अराजकतावाद तथा साम्यवाद में समानताएँ एवं असमानताएँ अथवा अराजकतावाद एवं साम्यवाद में अन्तर
अराजकतावाद तथा साम्यवााद ये दोनों विचारधाराएं एक-दूसरे की पूरक नहीं कही जा सकी हैं। इन दोनों ही विचारधाराओं का लक्ष्य वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था का अन्त कर एक राज्यविहीन और वर्गवीन समाज की स्थापना करना है। साम्यवाद में उन साधनों का वर्णन किया गया है। जिनके आधार पर वर्तमान व्यवस्था के स्थान पर एक राज्यविहीन और वर्गविहीन समाज की स्थापना की जा सकती है, किन्तु राज्य तथा वर्गों के अन्त के बाद समाज में व्यवस्था किस प्रकार से स्थापित की जएगी, इस बात पर साम्यवादियों ने विशेष ध्यान नहीं दिया है। इसके विपरीत, अराजकतावादी उस व्यवस्था का विस्तार से उल्लेख करते हैं जिसकी स्थापना राज्य और विरोधी वर्गों का अन्त करने के बाद की जाएगी।
इस प्रकार साम्यवाद का सम्बन्ध विशेषकर साधनों से है और अराजकतवाद का सम्बन्ध विशेषकर लक्ष्यों से जोड के मतानुसार, “वे एक ही पूर्ण वस्तु के दो अर्ध-भाग ………… अधिकांश साम्यवादी साम्यवादी आज अराजकतावादियों के समाज के आदर्श को स्वीकार कर लेंगे, जबकि बहुत-से अराजकतावादी सम्भवतः स्वीकार कर लेंगे कि साम्यावादियों द्वारा प्रस्तावित साधन वे हैं, जिनके द्वारा उनके आदर्श की अधिक-से-अधिक प्राप्ति हो सकती है। साम्यवादियों का सम्बन्ध साधनों से है, अराजकतावादियों का लक्ष्यों से।”
इसी बात को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि “जहां साम्यवाद समाप्त होता है, अराजकतावाद वहीं से प्रारम्भ होता है।” साम्यवाद तथा अराजकतावाद की तुलना निम्नलिखित शीर्षकों में की जा सकती है:
अराजकतावाद तथा साम्यवाद में समानताएं
(1) राज्य के प्रति दृष्टिकोण – अराजकतवादी और साम्यवादी दोनों ही राज्य को एक ऐसी अहितकर संस्था समझते हैं जिसने अब तक मानवीय शोषण और दमन का कार्य किया है। दोनों ही विचारधाराओं के अनुसार राज्य एक ऐसा अस्वाभाविक और अनावश्यक संगठन है, जिसका मानवीय स्वतन्त्रता के हित में शीघ्रताशीघ्र अन्त ही उचित है। उनका विचार है कि राज्य के काननू और मानवीय स्वतन्त्रता परस्पर विरोधी हैं और राज्य मानव के उच्चतम विकास के मार्ग में एक अनावश्यक बाधा है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि राज्य के विरोध में ये दोनों विचारधाराएं सहमत हैं, परन्तु ऐसा होने पर भी इन दोनों विचारधाराओं में राज्य के विरोध में ये दोनों विचारधाराएं सहमत हैं, परन्तु ऐसा होने पर भी इन दोनों विचारधाराओं में राज्य के विरोध की मात्रा और विरोध के उद्देय में अन्तर है। साम्यवाद राज्य का विरोध विशेषकर इसलिए करता है कि वह पूंजीवाद का सहायक है और अराजकतावाद इसलिए करता है कि वह मानवीय स्वतन्त्रता का विरोधी है। इसके अतिरिक्त, अराजकतावाद तुरन्त ही राज्य को समाप्त करने के पक्ष में है, किन्तु साम्यवाद अन्तरिम काल में ‘सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद’ की स्थापना करने के पक्ष में है।
