बालक के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में शिक्षक की भूमिका (Role of a Teacher to Improve Mental Health of a child)
(1) स्वच्छ वातावरण- विद्यालय का वातावरण इस प्रकार का होना चाहिए कि बालक का समुचित रूप से शारीरिक और मानसिक विकास हो । यदि बालक का शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो उसका मानसिक स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सन्तुलित आहार, समुचित विश्राम, ठीक समय पर रोग का उपचार आदि आवश्यक है, शारीरिक स्वास्थ्य का प्रभाव बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। अतः विद्यालयों का यह कर्त्तव्य है कि वे उन साधनों को अपनायें जिनके द्वारा बालकों का शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहे। विद्यालय में नियमित शारीरिक शिक्षा, भोजन, विश्राम, खेल-कूद, व्यायाम, स्वच्छता तथा रोगों के उपचार आदि की व्यवस्था होनी चाहिए।
(2) शिक्षकों का स्नेहपूर्ण व्यवहार- यदि विद्यार्थियों के प्रति शिक्षक का व्यवहार सहानुभूति से विद्यार्थियों के प्रति भेदभावपूर्ण या रूखा है तो शिक्षक को उनसे आदर नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी शिक्षक का कहना नहीं मानते और ऐसे कार्य करते हैं जिनसे उसे खीझ आती है। ऐसे कार्य का विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(3) सन्तुलित एवं उचित पाठ्यक्रम- असन्तुलित पाठ्यक्रम के बोझ से विद्यार्थियों को मानसिक थकान होती है। व अध्ययन में कम रुचि लेते हैं और पढ़ाई को एक बोडा समझने लगते हैं। अतः यह आवश्यक है कि पाठ्यक्रम सन्तुलित हो, जिससे कि उनके ज्ञान में अपेक्षित वृद्धि हो सके और उनके मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव न पड़े। यह भी आवश्यक है कि पाठ्यक्रमेत्तर क्रियाओं के द्वारा अध्ययन के प्रति विद्यार्थियों में रुचि का विकास किया जाय। रुचिजन्य अध्ययन में विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य का समुचित विकास होता है।
(4) बाल-केन्द्रित शिक्षण विधियाँ- प्रायः ऐसा होता है कि बालक चालू शिक्षा विधि की नीरसता के कारण पढ़ाई में ध्यान नहीं देते और उनकी रुचि कम जाती है। इसके लिए आवश्यक है कि विद्यालय में बाल-केन्द्रित शिक्षण विधियाँ अपनाई जायें, जैसे-खेल विधि, प्रोजेक्ट विधि तथा मॉण्टेसरी विधि आदि। इन नवीन शिक्षण विधियों के प्रयोग से, जो क्रिया व्यवहार, अभ्यास, स्नायुभाव और स्वतन्त्रता के सिद्धान्त पर आधारित हैं, बालक का स्वस्थ मानसिक विकास होता है।
(5) शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन- बालकों के अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि विद्यालय में उन्हें समुचित शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन प्राप्त हो। यदि ऐसा होगा तो बालक विभिन्न विषयों के अध्ययन में रुचि लेगा और उसका अच्छा बौद्धिक विकास होगा। यदि अच्छा विकास होगा तो उसका मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।
(6) संवेगात्मक सुरक्षा की व्यवस्था- मानसिक स्वास्थ्य के लिए समुचित संवेगात्मक विकास अत्यन्त आवश्यक है। यदि संवेगों में सन्तुलन नहीं है तो बालकों के मन में मानसिक द्वन्द्व उत्पन्न होगा और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बालक के संवेगात्मक सन्तुलन के लिए आवश्यक है कि उन्हें सहानुभूति और प्यार से शिक्षा दी जाये।
(7) छात्रों के कार्यों को समुचित मान्यता- मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मानसिक द्वन्द्वों तथा कुसमायोजन से बालकों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। प्रत्येक छात्र अपने कार्यों की मान्यता चाहता है। जब उसे यह मान्यता नहीं मिलती तो उसके संवेग को ठेस पहुँचती है। और वह असामाजिक बातों की ओर आकर्षित हो जाता है तथा अपराध करने लगता है। अतः इस बात की आवश्यकता है कि विद्यालय में छात्रों के कार्यों को समुचित मान्यता प्राप्त हो और उनमें मानसिक द्रन्द्र तथा कुसमायोजन न उत्पन्न होने पाये।
(8) अच्छी आदतों का निर्माण- मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए छात्रों में अच्छी आदतों का निर्माण किया जाना चाहिए। शिक्षकों को बालकों में नियमित जीवन, सन्तुलित खान-पान और “सादा जीवन उच्च विचार” की आदतें डालने का प्रयास करना। चाहिए।
(9) शिक्षक-अभिभावक परिषद की व्यवस्था- बालक की शिक्षा में परिवार में अभिभावक का विशेष योगदान होता है, इसलिए बालक के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए शिक्षकों और अभिभावकों को मिलकर समय-समय पर विचार-विमर्श करना चाहिए। इस कार्य के लिए शिक्षक-अभिभावक परिषद की स्थापना की जानी चाहिए।
(10) मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से परामर्श- विद्यालय में बालकों के मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन करने तथा उनका निदान करने हेतु मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से परामर्श लिया जाना चाहिए। समस्यात्मक बालकों का अध्ययन करने के लिये विशेषज्ञों का परामर्श लिया जाना चाहिए और उनके उपचार की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
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