सूचना एवं संचार तकनीक की प्रमुख बाधाएँ (Various Barriers of Information and Communication Technology)
सम्प्रेषण में अनेकों बाधाएँ भी होती हैं जो सन्देश का मार्ग विचलित कर देती हैं। इसे हम निम्न चित्र द्वारा समझ सकते हैं-
उपर्युक्त चित्र की सहायता से हम समझ सकते हैं कि सन्देश में आई विकृति के मुख्यतया चार कारण होते हैं। इनसे सन्देश का मार्ग विचलित होकर कोण बन जाता है। इस कोण का मान जितना ज्यादा होगा, सन्देश की स्पष्टता /विकृति उतनी ही ज्यादा होगी। आदर्श सम्प्रेषण हेतु हमें इस कोण का मान न्यूनतम रखना होगा।
1. भौतिक बाधाएं- इसके अन्तर्गत निम्न बाधाएँ आती हैं
(1) बैठने की उचित व्यवस्था का न होना।
(2) कक्षा की भौतिक स्थिति सही न होना; यथा-अत्यधिक शोरगुल वाली जगह होना।
(3) प्रकाश की उचित व्यवस्था का न होना।
(4) लिखित सामग्री का सभी जगह से ठीक से न दिखना।
(5) मौसम की प्रतिकूलता का प्रभाव पड़ना ।
(6) खराब स्वास्थ्य का होना।
(7) आवाज गूंजना अथवा सबको अच्छी तरह से सुनाई न देना ।
(8) अनुकूल वातावरण का न होना ।
(9) कक्षा में असहजता की स्थिति का उत्पन्न होना।
(10) कक्षा में भ्रम की स्थिति का उत्पन्न होना।
2. भाषीय बाधाएँ- इनके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु आते हैं
(1) अनुचित प्रतीकों का प्रयोग।
(2) भाषा में व्याकरण सम्बन्धी दोष।
(3) विदेशी भाषा का प्रयोग ।
(4) भाषा के कठिन शब्दों का प्रयोग करना।
(5) उच्चारण सम्बन्धी दोष।
(6) भ्रमात्मक ग्राफ का प्रयोग ।
(7) अस्पष्ट चित्रों का प्रयोग।
(8) अत्यधिक मुहावरेदार / घुमावदार वाक्यों का प्रयोग ।
3. मनोवैज्ञानिक बाधाएँ- इनमें निम्नलिखित बाधाएँ आती
(1) उत्साहीनता की स्थिति।
(2) ‘भग्नाशा की स्थिति का होना
(3) पूर्वाग्रह का होना।
(4) एकाग्रचित न होना।
(5) तनाव का होना।
(6) निराशा का होना।
(7) अरुचि का होना।
(8) उत्सुकता की पूर्ति न होना।
(9) सामंजस्य न बिठा पाना।
(10) किसी तरह के विरोधाभास का होना ।
4. पृष्ठ-भूमि सम्बन्धी बाधाएँ- इनके अन्तर्गत निम्न प्रकार की बाधाएँ आती हैं-
(1) पूर्व अनुभवों का असंगत होना ।
(2) पूर्व ज्ञान का विरोधी होना।
(3) पूर्व वातावरण से बदलने में परेशानी ।
(4) सांस्कृतिक विरोधी ज्ञान की प्रस्तुति ।
सूचना एवं संचार तकनीक की बाधाओं को दूर करने के उपाय (Measures to remove the Barriers of Information and Communication Technology)
आदर्श सम्प्रेषण के मार्ग की बाधाओं को निम्न प्रकार से दूर किया जा सकता है-
(1) बैठने एवं खड़े होने की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
(2) कक्षा की स्थिति शान्तपूर्ण वातावरण में रखनी चाहिए।
(3) मौसम की प्रतिकूलताओं हेतु उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
(4) प्रकाश एवं ध्वनि का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए।
(5) सरल एवं स्पष्ट भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
(6) शुद्ध उच्चारण पर विशेष ध्यान दें।
(7) शब्दों को यथासम्भव कक्षा की मानसिक स्थिति के अनुरूप रखना चाहिए।
(8) भ्रमात्मक शब्दों के प्रयोग से बचें।
(9) अधिगमकर्ता को प्रेरित करें जिससे वह सम्प्रेषण प्रक्रिया में सक्रिय रहे।
(10) प्रदर्शित त्रित्र/ग्राफ समुचित प्रकार से बने एवं दिखाए जाने चाहिए।
(11) व्यक्तिगत भिन्नता को ध्यान में रखें।
(12) अधिगमकर्ता को अधिगम के दौरान सहयोग दें एवं सहानुभूति पूर्ण व्यवहार रखें।
(13) अधिगम की विधियों में पर्याप्त भिन्नता रखें।
(14) प्रत्येक अधिगमकर्त्ता की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का ध्यान रखें। (15) प्रतिपुष्टि प्रक्रिया पर विशेष बल दें।
(16) निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण का प्रयोग करें।
(17) प्रभावी श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करें।
(18) सन्देश की उपयोगिकता को स्पष्ट करें।
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