मानव अधिकार तथा मूलभूत स्वतंत्रताओं से आप क्या समझते हैं?
मानव अधिकार तथा मूलभूत स्वतंत्रता – वर्तमान समय की तरह पुराने समय में मानव अधिकारों की समस्या एक विश्व व्यापी समस्या नहीं थी। यह विश्व के प्रत्येक राज्य के अधिकार का विषय हुआ करता था। राज्य निश्चित करता था, कि नागरिकों को कौन-कौन से नागरिक अधिकार प्रदान किये जाए लेकिन बीसवीं शताब्दी में मानव अधिकारों के प्रश्न ने एक विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया था। अधिकार सामाजिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं जिनके बिना न तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही समाज के लिए उपयोगी कार्य कर सकता हैं। इसीलिए राज्यों द्वारा नागरिकों को अधिकार प्रदान किये जाते है।
मानव अधिकार सदियों के ऐतिहासिक विकास की देन है। सदियों से मानवता ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। उसी के परिणामस्वरूप मैग्नाकार्टा 1215, बन्दी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम, 1976, और अधिकार अधिनियम 1979 की घोषणाएं हुई थी। अमेरिका में भी स्वतंत्रता सम्बन्धी उद्घोषणा 1776 में हुई थी। उपर्युक्त घोषणाओं से हम आज के मानव अधिकारों का महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ कह सकते हैं। इतना ही नहीं 1941 में उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट ने चार प्रकार की स्वतंत्रताओं का उल्लेख किया था। इनमें भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म तथा विश्वास की स्वतंत्रता, अभाव में स्वतंत्रता, धर्म एवं विश्वास स्वतंत्रता है। यह सभी अधिकार विश्व में प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होने चाहिए। मानव अधिकारों तथा आधारभूत स्वतंत्रताओं पर बार-बार विचार विमर्श अनेक सम्मेलनों में होता रहा है। लेकिन 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र तैयार करने के लिए सैनफ्रांसिसको सम्मेलन में घोषणा पत्र तैयार करने वालों में मानव अधिकारों तथा मूलभूत स्वतंत्रताओं से सम्बन्धित प्रावधानों की आवश्यकताओं को स्वीकार कर लिया।
संयुक्त राष्ट्र संघ और मानव अधिकार
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में पहली बार मानव अधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा पर बल दिया गया है। जार्ज स्वर्जन बर्जर ने कहा है कि विश्व के शुभचिन्तकों और शताब्दियों के गम्भीर प्रयासों के चलते संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अंतिम लेख में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया गया है। चार्टर की प्रस्तावना में भी मानव के मूल अधिकार, मानव की गरिमा और महत्व में सभी देशों के नर नारियों के समान अधिकारियों में आस्था प्रगट की गयी है। चार्टर के प्रथम अनुच्छेद में “मानव अधिकारों तथा सभी के लिए बिना जाति, लिंग, भाषा अथवा धार्मिक भेदभाव के स्वतंत्रताओं को उन्नत तथा प्रोत्साहित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने की बात कही गयी है। अनुच्छेद 55 में यह प्रावधान है कि संयुक्त राष्ट्र संघ जाति, लिंग-भाषा, धार्मिक भेदभाव के बिना सभी के लिए मानव अधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्रताओं की प्राप्ति के लिए सभी सदस्य राज्यों के दायित्व सौंपा गया है कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग प्रदान करेंगे। अनुच्छेद 76 में अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण परिषद का मौलिक ध्येय बिना किसी भेदभाव के मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति आस्था बताई गई है।
