प्रकृतिवाद का अर्थ
प्रकृतिवाद का जन्म यूरोप की देन है, जो वहाँ की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक एवं धार्मिक क्षेत्रों की क्रान्ति के फलस्वरूप 18वीं सदी में देखने को मिला। प्रकृतिवाद के उल्लेखनीय शिक्षाशास्त्री रूसो, काण्ट, हाब्स, बेकन, हक्सले तथा स्पेसर हैं। प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो आध्यात्मिक तत्त्वों को स्वीकार करते हुए प्रकृति को अन्तिम सत्ता मानती है और मानव के प्राकृतिक स्वरूप के आधार पर सभी वस्तुओं की व्याख्या करती है। प्रकृतिवाद का अर्थ स्पष्ट करते हुए मारले ने प्रकृतिवाद का स्वरूप इन शब्दों में निश्चित किया है-“सबसे प्रेम करना, मानव प्रकृति में पूर्ण विश्वास करना, न्याय की सदा कामना करना और साधारणतया सन्तोष के साथ काम करना कि इससे दूसरों का उपकार होगा।” ज्वायसे के अनुसार, “प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है या प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन में उन बातों को स्थान न देना है जो हमारे अनुभवों से परे हों।”
प्रकृतिवाद के मुख्य सिद्धान्त (Main principles of naturalism)
प्रकृतिवाद के मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार हैं-
(1) केवल विज्ञान ही ज्ञान देता है।
(2) समस्त ज्ञान का आधार जन्मजात प्रवृत्तियाँ एवं इन्द्रियाँ हैं।
(3) संसार एक बड़ी मशीन है।
(4) वास्तविकता की व्याख्या प्राकृतिक विद्वानों द्वारा होती है।
(5) ज्ञान और सत्य का आधार ‘इन्द्रियों’ का अनुभव है।
(6) अपरिवर्तनीय प्राकृतिक नियम सभी घटनाओं को भली-भाँति स्पष्ट करते हैं।
(7) मनुष्य के सांसारिक जीवन की भौतिक दशाएँ विज्ञान की खोजों और मशीनों के आविष्कारों द्वारा बदल गयी हैं।
(8) कोई वस्तु पूर्णरूप से अच्छी या बुरी नहीं है।
(9) विकास की प्रक्रिया में मस्तिष्क एक घटना है। यह उच्च कोटि के जीवों में अधिक विकसित नाड़ी मण्डल का समूह है।
(10) प्रत्येक वस्तु प्रकृति से उत्पन्न होती है और उसी में विलीन हो जाती है।
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