गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों माना जाता है?
गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग (Gupta Kal the golden period of Indian history) – गुप्त काल में कला, साहित्य, विद्या आदि क्षेत्रों में विशेष प्रगति हुई। देश धन-धान्य से परिपूर्ण था। प्रजा का जीवन काल शान्तिमय तथा सुखमय था। भारत की सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति चरम सीमा पर थी। चोरी आदि का तनिक भी भय नहीं था। लोग घरों में ताला नहीं लगाते थे। इसी कारण आज का भारतीय इस काल पर गर्व करता है और इन्हीं कारणों से गुप्त साम्राज्य को स्वर्ण युग की संज्ञा दी गयी।
गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग निम्नलिखित कारणों से कहा जाता है-
1. महान् सम्राटों का युग (Period of great emperors)
गुप्तयुगीन सम्राट प्रतिभा सम्पन्न, योद्धा, पराक्रमी, रणकुशल तथा महान् कला प्रेमी थे। समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा स्कन्दगुप्त तीनों ही वीर तथा साहसी थे। इन शासकों ने विदेशियों को रणक्षेत्र में पराजित कर गुप्त साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया था।
2. राष्ट्रीय एकता का युग (Period of national integration)
विदेशी शासकों को पराजित कर तथा छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर विशाल साम्राज्य की स्थापना करना गुप्त सम्राटों का ही काम था।
3. उच्च कोटि की प्रशासनिक व्यवस्था (High class administrative manage ment)
गुप्तकालीन शासकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित और आदर्शपूर्ण था। उनका प्रशासन पर पूरा-पूरा नियन्त्रण था। शासन-प्रबन्ध की नियमितता ने देश के अन्दर शान्ति स्थापना कर दी थी।
4. लोक कल्याणकारी राज्य की व्यवस्था (System of mass welfare state)
गुप्त सम्राटों ने लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की थी। कृषि विकास के लिये राज्य की ओर से झीलें तथा तालाब आदि खुदवाये जाते थे। व्यापारियों और जनरक्षा के लिये राजमार्गों पर सरकारी कर्मचारी नियुक्त किये जाते थे। दीन-दु:खियों और रोगियों के लिये राज्य की ओर से प्रबन्ध होता था।
5. आर्थिक सम्पन्नता का युग (Period of economic prosparity)
गुप्त युग में देश ने आर्थिक क्षेत्र में विशेष प्रगति की। विभिन्न प्रकार के उद्योगों की इस युग में स्थापना हो चुकी थी।
6. व्यापार में प्रगति (Progress in trade)
इस काल में व्यापार चरम उन्नति पर पहुँच गया था। मध्य एशिया के देशों, पूर्वी देशों, दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों और द्वीप समूहों से तथा रोम, मिस्र, ईरान, अरब एवं अन्य पाश्चात्य देशों से निरन्तर व्यापार होता था।
7. धार्मिक सहिष्णुता का युग (Period of religious tolerance)
गुप्त सम्राटों में पर्याप्त धार्मिक सहिष्णुता थी। वे स्वयं ब्राह्मण धर्म को मानते थे परन्तु उन्होंने अपने शासनकाल में अन्य धर्मों को भी पनपने का अवसर दिया। नालन्दा के बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना में गुप्त शासकों का विशेष योगदान था।
8. साहित्य का विकास (Developrnent of literature)
साहित्य के क्षेत्र में गुप्तकाल में अपूर्व तथा उल्लेखनीय विकास हुआ। महाकवि कालिदास इसी युग में हुए थे। कालिदास उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य की सभा के उन सर्वोच्च विद्वानों में से थे, जो ‘नवरत्न’ कहलाते थे। कालिदास किस प्रकार इतने बड़े विद्वान् और कवि बन गये, इसकी बड़ी विचित्र और रोचक कथा है। उस समय शारदानन्द नाम के राजा के विद्युत्तमा नाम की कन्या थी। विद्युत्तमा ने यह घोषणा की कि जो मुझे शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा उसी के साथ में अपना विवाह करूँगी। अतः देश-विदेश के पण्डित शास्त्रार्थ करने के लिये आने लगे, परन्तु जो भी आता वही उससे पराजित और लज्जित होकर लौट जाता। पण्डितों को इस पर बड़ी ग्लानि हुई और वे बदला लेने का उपाय सोचने लगे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक युवक पेड़ की जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है। यह देखकर उन्होंने कालिदास को अपने साथ लिया और राजदरबार में पहुँचकर धोखे से कालिदास और विद्युत्तमा का विवाह करा दिया। एक दिन की बात है, एक ऊँट का बलबलाना सुनकर वह युवक अकस्मात् बोल उठा। ‘उटू-उटू ‘उष्ट्र’ को उट्र बोलते सुनकर विद्युत्तमा को पता लगा कि उसका पति तो निरा मूर्ख है और उसने तुरन्त उसे राजमहल से बाहर निकाल दिया। अपनी पत्नी से अपमानित होकर वह सीधे काली के मन्दिर में गया और उसकी आराधना करने लगा। काली का आशीर्वाद प्राप्त कर उसने विद्याध्ययन प्रारम्भ किया और अपना नाम कालिदास रख लिया। कठिन परिश्रम और अटूट लगन से कुछ ही समय में कालिदास संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् हो गये ।
उन्होंने अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ तथा ‘मेघदूत’ की रचना की थी। उनके अतिरिक्त गुप्त काल में सारवेण, विशाखदत्त, वत्समही, भैरवी, वसुबन्धु, बराहमिहिर आदि अन्य उच्चकोटि के विद्वान् थे। सुबन्ध ने ‘वासवदत्ता’ नामक गद्य काव्य तथा अमरसिंह ने विख्यात शब्दकोष ‘अमर कोष’ की रचना की थी।
9. विज्ञान का विकास (Development of science)
गुप्त युग में ज्योतिष, गणित, रसायनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र तथा खगोल विद्या ने विशेष प्रगति की । दशमलव प्रणाली की खोज इस काल में ही हुई। धातु-विज्ञान की प्रगति का प्रमाण दिल्ली स्थित महरोली का लौह-स्तम्भ है। आर्यभट्ट इस युग के महान् वैज्ञानिक और ज्योतिषी थे।
10. ललित कलाओं का विकास (Development of fine arts)
गुप्तकाल ललित कलाओं का स्वर्ण-युग माना जाता है। इस युग में वास्तु-कला, मूर्तिकला, चित्रकला, मुद्रण कला तथा संगीतकला आदि ने उल्लेखनीय प्रगति की है। अजन्ता की गुफाओं के अधिकांश चित्र इसी युग में बने थे। चित्रकला की दृष्टि से भी यह काल विश्व भर में विशेष उल्लेखनीय है। समुद्रगुप्त को अनेक मुद्राओं में वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।
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