की विभिन्न क्षमताओं और आवश्यकताओं को पूरा कर सके।
2. सहकारी पाठ्यक्रम (Co-operative Curriculum)- पाठ्यक्रम इस प्रकार निर्मित होना चाहिए कि वह सहकारी गतिविधियों को अधिक बढ़ावा दे। यदि छात्र किसी काम को मिलकर करेंगे तो वह उसे आसानी से सीख सकेंगे। इसके अतिरिक्त उनमें सामाजिक वार्तालाप, सहयोग तथा टीम प्रयास की भावना भी उत्पन्न होगी।
3. पर्याप्त सुविधाएँ (Adequate Facilities)- पाठ्यक्रम में पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने और इन सुविधाओं का प्रयोग करने को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
4. पठन सामग्री प्रदान करना (Providing Reading Material)–विद्यार्थियों की आवश्यकताओं और रुचियों के अनुसार पठन सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए। उदाहरण के लिए नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए पठन सामग्री के रूप में ब्रेल (Braille) लिपि प्रदान की जानी चाहिए।
5. साधारण पाठ्यक्रम (Simple Curriculum)- मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए साधारण पाठ्यक्रम होना चाहिए। ऐसे विद्यार्थियों को पाठ याद करने की अपेक्षा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। उन्हें हस्त कौशल सिखाए जाने चाहिए ताकि वह जीवन में आत्म-निर्भर बन सकें।
6. खेलों में भाग लेना (Participation in Games) – बच्चों की शारीरिक तथा मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
7. सहगामी क्रियाओं में भाग लेना (Participation in Co-curricular Activities)- छात्रों को सहगामी क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें यात्राओं व भ्रमणों पर भी ले जाया जाना चाहिए।
8. शिक्षण-सामग्री (Teaching Aids)- पाठ्यक्रम शिक्षण सामग्री के अधिगम प्रयोग पर आधारित होना चाहिए। शिक्षण सामग्री की सहायता से पाठ को प्रभावी व रुचिकरण बनाया जा सकता है।
जॉनसन (Johnson, 1993) ने पाठ्यक्रम में परिवर्तन के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। उनका विचार है कि मौखिक शिक्षण की अपेक्षा कम्प्यूटर का प्रयोग शिक्षण में अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकता है । पाठ्यक्रम सरल होना चाहिए। पाठ्य-पुस्तकें व पठन सामग्री ब्रेल लिपि में तैयार की जानी चाहिए तथा विद्यार्थियों को आत्म-निर्भर बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
अनुदेशनात्मक अनुकूलन (Instructional Accommodation)
यह मुख्य रूप से ध्यान देने योग्य बात है कि जो विद्यार्थी किसी कारणवश असमर्थ है, तो इसका अभिप्राय यह नहीं होना चाहिए कि वह एक योजनाबद्ध कक्षा-कक्ष गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता है। जैसे अन्य छात्रों से पाठ्यक्रम की आशा की जाती है, इसी प्रकार ऐसे छात्रों.. की आवश्यकताओं और कौशलों का विश्लेषण किया जाना चाहिए और उनमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने चाहिए। उस छात्र को उन गतिविधियों में भाग लेने देना चाहिए, जिनमें उसके सहपाठी भाग लेते हैं। आवश्यकतानुसार इस गतिविधि में परिवर्तन किया जा सकता है। यद्यपि, यह एकीकृत सफलता के लिए आवश्यक नहीं हैं, परन्तु एक अध्यापक द्वारा संगठित तथा निर्देशित पाठ की बजाय छात्र केन्द्रित उपागम अधिक उपयोगी है तथा यह लोकप्रिय भी हो रहा है।
अनुदेशन अनुकूलन में छात्र- केन्द्रित उपागम (Child-Centred Approaches in Instructional Accommodation)
ये निम्न प्रकार हैं-
