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शिक्षण में बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री | Multisensory Aids in Hindi

शिक्षण में बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री
शिक्षण में बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री

शिक्षण में बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री (Multisensory Aids)

बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री ( Multisensory Aids )- हमारी बौद्धिक क्रियाओं (Intellectual activities) के लिए हमारी विभिन्न ज्ञानेन्द्रियाँ उत्तरदायी होती है। ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हम नये-नये अनुभव प्राप्त करते है। अर्जित अनुभवों को व्यक्त करने के लिये लम्बे समय तक व्यक्ति शाब्दिक तथा अशाब्दिक भाषा का प्रयोग करता रहा, किन्तु भाषा के माध्यम से समस्त अनुभवों का सम्प्रेषण न केवल कठिन था अपितु असुविधाजनक भी था, फलतः मानव ने इस समस्या के समाधान के लिए विभिन्न साधनों तथा उपकरणों का प्रयोग प्रारम्भ किया। विज्ञान की उन्नति के कारण हमें इस कार्य हेतु नये-नये उपकरण प्राप्त हुए तथा पूर्व में उपलब्ध साधनों के उन्नत तथा परिष्कृत रूप प्राप्त हुए। ओवर हेड प्रोजेक्टर, रेड़ियों, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, इण्टरनेट, ई-मेल आदि वैज्ञानिक उन्नति के ही परिणाम है। सम्प्रेषण शिक्षा-प्रक्रिया का एक अनिवार्य घटक है इसलिये शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने हेतु शिक्षक अपनी सुविधा तथा उपलब्धता के आधार पर पुरातन तथा अधुनातन शिक्षण सामग्री को कक्षा-कक्ष में प्रयोग करता है ।।

पाठ-सामग्री में स्पष्टता लाने के लिये शिक्षक कुछ मूर्त वस्तुओं का उपयोग करता है ये मूर्त वस्तुएँ श्रव्य या दृश्य, दृष्टान्त या श्रव्य-दृश्य उदाहरण के रूप में होती है। क्योंकि ये वस्तुएँ श्रवण या दृष्टि की ज्ञानेन्द्रियों को उत्तेजित करके बालक को पाठ में जो कठिन स्थल होते है, उनको समझाने में सहायक होती है। इस दृष्टान्त की आवश्यकता इस कारण बहुत है कि हमारे बहुत से महत्वपूर्ण अनुभव दृश्य प्रतिमा पर ही आधारित होते है हम जो कुछ भी ज्ञान ग्रहण करते है उनमें से बहुत कुछ हमारे देखने, की ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त किया जाता है। अतएव पाठ को सीखने के लिये और नये अनुभवो को मन में बैठाने के लिये आवश्यक है कि ऐसे उपकरणो की सहायता प्राप्त की जायें जो श्रवण एवं दृष्टि की ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाकर ज्ञान ग्रहण करने के द्वार को खोल सके। इन उपकरणों को हम बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री भी कह सकते है। ये साधन तथा सामग्री शिक्षण को रोचक, सरस तथा बोधगम्य बनाते है, छात्रों में अभिप्रेरणा पैदा करते है तथा अधिकाधिक मात्रा में ज्ञानेन्द्रियों को सक्रियता प्रदान करते है सहायक सामग्री के द्वारा पाठ को रोचक, उपयोगी तथा सरल बनाया जा सकता है। जिस विषय-सामग्री को सामान्य रूप से समझना कठिन होता है उसे बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री की सहायता से सहज ही बोधगम्य बनाया जा सकता है।

डॉ.सेवानी, “बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री वह अधिगम अनुभव है जो शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीप्त करती है, छात्रों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिये प्रेरित करती है, अध्यापक की दक्षता में वृद्धि करती है तथा विषय-वस्तु को अधिक स्पष्ट करते हुए उसे अधिकाधिक इन्द्रियों में का प्रयोग करते हुए शिक्षण के लिये सरल, सहज तथा बोधगम्य बनाती है।”

ओ.एस.फाउलर ( O.S.Fowler) का कथन है, “प्राय: एक चित्र इतने विचार प्रस्तुत कर देता है, जो कई पुस्तकों से अधिक होते है।”

“A picture often conveys more than volumes”

इस कथन का तथ्य यही है कि मौखिक शिक्षण उस समय तक प्रभावशाली नही होगा, जब तक कि उसे चित्र, मॉडल, नक्शे इत्यादि की सहायता न मिलें।

बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री से हमारा तात्पर्य ऐसे समस्त भौतिक साधनों से है, जिन्हें देखकर या सुनकर या देख-सुनकर हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ उद्दीप्त होती है और हमारी संवेदनायें जाग्रत होती है जिससे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया प्रभावी बनती है। दूसरे शब्दों में, वे समस्त मौलिक साधन जो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में सहायता करते है, बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री की श्रेणी में आते है।

बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री के उद्देश्य ( Objectives of Multisensory Aids )

बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री चाहे वह किसी भी प्रकार की हो, शिक्षण के लिए निम्नांकित उद्देश्यों को प्राप्त करती है।

(1) पाठ्य-वस्तु को सरल, सुगम तथा सहज रूप से प्रस्तुत कर शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करना ।

(2) अधिगम को व्यावहारिक बनाना तथा प्रशिक्षण एवं अधिगम के सार्थक स्थानान्तरण में सहायता प्रदान करना ।

(3) शिक्षण को रोचक एवं आकर्षक बनाना तथा सम्प्रेषण की गति में तीव्रता लाना।

(4) व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार शिक्षण की व्यवस्था करना।

(5) छात्रों को अधिगम हेतु अभिप्रेरित करना, छात्रों की रूचि बढ़ाना तथा प्रबलन प्रदान करना ।

(6) छात्रों के अवधान को केन्द्रित कर बालकों को कक्षा में मानसिक रूप से उपस्थित रहने के लिये तत्पर करना तथा अमूर्त विचारा को मूर्त रूप प्रदान करना ।

(7) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों की सहभागिता क्रियाशीलता बढ़ाना।

(8) अध्यापक की दक्षता में वृद्धि लाना।

(9) छात्रों की निरीक्षण शक्ति को विकसित करना।

(10) अधिगम हेतु छात्रों की संवेदनाओं तथा भावनाओं को उद्दीप्त करना।

(11) विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों को आवश्यक प्रशिक्षण देना।

बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री की विशेषतायें (Qualities of Good Hardware Technology)

आई. के.डेवीज ने बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री या श्रव्य दृश्य सामग्री की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईयें है-

(i) यह प्रत्यक्षीकरण के विकास में सहायता करती है।

(ii) यह बोधगम्यता को विकसित करती है इसके प्रयोग से विद्यार्थियों को ज्ञान का सही बोध होता है।

(iii) यह प्रशिक्षण के स्थानान्तरण को विकसित करने में सहायता देती है।

(iv) यह ज्ञान प्राप्त करने तथा पुनर्बलन देने में सहायक होती है।

(v) यह धारणा शक्ति को विकसित करती है। इसके प्रयोग से ज्ञान को आत्मसात करने में सहायता मिलती है।

अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री में सामान्यतः नीचे लिखी विशेषतायें पाई जाती है-

(1) वही बहुइन्द्रीय सहायक सामग्री उत्तम होती है जो उपयुक्त हो अर्थात् बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री ऐसी हो जो अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकें। शिक्षक को यह पता होना चाहिये कि वह किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये सामग्री का उपयोग कर रहा है।

(2) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री वही है जो शिक्षण-अधिगम को प्रभावी रूप से प्रभावी करें।

(3) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री विषय-वस्तु तथा शिक्षण दोनों को ही सहज, सरल तथा बोधगम्य बनाती है।

(4) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री अध्यापक तथा छात्र दोनों के ही समय तथा श्रम की बचत करती है।

(5) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री छात्रों को नये-नये अनुभव प्रदान करने में सक्षम होती है।

(6) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री स्पष्ट, सुपाठ्य, सुदृश्य तथा समुचित आकार की होती है। उसमें रंगो तथा ध्वनि का सुन्दर समन्वय होता है।

(7) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में छात्रों की सहभागिता तथा सक्रियता बढ़ाती है।

(8) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री समाज व समुदाय की मान्यताओं तथा उसकी संस्कृति और रीति-रिवाजों के अनुरूप होती है।

(9) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री यथासम्भव मित्तव्ययी तथा कम लागत वाली होती है।

(10) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री में अनुकूलता पाई जाती है। वह ऐसी हो जो परिस्थितियों के अनुकूल हो तथा परिस्थितियों के बदलने से उसमें आवश्यक परिवर्तन किया जा सकें।

(11) अच्छी बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री वही है जो सहजता के साथ उपलब्ध हो और जिसे प्राप्त करने के लिये शिक्षक को विशेष परिश्रम या व्यय न करना पड़े।

(12) बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री में विषय से सम्बन्धबद्धता, यथार्थता के गुण हो जिससे वह छात्रों को यथार्थ तथा वास्तविक ज्ञान प्रदान कर सकें।

बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री का वर्गीकरण (Classification of Multisen sory aids )

हम बहुइन्द्रिय सहायक सामग्री का वर्गीकरण कई प्रकार से कर सकते है जैसे

( 1 ) प्रकृति (Nature) के आधार पर वर्गीकरण –

(i) श्रव्य शैक्षिक सामग्री:- यह हमारे ज्ञानात्मक अनुभवों को बढ़ाती है, व्याख्या तथा प्रश्नोत्तर विधि से अध्ययन हेतु ये सामग्रियाँ अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। टेपरिकॉर्डर, रेडियो, रिकॉर्ड प्लेयर तथा ग्रामोफोन का उपयोग शिक्षण क्रिया से सीखने वाले को अधिक क्रियाशील तथा धैर्यपूर्ण बनाता है। यदि पाठ के शिक्षण की क्रिया इन सामग्रियों के उपयोग से संचालित की जायें तो वह छात्रों में अधिक रूचिकर सिद्ध होती है। इन सामग्रियों के उपयोग से हम केवल ध्वनि उत्पन्न कर सकते है।

