चार्ट का अर्थ (Charts in Hindi)
चित्र या ग्राफो के रूप में जो कुछ अलग-अलग प्रदर्शित किया जा सकता है उन सभी को सुविधापूर्वक अलग-अलग या इक्ट्ठे रूप में प्रदर्शित करने का कार्य चाटों द्वारा अच्छी तरह किया जा सकता है। डेल के अनुसार, “चार्ट एक दृश्य सामग्री चिन्ह ” है जो विषय-वस्तु के सार, तुलना या किसी दूसरी क्रिया की व्याख्या करने में सहायता देता है” चार्ट की सहायता से संख्यात्मक और गुणात्मक दोनो ही प्रकार की सूचनाओं व तथ्यों को प्रदर्शित किया जा सकता है। कक्षा शिक्षण के प्रत्येक स्तर पर चाहे वह पूर्व ज्ञान परीक्षा या प्रस्तावना से सम्बन्धित हो या विषय वस्तु के क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण, पुनरावृति, अभ्यास अथवा गृहकार्य प्रदान करने से, चार्ट सभी स्तर पर अध्यापक को उसके कार्य में सहायता प्रदान करते है। यही कारण है कि सभी विषयों से सम्बन्धित पाठ्य सामग्री के शिक्षण-अधिगम कार्यो में वार्टो से पूरी सहायता लेने का प्रयास किया जाता है। तथ्यो या विचारो को एक क्रमबद्ध लड़ी में प्रस्तुत करने के लिए चार्ट अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होते है। उदाहरण के लिए इतिहास शिक्षण में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को स्पष्ट किया जा सकता है।
चार्टी के प्रकार (Types of Chart )
चार्ट कई प्रकार के होते है अध्यापक पाठ के अनुसार चार्ट तैयार करवाकर शिक्षण उपागम के रूप में प्रयोग कर सकता है। कुछ चार्ट इस प्रकार है-
(1) समय चार्ट (Time Chart ) :- इसे समय सारणी भी कहते है। इनके प्रयोग से अधिकतर ऐतिहासिक तिथियों, घटनाओं, कालक्रमानुसार विभिन्न शासको व युद्धों का वर्णन क्रम के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है।
(2) तालिका चार्ट (Table Chart ) :- इनमें कई प्रकार के खाने बनाकर विचारो, घटनाओं तथा विवरणो को क्रमानुसार व्यवस्थित किया जाता है। ऐतिहासिक घटनाओं का क्रम, शासको का क्रम, युद्धों आदि की सूची भी समयानुसार इन चार्टो द्वारा दी जाती है।
( 3 ) धारा चार्ट (Flow Chart ):- इसके द्वारा किसी वस्तु का क्रमिक विकास तथा राजे- महाराजाओं का उत्थान व पतन दर्शाया जाता है। कानून की रचना का चार्ट बनाया जाता है।
(4) चित्र सम्बन्धी चार्ट ( Picture Chart ) :- इसमें विभिन्न चित्रों को इक्ट्ठा करके दर्शाया जा सकता है, जैसे- यातायात के साधन, सिंचाई के साधन, डाक के साधन आदि।
(5) संगठन चार्ट (Organisation Chart ):- इसका प्रयोग सामाजिक अध्ययन में विशेषकर किया जाता है। विभिन्न शासन प्रबन्धो का केन्द्र राज्य, संसद, न्यायालय, कार्यपालिका, पंचायत आदि के संगठन रूप चार्ट पर दिखाया जाता है।
(6) वृक्षाकृति चार्ट (Tree Chart):- किसी भी वस्तु के क्रमिक विकास को इस चार्ट द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। वृक्ष का तना मुख्य रूप होता है, उसकी टहनियाँ उसके विकास को दर्शाती है। वनस्पति विज्ञान में पेड़-पौधों का विकास तथा जीव-विज्ञान में जीव जन्तुओं का क्रमिक विकास इसके अच्छे उदाहरण है। जिस प्रकार से तने से डालियाँ पत्तियाँ निकलकर विकास करती है, उसी प्रकार चार्ट का विकास होता है।
( 7 ) ग्राफ चार्ट ( Graph Chart ) :- ऐसे चार्ट अधिकतर भूगोल एंव सामाजिक अध्ययन में प्रयोग होते हैं इन चारों द्वारा आँकडों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे वर्षा तथा तापक्रम, वर्षा तथा जनसंख्या आदि। ये पाँच प्रकार के होते है- क्षेत्रफल, पाई, चित्र, लाइन एंव लम्बा ग्राफ ।
चार्टो का प्रभावपूर्ण उपयोग ( Effective Use of Charts )
चार्टो का दृश्य साधन के रूप में अच्छी तरह प्रयोग करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-
(i) चार्टो के द्वारा निश्चित शैक्षिक उद्देश्यो की प्राप्ति में सहायता मिलनी चाहिए।
(ii) यद्यपि विभिन्न प्रकार के चार्ट पुस्तकालय तथा बाजार में उपलब्ध हो सके परन्तु जहाँ तक संभव हो सके इनका निर्माण अध्यापक की देख-रेख में छात्रों द्वारा किया जाना चाहिये।
(iii) जिस विचार, तथ्य, सूचना अथवा प्रक्रिया को चार्ट द्वारा प्रदर्शित करना हो उसके ऊपर भली-भाँति विचार कर चार्ट की दृश्य सामग्री को इस प्रकार दिखाया जाना चाहिए कि उससे प्रस्तुत विषय को स्पष्ट एंव प्रभावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया जा सके।
(iv) विषय वस्तु, छात्रों स्तर, उपलब्ध शिक्षण-अधिगम परिस्थितियों आदि बातों को ध्यान में रखकर ही उपयुक्त प्रकार के चार्टो का चयन किया जाना चाहिये।
(v) एक चार्ट का केवल एक ही उद्देश्य होना चाहिये। एक ही चार्ट में बहुत सी बातों को शामिल कर लेने से उसकी स्पष्टता पर असर पड़ता है।
(vi) जिस उद्देश्य से चार्ट को प्रदर्शित किया जा रहा है उसी को स्पष्ट करने से सम्बन्धित आवश्यक सामग्री ही उसमें होनी चाहिए। अनावश्यक व्यर्थ की बातें नही।
(vii) चार्टो में दृश्य सामग्री की उत्तमता एंव प्रभावपूर्णता पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। इस दृष्टि से रंगो, अक्षरो, आकृतियों के आकर्षण तथा आकार आदि पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
(viii) कक्षा में जिस चार्ट की जिस समय आवश्यकता हो उसको उसी समय प्रदर्शित किया जाना चाहिये। चार्ट को इस तरह प्रदर्शित किया जाना चाहिये कि उसका सम्पूर्ण भाग विद्यार्थियों को अच्छी तरह दिखाई दे सके।
चाटों का प्रयोग कुशल अध्यापक द्वारा ही सम्भव है। अध्यापकों को उचित समय पर ही प्रदर्शन करना चाहिए। जैसे-जैसे विषय बढ़ता जाए तभी अध्यापक को एक-एक कागज हटाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों की रूची बनी रहे। चार्ट का प्रयोग अन्य दृश्य-श्रव्य सामग्री की बजाय अधिक प्रभावशाली है।
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