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लिखित भाषा का अर्थ | लिखित भाषा के महत्त्व | लिखित भाषा के उद्देश्य

लिखित भाषा का अर्थ
लिखित भाषा का अर्थ

लिखित भाषा का अर्थ (Meaning of written Language)

भाषा के दो रूप होते हैं-मौखिक और लिखित, मौखिक रूप के अंतर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप और भावों की मौखिक अभिव्यक्ति है। जब हम इन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त करते हैं और इन्हें लिपिबद्ध करके भाषा को स्थायित्व प्रदान करते हैं तो भाषा का यह लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस लिखित रूप की शिक्षा, प्रतीकों की पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया अथवा ध्वनि को लिपिबद्ध करना लिखना है। ‘लेखन’ शब्द के अंतर्गत सुडौल एवं अच्छे वर्णों में लिखना सम्मिलित है।

वाचन तथा पठन-पाठन में दक्षता प्राप्त करने के बाद भी शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता। इस कारण शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक तीसरे प्रकार के शिक्षण की आवश्यकता पड़ती है और वह है लिखाई की शिक्षा देना या लेखन शिक्षण । लिखित अभिव्यक्ति लिपि के माध्यम से की जाती है। जिस तरह मौखिक अभिव्यक्ति में कथन अंगमा इसकी प्रभावशीलता में वृद्धि करती है, ठीक उसी प्रकार लिखित अभिव्यक्ति में शैली प्रभाव उत्पन्न करने में विशेष भूमिका की निर्वाह करती है। लिखित अभिव्यक्ति की अन्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं-

1. सुपाठ्यता

2. सुस्पष्टता

3. दोषरहित वर्तनी

4. वाक्य रचना

5. विराम चिह्न

6. क्रमबद्ध

7. व्याकरण की दृष्टि से त्रुटि रहित भाषा

8. शब्द चयन

9. प्रस्तुति की मौलिकता ।

अभिव्यक्ति के जीवन में सफलता बहुत बड़ा कारक है जिसकी लिखित अभिव्यक्ति अच्छी होती है, वह परीक्षा में दूसरों से अच्छे अंक पा जाता है। कई बातों की जाँच करने के लिए विद्यार्थियों को कुछ प्रश्न दिये जाते हैं, इन प्रश्नों का उत्तर वे अपनी अभ्यास-पुस्तिका में लिखते हैं, इसे ही लिखित कार्य कहा जाता है।

लिखित कार्य से बालक प्राप्त ज्ञान को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने का अभ्यास करते हैं। उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान का सुदृढ़ीकरण होता है । लिखित कार्य में सभी बालक एक साथ कक्षा में बैठकर लिखते हैं और अध्यापक उस समय उनका परिवीक्षण करता है। पूरा पाठ पढ़ लेने पर यदि छात्र प्रश्नों का उत्तर घर से लिखकर लाते हैं तो वह भी लिखित कार्य के अन्तर्गत आता है।

कक्षा-कार्य

  • लिखित कार्य
  • गृह-कार्य

कक्षा-कार्य के अन्तर्गत अध्यापक हिन्दी के कलांश में स्वयं उपस्थित रहकर छात्रों से करवाता है। गृहकार्य के अन्तर्गत विद्यार्थी घर से कार्य करके लाता है । कक्षा में हिन्दी के कालांश में समय सीमित होता है। इसलिए अपेक्षित कार्य वहाँ नहीं करवाया जा सकता । इसलिए, जो कार्य बालक कक्षा में न कर के किसी अन्य स्थान पर अथवा घर पर से करके लाते हैं-ऐसी लिखित कार्य को ‘गृहकार्य’ कहते हैं ।

लिखित भाषा के महत्त्व (Importance of written Language)

1. किसी भी भाषा या विषय में पूर्ण दक्षता प्राप्त करने के लिए लिखित भाषा की भली-भाँति ज्ञान अत्यावश्यक है।

2. अपने विचारों तथा भावों को मूर्त रूप देने तथा दूसरों तक पहुँचाने के लिए लिखित भाषा की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ- पत्र, लेख या पुस्तक लिखकर विचारों को दूसरों तक पहुँचाना

