भारतीय आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार आदर्शवाद के रूप
भारतीय शिक्षाशास्त्रियों की आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार आदर्शवाद के रूप अग्रलिखित प्रकार माने गये हैं-
1. अद्वैतवाद (Monotheism)
अद्वैतवाद का प्रतिपादन भारत के प्रमुख शिक्षाशास्त्री स्वामी शंकराचार्य ने किया था। अद्वैतवाद के अनुसार, ब्रह्म ही मूल तत्त्व है, जो इस सृष्टि का कर्त्ता है। भौतिक संसार मायाजाल तथा भ्रमजाल से युक्त है। मायाजाल रूपी पर्दे के हटने पर ही ब्रह्म दृष्टिगोचर होता है। शंकराचार्य ने अद्वैतवाद पर अपनी दार्शनिक विचारधारा का भारतीय शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में उद्घाटन किया है। शंकराचार्य ने अद्वैत दर्शन में सम्पूर्ण सृष्टि को कर्त्ता माना है अर्थात् ब्रह्म अपनी इच्छा से शक्ति का निर्माण करता है और इस शक्ति से वस्तु जगत् का निर्माण करता है। ब्रह्म अनादि, अनन्त और निराकार शंकराचार्य के शैक्षिक दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के विषय में यथास्थान पूर्व अध्याय अध्ययन करें।
2. द्वैतवाद (Dualism)
इस विचारधारा का समर्थन स्वामी माध्वाचार्य ने किया है। इस विचारधारा में दो मूल तत्त्वों की सत्ता को स्वीकार किया गया है। ये दो मूल तत्त्व कुछ विद्वानों के अनुसार, ‘ब्रह्म’ और ‘आत्मा’ हैं तथा एक वर्ग के अनुसार ‘जीव’ और ‘जड़’ हैं।
3. अनेकवाद या बहुलवाद (Pluralism)
इसमें दो से अधिक मूल तत्त्वों की सत्ता को स्वीकार किया गया है। ब्रह्म, जीव और प्रकृति ये तीनों ही मूल तत्त्व जाने जाते हैं।
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