प्रकृतिवाद के आधार पर शिक्षा के उद्देश्य
प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
1. मूल प्रवृत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तीकरण का उद्देश्य- मैक्डूगल ने मूल प्रवृत्तियों की बालक को सहज प्रवृत्तियाँ बताया है। रॉस के अनुसार, “शिक्षा का उद्देश्य सहज प्रवृत्तियों की ऊर्जाओं का शोधन सहज आवेगों का मार्गान्तीकरण सूत्र बन्धन और तालमेल करना है।”
2. वैयक्तिकता के स्वतन्त्र विकास का उद्देश्य – रूसो, पेस्टालॉजी तथा टी. पी. नन् के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य जन्मजात शक्तियों का स्वतन्त्र विकास करने में सहायता प्रदान करने से है। प्रकृतिवादी आत्माभिव्यक्ति को भी शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं, यह व्यक्तित्व के विकास करने में सहायता प्रदान करती है।
3. जीवन को संघर्ष के योग्य बनाने का उद्देश्य – डार्विन ने मानव विकास सिद्धान्त में कहा है कि अस्तित्व के लिये संघर्ष करो और योग्यतम सदैव विजयी होता है। प्रकृति अक्षम और असमर्थ प्राणियों को नष्ट कर देती है। केवल योग्य प्राण ही जीवित रह पाते हैं। अत: शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी योग्यताओं (क्षमताओं) का विकास करने से है जो उसके अस्तित्व को बनाये रखने में सहायक सिद्ध हों।
4. वातावरण से अनुकूलन करने की क्षमता का उद्देश्य- लेमार्क के अनुसार प्राणी का वातावरण के साथ समायोजन बहुत आवश्यक है, विकास सामाजिक भी हो सकता है और आध्यात्मिक भी। वातावरण प्राणी का स्वामी है, जिसका आदेश मानने के लिये वह बाध्य है। अत: वातावरण के साथ अनुकूलन शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना गया है उसका जैविक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास तभी सम्भव हो सकता है।
5. सुख की सुरक्षा का उद्देश्य- शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है बालक के सुख को सुरक्षित रखना ताकि भावी जीवन भी सुखमय रह सके। रूसो ने इस सम्बन्ध में एक सुन्दर कथन व्यक्त किया है-“ऐ पिताओ, इन सरल बालकों की इन प्रसन्नताओं को क्यों छीनते हो जो कि क्षण भर में मिट जायेंगी। बाल्यावस्था के शीघ्र व्यतीत हो जाने वाले दिनों को क्यों कलुषित करते हो, जो पुनः वापस नहीं आयेंगे। क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारे बालक को कब मृत्यु बुला लेगी, उन्हें जीवन का आनन्द लेने दो, जिससे ईश्वर उन्हें जब बुलाये वे बिना जीवन का आनन्द लिये ही न मर जायें।”
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