3. विभिन्न कालों की बदलती हुई परिस्थतियों, विचार-धाराओं तथा क्रियाकलापों से परिचित होने के लिए भाषा का लिखित रूप ही काम आता है।

4. वक्ता के अभाव में किसी के विचारों से अवगत होने के लिए भाषा का लिखित रूप ही काम आता है।

5. भाषा में संशोधन, परिवर्तन की गुंजाइश तथा एकरूपता तथा स्थायित्व लेखन के माध्यम से ही संभव है।

6. विभिन्न व्यक्तियों या देशों में परस्पर अनुबंध और मैत्री लिखित भाषा के द्वारा ही संभव है।

7. लेखन में मस्तिष्क और उँगलियों का कार्य एक साथ चलता रहता है और नियमित अभ्यास से दोनों ही पुष्ट होते हैं।

8. लेखन के अभाव में विचारों को मूर्त रूप देने तथा आगे आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँचाना संभव नहीं है।

9. लेखन के बिना साहित्य की अभिवृद्धि संभव नहीं है।

10. हमलोग इतिहास के बारे में जानते हैं, क्योंकि हमारे इतिहास का एक बड़ा स्त्रोत साहित्य है । साहित्य के बिना हम इतिहास को नहीं जान सकते।

11. लिखित भाषा प्रमाणिक होती है, इसे कहीं भी साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

12. लिखित भाषा के माध्यम से हम अपने शोध, विचार, जानकारी इत्यादि को लम्बे समय तक रख सकते हैं और अपनी इच्छानुसार उचित प्रयोग कर सकते हैं ।

लिखित भाषा के उद्देश्य (Objective of written Lanugage)

1. लिखित भाषा का प्रमुख, उद्देश्य है- गृहीत या उत्पन्न विचारों को अभिव्यक्ति।

2. सभी प्रकार के पत्र लिख सकना, उदाहरणार्थ-व्यक्तिगत पत्र, आवेदन-पत्र, निमंत्रण-पत्र, बधाई पत्र, विदाई पत्र, व्यावसायिक पत्र एवं सम्पादक के नाम पत्र इत्यादि।

3. पठित कहानी, नाटक लघु उपन्यास निबन्ध जीवन चरित्र आदि के सारांश लिख सकने की योग्यताओं का विकास।

4. अपठित गद्यांश और पद्यांश किसी व्यक्ति के भाषण का सारांश लिखना किसी व्यक्ति को भाषण के नोट्स लिख सकना इत्यादि की योग्यताएँ विकसित करना ।

5. भाषा-संक्षेपण कर सकना, समाचार पत्रों से समाचारों की संक्षिप्त रूपरेखा तैयार कर सकना, सभा के लिए सूचनाएँ, घोषणाएँ लिखना तथा सभा की रिपोर्ट लिख सकना इत्यादि योग्यताएँ विकसित करना ।

6. काव्य शैली के विवेचन में कवि के विचार उसकी रस योजना, अलंकार-योजना, छंद-योजना तथा भाषा एवं शैली पर साधारण समीक्षात्मक लेख लिखने-समझने की योग्यताएँ विकसित करना ।

7. भाषा पर पूर्ण अधिकार की दृष्टि से वाचन एवं पठन की ही भाँति लेखन की भी शिक्षा देना।

8. बालक व्याकरण के नियमों का पालन कहाँ तक करते हैं इसका परीक्षण करना ।

9. अपने विचारों और प्राप्त ज्ञान को लिखित रूप देकर दूसरों तक पहुँचाना।

10. लिखित भाषा से साहित्य की अभिवृद्धि कराना।

11. लिखित भाषा के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को सशक्त बनाना।

12. लिखित रचनाओं के विभिन्न तत्त्वों एवं विद्याओं से विद्यार्थियों को परिचित कराना।

13. प्राप्त ज्ञान को उचित प्रकार सुव्यवस्थित तथा लिखित रूप में अभिव्यक्ति करने की शिक्षण देना।

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