शिक्षण विधियों और अनुशासन के सम्बन्ध में गिजूभाई के विचार
शिक्षण विधियों के सम्बन्ध में गिजूभाई के विचार (Gijju Bhai’s thoughts related to teaching methods)
शिक्षण विधियों के सम्बन्ध में गिजुभाई के प्रमुख विचार निम्नलिखित प्रकार हैं-
(1) पूर्व विद्यालयी शिक्षण के क्षेत्र में प्रचलित परम्परागत विधियाँ, भाषण एवं पाठ्य-पुस्तक विधि का अन्त होना चाहिये।
(2) इस क्षेत्र में परिवर्तन एवं प्रयोग नितान्त आवश्यक हैं।
(3) पूर्व विद्यालयी शिक्षण में परिवर्तन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र शिक्षण विधियों में परिवर्तन है।
(4) पूर्व विद्यालयी शिक्षण क्षेत्र में औपचारिक विधियों का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। इस क्षेत्र की विधियाँ अनौपचारिक, सहज करके सीखने के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिये।
(5) गिजुभाई ने पूर्व विद्यालयी शिक्षण में मॉण्टेसरी पद्धति को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है तथा इसे बालक के सम्पूर्ण विकास के लिये उपयुक्त समझा है।
(6) पूर्व विद्यालयी शिक्षण के जिन विधियों पर गिजूभाई ने बल दिया है वे विधियाँ- नाटक पद्धति, कहानी पद्धति, भ्रमण पद्धति, अवलोकन पद्धति तथा मॉण्टेसरी पद्धति हैं।
गिजुभाई बधेका के अनुसार अनुशासन (Discipline according to Gijju Bhai Badheka)
गिजूभाई द्वारा अनुशासन निम्नलिखित प्रकार का होना चाहिये-
(1) बालकों के अनुशासन के विषय में गिजूभाई इस प्रकार सोचते थे, वस्तुत: हम हमारी मान्यताओं को बालक पर लादने के लिये इनाम एवं सजा देने के लिये दमनात्मक साधनों का प्रयोग करते हैं। बालकों के मन में यह स्थिति जेल की प्रथम सजा जैसी है।
(2) दण्ड के भय से तभी तक अनुशासन रहता है, जब तक दण्ड का भय स्थिर रहता है जैसे ही दण्ड का भय चला जाता है अनुशासन भी समाप्त हो जाता है। दण्ड का भय स्थिर नहीं रह सकता। अत: अनुशासन बालकों पर बहुत समय पर लागू नहीं रह सकता।
(3) माँ-बाप तथा शिक्षक इस बात को समझ लें कि मारने या ललचाने से बालकों में उच्छृंखलता आती है। भय और लालच से बालक ढीठ-हीन बन जाते हैं।
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