मानव अधिकारों को सुरक्षित रखने का दायित्व मनुष्यों को दिया गया है। इसलिए चार्टर को संयुक्त राष्ट्र के मनुष्यों (The Peoples of the United Nations) के नाम के बनाया गया है। चार्टर ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को यह वैधानिक उत्तरदायित्व दिया है कि वे संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से व्यक्ति एवं सामूहिक रूप में मानव अधिकारों की रक्षा करे। चार्टर के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र को मानव अधिकारों के सम्बन्ध में केवल प्रोत्साहन देने का ही अधिकार है। किसी प्रकार की कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है। चार्टर में मानव अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं का केवल उल्लेख है। इनकी कोई व्याख्या नहीं की गयी है। संयुक्त राष्ट्र का कार्य केवल इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देना और प्रोत्साहित करना मात्र है।
मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा
मानव अधिकारों के मूलभूत सिद्धांतों का मसौदा तैयार करने के लिए मानव अधिकार आयोग (U.N. Commission on Human Rights) की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा द्वारा की गयी। इसी आयोग की अध्यक्षता श्रीमती रूजवेल्ट को बनाया गया था। मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा का प्रारूप आयोग द्वारा तैयार किया गया जिसे महासभा की सामाजिक समिति ने 7 दिसम्बर 1948 को स्वीकार कर लिया। बाद में इसे महासभा की स्वीकृति के लिए पेश किया गया। जिसे कुछ संशोधनों के साथ 10 दिसम्बर 1948 को रात में सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। मानव अधिकार घोषणा पत्र में कुल 30 अनुच्छेद है। जिनके अंतर्गत नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार भी सम्मिलित है। यह घोषणा पत्र जिसमें मात्र 30 अनुच्छेद हैं निम्न प्रकार हैं :
अनुच्छेद 1: सभी मनुष्य जन्म से स्वतंत्र है और अधिकार व मर्यादा में समान है सब में विवेक व बुद्धि है, अतः उन्हें एक दूसरे के प्रति मातृभाव युक्त व्यवहार करना चाहिए।
अनुच्छेद 2 : प्रत्येक व्यक्ति, जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, जम या किसी दूसरे प्रकार के भेदभाव के इस घोषाण में व्यक्ति किये गये। सभी अधिकारों और स्वतंत्रताओं का अधिकारी है। इसके अतिरिक्त किसी स्थान अथवा देश जिसका वह व्यक्ति नागरिक है, राजनीतिक परिस्थिति के आधार पर भेद नहीं किया जायगा, चाहे वह स्वतंत्र हो, संरक्षित हो या स्वशासनाधिकार से हिवहीन हो ।
1.1. नागरिक तथा समाजिक अधिकार : घोषणा पत्र में अनुच्छेद 3 से 21 तक विभिन्न नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।
अनुच्छेद 3 : प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वाधीनता और सुरक्षा का अधिकार है।
अनुच्छेद 4 : किसी व्यक्ति को गुलामी में नहीं रखा जा सकेगा। गुलामी सभी क्षेत्रों में सर्वथा निषिद्ध होगी।
अनुच्छेद 5 : किसी व्यक्ति को अमानुषिक दण्ड नहीं दिया जायगा और न उसके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जायगा।
अनुच्छेद 6 : प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार होगा कि वह सभी जगह कानून के अधीन व्यक्ति माना जाए।
अनुच्छेद 7: कानून के समक्ष सभी समान है और किसी भेदभाव के बिना कानूनी सुरक्षा के अधिकारी है।
अनुच्छेद 8ः प्रत्येक व्यक्ति को कानून द्वारा प्राप्त मौलक अधिकारों को भंग करने वाले कार्यों के विपरीत राष्ट्रीय न्यायालयों से संरक्षण पाने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 9: किसी व्यक्ति की अविधिक गिरफ्तारी कैद अथवा निष्कासन न हो सकेगा।
अनुच्छेद 10: प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायालय द्वारा उसके विरूद्ध आरोपित किसी अपराध निर्णय के लिए सार्वजनिक तरीके से सुनवाई करने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 11: (अ) किसी व्यक्ति जिस पर दण्डनीय अपराध का आरोप है, तब तक अपराधी नहीं समझा जायगा। जब तक उसे खुले आम मुकदमें द्वारा, जिसमें उसे अपने को निर्दोष साबित करने के लिए उचित अवसर प्राप्त रहा हो, अपराधी सिद्ध नहीं किया जाता।
