माध्यमिक स्तर पर सामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम के उद्देश्य (Objectives of Social Studies Curriculum at Secondary Level )
प्राथमिक शिक्षा के बाद विद्यार्थियों को सामाजिक अध्ययन में सम्मिलित विभिन्न विषयो का ज्ञान देना चाहिये जिससे उनकी बुद्धि इतनी विकसित हो सके कि वे इन विषयों को समझ सके। सामाजिक अध्ययन में विभिन्न विषयों का तालमेल ऐसा हो जिससे सामाजिक अध्ययन का ढाँचा सुरक्षित रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक अध्ययन में इतिहास, भूगोल व नागरिक शास्त्र के ऐसे प्रकरण चुने जिनका परस्पर संबंध हो और जिनसे सामाजिक अध्ययन का सामान्य ढांचा सुरक्षित रहे।
इन प्रकरणों का चयन करते समय निम्नलिखित उद्देश्यो को प्रमुखता देनी चाहिये: –
(i) लोकतंत्र की आवश्यकता (Need of Democracy )
इस स्तर पर विद्यार्थियों को यह बता देना चाहिये कि व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामाजिक विकास के लिए लोकतन्त्र अति आवश्यक होता है। आज विश्व के लगभग सभी देशों में लोकतन्त्र ही चलता है क्योंकि लोकतन्त्र एक शासन व्यवस्था ही नही अपितु एक जीवन विधि भी है। लोकतन्त्र में मानवाधिकार सुरक्षित रहते है उनका विकास होता है। लोकतन्त्र के विकास के लिए विद्यार्थियों में विभिन्न गुणों जैसे-सहयोग, सहनशीलता, सद्भावना, धर्म-निरपेक्षता, साभाजिक एंव आर्थिक समता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, रचनात्मक आलोचना आदि की ओर जागरूक करना चाहिये ।
(ii) परिवर्तन प्रक्रिया की जानकारी ( Knowledge of Process Change )
माध्यमिक स्तर पर बच्चों को जीवन की परिवर्तन प्रक्रिया के बारे में ज्ञान प्रदान कर देना चाहिये।
उन्हें इस बात से अवगत कराना चाहिये कि परिवर्तन जीवन-प्रक्रिया का शाश्वत नियम है। आज की आधुनिक युग तक पहुँचते-पहुँचते मानव समाज अनेक परिवर्तनो से गुजर चुका है बच्चो को यह बता देना चाहिये कि उन्हें भी इस परिवर्तन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
(iii) विभिन्न संस्कृतियों के प्रति प्रशांसात्मक दृष्टिकोण ( Appreciative attitude towards various Cultures )
आज का युग एक देश, एक जाति विशेष नही है। वर्तमान मानव संस्कृति आज जिस मुकाम पर पहुँची है उसमें विभिन्न संस्कृतियों का सहयोग है। इसमें विभिन्न संस्कृतियों का सामवेश है। इसी बात को आधार मानते हुए बच्चो को यह सिखाना चाहिये कि सभी संस्कृतियों का मिश्रण ही आधुनिक संस्कृति का जन्मदाता है और इसके प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिये ताकि वे दूसरी संस्कृतियों से कुछ सीख ले।
(iv) मानव सभ्यता की एकता का ज्ञान ( Knowledge of Integration of Human Civilization )
माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों को बताया जाना चाहिये कि सभी सभ्यताएँ देखने में अलग-अलग हो सकती है मगर उनमें एक बुनियादी एकता विद्यमान रहती है। यही बुनियादी एकता विश्व को एक परिवार बनाने में अपनी भूमिका अदा करती है।
(v) देश की शासन प्रणाली का ज्ञान ( Knowledge of nations’s Government )
माध्यमिक स्तर पर बच्चों में राष्ट्रीय भावना का विकास किया जाता है तथा उनकी मानसिकता को अनेकता में एकता के मार्ग की ओर अग्रसर किया जाता है। माध्यमिक स्तर पर बच्चों में भावनात्मक एकता को बढ़ावा दिया जाता है तथा उन्हें देश की शासन व्यवस्था से अवगत कराया जाता है जिससे, वे देश की प्रशासनिक गतिविधियाँ विभिन्न राजनैतिक एंव नागरिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली को भली-भाँति समझ सके। इससे विद्यार्थियों में देश की शासन व्यवस्था की जानकारी होगी तथा वे इसमें होने वाले परिवर्तनों से भी अवगत रहेंगे।
(vi) अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के प्रति दायित्व ( Responsibility towards development of Internationalism )
विज्ञान एंव तकनीकी ने आज विश्व को इतना छोटा कर दिया है कि सभी देश एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़ गए है। आज एक-दूसरे पर निर्भरता भी बढ़ गई है। आज अन्तसंबन्धों की अनिवार्यता अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास से सभी देशों में परस्पर मधुर सम्बन्धों का प्रसार होगा और विश्व में शांति बनी रह सकेगी। इसलिए इस स्तर पर विद्यार्थियों में अन्तर्राष्ट्रीयता के प्रति दायित्वों के निर्वाह जरूरत सामाजिक अध्ययन शिक्षण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
