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शिक्षा द्वारा पर्यावरण जागरूकता | राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम

शिक्षा द्वारा पर्यावरण जागरूकता | राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम
शिक्षा द्वारा पर्यावरण जागरूकता | राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम

शिक्षा द्वारा पर्यावरण जागरूकता 

शिक्षा जीवन के विकास का रास्ता दिखाती है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य अपने प्रति समाज, राष्ट्र और पर्यावरण के प्रति, परिवेश के प्रति बोध प्राप्त करता है। मानव जीवन के विकास में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा के द्वारा पर्यावरण जागरूकता का प्रसार सरलता और प्रभावी तरीके से किया जा सकता है।

पर्यावरण चेतना का प्रारम्भिक स्वरूप उसके उपयोग तक सीमित था किन्तु अब यह बात नहीं है तथा विश्व स्तर पर यह अध्ययन का विषय बना हुआ है। पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने वाले कार्यक्रमों में समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को अपने पर्यावरण के प्रति सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों के प्रति संवेदनशील बनाना मुख्य उद्देश्य है। पर्यावरण एवं पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति जागृति एवं संवेदनशीलता के विकास से ही पर्यावरण एवं पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति जागृति एवं संवेदनशीलता के विकास से ही पर्यावरण चेतना का विकास होता है। निश्चय ही यह पर्यावरण की समुचित शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। शिक्षा द्वारा पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम को सरकार ने विभिन्न स्तर पर शुरू किया है। भारत में आजादी के बाद से प्रौढ़ शिक्षा या सामाजिक शिक्षा जैसे कार्यक्रमों को आरम्भ किया गया। पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रम को निम्न स्तर पर संचालित किया गया है।

पर्यावरण जागरूकता सतत् शिक्षा द्वारा भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँव में रहती है वहाँ शिक्षा की सुविधाएँ नहीं हैं। सरकार की प्रतिबद्धता और प्रयासों के बावजूद बहुत से लोग शिक्षा से आज भी वंचित हैं। यद्यपि संविधान में सभी को शिक्षा का अधिकार दिया गया है। इसके लिए अनेक तरह के कार्यक्रम यथा प्रौढ़ शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, दूरवर्ती शिक्षा, औपचारिक शिक्षा को आरम्भ किया गया है। इन प्रारूपों के अपने-अपने कार्यक्रम तथा लक्ष्य ग्रुप हैं। प्रौढ़ शिक्षा में सभी निरक्षर स्त्री पुरुष तथा बच्चों को साक्षर बनाना है। वैसे शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा कभी पूर्ण नहीं होती। उसकी प्रवृत्ति गतिशीलता की है। प्रत्येक क्षेत्र में ज्ञान, आविष्कार एवं विकास होते रहते हैं। इसलिए देश की प्रगति और समृद्धि के लिए आवश्यक है कि देश के नागरिकों को अपने क्षेत्र का ज्ञान हो। इसके लिए सतत् शिक्षा बहुत उपयोगी साबित हुई है। सतत् शिक्षा के कार्यक्रमों द्वारा व्यक्तियों को इस योग्य बनाने का प्रयास किया जाता है कि वे अपने क्षेत्र, व्यवसाय एवं उद्योग में आधुनिकतम ज्ञान प्राप्त करते रहें और समुचित कौशलों, योग्यताओं तथा अभिवृत्तियों का निरन्तर विकास होता रहे।

पर्यावरण जागरूकता स्कूली शिक्षा द्वारा– स्कूल शिक्षा द्वारा बच्चों को पर्यावरण का बोध प्रारम्भिक स्तर से कराया जाता है। स्कूली बच्चों को साक्षर और योग्य बनाने के लिए दी जाने वाली शिक्षा के साथ-ही-साथ पर्यावरण की शिक्षा भी दी जाती है जिससे वे अपने विषय के बोध के साथ-साथ पर्यावरण के उससे सम्बन्ध को जान सकें तथा अपने विषय क्षेत्र में पर्यावरणीय मूल्यों से परिचित हो सकें।

