वर्तमान समय में गांधीवाद की प्रासंगिकता
गाँधीजी की विचारधारा का आधारभूत तत्व मानव जाति का शारीरिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक उत्थान था। उनका मानना था कि यदि मनुष्य सही अर्थों में मानव बन जाये और अपने समस्त सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कार्यों को अन्तरात्मा की आवाज के अनुसार करे तो समाज अथवा विश्व में दुःख, संकट तथा समस्या जैसी कोई स्थिति नहीं उत्पन्न हो सकती।
जिस समय महात्मा गाँधी जी ने सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश किया था उस समय सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक वातावरण अत्यन्त भ्रष्ट था। सामान्य रूप से यह मान्यता प्रचलित थी कि नैतिकता के नियम तो व्यक्तिगत जीवन के लिए ही हैं और सार्वजनिक जीवन तो नैतिक मानदण्डों से परे है। गाँधीजी जी की अन्तरात्मा सर्वत्र फैली हुई हिंसा और भ्रष्टाचार से क्षुब्ध हो उठी और उन्होंने नैतिक मूल्यों को सार्वजनिक जीवन का आधार बनाने का संकल्प किया। उन्होंने अपने व्यवहार और कार्य से यह सिद्ध कर दिया कि सत्य और अहिंसा व्यक्ति के ही नहीं वरन् सामाजिक और विशेषतया राजनीतिक व्यवहार के भी आधार बन सकते हैं।
गाँधीजी की समस्त राजनीति धर्म पर आधारित है। उन्होंने राजनीति को वर्तमान युग की कूटनीति से ऊंचा उठाकर नैतिकता के उच्च स्तर पर पहुँचाया और कहा कि सार्वजनिक तथा राजनीति जीवन में भी श्रेष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नैतिक साधनों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने.धर्म को रूढ़िवादी कर्मकाण्डों तथा पाखण्डों से मुक्त कराने का भी कार्य किया तथा उसके क्षेत्र को संकुचित न रखकर और व्यापकता प्रदान की।
गाँधीजी के समय में तथा उससे पूर्व पश्चिमी औद्योगिक सभ्यता ने मानव जाति को बहुत अधिक आघात पहुँचाया था। यद्यपि आज भी उसका असर देखने को मिलता है। किन्तु महात्मा गाँधी ने व्यक्ति के महत्व, मानवीय शक्तियों में हमारे विश्वास को पुनः जागृत करके मानव जाति की बहुत बड़ी सहायता की है। इसके अतिरिक्त गाँधी जी ने इस मूल सिद्धान्त का प्रतिपादन की “सामाजिक व आर्थिक स्वाधीनता के बिना राजनीतिक स्वाधीनता का कोई मूल्य नहीं है।” भारतीय जनमानस में स्वतन्त्रता के लिए तथा उसके स्वरूप के प्रति एक स्पष्ट दृष्टिकोण का सूत्रपात किया।
यद्यपि कुछ आलोचकों ने गाँधी जी की खूब आलोचना की। उनके विचार एवं दृष्टिकोण में कई खोट निकालने के प्रयास किये किन्तु उन सबके बावजूद गाँधी जी तथा उनकी विचारधारा का जो प्रभाव भारत के साथ-साथ दुनिया के अनेक देशों पर पड़ा उसे सराहा गया कारण इसके आलोचकों की जुबान स्वतः ही बन्द हो गई। यह उस समय भी प्रासंगिक था तथा आज भी प्रासंगिक है एवं कभी भी इसकी प्रासंगिकता में किसी प्रकार की कमी नहीं आने वाली है।
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