भाषा के कार्य या भूमिका (Functions or Role of Language in Hindi)
भाषा के कार्य या भूमिका (Functions or Role of Language)- संसार में विभिन्न प्राणियों में मनुष्य भाषा के ज्ञान के कारण सबसे अधिक भाग्यवान है। यदि आज तक भाषा का अभाव बना रहता है; तो मानव और पशु में कोई अंतर नहीं मिलता। भाषा ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने परम्परागत अनुभवों, विचारों तथा भावों को सम्यक् रूप से अभिव्यंजित कर सकता है। यदि मनुष्य के पास भाषा नहीं होती तो उसमें सामाजिकता नहीं होता तथा सभ्यता के दौर में वह पीछे ही रहता है। आज मानव संस्कृति जिस अवस्था में पहुँच गई है, उसका प्रमुख कारण भाषा है।
भाषा के कार्य या भूमिका निम्न प्रकार हैं-
1. साहित्य का सृजन – भाषा से ही साहित्य का सृजन होता है और साहित्य से किसी भी देश की संस्कृति का मूल्यांकन किया जा सकता है। भाषाज्ञान से ही साहित्य की विभिन्न विधाओं-कहानी, उपन्यास, नाटक, समालोचना, समीक्षा, काव्य, महाकाव्यों, संस्मरण आदि का विकास होता है। साहित्य का दर्पण है, भाषा के कारण। अतः साहित्य के प्रसार एवं अभिवृद्धि भाषा से ही है।
2. व्यक्ति का निर्माण- भाषा व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास का महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति अपने आन्तरिक भावों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है तथा इसी अभिव्यक्ति के साथ अंदर छिपी अनंत शक्ति अभिव्यक्त होती है। अपने विचारों एवं भावों तथा इसी को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करा सकना तथा अनेक भाषाएँ बोल सकना विकसित व्यक्ति केही लक्षण हैं। अतएव किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति जितनी स्पष्ट होगी उसके व्यक्तित्व का विकास भी उतने ही प्रभावशील ढंग से होगा।
3. राष्ट्र के एकीकरण का कार्य- समस्त राष्ट्र प्रशासन का संचालन भाषा के माध्यम होता है। भाषा राष्ट्रीय एकता का मूलाधार है। इसके साथ ही कोई अन्य भाषा भी विभिन्न राष्ट्रों के बीच विचार-विनिमय, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का साधन बनती है। ऐसी भाषाओं के अभाव में विभिन्न राष्ट्रों के विद्वानों को विचारधराएँ राष्ट्र विशेष तक ही सीमित रह जाती है।
4. चिंतन एवं मनन का स्रोत- हम भाषा के द्वारा ही विचार, चिंतन एवं मनन करते हैं। मानव अपने विचारों की ऊँचाइयों के कारण ही सभी प्राणियों में शिरोमणि समझा जाता है। शुकसारिकादि पक्षी थोड़े से समझने योग्य विचार व्यक्त कर सकते हैं। इसी कारण अन्य नभाचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। विचारों की ऊँचाइयों के कारण ही आज समाज, मानव विभिन्न ग्रहों की जानकारी लेने में सक्षम है। विश्व शान्ति एवं मानव एकता के प्रयास निरन्तर प्रयत्नशील है। अतएव यह स्पष्ट हो जाता है कि विचार, चिन्तन तथा मनन शक्तियों का विकास, भाषा पर ही आधारित होता है।
5. शिक्षा की प्रगति के आधारशिला का काम- भाषा, शिक्षः आधार है। सभी ज्ञान-विज्ञान के ग्रंथ भाषा में ही लिपिबद्ध होते हैं। अगर भाषा न होती तो भाषा के स्वरूप का भी निर्माण नहीं होता तथा यदि शिक्षा की व्यवस्था न होती तो मनुष्य असभ्य, हिंसक तथा जंगली रहा होता। भाषा के अभाव में पूर्वजों द्वारा उपलब्ध ज्ञान हमें कभी प्राप्त नहीं होता।
6. साहित्य एवं कला, संस्कृति एवं सभ्यता का विकास- साहित्य भाषा में लिखा जाता है। भाषा का विकास उसके पल्लवित साहित्य के दर्पण में देखा जाता है। जब वायुमण्डल में स्वर गूजते हैं तथा गद्गद् हो जाते हैं तो यह सारा चमत्कार भाषा का ही होता है। भाषा के द्वारा ही हम अपने समाज के आचार-व्यवहार तथा अपनी विशिष्ट जीवन शैली से अवगत होते हैं और भाषा नवीन सृष्टि का सृजन करते हैं तथा अपनी भाषा को उक्त बनाते हैं।
7. विचार-विनिमय का सरलतम एवं सर्वोत्कृष्ट साधन- बालक जन्म के कुछ ही दिनों बाद परिवार में रहकर भाषा सीखने लगता है। यह भाषा स्वाभाविक एवं अनुकरण के द्वारा सीखता है। इसे सीखाने के लिए किसी अध्यापक की आवश्यकता नहीं होती है। यह विचार-विनियम का सर्वोत्तम साधन है क्योंकि भाषा संकेतों एवं चिह्नों से श्रेष्ठ है।
8. सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन- भाषा समाज के सदस्यों को एक सूत्र में बाँधती है भाषा के माध्यम से ही समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है। भाषा जितनी विकसित होगा, समाज उतना ही विकाशील होगा। भाषा के माध्यम से समाज के नैतिक व्यापार ही सम्पन्न नहीं होते अपितु उसकी संस्कृति भी विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। वस्तुतः भाषा समाज को जोड़ने में सहायक है। अतएव यह कहा जा सकता है कि भाषा सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन है।
9. अपने काम के संचालन में व्यस्त रखना- बच्चे कुछ काम के साथ-साथ उसके बारे में बात करते जाते हैं। यह बात अपनी गतिविधि पर एक तरह का निजी टीका है। यह टीका ही उनको काम में अधिक देर तक व्यस्त रखती है एवं उनकी रुचि बनाये रखती है।
10. दूसरे के क्रियाकलाप की ओर ध्यान का संचालन – बच्चे अजीब या आकर्षक चीजों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए भाषा का उपयोग करते हैं।
11. खेलना- छोटे बच्चे शब्दों को खिलौने की तरह उपयोग करते हैं। शब्दों से खेलना, बच्चों की रचना – शक्ति तथा ऊर्जा को बाहर लाने में अनोखी भूमिका निभा सकती है। बच्चे अलग-अलग स्वरों में दुहराकर नये रूपों, मौलिक संदर्भों में प्रयोग कर शब्दों से खेलते हैं।
12. समझाना- बच्चे किसी घटना को टूटी-फूटी भाषा में समझाने का प्रयास करते हैं। भाषा के इसी प्रयोग से कहानियाँ जन्म लेती है।
13. जीवन को बयान करना- बच्चे भाषा के सहारे बड़ों की तरह बीते समय को याद करते हैं। कोई घटना हुई हो व्यक्ति हो या छोटी-मोटी चीज हो, वे उसे शब्दों में जोड़-जोड़ कर ही उसका वर्णन करते हैं।
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