पर्यावरण जागरूकता सामाजिक वानिकी द्वारा- पर्यावरण जागरूकता के लिए सामूहिक प्रयास किया जाना आवश्यक होता है। इसके लिए समाज के सभी समुदाय को उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराना तथा उसे पर्यावरण के महत्त्व को समझाना बहुत आवश्यक होता है। सामाजिक वानिकी एक ऐसा प्रत्यय है जिसके द्वारा समाज के जुड़ने के साथ-साथ सामुदायिक जिम्मेदारी का अहसास होता है तथा पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण भी होता है। अतः सामाजिक वानिकी को पर्यावरणीय जागरूकता का एक महत्त्वपूर्ण घटक माना जा सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम

राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय तथा प्रादेशिक सरकारों ने पर्यावरणीय जागरूकता के लिए शिक्षा को माध्यम बनाया है। 1986 में पर्यावरण शिक्षा केन्द्र अहमदाबाद ने सम्पूर्ण देश में पर्यावरणीय जागरूकता अभियान चलाया। एक वर्ष की अवधि में सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में 45 केन्द्रों पर लगभग 6 हजार शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर तथा विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के सहयोग से जिला, ब्लाक, तहसील स्तर, गाँव स्तर पर पर्यावरण जागरूकता के लिए कार्यक्रम चलाया गया। पर्यावरण चेतना एवं जागरूकता का यह कार्यक्रम सम्पूर्ण देश को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने वाला देश का पहला ऐसा कार्यक्रम था जिसमें शिक्षा के माध्यम से कार्य किया गया और रोचक तरीके से लोगों को जागरूक बनाया गया।

भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 1986 में एक राष्ट्रीय चेतना कार्यक्रम चलाया गया जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय चेतना जागृत करना था। इसी अभियान के क्रम में प्रत्येक वर्ष केन्द्रीय पर्यावरण विभाग ने राष्ट्रीय पर्यावरण कार्यक्रम घोषित किये तथा 19 नवम्बर से 18 दिसम्बर तक एक माह को पर्यावरण माह का नाम दिया गया। यह चेतना का कार्यक्रम राष्ट्रीय पर्यावरण माह इस अवधि में प्रत्येक वर्ष पूरे देश में मनाया जाता है। इस अभियान में छात्रों, युवाओं, अध्यापकों, महिलाओं, पुरुषों, जनजातियों, प्रशासकों, व्यवसायियों तथा औद्योगिक श्रमिकों, सशस्त्र सेनाओं एवं जनसामान्य को सम्मिलित किया जाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर चलाये जाने वाले पर्यावरण के माह के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश में पर्यावरण के प्रति एक लहर पैदा कर दी गयी तथा शिक्षकों में पर्यावरण चेतना जागृत कर यह कार्यक्रम देश में प्रभावी ढंग से संचालित किया जा रहा है। इसके अलावा पर्यावरण विभाग अपने उत्कृष्ट केन्द्रों के माध्यम से पूरे देश में पर्यावरण माह के लिए विस्तृत कार्यक्रम भी प्रस्तुत करता है। संचार माध्यम तथा स्वयंसेवी संस्थाएँ भी इसमें उल्लेखनीय भूमिका निभाती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण चेतना जागृत करने हेतु बहुत सारे पुरस्कार आदि भारत में पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने में देश भर में विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के केन्द्र स्थापित किये गये हैं।