(ब) जो आरोप, अपराध करने के समय किसी राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार दण्डनीय नहीं था, उस आरोप के लिए अपराध के बाद बने हुए कानून द्वारा किसी व्यक्ति को दण्डित नहीं किया जा सकता। जो दण्ड अपराध करने के समय कानून के अनुसार वैध थी उससे अधिक दण्ड बाद में बने हुए कानून के मन्तव्य के अनुसार नहीं दी जा सकेगी।
अनुच्छेद 12: किसी से भी पारिवारिक, व्यक्तिगत और पत्र व्यवहार की गोपनीयता में किसी भी प्रकार का मनमानी दखल नहीं दिया जायगा और न उसके सम्मान और ख्याति पर आघात पहुँचाया जायगा ।
अनुच्छेद 13: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को अपने राज्य की सीमा के अंतर्गत आवागमन और निवास को स्वतंत्रता का अधिकार होगा।
(ब) प्रत्येक व्यक्ति के किसी भी देश को, जिसमें उसका भी देश सम्मिलित है, छोड़ने का अधिकार है और अपने देश में लौट जाने का अधिकार है।
अनुच्छेद 14: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को प्रताड़ना से बचने के लिए किसी भी देश में आश्रय लेने और सुख से रहने का अधिकार है।
(ब) अराजनीतिक अपराध अथवा संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों के विरूद्ध होने वाले कार्यों के परिणामस्वरूप दण्डितव्यक्ति अधिकार से वंचित रहेंगे।
अनुच्छेद 15: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है।
(ब) कोई व्यक्ति राष्ट्रीयता से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जा सकेगा और उसको न राष्ट्रीयता पविर्तन करने के मान्य अधिकार से ही वंचित किया जायेगा।
अनुच्छेद 16: (अ) वयस्क पुरूष और स्त्री को जाति, राष्ट्रीयता अथवा धर्म की पाबन्दी के बिना विवाह करने और परिवार स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। प्रत्येक नर-नारी को विवाह करने का वैवाहिक जीवन में और वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद के समान अधिकार प्राप्त है।
(ब) विवाह के इच्छुक दम्पत्ति की स्वीकृति पर पूर्ण स्वतंत्रतापूर्वक विवाह सम्पन्न होगा।
अनुच्छेद 17: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं या दूसरे के साथ सम्मिलित सम्पत्ति रखने का अधिकार है।
(ब) कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 18: प्रत्येक व्यक्ति को विचार, अनुभूति तथा धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 19: प्रत्येक व्यक्ति को अपना मत और विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। इसके अंतर्गत स्वेच्छा से विचार रखने, विचार और सूचना माँगने, प्राप्त करने और देने की स्वतंत्रता सम्मिलित है।
अनुच्छेद 20: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता है।
(ब) किसी व्यक्ति को किसी संस्था में सम्मिलित होने के लिए बाध्य नहीं किया जायगा ।
अनुच्छेद 21: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के प्रशासन में स्वतंत्र रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का अधिकार है।
(ब) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सार्वजनिक सेवा में चयनित होने की समान सुविधा का अधिकार है।
(स) लोकमत ही प्रशासन शासनाधिकार का आधार होगा। यह लोकमत, निश्चित अवधि और निश्चित प्रक्रिया के द्वारा सम्पन्न हुए निर्वाचनों से प्रगट होना। यह निर्वाचन सर्वसाधारण के मताधिकार क से निश्चित प्रक्रिया और गुप्त मतदान द्वारा सम्पन्न किये जायेंगे।
1.2. आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार : घोषण पत्र की अनुच्छेद 22 से 27 तक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की विवेचना की गयी है। इन अधिकारों को मानव के आत्म सम्मान और स्वतंत्रता के लिए आवश्यक बताया गया है।
अनुच्छेद 22: प्रत्येक व्यक्ति समाज का सदस्य होने के नाते, सामाजिक सुरक्षा का अधिकारी है। राष्ट्रीय प्रयत्न और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से प्रत्येक राज्य के संगठन और साधनों के अनुसार सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्वतंत्र विकास के लिए आवश्यक है, प्राप्त करने का अधिकार रखता है।