1. आँकड़ों पर आधारित या परिणाम पर आधारित अनुदेशन प्रतिमान (Data Based or Outcome based Instruction Models) – यह आँकड़ों के परिणाम पर आधारित शिक्षा का तरीका है जो इस बात पर ध्यान देता है कि शिक्षण के बाद छात्र ने वास्तव में क्या सीखा है। सभी पाठ्यक्रम तथा शिक्षण इस आधार पर बनाए जाते हैं ताकि उनसे बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकें। यह परम्परागत शैक्षिक योजना के विपरीत योजना प्रक्रिया है। ऐच्छिक परिणाम पहले चुन लिए जाते हैं और फिर इन परिणामों की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
2. सहकारी समूह अधिगम (Co-operative Group Learning)- सहकारी अधिगम में, विद्यार्थी समूह में एक साथ काम करने का कौशल सीखता है। इसमें अनेक विद्यार्थी मिलकर एक प्रोजेक्ट को पूरा करते हैं। सहकारी अधिगम स्थितियों में, छात्र परस्पर वार्तालाप करते हैं व दूसरे विद्यार्थी की सफलता को प्रोत्साहित करते हैं तथा इस प्रकार उन्हें एक-दूसरे से उचित पुनर्बलन प्राप्त होता है।
3. सम्पूर्ण भाषा (Whole Language)- यह उपागम विद्यार्थियों के विभिन्न सम्प्रेषण कौशलों और योग्यताओं को स्वीकार करता है और प्रत्येक छात्र को उसके स्तर क अनुसार काम करने की प्रेरणा देता है । सम्पूर्ण भाषा साक्षरता दर्शन को प्रदर्शित करती है। आवश्यकता इस बात की होती है कि इसे विद्यार्थी की अर्थपूर्ण तथा रणनीति-अनुदेशन पर केन्द्रित होना चाहिए। मुख्य रूप से पढ़ाई तथा अर्थ दर्शाने और लेखन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यह उपागम ध्वनि, व्याकरण, अक्षर तथा विराम चिह्नों का प्रयोग बताने वाला, भूमिका को समझने और प्रयोग करने पर जोर देता है।
4. गतिविधियों आधारित अधिगम (Activitys-based Learning)- यह एक अनुदेशानात्मक तरीका है जिसमें ‘वास्तविक संसार’ की समस्याओं को विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है ताकि छात्र चिन्तन तथ समस्या समाधान कौशलों को सीख सकें तथा पाठ्यक्रम के आवश्यक तत्त्वों की जानकारी प्राप्त कर सकें। यह उपागम एकीकृत अधिगम को एक दिशा प्रदान करता है ताकि छात्र अपने ज्ञानेन्द्रिय अनुभवों द्वारा ज्ञान और गतिविधियों का शैक्षिक अनुभव प्राप्त कर सकें। इसमें छात्र केन्द्रित, प्रायोगिक अधिगम तकनीकें विद्यमान होती हैं जो छात्रों को उनकी विभिन्न योग्यताओं के साथ नियमित रूप से कक्षा में पढ़ने के लिए तैयार करती हैं। व्यक्तिगत अधिगम उद्देश्य पाठ की बड़ी धारणाओं में आसानी से प्रस्तुत किया जाता हैं।
5. कौशल ढाँचा (Skill Matrix)- पाठ्यक्रम विषय-वस्तु की अपेक्षा नियमित रूप से कक्षा में आना, विकलांग विद्यार्थियों के कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इस उपागम का लाभ यह है कि इसमें प्राकृतिक तौर पर अधिगम प्राप्त होता है जिसके सन्दर्भ में कौशल अभ्यास किया जाता है । यह युक्ति सामाजिक तथा व्यावहारिक लक्ष्यों के लिए प्रायः प्रयोग की जाती है तथा साथ-ही-साथ अकादमिक अधिगम के लिए भी लाभकारी है।
6. विभेदित अनुदेशन (Differentiated Instruction)- विभेदित अनुदेशन उपागम इसलिए बनाए जाते हैं ताकि सारी कक्षा को पाठ पढ़ाया जा सके तथा प्रत्येक छात्र की आवश्यकताओं की पूर्ति भी की जा सके। अध्यापक प्रत्येक छात्र के लिए कक्षा सम्बन्धी और अनुदेशनात्मक युक्तियों से मुक्त लक्ष्य चुनता है। ब्लूम का वर्गीकरण (Bloom’s taxonomy), अनुदेशनात्मक उद्देश्यों पर आधारित है। इस प्रकार का अनुदेशन सभी छात्रों की समावेशी अधिगम शैलियों, छात्रों में व्याप्त विभिन्नताओं, सामाजिक सम्बन्धों को व्यक्त करता है और इस प्रकार सभी विद्यार्थियों की सामाजिक, भावात्मक तथा विद्योपार्जन आवश्यकताओं को पूरा करता है।