(2) पूंजीवाद का विरोध- साम्यवाद और अराजकतावाद दोनों ही पूंजीवाद के विरोधी हैं। दोनों ही विचारधाराओं का दृष्टिकोण है कि वस्तु का मूल्य उस पर खर्च किए गए श्रम कारण ही होता है, किन्तु पूंजीपति श्रमिकों उसके श्रम का पूरा मूल्य नहीं देता और वह धन जिस पर श्रमिक का अधिकार होना चाहिए पूंजीपति अपने पास रख लेता है। इस प्रकार पंजीवाद श्रमिकों के श्रम में उत्पन्न धन की चोरी पर आधारित है। अराजकतावादी और साम्यवादी दोनों ही प्रोधां के इस कथन को स्वीकार करते हैं। कि “प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति चोरी है।” पूंजीवाद की इसी शोषण वृत्ति के कारण समाज दो वर्गों में बंट जाता है-
पूंजीपति अथवा शोषक वर्ग और श्रमिक अथवा शोषित वर्ग । अराजकतवाद तथा साम्यवाद दोनों ही पुंजीपति वर्ग का अन्त करके एक ऐसे वर्गविहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। जिसमें मानवता का शोषण न किया जा सके।
(3) क्रान्ति के साधन- अराजकतावादी और साम्यवाद दोनों का ही लक्ष्य एक वर्गविहीन और राज्यविहीन समाज की स्थापना करना है, किन्तु इस अवस्था की स्थापना के साधनों का विस्तृत उल्लेख साम्यवादियों के द्वारा ही किया गया है और अधिकांश अराजकतावादी इस सम्बन्ध में साम्यवादियों से सहमत हैं। साम्यवादी वर्ग-संघर्ष के अन्तर्गत श्रमिक वर्ग में ‘वर्गीय चेतना’ (class consiousness) को प्रबल बनाकर श्रमिक वर्ग की हिंसात्मक क्रान्ति में विश्वास करते हैं और इस क्रान्ति के आधार पर वे पूंजीवाद और राज्य का अन्त कर अपने हाथों में शक्ति लेने की आशा करते हैं। अराजकतावादियों के अपने कोई साधन नहीं हैं, वे साम्यावादियों के इन्हीं साधनों में विश्वास करते हैं।
(4) क्रान्ति के बाद की व्यवस्था- साम्यवादी राज्य और वर्गीय व्यवस्था का अन्त करने वाली क्रान्ति के साधनों का तो वर्णन करते हैं, लेकिन उस सामाजिक व्यवस्था का चित्रण नहीं करते जिसकी स्थापना इस क्रान्ति के बाद की जाएगी। क्रान्ति के बाद की सामाजिक व्यवस्था का गम्भीर चिन्तन अराजतावादियों द्वारा ही किया गया है। अराजकतावाद के अनुसार इस नवीन सामाजिक व्यवस्था में मनुष्य पूंजीवाद के शोषण राज्य के दबाव एवं धर्म और नैतिकता के बन्धनों से स्वतन्त्र होगा।
समानता पर आधारित इस सामाजिक व्यवस्था में किसी व्यक्ति के साथ वर्ग, जाति, धर्म और विश्वास के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। राज्य का स्थान विभिन्न ऐच्छिक समुदाय ले लेंगे और ये ही समदाय व्यक्तिगत रूप में मानव के व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित कार्यों का सम्पादन करेंगे और संगठित रूप में समाज में नय तथा व्यवस्था बनाए रखेंगे। सभी श्रमिक होंगे और श्रमिकों के श्रम द्वारा अर्जित धन सामूहिक रूप से स्वयं उनके हित में व्यय होगा। साम्यवादी अराजकतावादियों द्वारा चित्रित इस सामाजिक व्यवस्था से अपनी सहमति प्रकट करते हैं।
(5) प्रजातन्त्र के सम्बन्ध में धारण- अराजकतावाद तथा साम्यवाद दोनों ही जनतन्त्र की प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली तथा संसदात्मक व्यवस्था का विरोध करते हैं। प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त का विरोध करते हुए दोनों का ही विचार है कि जनतन्त्र में ये जनता के तथाकथित प्रतिनिधि वास्तव में किसी के भी प्रतिनिधि नहीं होते हैं। इस प्रकार इन दोनों ही विचारधाराओं की प्रजातन्त्र में कोई आस्था नहीं है।
(6) धर्म की उपेक्षा- दोनों ही विचारधाराएं समान रूप से धर्म-विरोधी हैं और उनका विचार है कि धर्म ने मानव को भाग्यवाद और अकर्मण्यता का पाठ पढ़ाकार मानवीय प्रगति में बाधा डालने का ही कार्य किया है।
