हिल्दा टाबा का व्यापक मूल्यांकन पाठ्यक्रम प्रतिमान (Hilda Taba Comprehensive Evaluation Curriculum Model)
शिक्षा के क्षेत्र में हिल्दा टाबा का पाठ्यक्रम प्रतिमान बहुत ही उपयोगी है। हिल्दा टाबा पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित करने में मूल्यांकन की भूमिका को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। यहाँ पर मूल्यांकन का अर्थ शिक्षण आयास से है, परीक्षण से नहीं। ब्लूम (B.S. Bloom) ने मूल्यांकन की जो परिभाषा प्रस्तुत की है उसी के अर्थ में हिल्दा टाबा ने ‘मूल्यांकन’ शब्द का प्रयोग किया है। ब्लूम ने मूल्यांकन को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
“विद्यालयों में छात्रों की प्रगति हेतु उनके व्यवहार के सम्बन्ध में प्रमाणों को एकत्रित करने तथा उनका अर्थापन करने की प्रक्रिया मूल्यांकन कहलाती है।”
“Evaluation is the process of gathering and interpreting evidence on the changes in behaviours of all the student as they progress through school.”
व्यापक मूल्यांकन पाठ्यक्रम प्रतिमान के चार प्रमुख सोपानों का वर्णन किया है जिन्हें प्रतिमान पाठ्यक्रम के सोपान में हिल्दा टाबा का प्रतिमान उल्लेखनीय है। हिल्दा टाबा ने अपने के रेखाचित्र में प्रदर्शित किया जा रहा है-
हिल्दा टाबा का पाठ्यक्रम प्रतिमान
इन सोपानों को हम निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-
1. प्रथम सोपान-उद्देश्यों का निर्धारण (Identification of Objectives) – हिल्दा टाबा के प्रथम सोपान के अन्तर्गत शिक्षा के उद्देश्यों की दृष्टि से पाठ्यक्रम का मूल्यांकन किया जाता है। इसमें ज्ञानात्मक, भावनात्मक क्रियात्मक, सृजनात्मक एवं प्रत्यक्षीकरण उद्देश्यों से सम्बन्धित प्रमाणों को एकत्रित करके शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। एक आधार बनाया जाता है।
2. द्वितीय सोपान-शिक्षा अधिगम क्रियाओं के लिए प्रमाण (Evidence on Teaching Learning Operations)- द्वितीय सोपान शैक्षिक अधिगम का प्रमाण प्रस्तुत करता है। इस सोपान के अन्तर्गत समुचित शिक्षण विधियों, प्रविधियों पाठ्य सामग्री को प्रयुक्त करके अधिगम के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं तथा अधिगम-अनुभवों हेतु प्रमाण एकत्रित किए जाते हैं।
3. तृतीय सोपान-अधिगम को प्रभावित करने वाले घटकों के लिए प्रमाण (Evidence on Factors Affecting Learning)- इसके अन्तर्गत अधिगम को प्रभावित करने वाले घटकों के लिए प्रमाण एकत्रित किए जाते हैं। ये प्रमाण पाठ्यक्रम निर्धारण में सहयोग देते हैं। उदाहरणार्थ- पुनर्बलन एवं अभिप्रेरणा से छात्र अधिक सीखते हैं अभ्यास अधिगम को स्थायी बनाता है दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग बालकों के अधिगम को प्रभावित करता है।
4. चतुर्थ सोपान-उद्देश्यों से सम्बन्धित छात्रों के व्यवहार के लिए प्रमाण (Evidence on Pupil Behaviour Pertaining Objectives )- चतुर्थ सोपान अथवा अन्तिम सोपान के अन्तर्गत पाठ्यक्रम की सार्थकता एवं उपादेयता की पुष्टि की जाँच की जाती है। यह जाँच उद्देश्यों की दृष्टि से की जाती है। अतः परीक्षण का स्वरूप उद्देश्य केन्द्रित है अतः व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रमाणों का संकलन किया जाता है। इन प्रमाणों के आधार पर पाठ्यक्रम का सुधार एवं विकास किया जाता है। हिल्दा टाबा ने इन्हीं सोपानों के आधार पर पाठ्यक्रम के प्रारूप हेतु चार अवस्थाओं का भी उल्लेख किया है। इन अवस्थाओं एवं सोपानों में बहुत अधिक समीपता भी है, ये चार अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
1. मूल्यांकन हेतु आवश्यक प्रदत्तों के स्वरूप का निर्धारण करना एवं उसे एकत्र करना।
2. आवश्यक यन्त्रों एवं प्रक्रिया का चयन करना अथवा उनके स्वरूप को निर्मित करना एवं निर्धारित करना ।
3. आवश्यक परिवर्तन से सम्बन्धित परिकल्पना के विकास हेतु प्रदत्तों का विश्लेषण एवं अर्थापन करना ।
4. परिकल्पना को कार्य रूप में परिवर्तित करना । अतः इस प्रतिमान में अवस्थाओं अथवा सोपानों का अनुसरण करते हुए प्रमाणों के आधार पर पाठ्यक्रम का विकास एवं सुधार किया जाता है। पाठ्यक्रम विकास हेतु यह प्रतिमान बहुत उपयोगी माना जाता है।
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