7. सहपाठी शिक्षण, सहयोगी अधिगम व सहपाठी सहायता (Peer Tutoring, Partner Learning and Peer Support)- अध्यापक ‘समूह शक्ति’ का प्रयोग छात्र के कार्यक्रम को बढ़ाने के लिए करते हैं। यह प्रणाली समूह के गृह कार्य के रूप में औचारिक तथा अनौपचारिक प्रकार की हो सकती है जो सामान्य अधिगम के साथ लागू की जाती है। समूह की भूमिका प्रत्येक छात्र की समावेशी सफलता में अक्षमताओं के साथ मूल्यांकन नहीं की जानी चाहिए। समूहों को कक्षा में स्रोतों के लिए कभी-कभी या बार-बार तैयार रखा जाना चाहिए।
शैक्षिक उद्देश्य के अनुकूलन (Adaptation of Educational Objective)
समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत बालकों का शिक्षण किसी कार्य अथवा भाव का समायोजन अथवा अनुकूलन की प्रकृति बाधिता के स्तर की प्रकृति पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए यदि कोई बालक अस्थि रोग से पीड़ित है अथवा बाधित है तो ऐसे बालक. की सामान्य पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षा दी है परन्तु कक्षा में उसके बैठने के लिए, स्थान में उसको शारीरिक आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तन की आवश्यकता है। दृष्टि बाधित बालकों के लिए केवल मोटे छापे की पुस्तकें अथवा पठन सामग्री की आवश्यकता होती है। दृष्टि बाधित एवं श्रवण बाधित बालकों की शिक्षा कुछ पूर्व तैयारी करने के पश्चात् समन्वित शिक्षा हो सकती है। कठिन प्रत्ययों के शिक्षण हेतु उन्हें पाठ्यक्रम में समायोजन की आवश्यकता होती है। अर्थात् पाठ्यक्रम ऐसे बालकों की आवश्यकता के अनुरूप होना। चाहिए। यदि सामान्य अध्यापक को बाधित बालकों की आवश्यताएं ज्ञात है अथवा अध्यापक शारीरिक व मानसिक रूप से बाधित बालकों की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी रखता है तो पाठ्यक्रम का आवश्यकता के अनुरूप समायोजन, अनुकूलन आसान एवं सार्थक हो जाता है। सामान्य कक्षाओं में बाधित बालकों के शिक्षण हेतु पाठ्यक्रम शिक्षा के अनुरूप हो इसके निम्न सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए-
पाठ्यक्रम के मूल प्रत्ययों जिनका प्रयोग किया जाता है अनुकूल अथवा समायोजन करते समय इस बात का ध्यान रखा जाये कि प्रत्ययों में किसी प्रकार का परितर्वन न हो क्योंकि समायोजन अथवा अनुकूलन का मुख्य उद्देश्य सामान्य एवं बाधित बालकों को कुछ अधिगम अनुभव देना होता है।
इस प्रकार के अनुभव देने के लिए कार्य करने की योजना कुछ इस प्रकार से बनाई जानी चाहिए कि बालक सामान्य कक्षा के शिक्षण में सभी प्रत्ययों का स्वरूप पूर्ण रूप से पाये। अनुदेशनात्मक सामग्री का उद्देश्य दोनों प्रकार अर्थात् सामान्य तथा बाधित बालकों के लिए समान रूप से होना चाहिए।
अनुदेशानात्मक सामग्री का परिवर्तन समन्वित शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा प्राप्त कर रहे सामान्य अधिकांश बालकों में विक्षोभ पैदा करने का कारण नहीं होना चाहिए। सामान्य अध्यापक को श्यामपट्ट से शब्दों का अनुकरण करते समय सचेत रहना चाहिए। इस प्रकार अध्यापक ऐसे बालकों को पर्याप्त पृष्ठ पोषण दे सकता है।
अनुदेशन का अनुकूलन (Adapting Instruction)
कक्षा शिक्षण का वातावरण शिक्षण एवं अधिगम के अनुरूप है इस बात को सुनिश्चित करने के पश्चात् यह आवश्यक हो सकता है कि सामान्य कक्षा में बालकों की विशिष्ट आवश्यकताओं की सफलता हेतु अनुदेशनात्मक विधियाँ समायोजित और अनुकूल हों। सामान्य अध्यापक बालकों की विचित्र शैक्षिक समस्याओं से परिचित होना चाहिए। शैक्षिक कार्यों तथा आव्यूहों के बारे में आँकड़े एकत्र करने की विधियाँ विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अनुदेशनों का अनुकूलन किया जाना चाहिए।
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