(ii) दृश्य शैक्षिक सामग्री:- इस प्रकार की शैक्षिक सामग्रियाँ व्यक्ति की दृष्टि ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करती हैं तथा उसके देखने की क्रियाशीलता को बढ़ाती है जब शिक्षक कक्षा में छात्रों को सिखाने के लिये चित्र, मानचित्र, ग्राफ प्रादर्श इत्यादि का उपयोग करता है तो अधिगम के लिये अधिक अनुकूल वातावरण निर्मित हो जाता है, इस प्रकार एक सामग्री के बिना भी प्रभावशाली शिक्षण क्रिया सम्भव नही हो सकती। लगभग एक विषय के अधिगम में इन सामग्रियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

(iii) दृश्य-श्रव्य शैक्षिक सामग्री:- वर्तमान समय में सीखने के लिये महत्वपूर्ण शैक्षिक तकनीक दृश्य-श्रव्य समग्रियों का उपयोग है। इनके द्वारा ज्ञानेन्द्रियों के अधिक मात्रा में उपयोग की संभावना बढ़ जाती है जो मुनष्य को लगभग पूरे समय तक क्रियाशील बनायें रखती है, श्रवण तथा दृष्टि ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करने वाली ये शैक्षिक सामग्रियाँ किसी भी विषय वस्तु की यथार्थता को समझने में पूरी तरह सहायक होती है, इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये शिक्षण में रोचकता बनाये रखती है आवश्यकता इस बात की है। शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशील बनाने के लिये इनका उपयोग काफी सूझ-बूझ के साथ करें। यह सूझ-बूझ शिक्षण अधिगम उद्देश्यों तथा सीखने के स्वरूपों पर आधारित होनी चाहिये।

(iv) सामुदायिक साधनः- विभिन्न सामुदायिक साधन भी अच्छी व वास्तविक शिक्षण सामग्री का काम करते हैं। मेले, तमाशे, धार्मिक पर्व, राष्ट्रीय पर्व, ऐतिहासिक धरोहरें, प्राकृतिक सम्पदा, पंचायतें, बैंक, डाकघर आदि कुछ ऐसे ही साधन है।

( 2 ) प्रक्षेपण (Projection ) के आधार पर वर्गीकरण- प्रक्षेपण के आधार पर शिक्षण सामग्री को हम नीचे लिखे दो वर्गों में विभक्त कर सकते है।

(A) प्रक्षेपित (Projection) शिक्षण सामग्री:- जिस शिक्षण सामग्री का प्रक्षेपण हो सकें वह इस वर्ग में रखी जाती है। प्रक्षेपित वस्तुये एवं उपकरण के अन्तर्गत फिल्म, फिल्मस्ट्रिीप एवं स्लाइडस ओपेक प्रोजेक्शन तथा ओवर हेड प्रोजेक्शन आते हैं।

(B) अप्रक्षेपित (Non-Projection ) शिक्षण सामग्री:- जिस शिक्षण सामग्री का प्रक्षेपण न हो सकें वह इस वर्ग में रखी जाती है। सामान्यतः इन्हें हम पुनः नीचे लिखे पाँच वर्गों में विभक्त कर सकते है-

( 1 ) ग्राफिक्स- जैसे चित्र, रेखाचित्र, पोस्टर, मानचित्र आदि।

(ii) तीन आयामी सामग्री- कठपुतली, मॉडल्स, नमूने, वास्तविक वस्तुएँ आदि।

(iii) श्रव्य सामग्री- श्यामपट्ट, लेखनपट्ट, चुम्बक बोर्ड, बुलेटिन बोर्ड, फलालीन बोर्ड आदि।

(iv) श्रव्य-सामग्री- रेडियों, ग्रामोफोन, दूरदर्शन, टेपरिकॉर्डर आदि।

(v) क्रियात्मक सामग्री- प्रदर्शन, कार्यशाला, नाटक, प्रयोग, अभिक्रमित सामग्री, शिक्षण यंत्र आदि ।

(3) तकनीकी ( Technology ) के आधार पर- तकनीकी के आधार पर समस्त प्रकार की शिक्षण सामग्री को नीचे लिखे दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।

(i) कठोर सामग्री:- इस श्रेणी में दूरदर्शन, ग्रामोफोन, प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, रेडियों जैसे यंत्रो को शामिल किया जाता है।

(ii) कोमल सामग्री:- कोमल सामग्री में सभी प्रकार की मुद्रित सामग्री को शामिल करते है। पुस्तकें, चित्र, रेखाचित्र, ग्राफ्स, आदि इस वर्ग में आते है।

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