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मृदा प्रदूषण के प्रभाव |मृदा प्रदूषण रोकने के उपयोग

मृदा प्रदूषण के प्रभाव |मृदा प्रदूषण रोकने के उपयोग
मृदा प्रदूषण के प्रभाव |मृदा प्रदूषण रोकने के उपयोग

मृदा प्रदूषण के प्रभाव (Effects of soil pollution)

यह सर्वविदित है कि मृदा एक आधारभूत संसाधन है। इसके गुणों में हास का प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ता है। मृदा प्रदूषण के कारण उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है तथा उत्पादन अत्यधिक कम हो जाता है जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिये महान संकट का कारण है। प्रदूषित मृदा के विषैले तत्त्व वनस्पतियों के माध्यम से मनुष्यों तक पहुँचकर बीमारियों कारण बनते हैं। मृदा प्रदूषण के कुछ दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(1) विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों के अनियमित निक्षेपण से न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है और दुर्गन्ध आती है बल्कि अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं की संख्या भी बढ़ती है। इनमें मक्खी, मच्छर, चूहे एवं कीट-भक्षी प्रमुख हैं। अपशिष्टों के सड़ने गलने से विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं में वृद्धि होती है जिससे आँखों के अनेक रोग, मियादी बुखार (मोतीझरा), पेचिश, आन्त्रशोध, हैजा, मलेरिया, पीलिया आदि बीमारियों का प्रसार होता है।

(2) सार्वजनिक संस्थानों, औद्योगिक इकाइयों, होटलों, घरों, कल-कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित जल की समुचित व्यवस्था न होने के कारण स्थान-स्थान पर जल भराव, कीचड़ या दलदल हो जाते हैं जिससे मृदा प्रदूषण तो होता ही है साथ ही रोग के कोटाणुओं में भी वृद्धि होती है।

(3) भारत की अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है जहाँ सम्प्रवाही शौचालय के अभाव में लोग खुले में मल त्याग करते हैं जिससे मृदा एवं पर्यावरण दोनों प्रदूषित होते हैं तथा साथ ही विभिन्न प्रकार के रोगों पेचिश, हैजा, मलेरिया, पीलिया, टाइफाइड, आन्त्रशोध, यकृतशोध आदि का प्रसार होता है।

(4) औद्योगिक अपशिष्टों द्वारा मृदा अथवा जल स्रोतों के प्रदूषण से हानिकारक रसायन मनुष्यों एवं पशुओं में पहुँच जाते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं।

(5) अपशिष्टों तथा मल से युक्त जल द्वारा भूमि की निरन्तर सिंचाई करते रहने पर मृदा की सान्ध्रता में ह्रास हो जाता है जिससे मृदा में वायुसंचार बाधिक होता है जो जड़ों एवं सूक्ष्म जीवाणुओं के श्वसन में अवरोध उत्पन्न करता है तो ऐसी मृदा रोगी हो जाती है।

(6) अपशिष्टों के अनियमित निक्षेपण के कारण नालियाँ एवं नाले अवरुद्ध हो जाते हैं जिससे प्रदूषित जल एवं कीचड़ चारों ओर मृदा पर फैल जाता है और मृदा प्रदूषित हो जाती है।

(7) अपशिष्टों के हानिकारक विषैले तत्त्व मृदा में पहुँच जाते हैं जिससे मृदा प्रदूषित हो जाती है। ऐसी मृदा में उत्पादित फसलों के उपयोग से ये तत्त्व पशुओं एवं मनुष्यों में पहुँच जाते हैं जिससे उनमें अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

मृदा प्रदूषण रोकने के उपयोग (Measure to controlling soil pollution)

मृदा प्रदूषण की रोकथाम के लिये निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिये-

  1. फसलों पर जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिये।
  2. डी.डी.टी. का प्रयोग प्रतिबन्धित किया जाना चाहिये।
  3. सिंचाई तथा उर्वरकों का प्रयोग करने से पूर्व मृदा एवं जल की जाँच करा लेनी चाहिये।
  4. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट एवं हरी खाद के प्रयोग को वरीयता दी जानी चाहिये।
  5. खेतों में जल निकास की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिये।
  6. क्षारीय मृदा को वैज्ञानिक ढंग से शोधित किया जाना चाहिये। जिप्सम, सिंचाई एवं रासायनिक खादों का प्रयोग कर क्षारीय मृदा को उर्वर बनाया जा सकता है।
  7. स्थानान्तरित या झूमिंग कृषि पर रोक लगायी जानी चाहिये।
  8. मृदा का परीक्षण कर उसमें आवश्यक तत्त्वों की आपूर्ति की जानी चाहिये तथा मिट्टी के अपरदन को रोकने के उपाय किये जाने चाहिये।
  9. मृदा उर्वरता में वृद्धि के लिये खेतों में पेड़-पौधों की पत्तियाँ, छिलके, डण्ठल, जड़ें, तने आदि बढ़ाये जाने चाहिये तथा मृदा को कुछ समय के लिये परती या खाली छोड़ देना चाहिये।
  10. खेतों की मेढ़ों तथा ढालू भूमि पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिये जिससे मृदा का अपरदन रोका जा सके।

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