पर्यावरण की विकृति से अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, वन तथा वन्य जीवों की कमी, खनिजों की कमी, ईंधन का अभाव, भोजन तथा आवास की अपर्याप्तता, बाढ़-सूखा आदि के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ आदि प्रमुख हैं। ये सभी मानव जीवन के लिए आवश्यक तत्त्व हैं। अतः इनकी विकृति से जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अनेक प्रकार के रोगों, विसंगतियों, मारामारी आदि इसी के परिणाम हैं। प्रकृति ने सभी जीवों के लिए सभी चीजें समान रूप से दी हैं। पर मनुष्य की विकासवादी गति से पर्यावरण की वितरण व्यवस्था के प्रति असन्तुलन का खतरा पैदा कर दिया जिससे पर्यावरण की स्थिति बिगड़ गई। ऐसा पर्यावरण के प्रति जागरूकता के अभाव के कारण अधिक हुआ। पर्यावरणीय खतरों से मनुष्य अब सावधान होने लगा है तथा पर्यावरण के प्रति उसमें जागरूकता का भावबोध बढ़ने लगा है। पर्यावरण के प्रति राष्ट्रीय स्तर पर किये जा रहे प्रयासों के अतिरिक्त राज्य सरकारों तथा समाज ने भी अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हुए इस दिशा में कई कदम उठाये हैं। राज्य सरकार ने ‘पर्यावरण कल्याण कार्यक्रम’ चला रखे हैं। विभिन्न उद्योगों से पर्यावरण को क्षति कम पहुँचे इस हेतु राज्य सरकारों ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन किया हुआ है। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय पर्यावरण चेतना अभियान के अन्तर्गत एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम चलाया है जिसे 1986 से चलाया जा रहा है।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम

अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों, जिनमें संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, प्रकृति एवं संसाधनों के संरक्षण का अन्तर राष्ट्रीय संघ और अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद् आदि के सहयोग से 1968 में पेरिस में आयोजित जीवनमण्डल कांफ्रेंस में पर्यावरण के बारे में प्रमुख रूप से वैज्ञानिकों ने अपनी चिन्ता व्यक्त की। सन् 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर ‘मानव पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में पर्यावरण की समस्या को विश्व स्तर पर राजनीतिक मुद्दा बनाया गया और यह महसूस किया गया कि पर्यावरण चेतना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने के लिए सघन प्रयास किया जाना चाहिए। भारत सरकार ने भी विश्व की चिन्ता से सहमति जताते हुए एक अलग पर्यावरण विभाग की स्थापना की।

‘मानव पर्यावरण’ पर हुए अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में 26 सूत्रीय कार्यक्रम तय हुआ जिसमें पर्यावरणीय शिक्षा एवं जागरूकता की आवश्यकता पर सम्भावित कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की गयी और पूरे विश्व में 5 जून को पर्यावरण चेतना के लिए ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाये जाने की घोषणा की गई। इस सम्मेलन का पूरी दुनिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इसके बाद दुनिया के विभिन्न कोनों में पर्यावरण के प्रति चिन्ता और इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम प्रारम्भ हुए। पर्यावरण को शिक्षा के माध्यम से समझाने के लिए पहल हुई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पर्यावरण उन्मुखी बनाने पर बल दिया गया। पर्यावरण चेतना समाज के प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक स्तर के लोगों तक पहुँचाने की दिशा में कारगर कदम उठाए गये पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाने पर भी बल दिया गया जिससे पूरी शैक्षिक प्रक्रिया में समन्वय लाया जा सके। पर्यावरण के प्रति चेतना करने में तथा उसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने हेतु पर्यावरण शिक्षा को शैक्षिक कार्यक्रम का महत्त्वपूर्ण अंग माना गया। इससे पर्यावरण शिक्षा को काफी बढ़ावा मिला।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण जागरूकता के लिए पूरे विश्व में 22 अप्रैल को ‘पृथ्वी दिवस’ घोषित किया गया और पृथ्वी को किसी भी प्रकार की विकृति से बचाने के लिए जनजागरूकता अभियान शुरू किया गया। 16 दिसम्बर को ओजोन दिवस घोषित किया गया। पूरी दुनिया में ओजोन परत की सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करने की दिशा में यह सकारात्मक पहल है। इस दिन पूरी दुनिया में ओजोन परत के खतरे से जनसामान्य को आगाह करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इसी क्रम में अन्तर्राष्ट्रीय जनजागरूकता के लिए 22 मार्च को ‘विश्व जल दिवस’ का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। इस दिन जीवन में जल के महत्त्व और उसके संरक्षण के बारे में लोगों को बताया जाता है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण जागरूकता के लिए अनेक कार्यक्रम बनाये गये हैं और प्रतिवर्ष कुछ महत्त्वपूर्ण दिनों को पर्यावरण चिन्ता और चेतना से जोड़कर मनाया जाता है।

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