कीटनाशक क्या होते हैं? कुछ प्रमुख कीटनाशक और उनका उपयोग बताइये।
कीटनाशकों का प्रयोग जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है फसल को नुकसान पहुँचाने जाले कीड़ों और कीट पतंगों को नष्ट करने के लिये किया जाता है। विभिन्न प्रकार के रसायनों से युक्त कीटनाशक फसलों को रोगों से बचाने के लिये प्रयुक्त किये जाते हैं। पौधों में जीवाणु जनित रोग और कीटनाशकों द्वारा उनकी रोकथाम के उपाय इस प्रकार हैं-
1. बीम लाइट का रोग- यह रोग सेम के पौधों में रोग युक्त बीजों को बोने या जीवाणु युक्त खाद के प्रयोग करने से उत्पन्न होता है। पौधों को इस रोग से बचाने के लिये बीजों को हल्के फार्मेलीन या तूतिया के घोल में धोकर बोना चाहिये।
2. आलू के पौधों का रोग – इस रोग में आलू पर काले रंग के चकते पड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिये आलू बोने से पहले इसे पोटैशियम परमैंगनेट से धो लेना चाहिये। रोगग्रस्त बीज नहीं बोना चाहिये
3. लाल चकते का रोग- यह रोग अधिकांशतः सेम एवं नाशपाती आदि के पौधों में लगता है। अन्य पौधों को रोग से बचाने के लिये रोगग्रस्त पौधों को जड़ से उखाड़कर जला देना चाहिये।
4. मिलड्यू – यह रोग भी एक प्रकार की फफूँदी से फैलता है, जिससे पत्तों के ऊपर या कुछ भूरा-सा पदार्थ एकत्र हो जाता है या पारदर्शक तेल जैसे धब्बे पड़ जाते हैं। अंगूर, सेब, तो नाशपाती तथा ककड़ी आदि में यह रोग लगता है।
5. स्मटस – इस रोग में फफूँदी पौधों की जड़ में प्रवेश करती है तथा धीरे-धीरे जड़ से तने में फैलती हुई ऊपर तक आ जाती है। स्मटस का रोग प्रायः गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का तथा चावल में लगता है। रोगग्रस्त बीजों को गर्म पानी से धोने पर वे रोग मुक्त हो जाते हैं।
6. छेद करने वाले कीड़े- कपास की गिड़ार एवं चावल का गुवरीला आदि लम्बे पौधों की जड़, तने तथा फल आदि में घुसकर उनके भोजन को खा जाते हैं।
7. चूसने वाले कीड़े- खटमल आदि कुछ कीट पौधों के विभिन्न भागों में चिपककर उनसे रस का शोषण कर लेते हैं।
8. पत्तियों को खाने वाले कीड़े- टिड्डे, तितलियाँ एवं गुबरीला आदि कुछ कीट पेड़-पौधों की पत्तियों को चबाकर खा जाते हैं।
कीटनाशकों के दुष्प्रभाव
कीटाणुनाशकों में प्रयुक्त रसायन विषैले होते हैं। अतः यह मानवीय स्वास्थ्य के लिये घातक है। इनके द्वारा मनुष्यों में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इनका प्रयोग करने वाले विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं; जैसे-दमा, श्वांस रोग, कैन्सर, अन्धता, आर्थराइटिस आदि। कीटनाशकों के प्रयोग से जल प्रदूषण, थल प्रदूषण और वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। कीटनाशकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से भूमि के अम्लीय होकर वंजर हो जाने की सम्भावना बढ़ जाती है। जिन कीटों को कीटनाशकों द्वारा समाप्त कर दिया जाता है वे पुनः अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उत्पन्न हो जाते हैं। इन्हीं कीटनाशकों का उन पर पुनः बहुत ही कम प्रभाव पड़ता है।
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