(vii) भौगोलिक ज्ञान की आवश्यकता (Need of Geographical knowledge)
विद्यार्थियों को विश्व के भौगोलिक क्षेत्रो का ज्ञान देना ही काफी नही बल्कि उन्हें यह भी बताना चाहिये कि कैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परस्पर निर्भर है। यह निर्भरता आज समाज को एक दूसरे से जोड़े रखती है जिससे विद्यार्थियों को बताया जाना चाहिये कि विभिन्न क्षेत्रों में लोगो का जीवन उनकी भौगोलिक मानव कल्याण का विकास तथा मानवीय संवेदना का विकास होता है। माध्यमिक स्तर पर परिस्थितियों से बहुत प्रभावित होता है। भौगोलिक परिस्थितियाँ मानव के सांस्कृतिक, राजनैतिक,सामाजिक, आर्थिक सभी प्रकार के जीवन को प्रभावित करती है तथा उनमें समय-समय पर परिवर्तन करती है तथा उनमें समय-समय पर आने वाले परिवर्तन भी आते रहते है। इसलिए बच्चों को भौगोलिक ज्ञान व इसकी आवधारणाओं से परिचित करवा देना चाहिये। इस स्तर पर इन सभी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय जरूरी है
(1) सांस्कृतिक पक्ष ( Cultural Aspect):
(i) यूनानियों, मुसलमानो तथा ईसाइयों का भारतीय सभ्यता एंव संस्कृति पर प्रभाव।
(ii) आधुनिक संस्कृति के विकास में विभिन्न प्रवृत्तियों एंव संस्कृतियों का योगदान।
(iii) विभिन्न सभ्यताओं की संस्कृति का जन्म एंव विकास।
( 2 ) ऐतिहासिक पक्ष ( Historical Aspect ):
(i) आदिमानव का जीवन के लिए संघर्ष एंव उसका विकास।
(ii) विभिन्न जातियों का जीवन-साधनों की तलाश में विभिन्न स्थानों पर बस जाना।
(iii) आर्यों का वास्तविक स्थान व इस सभ्यता का विकास।
(iv) विभिन्न सभ्यताओं को जन्म तथा विकास।
(3) भौगोलिक पक्ष ( Geographical Aspect ):
(i) ग्रहों की स्थिति तथा उन ग्रहों में पृथ्वी की स्थिति का ज्ञान ।
(ii) जलवायु परिवर्तन तथा मौसम परिवर्तनो की जानकारी।
(iii) जलवायु परिवर्तन तथा मौसम का विभिन्न लोगो के जीवन पर प्रभाव का ज्ञान।
(iv) विश्व के प्राकृतिक खण्ड तथा उनकी भौगोलिक अवस्थाओं का लोगो के जीवन पर प्रभाव।
(v) भारतीय भौगोलिक विशेषताओं का ज्ञान ।
(vi) भारतीय संचार प्रणाली तथा परिवहन व्यवस्था के बारे में जानकारी।
( 4 ) आर्थिक पक्ष ( Economic Aspect ):
(i) भारतीय कृषि तथा इसका आधुनिकीकरण कैसे हुआ इसका ज्ञान होना चाहिये।
(ii) भारतीय उद्योग-उनमें विद्यमान विज्ञान एंव तकनीकी विकास तथा उसका योगदान का ज्ञान ।
(iii) योजनाओं का ज्ञान खासकर पंचवर्षीय योजनाओ के द्वारा विकास कैसे हुआ।
(iv) जनसंख्या तथा जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ा है।
(v) अन्य देशो के साथ भारत के आर्थिक सम्बन्ध ।
(vi) विभिन्न देशो में भारत की आत्मनिर्भरता।
(vii) विश्व के देशो की आर्थिक दृष्टिकोण से अन्तनिर्भरता।
(5) राजनैतिक पक्ष ( Political Aspect):
(i) सामुदायिक जीवन का गठन एंव इनका विभिन्न गठनो के साथ आपसी संबंध।
(ii) शासन पद्धति के बारे में ज्ञान कि किस स्तर पर कैसी शासन प्रणाली होती है।
(iii) केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के विभिन्न अंग तथा उनका आपसी सम्बन्ध क्या होता है कैसे वे मिलकर कार्य करती है।
(iv) बहु-उद्देश्य योजनाएँ उनकी सफलता तथा विकास।
(v) लोकतंत्र की उपलब्धियाँ तथा उससे सम्बन्धित समस्याएँ ।
(vi) जन-संचार साधनो का विकास तथा जन-कल्याण में वे कितने सहायक है।
इस प्रकार माध्यमिक स्तर पर सामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम के जिन उद्देश्यो का विवरण दिया है वे पूरी तरह अन्तिम नही है क्योंकि समाज में समय-समय पर परिवर्तन आने के कारण यह विषय एक गतिशील विषय है जिससे इसके उद्देश्यो में परिवर्तन सापेक्ष है। आवश्यकता इस बात की है कि विद्यार्थियों को अपने देश की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक स्थिति से अवगत कराया जाए तथा उन्हें विवेकपूर्ण लोकतन्त्रात्मक नागरिकता के लिए तैयार किया जाए। उनमें राष्ट्रीय भावना के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय भावना का भी विकास किया जाए। इन व्यापक उद्देश्यो को लेकर हम विभिन्न शिक्षा स्तरो पर सामाजिक अध्ययन शिक्षण के उद्देश्यों को निर्धारित कर सकते है तथा उनकी प्राप्ति के लिए उचित विषय सामग्री तथा शिक्षण विधियों का प्रयोग कर सकते है।
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