आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं?
आदर्शवाद एक ऐसा विचार है जो यह स्वीकृति देता है कि अन्तिम सत्ता मानसिक या आध्यात्मिक है। अब प्रश्न उठता है कि वह अन्तिम सत्ता क्या हैं ? अरस्तू के अनुसार – “शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक एवं बौद्धिक सद्गुणों का आधार बनाना है, व्यक्ति को ऐसे श्रेष्ठतम् मूल्यों से अलंकृत करना है जो मानवता के लिये आवश्यक हैं। यह धारणा ही आदर्शवाद का प्रतिरूप है।” जे. एस. रॉस (J.S. Ross) के शब्दों में- “अध्यात्मवादी दर्शन के बहुत से और विविध रूप हैं पर सबका आधारभूत तत्त्व है कि संसार का उत्पादन कारण मन या आत्मा है कि वास्तविक सत्य मानसिक स्वरूप है।” “Idealistic philosophy take many and varied forms, but the postulate underlying all is that mind or spirit is the essential world stuff that the true reality is of mental character.”
आदर्शवाद के सिद्धान्त (Principles of idealism)
आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(1) केवल मानसिक जीवन ही जानने योग्य है।
(2) जो कुछ मन संसार को देता है, केवल वही वास्तविक है।
(3) सच्ची वास्तविकता आध्यात्मिकता या विचार है।
(4) आत्म- निर्णय सच्चे जीवन का सार है।
(5) नैतिक मूल्य ही अन्तिम और वासाविक है।
(6) विचार और प्रयोजन ही सच्ची वास्तविकताएँ हैं ।
(7) व्यक्तित्व विचारों तथा प्रयोजनों का सम्मिश्रण है।
(8) ज्ञान का सर्वोच्च रूप अन्तर्दृष्टि है।
(9) इन्द्रियों द्वारा सच्ची वास्तविकता को नहीं जाना जा सकता।
(10) वस्तु की अपेक्षा विचार का अधिक मूल्य है क्योंकि विचार सत्य है।
(11) आदर्शवाद में आध्यात्मिक मूल्य (सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्), जो शाश्वत हैं, निहित होते हैं, इन मूल्यों की प्राप्ति के पश्चात् व्यक्ति ‘ईश्वर’ तक पहुँच सकता है, उसकी अनुभूति कर सकता है। रॉस ने इन गुणों को निरपेक्ष बताया है।
(12) ‘आदर्शवाद’ व्यक्तित्व के उन्नयन पर बल देता है। आदर्श व्यक्तित्व की प्राप्ति आत्मानुभूति है। समाज में रहकर व्यक्ति अपना समाजीकरण करे तथा अपने में दया, सद्भावना, स्नेह, सहकारिता एवं निष्ठा जैसे सामाजिक गुणों का विकास करे जो कि आदर्श व्यक्तित्व के गुण हैं। रॉस का यह कथन बड़ा सारगर्भित है—“मानव व्यक्तित्व सबसे अधिक मूल्यवान वस्तु है एवं वह ईश्वर की सर्वोकृष्ट कृति है।”
(13) आदर्शवाद अनेकत्व में एकत्व के सिद्धान्त का समर्थन करता है। संसार के समस्त अंगों का निर्देशक सर्वशक्तिमान ईश्वर है। संसार की समस्त वस्तुओं की विभिन्नता में एकता निहित है। इसी एकता को हम ईश्वर या चेतन तत्त्व के नाम से पुकारते हैं। आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक को सत्य की खोज तथा एकता का ज्ञान कराना है।
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