मृदा अपरदन या मिट्टी का कटाव क्या होता है?
मृदा के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने अथवा अपने मूल स्थान से हट जाने को मृदा अपरदन कहते हैं।
मृदा अपरदन के कारण
मिट्टी का कटाव निम्नलिखित कारणों से होता है-
1. वर्षा की अधिकता – अधिक वर्षा के कारण मिट्टी ढीली पड़ जाती है और बह जाती है। नदियों में बाढ़ आ जाने के कारण भी बहुत-सी उपजाऊ मिट्टी बहकर समुद्र के गर्भ में समा जाती है।
2. तीव्र हवाएँ – मिट्टी का कटाव तेज हवाओं के कारण भी होता है। रेगिस्तान में यह क्रिया अधिक मात्रा में होती है।
3. तापमान में परिवर्तन – तापमान में शीघ्रता से परिवर्तन; जैसे- दिन में बहुत गर्मी और रात में बहुत ठण्ड होने के कारण चट्टानें टूटती हैं और मिट्टी का कटाव होता है।
4. भूमि की दशा – मिट्टी का कटाव मिट्टी के प्रकार ( Kinds) पर भी निर्भर करता है; जैसे – कोमल मिट्टी, पथरीली मिट्टी की अपेक्षा अधिक कटती है।
5. भूमि का ढाल – भूमि का ढाल अधिक होने से उसमें बहने वाला पानी उसे अधिक काटता है। यदि ढाल कम होगा तो पानी का वेग कम रहेगा और कटाव भी कम होगा।
6. वनों की कमी – वनों की कमी के कारण भूनि ठोस नहीं रहती और वर्षा का जल बहते समय भूमि को आसानी से काट देता है।
मृदा अपरदन या मिट्टी के कटाव की रोकथाम के उपाय
मिट्टी के कटाव की रोकथाम के लिये तथा क्षय वाली भूमि की उत्पादकता के पुनरुद्धार के लिये निम्नलिखित उपाय को काम में लाना आवश्यक है-
(1) वैज्ञानिक ढंग से वन लगाये जायें और लगे हुए वनों की रक्षा की जाय।
(2) नदियों के आसपास के क्षेत्रों में भूमि रक्षा से सम्बन्धित उपाय, जल सम्बन्धी साधनों तथा बाँध और जलाशयों के निर्माण की ही भाँति आवश्यक हैं।
(3) कृषि के तरीकों में सुधार किया जाय; जैसे-ढाल वाली भूमि में नीचे-ऊपर हल न चलाकर सहारे सहारे हल चलाया जाय, फसल अदल-बदलकर बोयी जाय तथा बिना जोती हुई भूमि को जोता जाय।
(4) सहकारी संस्थाओं द्वारा कृषकों को भूमि के कटाव के बारे में जानकारी दी जाय।
(5) भूमि उपयोग तथा मिट्टी संरक्षण के निमित्त राज्य स्तर पर एक केन्द्रीय बोर्ड स्थापित किया जाय, जो सम्बन्धित क्षेत्रों की देखरेख करता रहे।
(6) वन लगाकर भूमि को मरुस्थल होने से बचाया जाय।
(7) बड़ी-बड़ी नदियों पर बाँध बनाकर बाढ़ द्वारा होने वाले भूमि कटाव से भूमि की रक्षा की जाय।
मृदा अपरदन के लिये कृषि विधियां
अस्थाई (झूम) कृषि (Shifting Cultivation ) – पहाड़ी क्षेत्रों में बसे हुए आदिवासी लोग किसी क्षेत्र की झाड़ियों और वृक्षों को काटकर उन्हें जला देते हैं । इस प्रकार आदिवासी क्षेत्रों में वन विनाश की प्रक्रिया चलती रहती है, उन स्थानों पर पुनः वृक्षारोपण पर ध्यान नहीं दिया जाता ।
वर्षा ऋतु में फसलों कान बोना (Non cultivation in raining season) – प्राय: किसान भूमि की उत्पादन शक्ति बढ़ाने के लिये या अन्य किसी कारण से भूमि को बरसात के मौसम में नहीं बोते । इससे बरसात में कृषि क्षेत्र की उर्वराशक्ति तत्त्व वाली परत बरसाती जलप्रवाह तथा वायु वेग की चपेट में आ जाती है। अत: भूमि अपरदन होता है।
ओट्रोफिकेशन किसे कहते हैं?
जब अधिक से अधिक उर्वरक भूमि की उर्वराशक्ति के घटाव को देखते हुए प्रयोग में लाये जाने लगते हैं तो जल में नाइट्रेट (क्योंकि उसे रासायनिक नाइट्रेट अपनी भौतिक स्थिति से अपदस्थ करके बाहर निकाल देते हैं) की मात्रा बढ़ जाती है और जल भी प्रदूषित हो जाता है। इस तरह से बहिष्कृत नाइट्रेट जलकुण्डों या झीलों में एकत्रित हो उठते हैं तो वह झीलें और जलकुण्ड अपनी गहरायी खो देते हैं और एक दिन ऐसा आता है, जब वह झीलें लुप्त हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को ओट्रोफिकेशन (Eutrophication) कहा जाता है।
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