हिन्दी व्याकरण

मौलिक लेखन की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिये।

मौलिक लेखन की आवश्यकता
मौलिक लेखन की आवश्यकता

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मौलिक लेखन की आवश्यकता

छात्रों में मौलिक लेखन की आदत का विकास करना हिन्दी अध्यापक का उद्देश्य होना चाहिये। भाषा एक सृजनात्मक शक्ति है और विचार-विनिमय का एक साधन है। इसके प्रमुख रूप से दो उद्देश्य हैं – प्रथम, भाव-ग्रहण एवं द्वितीय, भाव-प्रकाशन। भाव-प्रकाशन में बालक बोलकर तथा लिखकर अपने भाव प्रकट करता है। इसी प्रकार प्रचलित भाषा के दो प्रमुख रूप हैं- प्रथम, उच्चरित तथा द्वितीय, लिखित । उच्चरित रूप काल के सन्दर्भ में अस्थायी होता है तथा लिखित रूप स्थायी होता है। भाषा के लिखित रूप की कृपा से ही हमारा अतीत आज हमारे शब्द-चित्रों के रूप में उभर कर आया है। भाषा का लिखित रूप हमारी समृद्धि का द्योतक है। हमारी आज की पूर्ण सभ्यता को भाषा के लिखित रूप ने प्रभावित किया है। समय-समय पर प्रचलित भाव प्रकाशन की शैलियाँ तथा मान्य विचार आज भाषा के लिखित रूप में ही हमें उपलब्ध हो पाते हैं। मौलिक लेखन मनुष्य की पहचान है। इस लेखन कार्य से लेखनकर्ता की मनोदशाओं का परिचय मिलता है। सुन्दर लेख के बिना शिक्षा को अपूर्ण माना जा सकता है। मध्य युग में सुडौल लिपि पर विशेष ध्यान दिया जाता था। मुद्रण के प्रचलन से इस दिशा में उदासीनता परिलक्षित हुई है, परन्तु मौलिक लेखन में सुलेख का अपना विशेष महत्त्व है। अतः इसका अभ्यास अति आवश्यक है।

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