अनुच्छेद 23: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को काम करने, जीविकोपार्जन के लिए काम चुनने, कार्य की उचित एवं अनुकूल परिस्थितियों प्राप्त करने का अधिकार है। (ब) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के रक्षार्थ यूनियन बनाने तथा उसमें सम्मिलित होने का अधिकार है।
अनुच्छेद 24: प्रत्येक व्यक्ति को आवकाश एवं विश्राम के अधिकार है। काम के घण्टों का निर्धारण और सवेतन अवकाश की सुविधा प्राप्त करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 25: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसा जीवन स्तर स्थापित करने का अधिकार है जो उसके तथा उसके परिवार के स्वास्थ्य एवं सुख के लिए पर्याप्त हो ।
(ब) प्रत्येक माता तथा शिशु के मातृत्व तथा बच्चे की विशेष देखभाल और सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। बच्चे जायज हो या नाजायज सभी समान रूप से सामाजिक संरक्षण का उपभोग करेंगे।
अनुच्छेद 26: (अ) प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा पाने का अधिकार है। शिक्षा प्रारम्भिक और मौलिक अवस्था में निःशुल्क होगी। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जायगी। और योग्यता के आधार पर उच्च शिक्षा सभी सन्तान रूप से प्राप्त कर सकेंगे।
(ब) शिक्षा का लक्ष्य व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं की प्रतिष्ठा बढ़ाना होगा।
(स) माता-पिता को अपनी सन्तान के लिए शिक्षा किस प्रका दी जाय चुनने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 27 : प्रत्येक व्यक्ति को समाज के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने, आनंदित होने और उसके विकास से लाभांवित होने का अधिकार होगा।
1.3. सामाजिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था सम्बन्धी अधिकार
घोषणा पत्र की अंतिम तीन अनुच्छेदों 28 से 30 में यह माना गया है कि प्रत्येक मानव को ऐसी सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पाने का अधिकार है जिसमें विश्व शांति और सुरक्षा हो।
अनुच्छेद 28 : प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का अधिकारी है, जिससे इस घोषणा में निर्दिष्ट अधिकारों और स्वतन्त्रताओं की पूर्ण प्राप्ति हो सके।
अनुच्छेद 29 : (अ) प्रत्येक व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ ऐसे कर्तव्य हैं, जिनसे उसके व्यक्तित्व स्वतंत्र एवं पूर्ण विकास सम्भव व्यक्तित्व हो|
(ब) प्रत्येक व्यक्ति को सीमाओं के अन्दर रहकर अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं का उपभोग करने का अधिकार होगा। जो विधि द्वारा उस उद्देश्य से निर्धारित की गयी है कि दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं का अपेक्षित सम्मान एवं प्रतिष्ठा बनी रहे। इसका उद्देश्य लोकतांत्रिक समाज में जनकल्याण शांति और नैतिकता बनी रहे।
(स) संयुक्त संघ के उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों के विरूद्ध किसी भी दशा में अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं का प्रयोग न किया जा सके।
अनुच्छेद 30 : संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र में दिए गए किसी भी आदेश के ऐस अर्थ न लगाए जा, जिससे किसी राज्य को समूह या व्यक्ति को किसी भी ऐसे काम में लगाने या, करने का अधिकार मिले, जिसका इस घोषणा पत्र में वर्णित अधिकारों और स्वतंत्रताओं में से किसी को नष्ट करने का उद्देश्य हो ।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानव अधिकारों को विश्वव्यापी घोषणा को हम एक अंतर्राष्ट्रीय मैग्राकार्टा अथवा मानव अधिकारों का एक अंतर्राष्ट्रीय चार्टर कहकर पुकार सकते हैं। जार्ज स्वर्जन बर्जर ने ठीक ही कहा है कि संभवतः किसी आधुनिक संविधान में मानव अधिकारों का इस प्रकार का उत्तम उल्लेख नहीं किया गया है। जिसमें व्यक्ति के स्वतंत्रता सम्बन्धी अधिकारों को पूर्णरूप से स्वीकार किया गया है। इतना ही नहीं इस घोषणा में बताया गया है कि एक स्वतंत्र समाज में व्यक्ति में व्यक्ति के क्या अधिकार है। पामर एवं पर्किंस के अनुसार “यह घोषणा केवल आदर्शों का प्रतिपादन है, कानूनी रूप से बाध्य करने वाला कोई समझौता नहीं है परन्तु यह एक महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है।”
मानवाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्र
मानवाधिकारों की घोषणा के साथ ही दो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्रों पर कार्य शुरू हुआ। इन प्रतिज्ञा पत्रों में एक सम्बन्ध व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से है। जबकि दूसरे का सम्बन्ध व्यक्तियों के नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर आधारित है। इन प्रतिज्ञा पत्रों का उद्देश्य अधिकारों को वैधानिक रूप प्रदान करना है। उपर्युक्त दोनों को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 16 दिसम्बर 1966 को अनुमोदित किया। 31 दिसम्बर 1994 तक 131 देश अपना समर्थन दे चुके थे।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्रों द्वारा जिन मानवाधिकारों को प्रोत्साहित एवं संरक्षित किया गया है वे निम्न हैं न्यायपूर्ण और उचित परिस्थितियों में काम का अधिकार शारीरिक एवं मानसिक सुख, उचित जीवन स्तर और सामाजिक संरक्षण के लिए उपलब्ध किए जा सकने वाले उच्चतम स्तरों का अधिकार और शिक्षा और सांस्कृतिक स्वतंत्रता एवं वैज्ञानिक प्रगति से मिले लाभों को प्राप्त करने का अधिकार ।
प्रतिज्ञा पत्र में उपर्युक्त अधिकारों को बिना किसी भेदभाव के सभी को प्रदत्त कराने की बात की गयी है। इस प्रतिज्ञा पत्र के अंतर्गत एक 18 सदस्यीय मानवाधिकार समिति का गठन किया गया है। जो विभिन्न देशों द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्टों पर विचार करती है और देखती है। कि सम्बन्धित देश में प्रतिज्ञा पत्र के प्रावधानों को लागू करने के लिए किस तरह के कदम उठाये गये हैं। इसके साथ ही यह समिति प्रतिज्ञा पत्र को लागू करने में मदद देने के उद्देश्य से विभिन्न देशों की सरकारों की अपनी टिप्पणियों के जरिए मदद भी करती है। इसके विपरीत एक ऐसी व्यवस्था भी इस समिति ने की है। जिसके आधार पर इस बात की निगरानी भी की जाती है कि सम्बन्धित देशों ने उसकी पर अमल किया है या नहीं किया है।
घोषणा पत्र का महत्व
मानवाधिकार सम्बन्धी सार्वजनिक घोषणा अंतर्राष्ट्रीय जगत की एक ऐतिहासिक घटना है। यह घोषणा “सभी देशों और सभी व्यक्तियों के लिए सफलता का एक सामान्य मापदण्ड है।” महासभा के पूर्व अध्यक्ष कारलस पी. रोम्यूलों के अनुसार “यह सबसे व्यापक लेख है। यह इतिहास का प्रथम लेख है जिसमें समस्त विश्व के दृष्टिकोण के विश्व के सभी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं की परिभाषा दी गयी है।” यह लेख वास्तव में एकड़ अंतर्राष्ट्रीय उपल है जिसके अंतर्गत पहली बार मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के सिद्धान्तों को अधिकार पूर्ण ढग तथा विस्तृत रूप में बताया गया है। निम्नलिखित रूप में महत्व का वर्णन कर सकते हैं।
1. यह घोषणा सामान्य मनुष्यों की सबसे उच्चतम आकांक्षाओं का प्रदर्शन करती है।
2. यह घोषणा सार्वभौमिक है अर्थात सम्पूर्ण विश्व के लिए बनी है।
3. मानव अधिकारों की घोषणा बिना किसी भेदभाव के सभी मनुष्यों के लिए है।
4. इस घोष्ज्ञण पत्र में अधिकारों स्वतंत्रताओं का क्षेत्र विश्वव्यापी है। अतिहास की यह पहली घटना है जब मानव अधिकारों की इतनी व्यापक प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्रदान की गयी है।
5. यह घोषणा किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी समूह विशेष द्वारा नहीं बनायी गयी है। बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रों के एक संगठित समाज ने इनका निर्माण किया है।
