प्रकृतिवाद के अनुसार विद्यालय और अनुशासन की अवधारणा
प्रकृतिवाद के अनुसार विद्यालय और अनुशासन की अवधारणा- प्रकृतिवाद और अनुशासन (Naturalism and discipline)– प्रकृतिवादी मुक्तत्यात्मक अनुशासन के पक्ष में है। इनके अनुसार बालक पर किसी प्रकार का बाह्य दबाव या प्रभाव नहीं डालना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से उनकी प्राकृतिक क्षमताओं का दमन होगा ओर इसके कारण उनका उचित विकास अवरुद्ध हो जायेगा। रूसो ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘ ऐमिली’ में यह भावना व्यक्त की है कि शिशु के बाल्यकाल में अनुशासन केवल नैसर्गिक प्रेरणाओं के माध्यम से ही व्यक्त किया जा सकता है। स्पेन्सर भी मानते हैं कि व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन इस प्रकार के नैसर्गिक परिणामों के आधार पर ही अनुशासित होता है। जैसे, यदि कोई बालक अंगारे को हाथ में लेने का प्रयत्न करे तो उसे टोका नहीं जाना चाहिये। प्रकृति उसे अपने आप यह सिखा देगी कि अग्नि हाथ को जला देती है।
प्रकृतिवाद और विद्यालय (Naturalism and school)- प्रकृतिवादियों के अनुसार विद्यालय को एक स्वतन्त्र समाज के रूप में संगठित करना चाहिये। वहाँ पर न शिक्षकों का दबाव हो और न अन्य तत्त्वों का। वहाँ समय चक्र की भी कोई उपयोगिता नहीं है अत: बालक को ही स्वतन्त्र वातावरण में रहकर अपने अनुभव के आधार पर आगे बढ़ना चाहिये। विद्यालय का वातावरण आदर्शमय होना चाहिये। मॉण्टेसरी के अनुसार-“पाठशाला इस ढंग की होनी चाहिये, जिसमें बालक को एक आदर्श वातावरण उपलब्ध हो सके। जब वातावरण आदर्श होगा तब शिशु एक आदर्श शिक्षा की ओर पैर बढ़ाता जायेगा।”
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