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मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप को स्पष्ट कीजिये।

मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप
मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप

मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप

मुगलकालीन प्राथमिक शिक्षा के स्वरूप को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-

1. शिक्षा संस्थाएँ– मकतब प्राथमिक शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे। इनके अतिरिक्त खानकाहों और दरगाहों में भी प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाती थी। इन शिक्षा संस्थाओं में केवल मुस्लिम बालक ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे। यहाँ पर मौलवी अक्षर ज्ञान के साथ-साथ कुरान की आयतों को याद कराया करते थे। मकतब प्राय: मस्जिदों से लगे हुए होते थे।

2. प्रवेश- मुस्लिम युग में ‘बिस्मिल्लाह खानी’ की रस्म के बाद बालक अपनी शिक्षा प्रारम्भ करता था। यह रस्म उस समय होती थी, जब बालक 4 वर्ष, 4 माह और 4 दिन का होता था। इस रस्म के समय बालक के सम्बन्धी उपस्थित रहते थे और बालक नये वस्त्र पहनकर मौलवी साहब के सामने उपस्थित होता था। मौलवी साहब कुरान शरीफ की आयतें पढ़ते थे और बालक से उनको दोहरवाते थे। यदि बालक उन्हें दोहराने में असमर्थ होता था तो उसके द्वारा केवल ‘बिस्मिल्लाह’ कहा जाना ही पर्याप्त समझा जाता था।

3. पाठ्यक्रम- मकतबों का पाठ्यक्रम विभिन्न स्थानों पर विभिन्न था। साधारणत: छात्रों को पढ़ने, लिखने और साधारण अंकगणित की शिक्षा दी जाती थी। उनको सबसे पहले वर्णमाला के अक्षरों का ज्ञान कराया जाता था और उसके पश्चात् कुरान की कुछ आयतें कण्ठस्थ करायी जाती थीं। जब छात्र को पढ़ने और लिखने का पर्याप्त ज्ञान हो जाता था तब उसे व्याकरण और फारसी भाषा की शिक्षा दी जाती थी। व्यावहारिक शिक्षा के अन्तर्गत बातचीत करने के ढंग, सुन्दर लेख, पत्र-लेखन एवं अर्ज़ीनवीसी का प्रमुख स्थान था। नैतिक और चारित्रिक विकास के लिये शेख साही की प्रमुख पुस्तकें, ‘बोस्तां’ एवं ‘गुलिस्ताँ’ पढ़ायी जाती थीं और पैगम्बरों की कथाएँ एवं मुस्लिम फकीरों की कहानियाँ सुनायी जाती थीं। शहजादों और सम्पन्न परिवारों के छात्रों के लिये पाठ्यक्रम उनकी आवश्यकताओं के अनुसार विशेष प्रकार का होता था।

4. शिक्षण विधि- मकतबों में शिक्षा-विधि मौखिक और प्रत्यक्ष थी। छात्र को शुद्ध उच्चारण का ज्ञान हो जाने के बाद कलमा और कुरान की कुछ आयतें कण्ठस्थ करनी पड़ती थीं। कक्षा के सभी छात्र उच्च स्वर में एक साथ बोलकर पहाड़े रटते थे। मौलवी साहब नया पाठ तभी पढ़ाते थे, जब छात्रों को पिछला पाठ कण्ठस्थ हो जाता था। छात्र द्वारा लिखने के लिये लकड़ी की तख्ती का प्रयोग किया जाता था। जब उसे लिखने का अभ्यास हो जाता था तब वह पतले कलम से कागज पर लिखता था।

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