संयुक्त राष्ट्र के प्रारम्भ में ही इस घोषणा का समर्थन और प्रेरणा लेगें। महासभा के भूतपूर्व अध्यक्ष रोम्यूलो के अनुसार, “यह घोषणा राष्ट्रीय सीमाओं से परे है। जाति और धर्म का ध्यान नहीं रखती है। यह मानव अधिकारों और स्वतंत्रताओं की पहली सामूहिक योजना है।”
आलोचना : मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की आलोचना अनेक आधारों पर की जाती है जो निम्नाकित है :
1. मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा कोई वैधानिक लेख पत्र नहीं है। इन अधिकारों को लागू करने के लिए किसी साधन की व्यवस्था नहीं की गयी है और न यह विश्व के राष्ट्रों पर इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं को सम्मान करने का कोई उत्तरदायित्व सौंपता है।
2. इन घोषणाओं में कतिपय अनावश्यक बातों का उल्लेख किया गया है और अनेक
3. महत्वपूर्ण बातों को छोड़ दि गया है। विश्व के सभी मनुक्ष्यों के अधिकारों के सम्बन्ध में जन्मजात स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांत को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है।
4. इन अधिकारों की अवहेलना की स्थिति में कोई अन्तर्राष्ट्रीय वैधानिक पग उठाने की व्यवस्था नहीं है। इसलिए इनका कोई औचित्य नहीं है।
मानव अधिकारों का क्रियान्वयन : संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में मानव अधिकारों की विश्व्यापी घोषणा के क्रियान्वयन की दिशा में कदम उठाए गए हैं। इसके लिए मानव अधिकार आयोग-अधिकारों की समस्याओं पर हमेशा विचार विमर्श करता रहता है। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद सदस्य राज्यों से अधिकारों के सम्बन्ध में वार्षिक प्रतिवेदन माँगती है। महासभा और आर्थिक सामाजिक परिषद ने मानव अधिकार सम्बन्धी अनेक समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया है।
महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए भी संयुक्त राष्ट्र ने आवश्यक कदम उठाए हैं। महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों के संदर्भ में सितम्बर 1952 में महासभा ने एक उपसंधि बनायी जो जुलाई 1954 को लागू की गयी। इसके अनुसार महिलाओं को पुरूषों के समान मत देने, सार्वजनिक पद ग्रहण करने और अन्य सार्वजनिक कार्यों का अधिकार दिया गया। इस उपसंधि को 21 देशों द्वारा एक वर्ष के अन्दर ही स्वीकार कर लिया गया। इसी प्रकार दासता तथा दास व्यापार के उन्मूलन के संदर्भ में सदस्य राज्यों से यह निवेदन किया गया कि वे दास व्यापार और दासता से सम्बन्धित सभी रीति-रिवाजों का उन्मूलनकर दे। इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में भी भेदभाव को दूर करने का प्रबंध किया गया है।
आज संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लागू की गयी समस्त कार्यवाहियों के बावजूद मानव अधिकारों के विश्व में पूर्णतया सुरक्षित नहीं किया जा सका है। आज भी दक्षिणी अफ्रीका तथा रोडेसिया जैसे देशों में रंगभेद नीति चल रही है। मुस्लिम देशों में इस्लाम के आधार पर भेदभाव किया जाता है। आज भी अमेरिका के कुछ दक्षिणी राज्यों में कालो को अर्ध-गुलामों की तरह जीवन व्यतीत करने पड़ते हैं। आज की संधि राजनीति के संदर्भ में विश्व के सम्प्रभ राज्य मानव अधिकार सम्बन्धी घोषणाओं को सरकार रूप दे सकेंगे। एक संदिग्ध प्रश्न है। मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोष्ज्ञणा के पीछे कोई बाध्यकारी तथा कानूनी शक्ति नहीं है। फिर भी यह घोषणा स्पष्ट तथा निश्चित रूप से राज्यों के सम्मुख एक नैतिक आदर्श प्रस्तुत करती है। इस घोषणा ने अनक राज्यों के संविधानों तथा कानूनों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समझौते को भी प्रभावित किया है। पामर और पर्किन्स का विचार ठीक है कि “विश्व के कुछ ही भागों में मानव अधिकार तथा आधारभूत स्वतंत्रता वास्तव में सुरक्षित है। अधिकांश क्षेत्रों में तो अभी इनका कोई अर्थ नहीं है। “
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