इस प्रकार राज्य, प्रजातन्त्र, पूंजीवाद और धर्म के सम्बन्ध में इन दोनों विचारधाराओं का समान रूप से विरोधी दृष्टिकोण है। साम्यवाद द्वारा क्रान्ति के जिन साधनों का वर्गीकरण किया गया है उसे अराजकतावादी स्वीकार करते हैं और अराजकतावादी के द्वारा कान्ति के बाद की सामाजिक व्यवस्था का जो चित्रण किया गया है, उससे साम्यवाद सहमत है। इस प्रकार अराजकतावाद के लेखक प्रोधां तथा क्रोपॉटकिन प्रसिद्ध साम्यवादी भी रहे हैं। स्वयं प्रोधां कई वर्षों तक मूल मार्क्स के सम्पर्क में रहा और माइकेल बाकुनिन भी मार्क्सवादी दर्शन से काफी प्रभावित था। इस प्रकार इन अराजकतावादियों पर साम्यवादी दर्शन का प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट है।
अराजकतावाद तथा साम्यवाद में असमानताएं
उपर्युक्त व्यवस्था से स्पष्ट है कि बहुत कुछ सीमा तक साम्यवाद का सम्बन्ध साधनों से है और अराजकतावाद का लक्ष्यों से। इस प्रकार ये दोनों विचारधाराएं एक-दूसरे की पूरक कही जा सकती है, किन्तु ऐसा होते तुए भी इन दोनों विचारधाराओं में कुछ महत्वपूर्ण अन्तर हैं जिनका उल्लेख निम्न रूपों में किया जा सकता है।
(1) साम्यवाद का मुख्य शत्रु पंजीवाद है और गौण शत्रु राज्य इसके विपरीत अराजकतावाद का मुख्य शत्रु राज्य और गौण शूत्र पूंजीवाद है- यद्यपि अराजकतावाद और साम्यवाद दोनों का ही अन्तिम लक्ष्य वर्गविहीन और राज्यविहीन समाज की स्थापना है, लेकिन साम्यवाद में एक ऐसी अन्तरिमकालीन व्यवस्था की गयी है, जो अराजकतावादी दर्शन को स्वीकार्य नहीं हो सकती। साम्यवाद ‘सर्वहारावर्ग के अधिनायकवाद’ (Dictatorship of the proletariat) के रूप में राज्य को उस समय तक स्थापित रखना चाहता है, जब तक कि वे इस अधिनायकवाद की सहायता से पूंजीवाद और उसके सहायक तत्वों को समाप्त न कर दें। इसके विपरीत, अराजकतावादी राज्य और पूंजीवाद दोनों को एक साथ समाप्त कर देना चाहते हैं। य साम्यवादियों की तरह अस्थायी रूप में भी राज्य के अस्तित्व को बनये रखना नहीं चाहते।
(2) सभी अराजकवादी व्यक्तिगत सम्पत्ति के शत्रु नहीं हैं- अराजकतावाद के दो रूप हैं—प्रथम व्यक्तिवादी अराजकतावाद जो व्यक्तिगत सम्पत्ति को बनाये रखना चाहता है, यद्यपि उसका मूल्य व्यक्ति के श्रम पर आधारित होगा और द्वितीय साम्यवादी अराजकवाद जो व्यक्ति से सम्पत्ति का अधिकर छीनकर सामाजिक कल्याण के लिए इसे एच्छिक समुदायों को सौंपना चाहता है। साम्यवाद व्यक्तिगत सम्पत्ति का घोर शत्रु है और इसीलिए व्यक्तिवादी अराजकतावाद और साम्यवाद में परस्पर वैर है।
(3) साम्यवादी अपने आधारभूत विश्वास के रूप में हिंसा में विश्वास करते हैं जबकि अराजकतावादी क्रान्ति के लिए हिंसा के प्रयोग के साथ-ही-साथ जनता को अराजकतावादी विचारधारा से शिक्षित करने पर जोर देते हैं। अराजकतावादी नेता बाकुनिन तथा क्रोपाटकिन का विचार था कि हिंसात्मक क्रान्ति बहुत सावधानी से और बहुत शिक्षा तथा प्रचार के बाद ही की जानी चाहिए। इस प्रकार अराजकतावाद के दो साधन (शिक्षा और हिंसात्मक क्रान्ति) है जबकि साम्यवाद का केवल एक साधन (हिंसात्मक क्रान्ति) है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अराजकतावाद साम्यवाद के साधनों के क्षेत्र में अधिक तर्कसंगत है।
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