प्रयोजनवाद से आप क्या समझते हैं?
दर्शन की आधुनिक विचारधारा प्रयोजनवाद है। इसके जन्मदाता प्रयोजनवादी दार्शनिक विलियम जेम्स हैं। जॉन ड्यूवी, जान लॉक तथा शिलर भी इसी श्रेणी में आते हैं। प्रयोजनवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रकृतिवाद, आदर्शवाद एवं यथार्थवाद इन सभी दर्शनों से अलग हटकर एक विशिष्ट दर्शन को स्वीकार करती है और व्यावहारिक जीवन की सत्यता को अपनी प्रेरणा का केन्द्रबिन्दु बनाती है। प्रयोजनवाद व्यावहारिक जीवन को ही अपना लक्ष्य बनाता है और जो भी वस्तु व्यावहारिक जीवन के लिये उपयोगी नहीं है, उसे छोड़ देता है। प्रयोग के आधार पर जो सत्य है उसे प्रयोग में लाते हैं।
प्रयोजनवाद का अर्थ (Meaning of Pragmatism)
अंग्रेजी के प्रैगमेटिज्म शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘प्रैग्मा’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ‘क्रिया’ अर्थात् वही सत्य है जो व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी है। प्रयोजनवादी शाश्वत मूल्य एवं अमूर्त वस्तुओं में विश्वास नहीं रखते क्योंकि ये देश-काल एवं परिस्थिति के अनुरूप बदलते रहते हैं। इस प्रकार प्रयोजनवाद या प्रयोगवाद यह विचारधारा है जो उन्हीं क्रियाओं, वस्तुओं, सिद्धान्तों तथा नियमों को सत्य मानती है, जो किसी देश-काल एवं परिस्थिति में व्यावहारिक या उपयोगी हैं।
(1) रस्क के अनुसार-“प्रयोजनवाद उस नये आदर्शवाद के विकास का एक चरण है जो आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक मान्यताओं में सामंजस्य उत्पन्न कर सकेगा।”
(2) रॉस के शब्दों में-“प्रयोजनवादी वस्तुतः एक मानवतावादी दर्शन है, जो यह मानता है कि मनुष्य कार्य करने में अपने मूल्यों का सृजन करता है एवं सत्य अभी निर्माण की अवस्था में और अपने स्वरूप का कुछ भाग भविष्य के लिये छोड़ देता है। हमारे सत्य में मनुष्य निर्मित वस्तुएँ हैं ।” “Pragmatism is essentially a humanistic philosophy maintaining that man creates his own value in the course of activity that reality is still in making and awaits part of its complexion from the future that to an unascertainable extent out truths are man made products.”
प्रयोजनवादी शिक्षा के उद्देश्य (Aims of pragmatism education)
प्रयोजनवादी शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. मूल्यों के निर्माण का उद्देश्य- प्रयोजनवादी आदर्शवाद के नियमों को बालकों पर नहीं लादना चाहते। प्रयोजनवाद ने शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नवीन मूल्यों का निर्माण माना है। उसके अनुसार बालक का मस्तिष्क उचित वातावरण में ही क्रियाशील रह सकता है तथा गतिशील भी। बिना इसके नवीन मूल्यों का सृजन असम्भव है।
2. बालक के विकास का उद्देश्य- प्रयोजनवादी बालक का विकास शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य मानते हैं परन्तु इसका विरोध हुआ है क्योंकि विकास की कोई दिशा निश्चित नहीं होती तथा कोई लक्ष्य एवं अन्त भी निश्चित नहीं होता।
3. सामाजिक व्यवस्था की योग्यता का उद्देश्य- जॉन ड्यूवी ने सामाजिक व्यवस्था वर्तमान भारतीय समाज की योग्यता को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना है, इससे ही सामाजिक कुशलता एवं सांस्कृतिक विकास सम्भव है। अतः मानव एवं सामाजिक कल्याण हेतु सुसंगठित वातावरण बनाया जाना चाहिये। यह शिक्षा में सामाजिक कुशलता के उद्देश्य को प्रस्तुत करता है।
4. गतिशील निर्देशन का उद्देश्य- प्रयोजनवादियों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालकों का गतिशील अध्ययन करना है। गतिशीलता परिवर्तनके कारण होती है। ड्यूवी विज्ञान को परिवर्तन के साथ अटूट रूप से जोड़ना चाहता है। उसका विचार है कि जहाँ पर स्थिरता का भाव है, वहाँ विज्ञान सम्भव नहीं है। परिवर्तन विज्ञान की प्रगतिशीलता के लिये आवश्यक है। विज्ञान के कुछ प्रयोगों का भी, जो जीवनोपयोगी हैं, प्रयोग किया जा सकता है।
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